"हक़ मांगता हूं तो कहते हैं नक्सली!" : आदिवासी समाज के अमन का प्रतिरोधी रैप सॉन्ग
''कुछ बोलता हूं तो कहते हैं नक्सली
हक मांगता हूं तो कहते हैं नक्सली
सांस लेता हूं तो कहते हैं नक्सली
जान लेकर के कहते हैं ये नक्सली"
ये लाइनें किसी आंदोलन या फिर विरोध प्रदर्शन के दौरान लगाया गया कोई नारा नहीं, बल्कि ये लाइनें हैं एक रैप सॉन्ग की, जिसे गाया है रांची के अमन कच्छप ने। अमन के रैप सॉन्ग, किसी क्रांति के गीत नहीं बल्कि उनके मुताबिक उन्होंने एक आदिवासी होने के नाते जो अपने आस-पास देखा, सुना और जिससे वो गुज़र उसे अपने रैप में उतारा है।
नक्सली शब्द आते ही एंटी नेशनल इमेज जेहन में तैरने लगती है लेकिन इसी लफ़्ज़ से जुड़ा ये गीत कुछ और ही कहता है। ये गीत कहना चाहता है कि हर आदिवासी और उस जैसा दिखने वाला नक्सली नहीं होता, अपनी मां समान मिट्टी (ज़मीन), जंगल और जल की बात करने का मतलब नक्सली नहीं होता।
हमने 'नक्सली' रैप लिखने वाले अमन कच्छप से फोन पर बात की और समझना चाहा उनके गीतों के भाव को, 25 साल के अमन एक छात्र हैं। अपने बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि ''छात्र होने के साथ ही मैं कलाकार और यू ट्यूबर हूं। चूंकि आदिवासी हूं तो अपने समाज के बारे में भी सोचता हूं। वैसे तो मेरी ज्वाइंट फैमिली नहीं है लेकिन मेरा परिवार बहुत बड़ा है अगर कहूं तो रांची के हर टोले में मेरे परिवार वाले हैं, हर कोई जान-पहचान वाला है।"अपने बारे में और जानकारी देते हुए वे कहते हैं कि ''झारखंड में कुल 32 ट्राइब हैं और मैं उरांव ट्राइब से आता हूं।"
अमन का एक रैप सॉन्ग 'नक्सली' वायरल हो रहा है, ये रैप नागपुरी भाषा में है, जब हमने उनसे पूछा कि इस गीत के माध्यम से वे क्या कहना चाहते हैं तो उनका जवाब था, ''जिस तरह से एक पत्रकार का काम होता है समाज में जो भी हो रहा है उसे निष्पक्ष तरीके से दिखाना, लोगों तक पहुंचाना उसी तरह से हमने भी कला के सहारे लोगों तक समाज की बात पहुंचाने की कोशिश की है।" अमन उन पुराने दिनों को याद करते हैं जब उनके गांव-घर में हर दिन की बात रखने के लिए रात के वक़्त 'अखाड़ा' का आयोजन किया जाता था। अखाड़ा के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि ''रात को जब महिलाएं खाना बना लेती थी और पुरुष काम खत्म कर लेते थे तो सभी अखाड़ा में जाते थे और ढोल, नगाड़े और मांदर को बजा कर अपनी बातों को शेयर करते थे, वे बताते थे कि आस-पड़ोस या समाज में जो चल रहा है उसे गीत के माध्यम से बताते थे, वे बताते थे कि मेरे खेत में पानी नहीं है, या मेरी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है वो बीमार है तो ये सब वे गा कर बताते थे। अभी हम रैप के सहारे बताने की कोशिश कर रहे हैं।"
अमन फेमस नागपुरी लोक गायक पद्मश्री से सम्मानित मधु मंसूरी और डॉ.राम दयाल मुंडा से प्रेरणा लेकर आदिवासी समाज की समस्या को कला के माध्यम से रखना चाहते हैं और उन्होंने इसके लिए रैप सॉन्ग को चुना। लेकिन वो गानों को हिंदी या इंग्लिश की जगह नागपुरी भाषा में ही गाते हैं जिसकी वजह वे बताते हैं कि ''चूंकि झारखंड में 32 ट्राइब हैं तो यहां अलग-अलग बोली-भाषा भी हैं कोई मुंडारी में बात करता है तो कोई संथाली में लेकिन एक कॉमन भाषा है जो यहां का हर आदिवासी समझता है और वो है नागपुरी, तो यहां जितने भी ट्राइब हैं वे भले ही हिंदी ना जानते हों लेकिन वो सादरी नागपुरी जानते हैं।"
