पर्यटन: सैलानियों की रिकॉर्डतोड़ भीड़ हिमालय और वहां के पर्यावरण पर क्या असर डालेगी?
साल के आख़िर में 'छुट्टियों का मौसम' शुरू होते ही मैदानी इलाकों में रहने वालों ने पहाड़ों का ऐसा रुख़ किया कि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ 23 दिसंबर से 26 दिसंबर तक करीब 55 हज़ार गाड़ियां रोहतांग की अटल टनल से गुज़र गईं । यकीनन गाड़ियों के लगातार आने की वजह से इस आंकड़े में ज़रूर इज़ाफा हो गया होगा। अटल टनल से होकर कुल्लू, लाहौल और स्पीति की ओर जाने का रास्ता है। सड़कों पर लगे लंबे जाम के कई वीडियो वायरल होने लगे। इन्हीं में से एक वीडियो ने सबका ध्यान खींचा। जिसमें एक गाड़ी नदी पार करने की कोशिश करती दिखाई दी।
#WATCH | Himachal Pradesh: Challan issued after a video of driving a Thar in Chandra River of Lahaul and Spiti went viral on social media.
SP Mayank Chaudhry said, "Recently, a video went viral in which a Thar is crossing the river Chandra in District Lahaul Spiti. The said… pic.twitter.com/V0a4J1sgxv
— ANI (@ANI) December 25, 2023
बताया जा रहा है कि ये वीडियो लाहौल घाटी का था जहां जाम से बचने के लिए गाड़ी को चंद्रा नदी में उतार दिया गया। नदी की धारा भले कुछ धीमी दिख रही थी लेकिन नदी तो फिर नदी है, गनीमत रही कि कोई हादसा नहीं हुआ। इस वीडियो पर जहां सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा वहीं लोकल लोगों ने भी नाराज़गी ज़ाहिर की। न्यूज़ एजेंसी ANI के मुताबिक इस मामले में एसपी मयंक चौधरी ने बताया कि वीडियो में दिखाई दे रही गाड़ी पर मोटर अधिनियम 1988 के तहत चालान काटा गया है।
लॉन्ग वीकेंड और क्रिसमस और न्यू ईयर पर स्नोफॉल देखने वालों को जब शिमला और मनाली में स्नोफॉल नहीं मिली तो उनमें ग्लेशियर के और करीब पहुंचने की होड़ दिखी। लाहौल और स्पीति पुलिस की तरफ से सिसु का एक ड्रोन व्यू जारी किया जिसमें भारी संख्या में पर्यटकों के पहुंचने की तस्वीर दिखी।
#WATCH | Himachal Pradesh: Lahual and Spiti police carry out drone surveillance at ATR North portal in Sissu in view of the huge number of tourists arriving here on the occasion of Christmas and ahead of New Year.
(Source: Lahaul and Spiti Police) pic.twitter.com/UTN7EEX1QV
— ANI (@ANI) December 25, 2023
ना सिर्फ हिमाचल प्रदेश में रिकॉर्ड तोड़ सैलानी पहुंच गए बल्कि उत्तराखंड का भी कुछ ऐसा ही हाल दिखा, नैनीताल में भी पर्यटकों की भारी भीड़ पहुंचती नज़र आई। गाड़ियों की बढ़ती संख्या ने शहर में ट्रैफिक जाम की समस्या पैदा कर दी। जिसकी वजह से प्रशासन को बिना होटल की बुकिंग वाले पर्यटकों को अस्थाई पार्किंग स्थलों पर रोकना पड़ा।
हिमालय में बसे हिमाचल प्रदेश हो या फिर उत्तराखंड या कश्मीर, सैलानियों की ये भीड़ पहाड़ों पर क्या असर करेगी ये हर कोई जानता है। महज़ चार से पांच महीने पहले इसी साल जुलाई-अगस्त के महीने में हिमाचल प्रदेश में भारी तबाही हुई थी। उत्तराखंड में भी अच्छा-ख़ासा नुक़सान हुआ था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिमाचल में आई त्रासदी में 500 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई थी जबकि 9712 करोड़ की संपत्ति तबाह हो गई थी। ब्यास नदी के पास बसी घनी आबादी इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई थी। चंडीगढ़-शिमला हाईवे और कुल्लू-मनाली हाईवे बह गए थे। सड़कें गायब हो गई थीं। हिमाचल में चलने वाली कालका-शिमला स्पेशल ट्रेन (टॉय ट्रेन) जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया था। उसके ट्रैक का एक हिस्सा बह गया था।
