विश्व व्यापार संगठन ने भारतीय दूरसंचार उद्योग को दिया ‘झटका’
अप्रैल के तीसरे सप्ताह में भारतीय दूरसंचार क्षेत्र से कुछ अच्छी और कुछ बुरी खबरें आईं। सबसे पहले अच्छी ख़बर की बात करें तो भारतीय मोबाइल फोन निर्यात में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली है। 2022-23 में भारत से मोबाइल फोन का निर्यात 85,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यह भी भविष्यवाणी की गई है कि 2023-24 में मोबाइल फोन का निर्यात आसानी से 1 लाख करोड़ रुपये पार कर जाएगा।
क्या इसका मतलब यह है कि भारत में दूरसंचार क्रांति थमी नहीं है, बल्कि अभी भी जारी है? 2023 की शुरुआत में भारत में 110 करोड़ मोबाइल फोन सक्रिय होने के साथ, घरेलू बाज़ार स्पष्ट रूप से संतृप्त (Saturated) हो गया है। लेकिन बढ़ते निर्यात बाज़ार (Export Markets) मुख्य रूप से भारत में मोबाइल फोन निर्माण को बनाए रख रहे हैं।
2020-21 में मोबाइल फोन निर्यातक देशों में नौवें स्थान से, भारत अब शीर्ष 5 मोबाइल फोन निर्यातकों में शामिल हो चुका है। आप भारतीय मोबाइल निर्यात में इस नाटकीय छलांग को देखें। यहां तक कि हाल ही में, 2017-18 तक, भारत से मोबाइल फोन का निर्यात केवल 1300 करोड़ रुपये तक था। 2018-19 में, यह बढ़कर 11,200 करोड़ रुपये हो गया। 2019-20 में, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में समग्र आर्थिक मंदी का वर्ष था, इस दौरान मोबाइल फोन निर्यात - मुख्य रूप से स्मार्ट फोन निर्यात - दोगुने से अधिक बढ़कर 27,200 करोड़ रुपये हो गया। महामारी की वजह से इसके अगले साल 2020-21 में स्मार्टफोन का निर्यात घटकर 23,000 करोड़ रुपये रह गया। इसके अगले साल, 2021-22 में यह लगभग दोगुना होकर 42,000 करोड़ रुपये हो गया और अगले साल यह फिर से इसके दोगुना से अधिक होकर 85,000 करोड़ रुपये हो गया। यह वृद्धि वास्तव में नाटकीय है!
बिज़नेस मीडिया में कई लोग दावा करते हैं कि यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। उनका दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना ने काम कर दिखाया है। उनका यह भी तर्क है कि मोदी की "मेक-इन-इंडिया" रणनीति कम से कम दूरसंचार जैसे कुछ प्रमुख क्षेत्रों में सफल रही है।
लेकिन इस सफलता की कहानी के पीछे एक काली सच्चाई छिपी थी- कि जहां अंतरराष्ट्रीय मोबाइल बाज़ारों में भारत की प्रतिस्पर्धा स्पष्ट रूप से बढ़ रही थी, वहीं भारत में निर्मित मोबाइल फोन भारत के अपने घरेलू बाज़ारों में प्रतिस्पर्धी (Competitive) नहींथे।
इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2020-21 में 300 मिलियन से अधिक मोबाइल फोन्स का उत्पादन किया। फिर भी, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2020-21 में 220 मिलियन से अधिक मोबाइल फोन्स का आयात किया। उसी वित्तीय वर्ष में, भारत ने 100 मिलियन मोबाइल फोन्स का निर्यात किया। भारत के मोबाइल फोन निर्माता पूरी तरह से घरेलू बाज़ार की आवश्यकता को पूरा नहीं कर सके क्योंकि वे चीन से आयातित सस्ते मोबाइल फोन्स का मुकाबला करने में अक्षम थे।
मोदी सरकार ने चीन और कुछ अन्य देशों से 12,000 रुपये प्रति पीस से कम दाम वाले सस्ते मोबाइल फोन्स के आयात पर प्रतिबंध लगाने के विचार से पहले तो इस समस्या को दूर करने का फैसला किया। पर फिर उन्होंने इस विचार को छोड़ दिया, क्योंकि यह उन बहुपक्षीय व्यापार नियमों का खुला उल्लंघन होता, जिन पर भारत विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के तहत सहमत हुआ था। हालांकि, भारत ने आयातित मोबाइल फोन को महंगा बनाने के लिए मोबाइल फोन के आयात पर आयात शुल्क भी लगाया। जुलाई 2017 में, भारत ने मोबाइल फोन के आयात पर 10% सीमा शुल्क लगाया, जिसे बाद में दोगुना करके 20% कर दिया गया। विश्व व्यापार संगठन के कई सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई और संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन के समक्ष औपचारिक शिकायत दर्ज की, जिसमें दावा किया गया कि भारत की कर नीति विदेशी कंपनियों के साथ भेदभाव करती है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन करती है। यह विवाद डब्ल्यूटीओ (WTO) के 'विवाद निपटान तंत्र' के पास भेजा गया था।
