‘विकास मॉडल’ पर सवाल: कहीं सड़कों के भी कारण तो नहीं बढ़ रही गर्मी
इस साल भयंकर गर्मी पड़ रही है। देश के कई हिस्सों में तापमान 50 डिग्री के पारे को पार कर चुका है। खुद देश की राजधानी दिल्ली का पारा भी काफी ऊपर चढ़ चुका है। गर्मी और लू से देश में सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। अंग्रेज गर्मियों में भारत की राजधानी शिमला ले जाते थे। लेकिन तब एसी नहीं थे। देश में पर्याप्त बिजली भी नहीं थी ताकि एसी चल सकें। लेकिन अब सब कुछ होते हुए भी बहुत सारे सामर्थ्यवान लोगों ने पहाड़ पर गर्मियों में घर बसा लिये हैं। लेकिन पहाड़ों पर भी अब कहां चैन पड़ रहा। वहां भी गर्मी बढ़ती जा रही है। जिस देहरादून का मौसम गर्मियों में भी पहले सुहाना हुआ करता था वहां भी अब तापमान 40 डिग्री के पार जाने लगा है। वहां भी दिन में एसी चलाना मजबूरी बन गया है।
पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस था। इस अवसर पर पूरे देश में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गए। उन सभी कार्यक्रमों में एक बात आम थी कि पर्यावरण दूषित होने से, पेड़ काटे जाने से गर्मी बढ़ रही है। इसलिए पेड़ों की रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी है। यहां तक कहा गया कि हम पचास हजार का एसी तो खरीद लेते हैं लेकिन पचास रुपये का पौधा खरीद कर नहीं लगाते। अगर हम पचास रुपये का पौधा लगाने लगें तो शायद एसी की जरूरत ही न पड़े। गंगा की अविरलता और निर्मलता तथा पर्यावरण रक्षा में जुटे हरिद्वार स्थित मातृ सदन के संत स्वामी शिवानंद भी दिल्ली की गर्मी देखकर विचलित हो उठे। उन्होंने कहा कि दिल्ली का तापमान मई में 52. 9 डिग्री (हालांकि बाद में इस आंकड़े को सेंसर एरर बताया गया )तक जा पहुंचा। उनका मानना है कि ये सब पेड़ों की कटाई और गंगा को प्रदूषित करने के कारण हो रहा है। वे कहते हैं कि खुद हमारे आश्रम मातृ सदन का तापमान हरिद्वार से चार-पांच डिग्री कम रहता है। क्योंकि हमने अपने आश्रम के आस पास पेड़ों को बचा कर रखा है। वे कहते हैं कि चार धाम यात्रा के लिए उत्तराखंड में लाखों पेड़ काटे गये। नदियों पर जगह-जगह बांध बनाकर उनके जल को रोका गया। जिससे गंगा की शीतलता प्रभावित हुई। हिमालय से निकलने वाली नदियां शीतल जल लेकर मैदानों में जाती थीं, जिससे वहां का तापमान भी ज्यादा ऊपर नहीं चढ़ पाता था। पहले गर्मी के दिनों में भी कोई व्यक्ति गंगा में देर तक नहीं ठहर पाता था क्योंकि गंगा जल में शीतलता थी। अब पेड़ों की कटाई, बांध बनाकर नदियों को जगह-जगह रोके जाने और खनन करके बालू निकाले जाने के कारण गंगा की शीतलता पर असर पड़ा है। उनका कहना है कि चार धाम यात्रा हर मौसम में कराने के लिए सड़कों का चौड़ी करण किया गया जिसके लिए लाखों पेड़ काटे गये। इस सबका असर पर्यावरण पर पड़ा है और गर्मी बढ़ी है।
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश से एक खबर आई है जिसमें कहा गया है कि कांवड़ मार्ग के लिए 33 हजार पेड़ काटे जायेंगे। कांवड़ मार्ग करीब सवा सौ किलो मीटर का है। ये पेड़ 111 किलो मीटर के रास्ते में गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर में काटे जायेंगे।
