नागौर: केवल 6 शिक्षकों के सहारे चल रहा माडी बाई गर्ल्स कॉलेज, दो सालों से नहीं कोई प्रिंसिपल!
राजस्थान के नागौर जिले के एकमात्र गर्ल्स कॉलेज की लड़कियां अपनी पढ़ाई को लेकर बीते कई सालों से संघर्ष कर रही हैं। मंगलवार, 11 जनवरी को इन छात्राओं ने भारी संख्या में कॉलेज से जिला कलेक्ट्रेट परिसर के बीच एक पैदल रैली निकाली और कलेक्ट्रेट पर धरना देते हुए प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी छात्राओं की मांग है कि कॉलेज में प्रिंसिपल और शिक्षकों के रिक्त पड़े पदों को जल्द से जल्द भरा जाए, जिससे उनकी पढ़ाई बिना रुके आगे चलती रहे और उन्हें विकास के बेहतर अवसर मिल सके।
बता दें कि इस कॉलेज में इस समय न कोई पर्मानेंट प्रिंसिपल है और न ही पढ़ाने के लिएस स्वीकृत संख्या में शिक्षक। कुल 13 शिक्षकों की जगह केवल 6 शिक्षकों के दम पर लड़कियों के इस सरकारी कॉलेज में शिक्षा राम भरोसे चल रही है। बीते दो सालों से कॉलेज में प्राचार्य का पद तक रिक्त है, तो वहीं बार-बार राज्य सरकार और प्रशासन के सामने गुहार लगाने के बाद भी यहां करीब 800 लड़कियां उचित शिक्षा, शिक्षक और सुविधाओं को तरस रही हैं।
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहीं छात्र संघ अध्यक्ष रितिका शर्मा ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया कि बीते लंबे समय से कॉलेज में लड़कियां शिक्षा और अन्य जरूरी सुविधाओं को लेकर संघर्ष कर रही हैं। यह कॉलेज महज़ गेस्ट फैकल्टी के भरोसे चल रहा है। प्राचार्य की जगह भी अनुभवहीन कार्यवाहक प्राचार्य हैं, पढ़ाने के लिए प्रोफेसर नहीं हैं। लाइब्रेरी, खेल के मैदान, आधुनिक सुविधाओं से लैस ऑडिटोरियम, एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी पर यहां की छात्राओं का भी हक़ है लेकिन परमानेंट स्टाफ न होने के कारण इन सुविधाओं से छात्राएं महरूम हैं।
रितिका शर्मा के मुताबिक छात्र संघ अध्यक्ष होने के नाते उनका उद्देश्य इस महाविद्यालय को विकास के उच्च स्तर तक पहुंचाना है, जिससे ज्यादा से ज्यादा जिले की लड़कियां लाभान्वित हो सकें। नागौर की लड़कियों का भी उन सभी सुविधाओं पर बराबर का हक़ है, जो बड़े शहरों के विद्यालयों में बड़ी आसानी से मिल रही होती हैं। फिर शिक्षा तो सभी के लिए एक समान और बराबर होनी ही चाहिए।
महाविद्यालय प्रशासन का क्या कहना है?
न्यूज़क्लिक को इस संबंध में महाविद्यालय की कार्यवाहक प्रिंसिपल माया जाखड़ ने जानकारी देते हुए बताया कि वो इस पोस्ट पर 2021 से कार्यरत हैं और इन मामलों में उनका बहुत अनुभव नहीं है। वो बताती हैं कि कॉलेज में शिक्षकों के कुल 13 पद स्वीकृत हैं, लेकिन फिलहाल सिर्फ 6 से ही काम चलाना पड़ रहा है। इसके अलावा माया इस बात को भी स्वीकारती हैं कि बिना पर्मानेंट स्टाफ और प्रिंसिपल के छात्राओं को तमाम बेसिक सुविधाओं संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
माया जाखड़ के मुताबिक छात्राओं के धरने की उन्हें कोई जानकारी या सूचना पहले से नहीं मिली थी। उन्हें बाद में इस बार में सूचित किया गया और फिर उन्होंने धरना स्थल पर जाकर छात्राओं को समझाया और ज्ञापन सौंप कर धरना खत्म करने के लिए राज़ी किया। उनके अनुसार छात्राओं की ये मांगे सीधे-सीधे राज्य सरकार से है, इसमें महाविद्यालय प्रशासन की कोई भूमिका नहीं है।
प्रदर्शन में शामिल कुछ लड़कियों का कहना है कि बगैर शिक्षकों के उन्हें पढ़ाई में बहुत परेशानी हो रही है। परीक्षा की तैयारी भी ढंग से नहीं हो पा रही है। इसलिए शासन को जल्द से जल्द शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्ति करनी चाहिए। कई छात्राओं ने बताया की उन्होंने पहले भी इस कॉलेज में शिक्षकों और सुविधाओं की कमी के बारे में सुना था लेकिन शहर में केवल लड़कियों के लिए और कोई सरकारी या प्राइवेट कॉलेज नहीं होने के चलते उन्हें अपनी उच्च शिक्षा के लिए मजबूरन इस डिग्री कॉलेज में दाखिला लेना पड़ा। लाइब्रेरी, खेल और अन्य सुविधाएं तो दूर की बात है, अब जब यहां विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं, तो कैसे लड़कियां पढ़ेंगी। इन लड़कियों की मानें तो ये पहले भी अपनी मांगों को लेकर कई बार शासन को लिखित में शिकायत दे चुकी हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। छात्राओं ने बताया कि पिछले लंबे समय ये वे अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं।
गौरतलब है कि जिले में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ाने के लिए साल 1997 में किराए के भवन में केवल 3 विषयों हिंदी, इतिहास और राजनीति विज्ञान के साथ इस कॉलेज की शुरुआत हुई थी। लेकिन धीरे-धीरे लड़कियों की बढ़ती तादाद और वित्तीय मदद के चलते इसे साल 2014 जनवरी में इस कॉलेज को इसके स्वयं के भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। फिलहाल ये कॉलेज आर्ट्स में पोस्ट ग्रेजुएशन और आर्ट्स-साइंस में ग्रेजुएशन की शिक्षा प्रदान करता है। हालांकि कांग्रेस की गहलोत सरकार इस महाविद्यालय की ओर कितना ध्यान दे रही है, ये तो इसका हाल देखकर ही समझ में आ रहा है। बिना शिक्षकों के शिक्षा कैसे मिलेगी और लड़कियां कैसे पढ़ेंगी, इसका जवाब भी राज्य सरकार से तलब होना चाहिए।
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