विश्व व्यापार संगठन में भारतीय दूरसंचार उद्योग को झटका
साल 2019 में, विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने फैसला सुनाया कि आयातित मोबाइल फोन्स पर भारत द्वारा लगाया गया कर वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन करता है। तर्क यह था कि आयातित मोबाइल फोन्स पर कर लगाया गया था, जबकि घरेलू स्तर पर उत्पादित मोबाइल फोन पर एक समान कर नहीं लगाया गया था। हालांकि भारत ने तर्क दिया कि यह कर घरेलू उद्योग को प्रोत्साहित करने और देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए था। विश्व व्यापार संगठन ने ज़ोर देकर कहा कि भारत की स्थिति शुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT) और व्यापार से संबंधित निवेश उपायों (TRIMs) पर समझौते के तहत अपने दायित्वों के विपरीत थी। 1990 के दशक की शुरुआत में विश्व व्यापार संगठन के फ्रेमवर्क पर भारत का बिना सोचे-समझे आत्मसमर्पण अब लगभग दो दशक बाद उसे परेशान कर रहा है।
भारत ने 2019 के फैसले के ख़िलाफ़ अपील की और अपील को पुनः विवाद निपटान तंत्र के पास रेफर कर दिया गया। इस बीच, यूरोपीय संघ और जापान भी विवाद के पक्षकार बन गए।
यूके, नॉर्वे, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे कई अन्य देश भी विवाद के तीसरे पक्ष बन गए क्योंकि उन्हें भी भारतीय करों पर आपत्ति थी।
17 अप्रैल 2023 को, विश्व व्यापार संगठन ने फिर से फैसला सुनाया कि भारत ने विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों और मोबाइल फोन्स पर आयात शुल्क लगाकर वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन किया है। दूसरे शब्दों में, 17 अप्रैल 2023 के डब्ल्यूटीओ के फैसले ने इस विरोधाभास को स्पष्ट रूप से उजागर किया है कि जहां भारतीय निर्यात विदेशी बाज़ारों में एक सफलता की कहानी बन सकती है, वहीं भारत सस्ते चीनी स्मार्टफोन के मुकाबले भारतीय मोबाइल फोन्स के लिए अपने घरेलू बाज़ार में सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है।
भारत में दूरसंचार की सफलता की कहानी में कुछ भी "राष्ट्रीय" नहीं है
इस विरोधाभास की व्याख्या कैसे करें? निर्यात बाज़ारों में भारत की "सफलता" की व्याख्या कैसे करें, जिसके लिए कथित राष्ट्रवादी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं? सच तो यह है: यह सफलता भारत की सफलता नहीं है। भारत में शीर्ष दस मोबाइल फोन्स निर्माता, जो भारतीय मोबाइल फोन निर्यात के बड़े हिस्से के लिए ज़िम्मेदार हैं, विदेशी कंपनियां हैं।
साल 2023 में भारत की शीर्ष दस मोबाइल फोन निर्यातक कंपनियां और उनके मूल की राष्ट्रीयता इस प्रकार है:
सैमसंग (Samsung) : दक्षिण कोरिया
शाओमी (Xiaomi) : चीन
ओप्पो (Oppo) : चीन
विवो (Vivo) : चीन
ऐप्पल (Apple) : संयुक्त राज्य अमेरिका
एलजी मोबाइल (LG Mobile) : दक्षिण कोरिया
नोकिया (Nokia) : फिनलैंड
वनप्लस (OnePlus) : चीन
मोटरोला (लेनोवो) (Motorola (Lenovo) : संयुक्त राज्य अमेरिका
सोनी (Sony) : जापान
स्मार्ट फोन के लिए घरेलू बाज़ार में रिलायंस जियो की हिस्सेदारी 27% है, लेकिन यह शीर्ष दस मोबाइल फोन निर्यातकों में शामिल नहीं है।
