न्यायालय देशभर की अदालतों में सरकारी अधिकारियों को तलब करने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी करेगा
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह सरकार और इसके अधिकारियों की संलिप्तता वाले मामलों में इन्हें तलब करने के मुद्दे से निपटने के लिए देशभर की अदालतों के वास्ते व्यापक दिशानिर्देश जारी करेगा।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अंतिम निर्णयों और लंबित मामलों में पारित अंतरिम आदेशों का अनुपालन न करने से उत्पन्न होने वाली अवमानना कार्यवाही से निपटने के लिए प्रक्रियाओं का अलग-अलग ‘सेट’ होना चाहिए।
पीठ ने कहा कि लंबित मामलों में अधिकारियों के हलफनामे उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं और अदालती आदेशों के गैर-अनुपालन से उत्पन्न होने वाले अवमानना मामलों में संबद्ध सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति आवश्यक हो सकती है।
इसने कहा, ‘‘हम सरकारी अधिकारियों को तलब करने के लिए कुछ दिशानिर्देश तय करेंगे। लंबित और निर्णय हो चुके विषयों का दो हिस्सों में विभाजन होना चाहिए। लंबित (मामलों के) लिए अधिकारियों को तलब करने की जरूरत नहीं है, लेकिन जब निर्णयन पूरा हो जाए, तब अवमानना (कार्यवाही) शुरू की जाए।’’
पीठ अदालत की अवमानना के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दो सरकारी अधिकारियों को तलब किये जाने से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से न्यायालय में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने तत्काल सुनवाई के लिए मामले का उल्लेख किया था।
उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने एक ‘अभूतपूर्व आदेश’ पारित किया है, जिसके जरिये वित्त सचिव और विशेष सचिव (वित्त) को उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की सुविधाओं से जुड़े एक मामले में अवमानना कार्यवाही को लेकर हिरासत में लिया गया है।
नटराज ने कहा कि उच्च न्यायालय ने विषय में राज्य के मुख्य सचिव को जमानती वारंट जारी किया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चार अप्रैल को कहा था कि अदालत में उपस्थित अधिकारियों-- शाहिद मंजर अब्बास रिजवी, सचिव (वित्त), उप्र और सरयू प्रसाद मिश्रा, विशेष सचिव (वित्त)-- को हिरासत में लिया जाता है तथा आरोप तय करने के लिए उन्हें अदालत में पेश किया जाए।
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