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“पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए नेचर बेस्ड सॉल्यूशन की ज़रूरत”

“बायोडायवर्सिटी पार्क हज़ारों टन डस्ट को ट्रैप करते हैं और दिल्ली के पॉल्यूशन को कम करने में मदद करते हैं, ये हवा साफ़ रखने के साथ ही टेम्परेचर को भी रेगुलेट करते हैं।”
air pollution

"किसी भी ग्रीन कवर का मतलब प्रदूषण रोकना ही होता है, एक भी पेड़ है तो वो प्रदूषण के डस्ट को रोकता है।" ये कहना है डॉ. एम शाह हुसैन का जो एक वाइल्डलाइफ इकोलॉजिस्ट हैं और पिछले 20 साल से दिल्ली के बायोडायवर्सिटी पार्क के लिए काम कर रहे हैं। ये बात उन्होंने हमारे उस सवाल के जवाब में कही जब हमने उनसे जानना चाहा कि बायोडायवर्सिटी पार्क प्रदूषण को कम करने में क्या भूमिका निभाते हैं और क्या ये पार्क सिर्फ दिल्ली के पर्यावरण में जैव विविधता को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है या फिर ये प्रदूषण को भी रोकते हैं?

डॉ. हुसैन बहुत बारीकी से समझाते हैं कि हवा और पानी की कोई बाउंड्री नहीं होती। बात करें साफ पानी की तो उसकी व्यवस्था फिर भी की जा सकती है लेकिन साफ हवा के लिए नेचर बेस्ड सॉल्यूशन ही तलाश करने होगें। ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर में जाना पड़ेगा और पेड़ लगाने होंगे।

3000 एकड़ ज़मीन पर 7 बायोडायवर्सिटी पार्क

किसी भी शहर या देश के लिए ग्रीन कवर बेहद ज़रूरी है। हरे-भरे पेड़ हवा को साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बात करें दिल्ली की तो यहां 3000 एकड़ ज़मीन पर 7 बायोडायवर्सिटी पार्क डेवलप किए गए हैं। ये बायोडायवर्सिटी पार्क दिल्ली के पर्यावरण में अहम भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों जब दिल्ली में प्रदूषण बढ़ा तो ये बायोडायवर्सिटी पार्क भी बेबस नज़र आए। 

फिलहाल दिल्ली में पारा गिरने के साथ सर्दी तो बढ़ गई लेकिन प्रदूषण की स्थिति में कोई ज़्यादा सुधार होता दिखाई नहीं दे रहा है। पिछले महीने गैस चैंबर में तब्दील हुई दिल्ली का AQI ( Air Quality Index) 400 के पार गया तो लोगों को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें आने लगी। बुजुर्ग और बच्चों पर ज़्यादा असर दिखाई दिया। नवंबर के मुकाबले दिसंबर में हवा की क्वालिटी में 19-20 का अंतर तो दिखाई देता है लेकिन अभी भी हवा उतनी साफ नहीं है जितनी होनी चाहिए। दिल्ली की सड़कों पर अभी भी हवा में मिले धूल कणों को शांत करने के लिए पानी का छिड़काव करती गाड़ियां नज़र आ रही हैं। 

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दुनिया भर में प्रदूषित शहरों में देश की राजधानी दिल्ली टॉप-5 में दिखाई देती है। नवंबर-दिसंबर में बढ़ने वाले प्रदूषण की एक वजह पराली को बताया गया। साथ ही मौसम में बदलाव और बारिश के न होने की वजह भी गिनाई गई। तमाम कारणों में से ये वो कुछ कारण थे जिन्होंने दिल्ली वालों का सांस लेना मुश्किल कर दिया था। लेकिन उन उपायों पर भी बात करना बेहद ज़रूरी है जो दिल्ली की साफ हवा के लिए आवश्यक हैं। चूंकि दिल्ली का ट्रैफिक भी प्रदूषण के लिए एक बड़ा कारण माना जाता है इसलिए जिस वक़्त दिल्ली में प्रदूषण, बढ़ा बाहर से आने वाले बड़े वाहनों पर रोक लगा दी गई थी। जब प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है तब उसके उपाय के बारे में बात की जाती है लेकिन अहम सवाल है कि आख़िर वो क्या ज़रूरी कदम हैं जो प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने से पहले उठाए जाने ज़रूरी हैं? 