भारत के निर्यात में वृद्धि आश्चर्यजनक लग सकती है लेकिन मोबाइल फोन के कुल वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी अभी भी 2% से कम है (नीचे चार्ट देखें)।
नीचे दिया गया चार्ट 2020-21 के दौरान कुल निर्यात मूल्य के साथ-साथ कुल वैश्विक निर्यात में उनकी हिस्सेदारी के मामले में दुनिया के शीर्ष दस मोबाइल फोन निर्यातक देशों की सापेक्ष स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी देता है।
2020-21 में 4.87 अरब डॉलर से, भारतीय मोबाइल फोन निर्यात 2022-23 तक दोगुने से अधिक लगभग 11 अरब डॉलर हो सकता है। फिर भी, इस मामले में भारत वियतनाम और हांगकांग जैसे विकासशील देशों से पीछे रहेगा।
विश्व व्यापार संगठन के फैसले के बाद, भारतीय घरेलू निर्माताओं के पास 20% टैक्स कुशन नहीं होगा और सस्ते विदेशी निर्मित मोबाइल, विशेष रूप से चीन के मोबाइल की भारतीय बाज़ारों में बाढ़ आ जाएगी।
यह सर्वविदित है कि ईडी, डीआरआई, सीबीआई और आयकर विभाग द्वारा किसी भी व्यक्ति, जो उन्हें चुनौती पेश करता है, के ख़िलाफ़ छापेमारी करना मोदी सरकार की आदत है। लेकिन बाज़ार द्वारा पेश की गई जटिल चुनौतियों को एजेंसी के छापे से हल नहीं किया जा सकता है। यह पूरी तरह से साबित हो गया जब मोदी सरकार ने तीन चीनी कंपनियों ओप्पो इंडिया, शाओमी टेक्नोलॉजी (इंडिया) प्रा. लिमिटेड, और वीवो मोबाइल्स इंडिया के ख़िलाफ़ छापे मारे और आरोप लगाया कि वे कर चोरी में लगे हुए हैं। लेकिन उनके ख़िलाफ़ कुछ भी साबित नहीं हो सका। चूंकि अटल बिहारी वाजपेयी के शासन के दौरान बीजेपी ने विश्व व्यापार संगठन के सामने समझौता कर दिया था, इसलिए वह अब खुद को असहाय महसूस कर रही है। आने वाले दिनों में, जब चीनी स्मार्टफोन भारतीय बाज़ारों में और पैठ बना लेंगे, तो हमारे तथाकथित 'राष्ट्रवादी' क्या करेंगे? शायद मूक दर्शक बने रहें।
इससे भी बुरी बात तो यह है कि भारत से निर्माण और निर्यात करने वाली विदेशी मोबाइल कंपनियां भारी राजस्व अर्जित करती हैं। उदाहरण के लिए, 2021-22 में, सैमसंग इंडिया का कुल राजस्व 10 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, शाओमी इंडिया का राजस्व 5 अरब डॉलर से थोड़ा कम था, ओप्पो इंडिया का राजस्व भी लगभग 4.5 अरब डॉलर था, वीवो इंडिया का राजस्व लगभग 3 अरब डॉलर था, अमेरिकी एमएनसी एप्पल का राजस्व,FY22 में, 4.1 अरब डॉलर था, एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स का राजस्व 3 अरब डॉलर के क़रीब था, नोकिया ने भारत से 1.43 अरब डॉलर की आय अर्जित की, भारत में वनप्लस मोबाइल कंपनी का राजस्व 1 अरब डॉलर तक पहुंच गया, भारत में मोटोरोला का राजस्व 2.3 अरब डॉलर था, और सोनी इंडिया ने लगभग 50 करोड़ डॉलर का राजस्व दर्ज किया।
भारतीय स्मार्ट फोन कंपनियों का राजस्व कुल 38 अरब डॉलर था क्योंकि शीर्ष दस कंपनियां कुल उत्पादन के 95% से अधिक के लिए ज़िम्मेदार थीं। 5G फोन्स के लॉन्च के लिए एक दौर का निवेश करने के बाद, इन विदेशी कंपनियों ने अपने मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा अपने मूल देशों में वापस भेज दिया।
मोदी सरकार विदेशी मोबाइल फोन कंपनियों में प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) के रूप में भारतीय करदाताओं के पैसे 'पंप' करती है ताकि विदेशियों के लिए सस्ता स्मार्टफोन बनाकर बेचा जा सके। इसपर 'स्वदेशी ब्रिगेड' की ओर से विरोध की एक आवाज़ तक नहीं सुनाई दे रही।
यह मेक-इन-इंडिया को सीमित सफलता दिला सकता है पर मेक-फॉर-इंडिया को नहीं!
अंतिम विश्लेषण में, कथित 'राष्ट्रवादियों' की दूरसंचार सफलता की कहानी भारत से पूंजी के भारी पलायन की कहानी बन गई है।
(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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