हिमाचल में आई आपदा के बाद उसके कारणों की तलाश की गई होगी, रिपोर्ट भी तैयार की गई होगी, लेकिन बावजूद इसके पहाड़ों पर ऐसी भीड़ देखकर सवाल उठता है कि आख़िर उस आपदा से किसने, क्या सीखा? पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सड़कों को चौड़ा करना, बेतरतीब निर्माण पहाड़ों के लिए ठीक नहीं है ये पर्यावरणविद हमेशा से कहते आए हैं लेकिन उन्हें सुनने वाला कोई नहीं।
हिमाचल में जुलाई में आई आपदा पर बीबीसी पर छपी एक रिपोर्ट में पर्यावरण विशेषज्ञ संजय सहगल ने कहा था कि '' अब समय आ गया है जब हम पर्यटन पर चलने वाले इस राज्य में विकास का ऐसा मॉडल अपनाएं जो पर्यावरण के अनुरूप हो। हम एक सीमा के बाद प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं। अवैज्ञानिक रूप से विकास कार्यों के लिए पहाड़ों में विस्फोट और निर्माण कार्यों के मलबे को बिना योजना के डंप करने और अनियंत्रित संख्या में वाहनों के पहाड़ी सड़कों पर चलने के दुष्परिणाम हो सकते हैं। हम इसका एहसास नहीं कर पा रहे हैं।''
लगातार पर्यावरणविद् हिमालय के बिगड़ते हालात पर ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें अनसुना किया जा रहा है। एक आपदा के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी आपदा को जैसे न्योता दिया जा रहा हो।
साल के आख़िर में पहाड़ों पर अचानक रिकॉर्डतोड़ भीड़ के पहुंचने के क्या परिणाम हो सकते हैं। इसपर हमने पर्यावरणविद् एसपी सती से फोन पर बातचीत की।
सवाल: मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 23 दिसंबर से 26 दिसंबर तक करीब 55 हज़ार गाड़ियां अटल टनल से गुज़री हैं। साल के आख़िर में पहाड़ों पर पर्यटकों की इस भीड़ के क्या नतीजे हो सकते हैं?
जवाब: ये बात हम लंबे समय से कह रहे हैं कि पहाड़ों की वहन क्षमता तय होनी चाहिए। आप वहां अनियंत्रित और असंख्य लोगों को आने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। उसके कई कारण हैं - वहां सीमित रास्ते हैं, वहां के ढलानों की इतनी क्षमता नहीं है, अब अगर देखा जाए तो 55 हज़ार गाड़ियों में अगर तीन लोगों को भी मान लिया जाए तो कम से कम डेढ़- पौने दो लाख लोग उस तारीख़ तक रोहतांग से गुज़रे हैं, इतने लोग रहेंगे कहां? सबसे ख़तरनाक बात है ये जो गाड़ियां जा रही हैं ये गाड़ियां ग्लेशियर के इतने क़रीब जाकर कार्बन ( ब्लैक कार्बन ) का उत्सर्जन करती हैं, इसकी वजह से ब्लैक कार्बन जाकर ग्लेशियर की सतह पर बैठ जाता है और जिसकी वजह से उसका रंग काला हो जाता है तो बर्फ बहुत तेज़ी से पिघलती है। तो कुल मिलाकर ग्लेशियर के ये लिए बहुत घातक है।
एसपी सती का मानना है कि साल दर साल पहाड़ों पर बढ़ती भीड़ की वजह से पर्यटकों के ठहरने के लिए होटल और दूसरे रिहायशी निर्माण के लिए अंधाधुंध पहाड़ों को तोड़ा जा रहा है। पहाड़ों के ढलानों को नुकसान पहुंचा कर निर्माण कार्य हो रहा है। जो बड़ा खतरा है, इससे पहाड़ों पर तो बोझ बढ़ता ही है साथ ही संसाधनों पर भी अतिरिक्त बोझ बढ़ता है। वे कहते हैं कि '' पर्यटन होना चाहिए, लोगों की आजीविका चलनी चाहिए लेकिन उसके लिए कुछ सीमा निर्धारण होनी चाहिए। ये नहीं कि जितना चाहो उतने लोग आ जाएं, ऐसा नहीं कर सकते।''
सवाल: चार-पांच महीने पहले मानसून में पहाड़ों का बहुत बुरा हाल था भारी-जानमाल का नुकसान हुआ था और ऐसे में इतने लोग वहां पहुंच जा रहे हैं तो ये पहाड़ों के लिए कितना खतरनाक है? क्या इसे लापरवाही माना जा सकता है?
