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सऊदी अरब: महिला अधिकार कार्यकर्ता को 45 साल की सज़ा से महिलाओं के अधिकारों पर मंडराता ख़तरा

महिलाओं के ख़िलाफ़ दो फैसले सऊदी में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं पर नए सिरे से दबाव का संकेत देते हैं। विश्लेषकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डर है कि सरकार वास्तव में पश्चिम को राजनीतिक संदेश दे रही है।
Saudi
हाल में सुनाई गई जेल की सज़ा सऊदी अरब में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक झटका है

पिछले महीने में सऊदी अरब में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए शायद एक नए और निराशाजनक युग की शुरुआत हो गई।

अगस्त महीने में सलमा अल-शेहाब की 34 साल की सजा के बाद रियाद की विशेष आपराधिक अदालत ने बीते सप्ताह नूरा बिन्त सईद अल-क़हतानी को 45 साल की जेल की सज़ा सुनाई है जो अपने आप में अलग तरह का मामला है।

इन मामलों में कई समानताएं हैं क्योंकि दोनों ही महिलाओं को मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करने वाले सोशल मीडिया पर लेखों को लाइक करने और रीट्वीट करने के लिए आतंकवाद और साइबर अपराध के ख़िलाफ़ क़ानूनों के तहत दोषी ठहराया गया। हालांकि दोनों ही महिलाएं मुखर या प्रसिद्ध नहीं थीं।

imageसलमा अल-शेहाब को अगस्त की शुरुआत में अतिरिक्त 35 साल की यात्रा पर प्रतिबंध के साथ 34 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी।

मानवाधिकार संगठन डेमोक्रेसी फॉर द अरब वर्ल्ड नाउ द्वारा विश्लेषण किए गए अदालत के काग़ज़ात के अनुसार अल-शेहाब के ख़िलाफ़ फ़ैसले की ही तरह अल-क़हतानी के फ़ैसले ने उन पर "सरकारी आदेश का उल्लंघन करने" के साथ-साथ "इंटरनेट का इस्तेमाल करके [सऊदी अरब के] सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने" का आरोप लगाया।

वाशिंगटन स्थित इस संगठन की स्थापना फरवरी 2018 में सऊदी पत्रकार और आलोचक जमाल खशोगी ने की थी जिनकी इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्यिक दूतावास में हत्या कर दी गई थी।

हालांकि, खशोगी की हत्या के बाद अंतरराष्ट्रीय आक्रोश और अमेरिका तथा यूरोप जैसे पारंपरिक सहयोगियों द्वारा क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बहिष्कार के बाद सऊदी किंगडम मानवाधिकार के मामले में अलग-थलग पड़ गया।

लेकिन यूक्रेन पर रूसी हमले और उसके बाद वैश्विक स्तर पर तेल की कमी के परिणामस्वरूप इस साल तेल समृद्ध देश का अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिनिधियों की ओर से फिर स्वागत किया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जुलाई में सऊदी का दौरा किया और क्राउन प्रिंस मोहम्मद ने कई यूरोपीय देशों की यात्रा भी की।

विश्लेषकों ने हाल के दो फ़ैसलों और सऊदी अरब, अमेरिका तथा यूरोप के बीच नए सिरे से राजनीतिक संबंधों के समय को लेकर ज़ोर दिया है।

यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के विजिटिंग फेलो सिनजिया बियान्को ने डीडब्ल्यू को बताया, "सऊदी नेतृत्व ने अमेरिका और पश्चिम को यह दिखाने के लिए ऐसे समय का चयन किया है कि इस समय उनके पास इतना अधिक लाभ है और वे इतनी मज़बूत स्थिति में हैं कि वे क़ानून के शासन के लिए बेहद कठोर दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ सकते हैं और वे उस दिशा में और उस अर्थ में पश्चिम की ओर से किसी भी प्रकार की मांग पर ध्यान नहीं देंगे।"

गल्‍फ रीजन एट डेमोक्रेसी फॉर द अरब वर्ल्‍ड नाउ के निदेशक अब्‍दुल्‍ला अलाउध ने भी इसी तरह की बात कही। उन्होंने एक बयान में कहा, "क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की पिछले महीने जेद्दा में राष्ट्रपति बाइडेन के साथ बैठक और क्राउन प्रिंस या सऊदी सरकार की आलोचना करने की हिम्मत करने वाले किसी भी व्यक्ति के ख़िलाफ़ दमनकारी हमलों में वृद्धि के बीच की कड़ी को न जोड़ना असंभव है।"

