यूपी: ईद में नमाज़ियों पर मुक़दमा, कई शहरों में कार्रवाई
21 अप्रैल की शाम जब चांद दिखा, तब अगले दिन ईद मनाने के लिए पूरा देश उत्साहित था...।
लेकिन ये त्योहार और उत्साह अब राजनीति की ऐसी भेंट चढ़ चुका है, कि किसी भी दो समुदाय के लोग एक दूसरे से गले लगकर शुभकामनाएं देने से भी गुरेज़ करने लग गए हैं, इसका सीधा सा कारण सामाजिक समझ को परे रखकर राजनीति समझ को अपने जीने का आधार बना लेना है। और इस आधार की जड़ में छुपकर बैठी है बहुत सारी नफरत। और नफरत का कारण हैं हमारी सोच….और हमारी राजनीतिक पार्टियां।
ख़ैर... सियासी तंत्रों से जूझ रहा हमारा समाज इस बार भी ईद के मौके पर कुछ अच्छा करने को ही सोच रहा था। जैसे 22 अप्रैल को ईद के दिन जब लोग नमाज़ पढ़कर ईदगाह से बाहर निकले तो बहुत जगह हिंदू समाज के लोगों ने उनपर फूल बरसाकर उनका स्वागत किया। बाराबंकी से आईं सुकून देने वाली इन तस्वीरों ने साफ किया कि आम लोगों के मन में अब भी सियासी सोच से दूर आपसी सौहार्द का एक हिस्सा शेष है।
In this era of hate pollution, if you see something like this, you get relief. In Barabanki, UP, the people of the Hindu community showered flowers on the Muslims who were roaming around on the eve of Eid. ✅🇮🇳 pic.twitter.com/RDXk25W2ss
— Mohammad Farooq (@Mohamma81426437) April 22, 2023
लेकिन दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के सानिध्य में चलने वाला पुलिस तंत्र एक के बाद एक शिकायतें दर्ज कर रहा था। कहीं मुज़फ्फरनगर में, कहीं अलीगढ़ में तो कहीं कानपुर में।
ये शिकायतें महज़ इसलिए थीं, क्योंकि लोगों ने सड़क पर या खुले मैदान में बैठकर नमाज़ पढ़ ली।
जैसे सबसे पहले कानपुर वाली घटना को समझते हैं... यहां ईद की नमाज़ पढ़ने वाले 1700 से ज़्यादा नमाज़ियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई, पुलिस की ओर से आरोप ये तय किए गए कि रोक के बावजूद 22 अप्रैल को जाजमऊ, बाबूपुरवा और बड़ी ईदगाह बेनाझाबर के बाहर सड़क पर नमाज़ पढ़ी गई। जाजमऊ में 200 से 300, बाबूपुरवा में 40 से 50, बजरिया में 1500 नमाजियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इनमें ईदगाह कमेटी के सदस्य भी शामिल हैं।
आरोप लगाया गया है कि ईद के दिन सुबह 8 बजे ईदगाह में नमाज़ शुरू होने से ठीक पहले अचानक हज़ारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई, लोगों ने सड़क पर चटाई बिछाकर नमाज़ शुरू कर दी। जिसके बाद धारा 144 लगा दी गई। अब पुलिस इन लोगों की पहचान सीसीटीवी के ज़रिए करने की कोशिश कर रही है।
इस एफआईआर को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने नाराजगी जताई है। बोर्ड के सदस्य मो. सुलेमान ने कहा है कि एक संप्रदाय विशेष को टारगेट किया जा रहा है। ऐसा लगता है कि राष्ट्र किसी एक धर्म का हो गया है।
उन्होंने कहा कि मस्जिद और ईदगाहों में कैंपस के अंदर ही नमाज़ हुई है। बाबूपुरवा में इतनी बड़ी ईदगाह नहीं है। 10 मिनट के लिए अगर जगह नहीं मिलती है, तो नमाजी सड़क पर नमाज़ पढ़ लेते हैं। बाबूपुरवा में भी इसी तरह सड़क पर नमाज़ हुई, लेकिन बाबूपुरवा के दरोगा ने एफआईआर दर्ज करा दी।
