एसएफ़आई ने मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप बंद करने के ख़िलाफ़ किया देशव्यापी प्रदर्शन
स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के नेतृत्व में मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप(MANF) को बंद करने के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में सोमवार 9 जनवरी को विरोध प्रदर्शन किया गया। दिल्ली में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के सामने छात्रों ने प्रदर्शन किया. तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, हैदरबाद,कश्मीर, पंजाब, महाराष्ट्र, असम, गुजरात और अन्य राज्यों में भी विरोध प्रदर्शन किए गए।
केंद्र सरकार द्वारा MANF को बंद करने के खिलाफ एसएफआई की राष्ट्रीय नेतृत्व ने 9 जनवरी 2023 को देशव्यापी विरोध दिवस का आह्वान किया था। सोमवार को भारत की पहली अल्पसंख्यक महिला शिक्षिका और सामाजिक क्रांतिकारी, फातिमा शेख की जयंती पर, SFI ने MANF और प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना को बंद करने के केंद्र सरकार के कदम की निंदा करते हुए कहा केंद्र सरकार के इस निंदनीय कदम से गरीब और हाशिए के वर्गों से आने वाले बहुत से छात्र देश में स्कूल और उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर खो देंगे।
SFI के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीपी सानू और महासचिव मयूख बिस्वास ने संयुक्त बयान जारी कर केंद्र के इस कदम को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा आम छात्रों के खिलाफ हमलों की निरंतरता के रूप में देखा गया है। उन्होंने अपने बयान मे कहा ये सार्वजनिक शिक्षा को नष्ट करने की उनकी बड़ी साजिश का एक हिस्सा है। MANF एक फेलोशिप थी जो देश भर के अल्पसंख्यक समुदाय के शोधार्थियों को दी जाती थी। फैलोशिप सामाजिक रूप से हाशिए वाले अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाले छात्रों की आगे बढ़ाने मे मदद करती थी।
पिछले महीने, अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद को बताया कि एमएएनएफ को 2022 से बंद कर दिया जाएगा, क्योंकि यह अन्य फेलोशिप के साथ ओवरलैप हो रहा है। इस पर छात्र नेताओं ने कहा स्मृति ईरानी का बयान निराधार के अलावा और कुछ नहीं है क्योंकि कई राज्यों में अल्पसंख्यक छात्र ओबीसी या एससी श्रेणियों से संबंधित नहीं हैं।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के शोधार्थी असिद करीम हुसैन ने नई दिल्ली में सीजीओ कॉम्प्लेक्स में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के मुख्यालय में प्रदर्शन में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि फेलोशिप को समाप्त करना उनके लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि वो बिना परिवार के समर्थन के दिल्ली में रहने के लिए पहले से ही संघर्ष कर रहे थे।
विरोध प्रदर्शन के इतर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा, "जब मैं केरल से दिल्ली पढ़ने आया तो पता चल की यहां हर महीने रहने और पढ़ाई के लिए कम से कम 9 हजार रुपये चाहिए जो कि मेरे जैसे किसान परिवार के लिए दे पाना नामुकिन था। शुरू में मैंने अपने खर्च चलाने के लिए मैंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। बाद में मुझे 8000 रुपये की नॉन-नेट फेलोशिप मिलनी शुरू हुई। इस पैसे में मुझे अकेले कमरे के किराए के लिए 5000 रुपये देने पड़ते हैं। मैं बड़ी आशा के साथ मौलाना आज़ाद फैलोशिप की ओर देख रहा था। लेकिन केंद्र ने इस योजना को खत्म कर दिया। हमें याद रखना चाहिए कि बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक लड़कियां एमएएनएफ की तरफ बड़ी उम्मीद से देखती हैं। इसके अभाव में उन्हें शादी जैसे पारिवारिक दबाव के आगे झुकना पड़ता है। हाल ही में मुझे जेआरएफ से मिल गया है। अगर मैं इस बार इसके लिए योग्य नहीं होता, तो मुझे पढ़ाई छोड़ घर जाना पड़ता।”
