डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरावट उन्हें भी मारती है जिन्होंने पूरी जिंदगी डॉलर नहीं देखा है!
दुनिया पैसे की भाषा बोलती और समझती है। दुनिया के पतन का यह सबसे बड़ा परिचायक है। भारत के सरकारी रहनुमा भी पैसे के दम पर कई सारी खामियों को दूर करने की बजाय भारत को विश्व गुरु बताने का झूठा प्रचार करते रहते हैं। यही पैसा अमेरिका के डॉलर के मुकाबले गिरकर ₹76 पर पहुंच चुका है। $1 खरीदने के लिए तकरीबन ₹76 देने पड़ रहे हैं।
रुपया डॉलर के मुकाबले गिरता क्यों है? इसके कई कारण है? लेकिन एक कारण जो साफ-साफ सामने दिखता है, वह यह है कि जब रुपया रखने वालों के पास डॉलर खरीदने के लिए मारामारी बढ़ जाती है, तो डॉलर की रुपए के मुकाबले कीमत बढ़ जाती है। सामान्य अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो जब डॉलर की सप्लाई कम और डिमांड ज्यादा होती है, तो डॉलर की कीमत बढ़ जाती है। इसका एक ही मतलब होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था कई तरह से कमजोर हो रही है। जो डॉलर को अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर पा रही है। पैसे के जरिए राज करने वाले भले भारत को विश्व गुरु कहें, लेकिन डॉलर और रुपए की हकीकत बता देती है कि डॉलर से आगे निकलने में भारत का एक रुपया 76 गुना पीछे खड़ा है।
डॉलर और रुपए के मुकाबले में रुपए की इतनी कड़ी हार के बाद जीवन में कभी डॉलर ना देखने वाले कहेंगे कि इस खबर का उनके जीवन में कोई महत्व नहीं है। डॉलर के मुकाबले रुपए का कम होना उनके जीवन पर कोई असर नहीं डालेगा। यहीं पर वह गलत है।
अर्थव्यवस्था में थोड़ा भी इधर और उधर होता है तो मार का असर सब पर होता है। जिसकी जितनी जेब मजबूत होती है, वह मार को उतना सह लेता है। इसलिए अर्थव्यवस्था का कमजोर होना भले अमीरों पर कोई असर न डालें लेकिन गरीबों को कई तरह से प्रभावित करता है।
डॉलर के मुकाबले रुपया इस समय पिछले 20 महीने के सबसे निचले स्तर पर है। आप में से कोई तेज तर्रार जानकार कहेगा कि यह भी कोई नई बात नहीं है। ₹1 में $1 कभी नहीं मिलता है। जब से उसने होश संभाला है वह सुनते आया है कि $1 खरीदने के लिए हमेशा ज्यादा पैसा देना पड़ता है। तो इसमें नई बात क्या हुई?
अगर कोई यह बात कह रहा है तो बिल्कुल ठीक कह रहा है। भारत की अर्थव्यवस्थ चालू खाता घाटे वाली व्यवस्था है।अमेरिकी अर्थव्यवस्था से कमजोर अर्थव्यवस्था है। भारत में आयात, निर्यात से अधिक होता है। यानी भारत से कॉफी मसाले जैसे सामान और तकनीकी सेवाओं का जितना निर्यात होता है, उससे कई गुना अधिक आयात होता है। भारत में विदेशी व्यापार हमेशा नकारात्मक रहता है। यही वजह है कि $1 के लेने के लिए अधिक रुपए देने पड़ते हैं। जिनके पास अथाह पैसे होते हैं, वहीं विदेश यात्रा कर पाते हैं। विदेशों में पढ़ाई कर पाते हैं।
यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन नई बात यह है कि पिछले कुछ समय से भारत में आयात पहले के मुकाबले और ज्यादा होने लगा है। सरकारी आंकड़े कह रहे हैं कि विदेशी व्यापार की नकारात्मकता पहले से ज्यादा बड़ी है। इसलिए पिछले 20 महीने में डॉलर के मुकाबले रुपए की यह कमजोरी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चिंता की बात है। वह अलग बात है कि हिंदुत्व के नशे का कारोबार करने वाली राजनीति इस पर ध्यान दे या ना दे।
अगर पहले किसी सामान और सेवा के लिए $100 के बदले ₹7000 देना पड़ता था तो अब $1 के बदले ₹75 होने का मतलब है कि उसी समान और देवा की ₹100 डॉलर की कीमत के लिए ₹7500 देना पड़ेगा।