बहरहाल, जहां एक तरफ प्रदूषण पर बड़ी-बड़ी मीटिंग की जा रही हों, आर्टिफिशियल बारिश करवाने के बारे में सोचा जा रहा हो, क्या हमारे पास कोई नेचुरल (प्राकृतिक) तरीका भी था जिससे दिल्ली की हवा को बेहतर किया जा सकता था? साल दर साल दिल्ली की हवा बिगड़ रही है ऐसे में दिल्ली के पर्यावरण की चिंता बहुत ज़रूरी हो जाती है। 

कैसे काम करते हैं बायोडायवर्सिटी पार्क?

दिल्ली में जिन 7 बायोडायवर्सिटी पार्क की बात हमने ऊपर की वो दिल्ली के लिए कितने अहम हैं और वो कैसे काम करते हैं ये जानने के लिए हम दक्षिणी दिल्ली के वसंत विहार में स्थित अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क पहुंचे। 

अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क

गेट से अंदर दाखिल होते ही एहसास हो जाता है कि ये एक अलग ही दुनिया है, चारों तरफ पेड़ ही पड़े और उनसे होकर गुज़रता एक रास्ता। दिल्ली का अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क - जहां रचा-बसा है एक अलग ही संसार। साफ हवा और शांत माहौल में तैरती चिड़ियों की आवाज़। पेड़ों से छन कर आती नर्म धूप, करीब से गुज़रते मोर। तितलियां मानो एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में हों, बांस के पेड़ों से होकर गुज़रती हवा की सरसराहट सुनकर कुछ पल के लिए भूल गए कि हम दिल्ली में ही हैं। 

दिल्ली की रिहाइश के बीच ये छोटा-सा जंगल किसी लग्ज़री से कम नहीं है और ऐसे ही छोटे-छोटे जंगल दिल्ली में सात जगहों पर डेवलप किए गए हैं। ये सात बायोडायवर्सिटी पार्क हैं- 

1. यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क 

2. अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क 

3. नीला हौज़ बायोडायवर्सिटी पार्क 

4. तिलपत वैली बायोडायवर्सिटी पार्क 

5. कमला नेहरू बायोडायवर्सिटी पार्क  

6. तुगलकाबाद बायोडायवर्सिटी पार्क 

7. कालिंदी बायोडायवर्सिटी पार्क 

डीडीए (Delhi Development Authority) और दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेबोरेशन (सहयोग) से बने इन पार्क में पिछले 20 साल से कड़ी मेहनत की जा रही है। दिल्ली की हवा और पानी के लिए ये बायोडायवर्सिटी पार्क अपने लेवल पर काम कर रहे हैं।

हमने इन बायोडायवर्सिटी पार्क और दिल्ली के पर्यावरण में इनके रोल पर प्रोफेसर सीआर बाबू से बात की। वो इन बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रोजेक्ट इंचार्ज हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के CEMDE (Centre for Environmental Management of Degraded Ecosystems) से जुड़े प्रोफेसर सीआर बाबू पिछले 3 दशक से इस विषय पर काम कर रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि दिल्ली की हवा के लिए बायोडायवर्सिटी पार्क कितने महत्वपूर्ण हैं? उनका जवाब था "अगर आप AQI को कम करना चाहते हैं तो आपके पास कोई दूसरा हल नहीं है, थ्री स्टोरी बफर (पेड़ों से जुड़ा है जो) का विकास करना होगा और सभी बायोडायवर्सिटी पार्क में थ्री स्टोरी कम्युनिटी है। ये बायोडायवर्सिटी पार्क न सिर्फ डस्ट को ट्रैप करते हैं बल्कि PM 2.5, Co2 (कार्बन डाइऑक्साइड) को भी कैप्चर करते हैं।"