रिहा की गई महिला कार्यकर्ता लौजैन अल-हथलौल की बहन लीना अल-हथलौल जो अब लंदन स्थित मानवाधिकार संगठन अल क्यूएसटी में संचार और निगरानी की प्रमुख हैं उन्होंने एक साक्षात्कार में डीडब्ल्यू को बताया कि, "नूरा बिंत सईद अल-क़़हतानी की सज़ा एमबीएस (सऊदी क्राउन प्रिंस का शॉर्ट फॉर्म) की ओर से आया एक स्पष्ट संदेश है कि वह दमन से पीछे नहीं हटेंगे और जो भी बोलने की हिम्मत करेगा, उसके प्रति अपनी क्रूरता को बढ़ाएंगे।"

उन्हें यक़ीन है कि क्राउन प्रिंस का अंतिम लक्ष्य "ख़ामोश और भयभीत समाज के साथ सऊदी अरब का नेतृत्व करना है।"

imageलौजैन अल-हथलौल को जेल से रिहा कर दिया गया लेकिन उन्हें अभी भी यात्रा करने, सार्वजनिक जगहों पर बोलने या सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करने की अनुमति नहीं है

अपवादों के साथ सुधार करना

जब से 36 वर्षीय क्राउन प्रिंस ने किंगडम के डी-फैक्टो शासक रूप में कमान संभाला है तब से पिछले पांच वर्षों में सऊदी अरब ने आधुनिकीकरण के ढांचे के मद्देनज़र विजन 2030 के तहत आर्थिक और संरचनात्मक बदलाव किया है। इसमें महिलाओं को अधिक से अधिक अधिकार देना भी शामिल है।

उदाहरण के लिए, पारंपरिक संरक्षण प्रणाली को हटा दिया गया है जिसका मतलब है कि सऊदी महिलाओं को अब अकेले रहने और अपने अभिभावक की सहमति के बिना तलाक या विवाह के लिए पंजीकरण करने का अधिकार है। उन्हें गाड़ी चलाने, सेना के साथ साथ कार्यबल में शामिल होने, विदेश यात्रा करने, अंतर्राष्ट्रीय संगीत समारोहों और सिनेमा में जाने और हज तथा उमराह करने, मक्का जाने की भी अनुमति है।

बियान्को न कहा, "हालांकि, एमबीएस द्वारा अपनाया गया सामाजिक और आर्थिक उदारीकरण सुधार हमेशा विशेष रूप से आर्थिक और सामाजिक उदारीकरण पर केंद्रित रहा है। साथ ही, राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता पर स्थिति ख़राब हो रही है।"

यहां तक कि बेहतर बुनियादी सुविधाओं की मांग करना भी सरकारी अधिकारियों और पुलिस द्वारा क्रूर हिंसा के लिए पर्याप्त कारण है। अगस्त के आख़िर में हैशटैग #KhamisMushaitOrphans के तहत बड़े पैमाने पर साझा किए गए फुटेज में देखा गया पुलिसकर्मी और सुरक्षा अधिकारी महिलाओं को अपनो मुक्के, बेल्ट और डंडों से पीट रहे हैं। रियाद से करीब 547 मील (880 किलोमीटर) दूर खामिस मुशैत के एक अनाथालय के पीछे एक अधिकारी को महिला को उसके बाल पकड़कर घसीटते देखा गया।

हालांकि इस घटना का सही समय और उसकी वजह के बारे में जानकारी नहीं है फिर भी अरब के कई मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लड़कियों ने पहले अनाथालय में रहन-सहन की स्थिति को लेकर आलोचना की थी।

हालांकि, सोशल मीडिया पर हंगामे के बाद प्रांत के गवर्नर तुर्की बिन तलाल बिन अब्दुलअज़ीज़़ ने घटना के "सभी पक्षों" की जांच करने की मांग की है और "मामले को सक्षम प्राधिकारी को दिए जाने" की बात कही है।

सलमा अल-शेहाब की 34 साल की सज़ा को लेकर ध्यान खींचने की उम्मीद में 30 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने बीते सप्ताह एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर किए।

इस पत्र में कहा गया है, "महिलाओं के अधिकारों और क़ानूनी सुधारों सहित मानवाधिकारों पर अधिकारियों की बयानबाजी के विपरीत सुधार के असल मसीहा बुनियादी अधिकारों की मांग करने वाले कार्यकर्ताओं को क्रूर तरीक़े से निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें चुप किया जा रहा है।"

यदि इस पत्र को सितंबर की शुरुआत में अपडेट किया जाए तो इसमें निश्चित रूप से अनाथालय में महिलाओं की क्रूर पिटाई और नूरा बिन्त सईद अल-क़हतानी की सजा भी शामिल होगी।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Saudi Arabia: Record 45-Year Sentence Stokes Women's Rights Fears

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