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हौथी विद्रोहियों के ख़िलाफ़ अमरीकी युद्ध गुमराह करने वाला है

अमेरिका और इज़राइल, एक सभ्यतागत देश यमन के ख़िलाफ़ भविष्य में दुर्भाग्यपूर्ण 'आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध' में भारत को शामिल करने के लिए बेताब हैं, ताकि उनके इस जोखिम भरे काम को एक इलाक़ाई स्थान और नाम मिल सके।
Houthi military
20 नवंबर, 2023 को लाल सागर में गैलेक्सी लीडर मालवाहक जहाज के ऊपर उड़ान भरते एक हौथी सैन्य हेलीकॉप्टर की फ़ाइल तस्वीर: सौजन्य: इंडियन पंचलाइन 

संयुक्त राज्य अमेरिका ने 19-21 दिसंबर को हवाई प्रांत के होनोलूलू में आतांकवाद पर क्वाड प्रारूप के तहत नए कार्य समूह की पहली बैठक की मेजबानी की है। आतंकवाद पर क्वाड वर्किंग ग्रुप का गठन मार्च में विदेश मंत्री एस जयशंकर की मेजबानी में नई दिल्ली में विदेश मंत्री स्तर की बैठक में किया गया था।

मार्च की बैठक के बाद जारी किए गए संयुक्त बयान में बड़ी "गहरी चिंता के साथ कहा गया था कि आतंकवाद बड़ी तेजी से फैल रहा है, क्योंकि आतंकवादियों के अनुकूल और उभरती और विकसित होती प्रौद्योगिकियां, जैसे कि मानव रहित हवाई प्रणालियां और इंटरनेट का इस्तेमाल, जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं जिसके तहत आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए भर्ती करना, उकसाना, साथ ही आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण, योजना और तैयारी में मददगार हैं।”

आतंकवाद की रोकथाम पर क्वाड वर्किंग ग्रुप की स्थापना की घोषणा करते हुए, संयुक्त बयान में कहा गया कि यह ग्रुप "आतंकवाद के नए और उभरते रूपों, हिंसा और हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए क्वाड और इंडो-पैसिफिक भागीदारों के बीच सहयोग का पता लगाएगा।" 

कार्य समूह की उद्घाटन बैठक के बाद शुक्रवार को विदेश विभाग के एक बयान में रेखांकित किया गया कि चर्चा का ध्यान "भारत-प्रशांत इलाके में एक भयंकर आतंकवादी घटना के जवाब में क्वाड सहयोग बढ़ाने" पर था। [ज़ोर देकर कहा गया।]

विदेश विभाग के बयान में आगे कहा गया है कि सभी चर्चाएं "प्रस्तुतियों और वहां मौजूद अभ्यास से संबंधित थीं, जो लगातार विकसित हो रहे आतंकवाद के खतरों पर जानकारी के आदान-प्रदान, इलाकाई समन्वय प्रणाली को और विकसित करने और उभरती प्रौद्योगिकियों के आतंकवादी इस्तेमाल का मुकाबला करने पर केंद्रित थी।" चार क्वाड देशों के प्रतिभागियों ने पता लगाया कि क्वाड कसी क्सिम की क्षमताएं और समर्थन दे सकता है, और इंडो-पैसिफिक देशों की मौजूदा क्षमताओं का समर्थन करने के लिए क्वाड कैसे समन्वय कर सकता है।

यह समझने के लिए अधिक सरलता की जरूरत नहीं है कि अमेरिका का ध्यान लाल सागर में विकसित होती स्थिति पर है, जहां अमेरिकी नेतृत्व वाला गठबंधन यमन के अदम्य हौथियों द्वारा समुद्री नौवहन के लिए चुनौती का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहा है।

1960 के दशक में यमन में गृह-युद्ध में इज़राइल के बार-बार गुप्त हस्तक्षेप के कारण हौथियों का इज़राइल के साथ समझौता करने का एक पुराना हिसाब है, क्योंकि हिंद महासागर में इज़राइल के आउटलेट के रूप में इज़राइली रणनीतिकारों की नजर में उस देश का बहुत महत्व था। सुदूर पूर्व, जो आज फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों के लिए हौथियों के समर्थन और इज़राइल के साथ सामान्य संबंध बनाने से इनकार करने के कारण जटिल हो गया है।