अमन ने लॉकडाउन के दौरान अपने रैप सॉन्ग को लिखना शुरू किया था और जैसे ही लॉकडाउन में कुछ छूट मिली उन्होंने तुरंत ही गानों को शूट किया और सोशल मीडिया पर रिलीज़ कर दिया। वो बताते हैं कि उनका एक एल्बम आने वाला है जिसका नाम है 'धरती होन' होन का मतलब होता है पुत्र तो इस एल्बम के नाम का मतलब हुआ 'धरती पुत्र' जिसमें गाने हैं 'नक्सली', 'धरती एंथम', और 'जामुन फरे' इसके अलावा भी उनके कुछ गाने हैं जैसे 'जत्रा लगाओ' इस गाने में अमन सरना कोड लागू करने के मुद्दे को उठाते हैं।
वे 'हां नक्सली नक्सली' गाने के बारे में बताते हैं कि ''शहर में इतना असर नहीं दिखता लेकिन रांची से बाहर अगर कोई आदिवासी धरना देता है, या किसी समस्या के खिलाफ आवाज़ उठाता है तो उसे गोली मार दी जाती है और उसके खिलाफ भी कोई आवाज़ उठाने वाला नहीं रहता है, नक्सली बोल कर गोली मार दिया तो उसकी मदद करने कोई नहीं आएगा वो गुमनामी में ही चला जाएगा, तो उसी के ऊपर गाना बनाया है और इसमें मैंने किसी का पक्ष नहीं लिया है, इसमें मैंने लिखा है।"
मेरे गाने को सह नहीं पाते हैं
धरना देता हूं तो लाठी से मारते हैं
जनता सेवा से ये लोग भागते हैं
गोली पीठ पीछे सामने नहीं लड़ पाते हैं
हक की बात मांगो नहीं मिलती
जनता की सेवा से सफलता मिलती
कोड नहीं तो वोट नहीं
मां की कसम काला धन नहीं
सिद्धो-कान्हू, चांद भैरव, वीर ताना भगत
मेरे हाथ में हथियार नहीं कलम से आगे बढ़ता हूं
मैं लड़ता हूं, मरता हूं, गिरता हूं, उठता हूं और आगे बढ़ता हूं
मां, मिट्टी, जंगल को कभी नहीं छोड़ेंगे
नक्सली नक्सली हां हां नक्सली नक्सली
( हिंदी ट्रांसलेशन )
हमने अमन से पूछा कि ''जिस वक़्त आप ये गाना लिख रहे थे तो क्या इस बात का डर नहीं था कि नागपुरी ना समझने वाले कहीं इस गाने को ग़लत ना समझ लें''?
जिसके जवाब में वे कहते हैं कि ''नहीं मैंने ये गाना निष्पक्ष होकर लिखा है'' लेकिन वो अपने बचपन के दिनों को याद करते हैं जिस वक़्त उन्हें नक्सली शब्द का मतलब भी नहीं पता था वे बताते हैं कि '' स्कूल में बड़े भइया लोग थे जो साथ में बस में स्कूल जाते थे तो हमें नक्सली बोलते थे तो मुझे उतना समझ नहीं आता था तो मैं कुछ बोलता नहीं था, घर में पूछा तो बोला गया कि ध्यान मत दो।''
अमन समझाने की कोशिश करते हैं कि उस वक़्त उनका परिवार चाहता था कि बच्चे सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दें इसलिए उन्हें इस बारे में ठीक से बताया नहीं गया। वे आगे कहते हैं कि ''लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते गए तो पता चला नक्सली क्या है, लेकिन फिर मैंने सोचा चलो भाई अगर हमको नक्सली बोल रहा है तो ठीक है, नक्सली ही सही लेकिन हम अपनी बात रखेंगे,तो वो बात मैंने रखी और एक लाइन बनाई ''नक्सली-नक्सली, कुछ बोलो तो कहो ना नक्सली, हक मांगो तो कहो ना नक्सली'', मतलब हम कुछ भी अपने हक की बात कह रहे हैं तो हमें नक्सली बोला जा रहा है, कुछ नहीं कर रहे और सिर्फ सांस ले रहे हैं तो भी हमें नक्सली बोल रहे हैं, मेरा मकसद किसी को प्रमोट करना नहीं है, मैंने जो देखा है वो लिखा है।"
वहीं उनके गाने 'बस्ती एंथम' में वे जल, जंगल और ज़मीन का मुद्दा उठाते हैं और आदिवासी समाज के संसार को दिखाने की कोशिश करते हैं और फिर वे गा कर सुनाते हैं।
अखाड़ा चलोगे तो झूमर नचा दूंगा