"दिल्ली में जनसंख्या बढ़ी और जंगल ग़ायब हो गए"

अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क में मिले वाइल्डलाइफ इकोलॉजिस्ट डॉ. एम शाह हुसैन ने भी हमें समझाया कि किस तरह से ये बायोडायवर्सिटी पार्क दिल्ली के लिए महत्वपूर्ण हैं। वे बताते हैं कि "दिल्ली में दो नेचुरल लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम हैं, एक यमुना नदी और दूसरा अरावली की पहाड़ियों का हिस्सा, ये यहां प्राकृतिक रूप में हैं, न सिर्फ दिल्ली बल्कि किसी भी जगह के लिए नदी और पहाड़ियों का प्राकृतिक रूप में मिलना हमें इकोसिस्टम उपलब्ध करवाता है, हमें साफ हवा और पानी मिलता है। ये यूं ही लाखों सालों से चला आ रहा है। और सभ्यताएं वहीं पर आईं जहां पर पानी था, नदियों या तालाब के रूप में, दिल्ली का भी विकास इसलिए हुआ। लेकिन समय के साथ दिल्ली की जनसंख्या 20-30 लाख से 2 करोड़ से ज़्यादा में तब्दील हो गई, विकास के नाम पर खाली ज़मीनों पर निर्माण हुआ, जनसंख्या बढ़ी तो वाहन भी बढ़ गए। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली का दायरा नहीं बढ़ा, उसका दायरा क़रीब 1,482 किलोमीटर है लेकिन पानी और हवा उतनी ही रही। आबादी घनी हुई और धीरे-धीरे जंगल ख़त्म हो गए और यहां की बायोडायवर्सिटी ग़ायब हो गई। 

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"पर्यावरण को ठीक करने के लिए नेचर बेस्ड सॉल्यूशन"

अगर दिल्ली की बायोडायवर्सिटी ग़ायब हो गई तो उसकी हवा और पानी पर भी असर दिखाई देगा ही लेकिन ऐसे में क्या उपाय है? इस सवाल के जवाब में डॉ. हुसैन कहते हैं कि "पर्यावरण को कैसे ठीक करें वो एक नेचर बेस्ड सॉल्यूशन होता है जो आप कर सकते हैं, साफ हवा के लिए आपको कहीं न कहीं ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर में जाना पड़ेगा। Pollutants ( प्रदूषक) को ड्रैप (कम करने के लिए) करना होगा, जो डस्ट और दूसरी गैस समिशन के रूप में होते हैं, जो वाहन या हमारी-आपकी वजह से आते हैं। वे आगे कहते हैं कि "प्रदूषित हवा डायलूशन मांगती है जो क्लीन एयर से होगा और जंगल या ग्रीन स्पेस से जब हवा निकलती है तो डस्ट वहां ट्रैप हो जाती है और क्लीन एयर पास होती है, वो क्लीन एयर डायलूट करती है।" आसान भाषा में समझे तो ये बायोडायवर्सिटी पार्क एक बफर की तरह काम करते हैं जो प्रदूषित हवा को रोकते हैं, लेकिन इनकी भी अपनी क्षमता होती है।

अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क का जंगल

"थ्री टियर फॉरेस्ट इकोसिस्टम"