अप्रैल 2018 में, संयुक्त अरब अमीरात ने यमन में अस्थिरता और केंद्रीय सरकार की कमी का फायदा उठाते हुए, टैंकों, बख्तरबंद वाहनों और तोपखाने के समर्थन से उस देश के सोकोट्रा द्वीप पर कब्जा कर लिया था। यूएई ने तब से सोकोट्रा द्वीप पर कब्ज़ा कर लिया और इज़राइल के साथ एक संयुक्त परियोजना में वहां एक सैन्य अड्डा बनाने की कोशिश की जो समुद्री मार्गों और खुफिया अभियानों पर सैन्य नियंत्रण करने की एक परियोजना में इजरायली सैनिकों, अधिकारियों और अन्य सैन्य विशेषज्ञों और कर्मियों की ईरान के ख़िलाफ़ मेजबानी करता। 

निश्चित रूप से, स्वेज़ नहर में समुद्री यातायात को प्रभावित करने वाली असुरक्षित स्थितियाँ विश्व अर्थव्यवस्था के लिए कई मायनों में बेहद नुकसान वाली होंगी - अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला, तेल बाज़ार इत्यादि पर इसका असर पड़ेगा। लेकिन इस पूरे प्रचार के पीछे, वास्तविक अमेरिकी इरादे इससे कहीं आगे तक जा सकते हैं। हौथिस का दानवीकरण वास्तव में एक अविश्वसनीय रूप से जटिल मैट्रिक्स को अस्पष्ट बनाने में एक आवरण का इस्तेमाल करना है।

अमेरिकी थिंक टैंक वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर नियर ईस्ट पॉलिसी के एक विश्लेषण के मुताबिक, इजरायल की स्वेज के पूर्व में पनडुब्बियां तैनात करने की योजना है। स्पष्ट रूप से, अरब सागर में अपनी ताक़त दिखाने के लिए सोकोट्रा में सैन्य अड्डा इजरायली पनडुब्बियों के लिए एक आदर्श स्थान होगा। अप्रत्याशित रूप से, हौथिस सोकोट्रा पर अपने देश की संप्रभुता खोने और द्वीप के मौन अमेरिकी समर्थन के कारण किसी इजरायली चौकी के रूप में बदलाव को लेकर गुस्से में हैं। यह तो एक बात है। 

इलाकाई देश 'नेविगेशन की आज़ादी' की रक्षा की आड़ में इजरायली हितों को संरक्षित करने के लिए लाल सागर में नौसैनिक बलों को तैनात करने के इच्छुक अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ जुड़ने से कतरा रहे हैं। हौथी इज़राइल के साथ समझौता नहीं करेंगे और इलाकाई देश सावधानी बरतेंगे ताकि युद्ध में न फंसें। हौथियों के पास सख्त लड़ाके होने के साथ-साथ, वे अपने देश के राजनीतिक परिदृश्य से उन्हें मिटाने के लिए सऊदी-अमीरात-अमेरिका युद्ध का विरोध करने के लिए उनकी नसों में उन्हे प्रेरित करने वाला खून बह रहा है।

भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, अमेरिका के पास लाल सागर पर हावी होने के मजबूत कारण हैं, जहां जिबूती में चीन का नौसैनिक अड्डा है और वाशिंगटन सूडान में गृह युद्ध को बढ़ावा दे रहा है ताकि देश को तनाव में रखा जा सके और रूस की पनडुब्बी बेस स्थापित करने की योजना को अवरुद्ध किया जा सके। एक अन्य तटीय राज्य इरिट्रिया जिसकी लाल सागर के पूर्वी किनारे पर एक महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थिति है, जिसके चीन और रूस के साथ मजबूत आर्थिक, राजनयिक और सैन्य संबंध हैं।

दरअसल, हॉर्न ऑफ अफ्रीका के सबसे बड़े देश इथियोपिया, जो रूस से जुड़ा हुआ है, के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री अबी अहमद को उखाड़ फेंकने में अमेरिकी प्रयास बुरी तरह विफल रहे हैं। इतना कहना काफी होगा कि लाल सागर के पूरे पूर्वी हिस्से में आज अमेरिका का एक भी मित्र या सहयोगी नहीं बचा है।