यह सिर्फ धार्मिक मार्गों की बात नहीं है। बल्कि जहां भी सड़कें बन रही हैं या चौड़ी की जा रही हैं पहली बलि पेड़ों की ही ली जा रही है। आप देश के किसी भी हिस्से में जाएं चाहे वे हाई हों या एक्सप्रेस वे उसके आसपास आपको पेड़ नहीं मिलेंगे। गर्मी में आप उनपर चलते हैं तो दूर-दूर तक धूप नजर आती है। अगर आपका एसी खराब हो जाए तो उन पर चलना मुश्किल हो जाए। क्या जब ये मार्ग बनाये जा रहे हैं तो उनके किनारे पेड़ नहीं लगाये जा सकते ? पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को पूरे देश में स्वर्णिम चतुर्भुज मार्ग बनाने का श्रेय दिया जाता है। मोदी सरकार के मंत्री नितिन गडकरी को भी सड़कों के निर्माण के लिए ही प्रशंसा मिल रही है। लेकिन इन दोनों कार्यकालों में पेड़ों की भी खूब कटाई हुई है। क्या ही अच्छा होता कि इन सड़कों के किनारे बड़े-बड़े छायादार पेड़ भी लगवा दिये गये होते। इससे यातायात की सुविधा के साथ ही पर्यावरण भी बेहतर होता। इतिहास में शेरशाह सूरी को भी जीटी ( ग्रांट ट्रंक ) रोड बनवाने के लिए जाना जाता है। लेकिन उसने सड़कों के किनारे बड़े-बड़े छायादार वृक्ष भी लगवाए। इस बात के लिए भी उसकी प्रशंसा की जाती है।
हमने विकास पर तो जोर दिया लेकिन उस के लिए पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा। बल्कि अगर किसी ने आवाज उठाई तो यह कह कर चुप करा दिया कि विकास के लिए इतनी कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है। भारत सरकार के आंकड़ो के मुताबिक सिर्फ एक साल 2020-21 में करीब 31 लाख पेड़ काटे गये। 2019 में सरकार की ओर से एक और जानकारी दी गई थी। उसके अनुसार 2019 से पिछले पांच वर्षों में एक करोड़ नौ लाख 75 हजार 844 पेड़ काटे गये। यानी हर साल 22 लाख पेड़ काट गये।
इसका नतीजा क्या है ? भारत में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या महज 28 बची है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश में प्रति व्यक्ति 699 पेड़ हैं। विश्व का औसत भी प्रति व्यक्ति 422 पेड़ है। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी ने दुनिया भर के पेड़ों की गिनती की है। जिसके अनुसार भारत में कुल 3518 करोड़ पेड़ हैं। क्षेत्रफल के लिहाज से भारत में प्रति वर्ग किलो मीटर कुल 11109 पेड़ हैं। पेड़ों की संख्या के लिहाज से हम विश्व में 17 वें स्थान पर हैं जबकि प्रति वर्ग गज पेड़ों की संख्या के लिहाज से 103 नंबर पर। प्रति व्यक्ति पेड़ के हिसाब से हम दुनिया के 125वें देश हैं। पेड़ों की संख्या के मामले में रूस सबसे ऊपर है। वहां 69 हजार 834 करोड़ पेड़ हैं। दूसरे नंबर पर कनाडा है जहां 36 हजार 120 करोड़ पेड़ हैं। इसके बाद ब्राजील, अमेरिका और चीन हैं जिनके पास क्रम से 33 हजार 816 करोड़, 22 हजार 286 करोड़ और 17 हजार 753 करोड़ पेड़ हैं।
जब भी बरसात आती है हम खबरें पढ़ने लगते हैं कि कहां-कहां कितने पेड़ लगाये जा रहे हैं। कई बार तो हम विश्व रिकॉर्ड बनाते हैं। लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं रखते कि लगाये गये पेड़ जिंदा भी रहें। यही वजह है कि प्रदूषण की स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ती जा रही है। भारत में वायु प्रदूषण की वजह से हर मिनट दो लोगों की मौत होती है। यानी घंटे भर में 120 लोगों की और एक दिन में 2880 लोगों की। दिल्ली-एनसीआर में रह रहे लोगों की तो उम्र ही छह साल कम हो गई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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