जवाब : ये बहुत खतरनाक है जबकि हमको इन सब चीजों से सबक लेना चाहिए लेकिन हम नहीं लेते। क्योंकि ये हमारे सामने कई असुविधाजनक प्रश्न खड़े कर देते हैं। हिमाचल में व्यास घाटी में जो त्रासदी हुई उसमें बड़ा रोल सड़कों का चौड़ीकरण था और उसकी पोल खुल गई। लेकिन इसके बाद भी हिमायत की जाती है कि इंफ्रास्ट्रक्चर मज़बूत होना चाहिए। लोग आ रहे हैं जिसकी वजह से पहाड़ी ढलानों को, इकोलॉजी को, यहां के भूभाग को नुक़सान हो रहा है।
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सवाल: जब हम बात करते हैं हिमालयन रीज़न में आने वाले राज्यों की तो टूरिज़्म इनकी अर्थव्यवस्था में सहयोग करता है, लेकिन दूसरी तरफ पहाड़ों पर बोझ बढ़ रहा है ऐसे में क्या किया जाना चाहिए?
जवाब: देखिए, ये बहुत खतरनाक है कि सिंगल सेक्टर पर निर्भर होंगे तो उसके दुष्परिणाम होंगे। आप जब तक मल्टी सेक्टर डेवलपमेंट नहीं करोगे तब तक इसी तरह के परिणाम (प्राकृतिक आपदा) होंगे। एक ही दिशा में बहुत संभावनाएं देखेंगे तो इको सिस्टम डिस्टर्ब होगा। हिमाचल का मुझे नहीं पता लेकिन यहां की (उत्तराखंड) GDP में मुझे नहीं लगता कि पर्यटन 16-17 फीसदी से ज़्यादा दे रहा है और अगर दे रहा है तो 17 फीसदी के लिए हम पूरे भूभाग की तबाही को जस्टिफाई नहीं कर सकते। इसलिए मल्टी सेक्टर डेवलपमेंट की वकालत हम लोग बरसों से करते आए हैं, जैसे हॉर्टिकल्चर जिसमें बहुत संभावनाएं हैं और जिसमें राज्य की जनसंख्या बहुत लोग शामिल हो सकते हैं। वन से जुड़े उद्योग, औषधीय पौधों से जुड़ी फील्ड है, फिर सीज़नल सब्जियों में बहुत संभावनाएं हैं लेकिन इन चीजों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। टूरिज़्म में सीधे पैसा जुड़ा है जबकि इस सब चीजों के लिए बहुत सा दिमाग और ख़ास विशेषता चाहिए तो ये सेक्टर बहुत पीछे हैं।
सवाल: हम सब जानते हैं कि साल के आख़िर में छुट्टियों के मौक़े पर पहाड़ों में भीड़ बढ़ती है तो क्या पहले से क़दम नहीं उठाए जाने चाहिए थे?
जवाब: बिल्कुल, रेगुलेशन होने चाहिए और दूसरी बात ख़ास तौर पर इस साल के लिए ये अभी तक की रिकॉर्ड हिस्ट्री का सबसे वॉर्म ईयर है और ये अभी तक की दर्ज की गई सबसे गर्म सर्दियां हैं। हिमालय के लिए, ऐसी दशा में इसके दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं? उत्तराखंड में कई जगह, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में जो सर्दियों की अखण्ड ( intact) बर्फ थी वो कम तापमान के कारण भी रहती थी। लेकिन अगर तापमान बढ़ता है तो उसकी पकड़ सतह पर कम होती है और एवलांच (हिमस्खलन) आने की संभावना बढ़ जाती है जैसे 2021 भी गर्म साल थी तब भी बड़े हिमस्खलन आए थे तो इस साल भी बड़े हिमस्खलन की संभावना हो सकती है।
सवाल: मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों की छुट्टियां क्या पहाड़ों पर भारी पड़ती हैं? आम लोगों का क्या याद रखने की ज़रूरत है?
जवाब: यही तो मैं कहता हूं। जहां एक जा रहा है वहां सब के सब चले जाएंगे। ऐसी स्थिति में सब के सब परेशान होंगे। ज़्यादातर लोग परेशान होने वाले हैं। रोहतांग में इतने लोग चले गए वो रहेंगे कहां इतनी ठंड में? लोग सोचते हैं हम पिछड़ ना जाएं। लोगों में जागरूकता आने की बहुत जरूरत है। घूमना चाहिए लेकिन उसका एक प्रोटोकॉल होना चाहिए।
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