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के एक अन्य छात्र अधम रफीक ने भी इसी तरह की चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उनके जैसे छात्र का भविष्य अनिश्चिता में दिख रहा हैं क्योंकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में फीस बढ़ रही है जबकि छात्रवृत्ति की संख्या लगातार कम हो रही है।
दिल्ली में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाली जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस योजना की कमियों को दूर किया जाना चाहिए था और इसे पूरी तरह से खत्म करने से अल्पसंख्यक छात्रों के शोध करने के सपने खत्म हो गए हैं। उन्होंने कहा, "हमें बहुत स्पष्ट होना चाहिए कि मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी का एक हिस्सा हैं, जबकि मौलाना आजाद राष्ट्रीय फैलोशिप सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन छात्रों के भी सपनों को पूरा करता है। इसलिए, केंद्र का यह तर्क कि मुसलमानों को उनके पिछड़ेपन के लिए अन्य छात्रवृत्ति भी मिल रही थी, सही नहीं है।
उन्होंने कहा, “एमएएनएफ को खत्म करना और विदेशी विश्वविद्यालयों के नियमों को लागू करना नई शिक्षा नीति 2020 के तहत बड़े एजेंडे का हिस्सा है। उच्च शिक्षा में प्रवेश करने वाले अल्पसंख्यक समुदायों के छात्र किसी भी सरकार और उनके प्रति उनके रवैये के बारे में महत्वपूर्ण सोच रखने में सक्षम थे। वर्तमान समय की सरकार इन समुदायों से प्रश्न नहीं चाहती है। वे अल्पसंख्यकों को एक विशिष्ट तरीके से चित्रित करना चाहते हैं कि अल्पसंख्यक अध्ययन नहीं करते हैं और कुछ विशिष्ट कार्यों में लगे रहते हैं। यह कल्पना शिक्षा से विचलित हो जाती है कि अल्पसंख्यकों से डॉक्टर, प्रोफेसर और सेना के पेशेवर हो सकते हैं। हम इस कल्पना के खिलाफ लड़ रहे हैं कि शिक्षा, एक अधिकार के रूप में, सभी के लिए उपलब्ध होना चाहिए। छात्रों ने मेरे साथ अपनी बात साझा की कि MANF को खत्म करना शोध को आगे बढ़ाने और किसी काम में शामिल होने के लिए उनके लिए दरवाजे बंद करने जैसा है।
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले छात्र संघ के अध्यक्ष अभिषेक नंदन ने न्यूज़क्लिक से फोन पर बात करते हुए कहा, "एनईपी शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत खर्च करने की परिकल्पना करता है, लेकिन यहां वे फेलोशिप खत्म कर रहे हैं। अल्पसंख्यकों के बीच सामाजिक गतिशीलता को बढ़ाने के लिए इसकी शुरूआत की गई थी। हैदराबाद में हम बिल्कुल अलग स्थिति देख रहे हैं। उस्मानिया विश्वविद्यालय और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय में बिहार, बंगाल और झारखंड से अल्पसंख्यक छात्र हजारों की संख्या में आते हैं क्योंकि उनकी शिक्षा का माध्यम उर्दू है। इन लड़कों और लड़कियों ने अपना पहला कदम उठाया ही था कि सरकार ने उनके रास्ते बंद कर दिए।”
प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव सोरेन मल्लिक ने न्यूज़क्लिक को बताया कि राष्ट्रीय छात्रवृत्ति को खत्म करने का मतलब है कि सरकार अल्पसंख्यकों की जरूरतों के प्रति असंवेदनशील है और वे इसे पुनः लागू कराने के लिए एक राष्ट्रीय संघर्ष करेंगे। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में दिखाई गई विकट स्थिति को देखते हुए अल्पसंख्यकों के लिए फेलोशिप महत्वपूर्ण थी। उन्होंने कहा, "एक राष्ट्रीय फेलोशिप का मतलब केवल यह है कि देश भर के अल्पसंख्यक छात्र इसे प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, इसे खत्म करना एक राष्ट्रीय अन्याय है। फिलहाल हम स्थानीय स्तर पर छात्रों को लामबंद कर रहे हैं और जरूरत पड़ी तो देशव्यापी आंदोलन करेंगे।
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