एक आम पार्क और इन बायोडायवर्सिटी पार्क में क्या अंतर होता है? डॉ. हुसैन बताते हैं कि "बायोडायवर्सिटी पार्क कई पोल्यूटेंट ट्रैप करते हैं दूसरे आम पार्क के मुकाबले।" वे साइंटिफिक टर्म का इस्तेमाल करते हुए बताते हैं कि "अगर आप जंगल को बनाते हैं तो जंगल के अंदर जो मॉडल है वो बेस से शुरू होता है, 'थ्री टियर फॉरेस्ट इकोसिस्टम' होता है। बायोडायवर्सिटी पार्क का उद्देश्य नेशनल पार्क या वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के मॉडल का अनुकरण करना होता है। यहां सबसे नीचे की लेयर घास या हर्ब्स होंगी बीच की लेयर शर्ब्स होंगी और एक मिडिल स्टोरी के ट्री होंगे और फिर Top Canopy होगी, तो ये बेलनाकार (Cylindrical) मॉडल होता है।"

डॉ. हुसैन बताते हैं कि ये बायोडायवर्सिटी पार्क हज़ारों टन डस्ट को ट्रैप करते हैं, और दिल्ली के पॉल्यूशन को कम करने में मदद करते हैं, ये हवा साफ रखने के साथ ही टेम्परेचर को भी रेगुलेट करते हैं। 

हमने डॉ. हुसैन से समझना चाहा कि जिस वक़्त दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया, उस वक़्त ये बायोडायवर्सिटी पार्क किस तरह से काम कर रहे थे? वे बताते हैं कि हर शहर की वहन क्षमता होती है, अगर वहन क्षमता से ज़्यादा प्रदूषण होगा तो बायोडायवर्सिटी पार्क भी क्या कर सकते हैं? वे उदाहरण देते हुए बताते हैं कि "दिल्ली में जो ग्रीन कवर है, बायोडायवर्सिटी पार्क को मिला लें तो उसकी वहन क्षमता ‘01’ है और उसमें अगर ‘10 गुणा’ प्रदूषण छोड़ दिया जाए तो प्रदूषण कैसे ट्रैप होगा?”

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए बेशक ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ों को लगाया जाना चाहिए लेकिन क्या सिर्फ दिल्ली को हरा-भरा करने से आस-पास पास से आने वाले प्रदूषण को रोका जा सकता है? एक ऐसे ही सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि "देखना होगा कि डेवलपमेंट किस तरह हो रहा है, ऐसे में गुड़गांव, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेस-वे, गाजियाबाद, मेरठ के इलाकों में भी क्या उतनी ही ग्रीन स्पेस दी जा रही है जैसे दिल्ली में दी जा रही है?”

"प्रदूषण को कम करने में जनता अहम भूमिका निभा सकती है"

हमने डॉ. हुसैन से पूछा कि "प्रदूषण को कम करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं" तो उनका कहना था कि "ये सिटीज़न ओरिएंटेड होना चाहिए, आप देख लीजिए वेस्ट वर्ल्ड को जिन्हें आप डेवलप मानते हैं, वो कैसे करते हैं? जागरूकता बहुत ज़रूरी है, साथ ही पब्लिक ज़िम्मेदारी भी, हमें देखना होगा कि हर जगह क्या कोशिशें हो रही हैं, क्या गुड़गांव या आस-पास के जो शहर हैं वो दिल्ली की तरह ही कोशिश कर रहे हैं, क्या वे भी ग्रीन कवर बढ़ा रहे हैं और क्या वे भी प्रदूषण को लेकर चिंतित हैं? दिल्ली पर जो दबाव है प्रदूषण को लेकर आप देखिए वीकेंड पर दिल्ली में सड़कों पर कम भीड़ होती है। मेरा मानना है कि प्रदूषण को लेकर दिल्ली का जो प्रेशर है वो उसका अपना नहीं है ये बाहर से आता है ये पासिंग थ्रू हैं ( वाहनों के संदर्भ में)...वे आगे कहते हैं कि "जनता की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है, अगर जनता ज़िम्मेदारी ले ले तो फिर किसी नियम-कानून की ज़रूरत ही नहीं होगी, अगर हम ठीक हैं तो किसी रेड लाइट की ज़रूरत नहीं होगी, वहां किसी ट्रैफिक पुलिस वाले को खड़े रहने की ज़रूरत नहीं होगी।"

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