घर चलोगे तो धुस्का खिला दूंगा
सखुआ पेड़ को पूजते हैं आदिवासी
नखरा नहीं करते खा लेते भात बासी
छोटा हो या बड़ा सबको जोहार करता हूं
जल,जंगल ज़मीन के लिए खड़ा आगे रहता हूं
(हिंदी ट्रांसलेशन)
हालांकि अमन ये भी मानते हैं कि दौर बदला है वे बताते हैं कि ''अभी जो हमारा गांव है वो शहर में ही जुड़ चुका है पहले पुलिस भी यहां घुसने से डरती थी और पुलिस भी अगर किसी को पकड़ती थी तो उसको लेकर चली जाती थी फिर रात भर मारते थे और फिर इधर रख जाते थे पहले हम रात को घूमने नहीं निकलते थे लेकिन अब रात को भी निकल जाते हैं।"
अमन को स्कूल के दिनों में आदिवासी होने की वजह से नक्सली बुलाया गया। लेकिन क्या सिर्फ अमन ही एक ऐसे हैं जिन्हें उस वक़्त नक्सली बुलाया गया जब वो इसका मतलब भी नहीं समझते थे? क्या जल, जंगल और ज़मीन को बचाने के लिए आंदोलन करने वालों का दमन करने के लिए आसानी से उन्हें नक्सली घोषित कर दिया जाता है?
छत्तीसगढ़ और झारखंड आज भी नक्सल प्रभावित राज्य माने जाते हैं और आज भी यहां आदिवासियों को उनके नाम और पहचान के आधार पर गिरफ़्तार कर नक्सली घोषित करना आसान माना जाता है। ऐसी बहुत सी रिपोर्ट हैं जिनके आधार पर ये कहा जा सकता है कि बेगुनाह आदिवासियों को झूठे मुकदमों में फंसाया गया है। छत्तीसगढ़ के बुर्कापल में 2017 में सीआरपीएफ पर हमला हुआ था जिसमें 25 जवान मारे गए थे इस मामले में पुलिस ने माओवादियों की मदद करने के संदेह में 121 आदिवासियों को गिरफ़्तार कर लिया था लेकिन इसी मामले में पांच साल बाद 2022 में इन सभी को निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया गया था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गिरफ़्तार किए गए लोगों में पांच नाबालिग भी थे।
आउटलुक पर छपी एक ख़बर में सीपीआई ( एम ) झारखंड के सचिव प्रकाश विप्लव ने बताया कि पिछले साल सूचना के अधिकार ( RTI ) अधिनियम के ज़रिए प्राप्त जानकारी के मुताबिक 2009-21 के दौरान झारखंड में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम ( UAPA) की धाराओं के तहत 704 मामले दर्ज किए गए थे, इनमें से 52.3 फीसदी आदिवासियों के खिलाफ 23.1 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग ( OBC) के खिलाफ और 6.7 फीसदी दलितों के खिलाफ दर्ज किए गए थे। इसमें UAPA के तहत माओवादियों के नाम पर सबसे ज़्यादा 187 मामले पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा में दर्ज किए गए हैं, इसके बाद दुमका में 57 और गुमला में 42 मामले हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक नक्सलवाद का संबंध झारखंड और छत्तीसगढ़ के उन इलाकों के आदिवासियों से अधिक जोड़ा जाता है जहां खदान और खनिज पाए जाते हैं।
अक्सर रैप सॉन्ग के नाम पर हनी सिंह या फिर बादशाह के गाने चमकने लगते हैं जिनमें महंगी गाड़ियां, ख़ूबसूरत लड़कियों के साथ विदेशी लोकेशन होती हैं, लेकिन झारखंड के रैप सॉन्ग गाने वाले अमन के गीतों में वो चमक दमक नहीं है।
वो अपने गानों में आदिवासी समाज की बात कह रहे हैं, जल, जंगल और ज़मीन के ईद-गिर्द गाने बुन रहे हैं, नागपुरी में गाए ये गीत भले ही बहुत कम लोगों की समझ में आएं लेकिन एक बात साफ है इन गीतों में देश के उन लोगों की बात है जो आज भी अपने जंगलों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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