भारत पेट्रोल और डीजल आयात करता है। यानी पेट्रोल और डीजल की खरीदारी की कीमत बढ़ेगी। भले चुनाव के मद्देनजर सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतें ना बढ़ाएं। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद सरकार चुनावी संभावनाओं की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगी। इस समय का घाटा उस समय पूरा कर सकती है। यानी $1 के बदले ₹76 होने का मतलब यह है कि इसकी मार उन सब पर पड़ेगी खेतों में पंपिंग सेट से लेकर सड़कों पर मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करते हैं। पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ेगी तो अपने आप परिवहन महंगा होगा। सामान और सेवाओं की कीमतें बढ़ेंगी। पहले से मौजूद महंगाई घटने की बजाय और ज्यादा बढ़ेगी।
इसी तरह से खाने का तेल का भी बड़ा हिस्सा विदेशों से मंगवाया जाता है। रासायनिक सामान और फर्टिलाइजर में इस्तेमाल होने वाले रसायन भी विदेशों से आते हैं। इसलिए डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट की मार उन किसानों पर भी पड़ेगी जिन किसानों के लिए डॉलर किसी सपने के सरीखे है। यही हाल इलेक्ट्रॉनिक सामानों के साथ भी होने वाला है। कोरोना और ओमी क्रोन की वजह से पहले से ही दुनिया में सामानों का उत्पादन कम हो रहा है। सप्लाई साइड की कमी दुनिया के बाजार को महंगा करेगी। ऐसे में भारत की सरकार और व्यापारियों को विदेशी बाजार से सामान और सेवा लेने के लिए ज्यादा पैसा देना पड़ेगा।
अमेरिका की सरकार फेडरल रिजर्व पर ब्याज दर बढ़ा रही है। अब तक तीन बार बढ़ा चुकी है। मतलब यह कि अगर अमेरिका में निवेश किया गया तो डॉलर पर अच्छा पैसा मिलेगा। भारत में डॉलर में निवेश करने वाले भारत से डॉलर निकालकर अमेरिका में निवेश कर रहे हैं। फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट के जरिए निवेश करने वाले विदेशी निवेशकों ने केवल मंगलवार को भारत से तकरीबन 700 करोड़ रुपए निकाल लिए। यह रुझान आगे भी जारी रहेगा। इसलिए डॉलर और रुपए का फासला आने वाले दिनों में पहले से भी ज्यादा होगा।
अमेरिका की सरकार फेडरल रिजर्व पर ब्याज दर बढ़ा रही है। अब तक तीन बार बढ़ा चुकी है। मतलब यह कि अगर अमेरिका में निवेश किया गया तो डॉलर पर अच्छा पैसा मिलेगा। भारत में डॉलर में निवेश करने वाले भारत से डॉलर निकालकर अमेरिका में निवेश कर रहे हैं। फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट के जरिए निवेश करने वाले विदेशी निवेशकों ने केवल मंगलवार को भारत से तकरीबन 700 करोड़ रुपए निकाल लिए। यह रुझान आगे भी जारी रहेगा। इसलिए डॉलर और रुपए का फासला आने वाले दिनों में पहले से भी ज्यादा होगा।
कुल मिलाजुला कर बात यह है कि जब डॉलर रुपए से अधिक मजबूत होता है, $1 के लिए पहले से ज्यादा रुपए देना पड़ता है तो इसका असर उन पर भी पड़ता है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी डॉलर में लेन-देन नहीं किया होता है। अपने ही देश में वह सारे सामान और सेवा उपलब्ध नहीं हो पाते जिनकी जरूरत जिंदगी को चलाने के लिए जरूरी है। इसके लिए दूसरे देशों पर भी आश्रित होना पड़ता है। दूसरे देश डॉलर में व्यापार करते हैं। डॉलर का महंगा होने का मतलब है फैक्ट्रियों में उत्पादन का महंगा होना। कामकाज की लागत का बढ़ना। लागत का बढ़ने का मतलब महंगाई का होना। लोगों की आमदनी का कम होना। रोजगार की स्थिति पैदा ना होना.
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