बड़ा सवाल यह है कि क्या क्वाड और उसके साथ-साथ भारत को भी लाल सागर में खींचने की अमेरिकी चाल सफल होगी। यह कुछ मायनों में इतिहास की पुनरावृत्ति है जब जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन के दबाव का विरोध करते हुए, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 2003 में इराक पर आक्रमण करने के इच्छुक अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया था जो बुद्धिमान निर्णय था। लेकिन अब, दिल्ली में ऐसे प्रभावशाली हित समूह हैं जो संभवतः हौथियों के ख़िलाफ़ अमेरिका के नेतृत्व वाले 'आतंकवाद पर युद्ध' में भारतीय भागीदारी के लिए तर्क देंगे।

वास्तव में, गुरुवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में भारतीय प्रवक्ता की अस्पष्ट टिप्पणियाँ कुछ असहजता का कारण बन गई थीं: "देखो, भारत हमेशा, जैसा कि आप जानते हैं, हमारे निहित स्वार्थ हैं और वाणिज्यिक शिपिंग की मुक्त आवाजाही का समर्थक रहा है। तो यह ऐसी चीज़ है जिसमें हमारी रुचि है। हम निश्चित रूप से, वहां घट रहे घटनाओं पर नज़र रखे हुए हैं। जहां तक मेरा मानना है...जैसा कि आप जानते हैं, हम भी, मुफ्त शिपिंग सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक स्तर पर...अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के साथ हैं, चाहे वह समुद्री डकैती के ख़िलाफ़ हो या अन्यथा, भारत इसमें शामिल रहा है। इसलिए, हम उस पर निगरानी रखना जारी रखेंगे। मुझे लगता है, इस टास्क फोर्स या ऑपरेशन के संबंध में कुछ संचार हुआ था, लेकिन मुझे उस मुद्दे पर किसी विशिष्ट विकास के संबंध में आपसे संपर्क करना होगा, क्योंकि मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि क्या, आप जानते हैं, कोई विशेष निमंत्रण आया है या हमें शामिल होने के लिए कहा गया है या हम शामिल होने के लिए सहमत हो गए हैं। जैसा कि मैंने कहा, यह एक नई पहल है और जैसे ही हमारे पास इस बारे में बताने के लिए कुछ होगा, हमें आपके पास वापस आएंगे। लेकिन मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि हम अरब सागर में जहाजों के सुरक्षित पारगमन को सुनिश्चित करने के प्रयासों का हिस्सा रहे हैं और हम वाणिज्यिक शिपिंग की मुक्त आवाजाही को महत्व देते हैं। मुझे किसी विशिष्ट देश, निश्चित रूप से ईरान या यमन के साथ किसी बातचीत की जानकारी नहीं है…”

इस बीच, जिस बात पर ध्यान से ध्यान दिया जाना चाहिए वह यह है कि इज़रायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने मंगलवार को हवाई में क्वाड वर्किंग ग्रुप की बैठक के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया। मोदी ने बाद में लिखा कि नेतन्याहू के साथ "चल रहे इज़राइल-हमास संघर्ष" पर विचारों के "सार्थक" आदान-प्रदान के दौरान, दोनों ने समुद्री यातायात के बारे में "साझा चिंताएँ" व्यक्त कीं हैं। मोदी की पोस्ट में विशेष विवरण नहीं दिया गया, जबकि इजरायली संस्करण में दावा किया गया कि मोदी ने "इस बात पर ध्यान दिया कि नेविगेशन की आज़ादी एक जरूरी वैश्विक जरूरत है जिसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए"।

लाल सागर में अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन को ताकत प्रदान करने के लिए वास्तव में इज़राइल का बहुत बड़ा दांव लगा है। अमेरिका और इजराइल एक सभ्यतागत देश यमन के ख़िलाफ़ अपने आगामी दुर्भाग्यपूर्ण 'आतंकवाद पर युद्ध' में भारत को शामिल करने के लिए बेताब हैं, ताकि उनके जोखिम भरे कदम को एक इलाकाई स्थान और नाम मिल सके।

एम॰के॰ भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं।  व्यक्त विचार निजी हैं। 

 साभार: इंडियन पंचलाइन

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