वैज्ञानिकों ने एक और कारण का पता लगाया, जो जलवायु परिवर्तन से जानवरों को ख़तरा दर्शाता है
सभी प्राणियों को जीने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। वे इसका उपयोग सांस लेने, रक्त संचार करने, भोजन पचाने और चलने-फिरने में करते हैं। युवा प्राणी विकास के लिए और बाद में प्रजनन के लिए ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
शरीर का तापमान बढ़ने से प्राणियों की ऊर्जा खपत करने की दर बढ़ जाती है। चूंकि, ‘ठंडे खून वाले’ प्राणी अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए अपने आसपास के वातावरण की उष्मीय स्थितियों पर निर्भर करते हैं, ऐसे में तापमान बढ़ने पर, उन्हें और अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
उल्लेखनीय है कि जो प्राणी अपने शरीर में आंतरिक तापमान को नियंत्रित नहीं कर सकते, उन्हें ‘ठंडे खून वाले’ प्राणियों के रूप में जाना जाता है। ठंडे खून वाले प्राणियों को बाहरी वातावरण से ऊष्मा मिलती है।
हालांकि, प्रकाशित हुआ नया शोध दर्शाता है कि तापमान ही एकमात्र पर्यावरणीय कारक नहीं है, जो ठंडे खून वाले प्राणियों की भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को प्रभावित कर सकता है। वे अन्य प्रजातियों के साथ कैसे व्यवहार करते हैं, यह भी एक भूमिका निभाएगा।
हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि ठंडे खून वाले प्राणियों को पहले की तुलना में अधिक गर्म दुनिया में और भी ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होगी। इससे उनके विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है।
किसी खास समय में प्राणियों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा को उनकी ‘मेटाबॉलिक दर’ (उपापचय दर) कहा जाता है। मेटाबॉलिक दर शरीर के आकार और गतिविधि के स्तर सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होती है। बड़े प्राणियों में छोटे प्राणियों की तुलना में मेटाबॉलिक दर उच्च होती है, और सक्रिय प्राणियों में निष्क्रिय प्राणियों की तुलना में यह दर उच्च होती है।
मेटाबॉलिक दर शरीर के तापमान पर भी निर्भर करती है। आम तौर पर, अगर किसी प्राणी के शरीर का तापमान बढ़ता है, तो उसकी मेटाबॉलिक दर तेजी से बढ़ेगी।
आज जीवित अधिकतर प्राणी ठंडे खून वाले हैं। मूल रूप से स्तनधारियों और पक्षियों को छोड़कर सभी - कीड़े, मछली, उभयचर और सरीसृप - प्राणी ठंडे खून वाले हैं। मानवीय कार्यों के कारण जलवायु परिवर्तन के चलते जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, ठंडे खून वाले प्राणियों के शरीर के तापमान में भी वृद्धि होने की उम्मीद है।
ठंडे खून वाले प्राणियों के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण मेटाबॉलिक दर को समझने के पिछले शोध एक महत्वपूर्ण मामले तक सीमित थे। वे मुख्य रूप से अपेक्षाकृत सरल प्रयोगशाला वातावरण में प्राणियों का अध्ययन करते थे, जहां उनके सामने एकमात्र चुनौती तापमान में बदलाव होता था।
हालांकि, प्राणियों को प्रकृति में कई अन्य चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। इसमें अन्य प्रजातियों के साथ तालमेल शामिल है, जैसे कि भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा और शिकारी-शिकार संबंध। भले ही प्रजातियां प्रकृति में हर समय इससे जूझती हैं, लेकिन हम शायद ही कभी अध्ययन करते हैं कि यह मेटाबॉलिक दर को कैसे प्रभावित करता है।
अन्य कारकों का पता लगाने के लिए हमने मक्खी की एक प्रजाति का अध्ययन किया। मक्खी की ये प्रजातियां अपने अंडे सड़े हुए पौधों की सामग्री में देती हैं। इन अंडों से निकलने वाले लार्वा भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
हमारे अध्ययन में अलग-अलग तापमान पर अकेले या एक साथ मक्खी की प्रजातियों को पालना शामिल था। हमने पाया कि जब मक्खी के लार्वा की दो प्रजातियां गर्म तापमान पर भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं, तो वे वयस्कों की तुलना में अधिक सक्रिय थीं। इसका मतलब है कि उन्होंने अधिक ऊर्जा का भी इस्तेमाल किया।
इससे, हमने यह अनुमान लगाने के लिए एक प्रारूप का उपयोग किया कि गर्म वैश्विक तापमान का सामना करने वाली ऐसी मक्खियों की प्रजाति, उनकी भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को तीन से 16 प्रतिशत के बीच बढ़ा देती है।
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