उमर ख़ालिद : ...लौटना है पपड़ियाई धरती पर गरजता मौसम बन
उमर ख़ालिद
युवा प्रतिरोध का चेहरा
उमर ख़ालिद
समय का सलाम है तुम्हे
प्यारे मेधावी शख़्स
जेएनयू की मौलिक प्रखरता लिए हुए
अपने शोध और प्रिय जन संघर्ष से
इस तंत्र की नाइंसाफ़ी ने
तुम्हे दरख़्त की तरह काट दिया
एक हज़ार दिनों से ज़्यादा
जेल में क़ैद दिन
क्या यूंही रुल गए
या भगत सिंह की तरह किताबें पढ़ीं
जो तुम्हारे आदर्श रहे
नुकीला सच
आख़िर किस बात की सज़ा मिली
तुमने तो शब्दों के बम भी नही फेंके
आक्रोश में कभी हाथ में पत्थर का टुकड़ा भी नहीं उठाया
जिसे हथियार की संज्ञा मिलती
तब गुनाह क्या था
ढेर सारे केस का मकड़ जाल
एक का भी ट्रायल नहीं
सत्ता का विरूप
तुम्हारे वर्तमान को दबोच लेता
सोचो क्या वे तुम्हारे तेज़ दिमाग़ अकाट्य तर्क
से डर गए
जिसमें सब के लिए बेहतरी के सपने थे
अक्सर मज़लूमों की तुम आवाज़ बन जाते
उनका दर्द तुम्हे बेचैनी से भर देता
अल्पसंख्यकों को
वतन से बेदख़ल करने के क़ानून के ख़िलाफ़
उतरी जनता के तुम अहम हिस्सा बने
यह विरोध उस जगी हुई अस्मिता की आग थी
जिसे मुस्लिम महिलाओं ने शुरू किया
यह लड़ाई
लोकतंत्र के दायरे में लड़ी गई
ओ जन बुद्धिजीवी, ओ एक्टिवस्ट
तुम्हारा नाम
राजद्रोहियों की सूची में दर्ज किया गया
सबक़ सिखाना था तुम्हे
हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को
तुम चुनौती दे रहे थे
तुम्हे षड्यंत्रकारी कहा गया
तुम उनकी राह का रोड़ा
तुम्हे डाला गया जेल में
गहरे विक्षोभ में भी तुम
ऊर्जावान और भविष्यवान बने हुए हो
बीतते हर दिन के साथ तुमने सोचा होगा
अपनी मां और पिता के बारे में
उनकी ज़ईफ़ी के बारे में
अपने प्रेम पर सोचा होगा
अपने दोस्तों
जेएनयू में बिताए गए
हंसी ख़ुशी वाले दिनों के बारे में
झारखंड के आदिवासियों के बारे में
देश के हिंदुत्ववादी हालात के बारे में
अपनी गहरी निराशा बेबसी
पर दुखी हुए
तुम्हारी तरह बहुत सारे लोग
जेलों में बंद हैं
तुम्हारी तरह निराशा दुख संघर्ष से
गुज़रते हुए
वे दिनों सालों को गिनना भूल गए
तुम्हारा, उनसब का मनोबल नहीं टूटा
कभी हार नहीं मानी
न अपनी लड़ाई छोड़ी
एक दिन लौटोगे
जैसे समुंदर की लहरें
लौटती हैं तट की और
लौटना है पपड़ियाई धरती पर
गरजता मौसम बन
उसकी हरियाली लौटाने
तुम्हारी प्यारी सरज़मीं
तुम्हारा इस्तिक़बाल करेगी
उमर ख़ालिद तुम्हे मेरा सलाम |
_____________शोभा सिंह
कवि-कहानीकार
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