जांच-परख: नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी की वजह
जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार जो अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) कांग्रेस पार्टी और वामपंथी दलों वाले महागठबंधन के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री थे उन्होंने 28 जनवरी को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। एक तरह से कुमार ने पाला बदलने के काम को अपना नियमित काम बना लिया है। 2020 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री का पद संभाला था और 2022 में, उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया था। अब वे फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए एनडीए में वापस आ गए हैं जबकि एक महीने पहले ही उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि मर जाना क़बूल है लेकिन वापस एनडीए में जाना क़बूल नहीं है।
भाजपा की तरफ से, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने फरवरी 2023 में नीतीश कुमार और तत्कालीन जदयू अध्यक्ष लल्लन सिंह का नाम लेते हुए बड़े सख्त लहज़े में कहा था कि उनकी पार्टी के दरवाजे उनके लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं।
नीतीश कुमार के एनडीए में जाने के संभावित कारण
राजनीतिक टिप्पणीकार, नीतीश कुमार के बार-बार पलटी मारने और भाजपा का उनका स्वागत करने की इच्छा को अब से कुछ ही महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी संभावनाओं को बढ़ाने की रणनीति के रूप में व्याख्यायित कर रहे हैं। बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं जो राष्ट्रीय चुनावी परिदृश्य के मामले में काफी महत्वपूर्ण हैं।
कुछ अन्य कारण नीतीश कुमार की पलटी की व्याख्या कर सकते हैं जो उनके सार्वजनिक जीवन की एक खास विशेषता बन गई है। इसकी वजह से उन्हें कुख्यात उपनाम "पलटू राम" मिला है जो सार्वजनिक हस्तियों से अपेक्षित विचारधारा, सम्मान और अखंडता की पूरी तरह से उपेक्षा करके बार-बार राजनीतिक यू-टर्न लेते हैं। पत्रकार रवीश कुमार ने मजाकिया अंदाज में कहा है कि भाजपा, जो यह दावा करती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के साथ भगवान राम को वापस लाए हैं अब उन्होने "पलटू राम" को गले लगा लिया है।
पत्रकार और टिप्पणीकार उर्मिलेश ने कहा है कि कुमार के कुछ करीबी सहयोगियों ने उन्हें आश्वस्त किया था कि 22 जनवरी को अयोध्या में अभिषेक के बाद, बिहार में 'राम लहर' है, जिससे जद (यू) को 16 लोकसभा सीट जो अभी उसके पास है को जीतना बेहद मुश्किल हो जाएगा। ऐसा लगता होता है कि इन सहयोगियों को विश्वास नहीं था कि बिहार सरकार द्वारा की गई जाति जनगणना राम मंदिर-अयोध्या नेरेटिव के खिलाफ पर्याप्त होगी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जीत भाजपा के साथ गठबंधन करने में होगी, उसका विरोध करने में नहीं।
दरअसल, टिप्पणीकारों के अनुसार, अयोध्या में राम मंदिर के आसपास की घटनाओं के कारण भाजपा की बिहार इकाई में लोकसभा चुनाव जीतने के प्रति उतना आत्मविश्वास नहीं दिख रहा था। बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव में, भाजपा ने 17 सीटें, जद (यू) ने 16 सीटें जीती थीं और राजद ने (15 प्रतिशत से अधिक के बड़े वोट शेयर के बावजूद) एक भी सीट नहीं जीती थी।
भाजपा के नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में मानने की व्याख्या करने के अन्य तरीके भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि कुमार, भाजपा के 78 विधायकों और दो उपमुख्यमंत्रियों के साथ, भाजपा को चुनाव से कुछ महीने पहले पूरे राज्य तंत्र को नियंत्रित करने का रास्ता दे देंगे। भाजपा को इस किस्म की रणनीतिक बढ़त किसी भी शासन में एक महत्वपूर्ण कदम है, खासकर जब चुनाव करीब हों।
राजद की जीत की संभावनाओं का आकलन
सत्ता में बने रहने के लिए बार-बार पाला बदलने के कारण नीतीश कुमार बिहार में अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। इससे उनकी पार्टी चुनावी तौर पर मुश्किल स्थिति में पड़ सकती है। हालांकि, अत्यंत पिछड़े वर्गों और महादलितों के पक्ष में नीतीश कुमार के नीतिगत उपायों ने जद (यू) के लिए एक सुनिश्चित वोट बैंक तैयार किया है। भाजपा इस बात को अच्छी तरह से समझती है और इसके समर्थन का इस्तेमाल चुनावी रूप से खुद को मजबूत करने के लिए करेगी। जब तक राजद नीतीश कुमार और जद (यू) को मिलने वाले वोटों में सेंध लगाने की कोशिश नहीं करती, तब तक मुस्लिम-यादव समर्थन पर उसकी निर्भरता 2024 में लोकसभा सीटें जीतने के लिए काफी नहीं होगी।हालांकि, बेरोजगारी और सरकारी नौकरियां देने के तेजस्वी यादव के फोकस ने राजद को 2019 की तुलना में तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में ला दिया है। इसमें महागठबंधन सरकार द्वारा कराई गई जाति जनगणना भी शामिल है, जिससे अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 65 प्रतिशत तक बढ़ गया है। इससे राजद को अपना चुनावी आधार बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि जद (यू) का भाजपा के साथ हाथ मिलाना बिहार के भीतर विपक्षी एकता और इंडिया गठबंधन को एक बड़ा झटका है, जिसके लिए नीतीश कुमार ने पहल की थी। उन्होंने 2024 में भाजपा की सत्ता में वापसी की संभावनाओं को उज्ज्वल कर दिया है। विपक्षी दलों को उस संभावना को नकारने और अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
(लेखक, भारत के राष्ट्रपति केआर नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)
मूल अंग्रेजी लेख को पढ़ने के लिए नीेचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
Decoding Bihar CM Nitish Kumar’s Return to NDA Fold
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