बदकिस्मती ये है कि मुकदमा सड़क पर नमाज़ पढ़ने का नहीं हुआ है, बल्कि लोकसेवा में बाधा डालना, जो गंभीर अपराध है और दूसरी महामारी अधिनियम की धारा लगाई है। ये हमारी हुकूमत का माइंडसेट है, जिस पर इस तरह के उत्साहित पुलिसकर्मी काम कर रहे हैं। यह निंदनीय है, समाज के लिए ठीक नहीं है।
ईद के मौके पर कानपुर में तो नमाज़ियों पर मुकदमा हुआ ही, साथ में अलीगढ़ के नमाज़ियों पर भी एफआईआर दर्ज की गई। अलीगढ़ में ईद की नमाज़ के बाद लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ और अलविदा की नमाज़ के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ। 21 और 22 अप्रैल को अलीगढ़ शहर के खटिकान चौराहा को सब्जी मंडी चौराहा और चरखवालान चौराहा को मरघटवाले रोड से जोड़ने वाली सड़कों पर लोगों ने नमाज़ अदा की थी। इस संबंध में कोतवाली नगर और दिल्ली गेट थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है।
उधर यूपी के बागपत में भी ईद की नमाज़ सड़क पर पढ़ी गई, इस मामले में पुलिस ने शहर इमाम, छपरौली विधायक समेत आरएलडी के कई बड़े नेताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया। बड़ौत कोतवाली में धारा 188, 171एच, 341, 353 और लोक अधिनियम की धारा 123ए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। मुकदमें में शहर इमाम मौलाना आरिफ उल हक, छपरौली विधायक डॉ. अजय तोमर, आरएलडी नेता अश्वनी तोमर, गौरव, इरफान मलिक, विश्वास चौधरी, मुकेश उपाध्याय सहित इसराल उर्फ गुड्डू और एक अज्ञात व्यक्ति का नाम शामिल है।
बागपत के अलावा हापुड़ में भी ईद की नमाज़ पढ़ने वाले करीब 250 लोगों पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है, ये सभी इंतजामिया कमेटी के लोग हैं। हापुड़ नगर थाने में धारा 186, 188, 283, 341 और 353 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
दावा किया जा रहा है कि ईद के मद्देनजर पुलिस अधिकारियों ने मस्जिदों के मौलाना और कमेटियों से बात की थी, कि सड़क पर किसी भी तरह नमाज़ अदा न की जाए, क्योंकि शासन की तरफ से इसको लेकर सख्त निर्देश जारी किया गया था। इसके लिए चाहे मस्जिद में दो बार में नमाज़ कराई जाए।
ख़ैर... इस पूरे मसले में कहीं न कहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मो. सुलेमान के बयान में तर्क नज़र आने लगता है, जिसमें उन्होंने कहा कि एक धर्म को टारगेट किया जा रहा है, और राष्ट्र सिर्फ एक धर्म को होकर रह गया है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए थे, तब योगी आदित्यनाथ ने साफ तौर पर 80 बनाम 20 का नारा दिया था। इससे पहले, बाद में और लगातार जिस तरह एक धर्म विशेष के घरों पर जिस तरह से बुलडोज़र राजनीति हुई उससे भी इस बयान के आधार को निराधार नहीं माना जा सकता। यही नहीं अभी रामनवमी और हनुमान जयंती के जुलूस शहर-दर-शहर पूरे जोरशोर से निकाले गए और ऐसे मार्गों पर भी गए जो पूर्व निर्धारित नहीं थे। लेकिन उन मामलों में सरकार या पुलिस ने ऐसी सक्रियता नहीं दिखाई।
इसी कड़ी में देश की अन्य घटनाओं और सियासी बयानों पर नज़र डाले तो यही दिखाई देता है। कर्नाटक और तेलंगाना में भी जिस तरह गृह मंत्री अमित शाह एक वर्ग विशेष के आरक्षण को पूरी तरह से खत्म कर देने के लिए बातें कह रहे हैं, उसे भी इसी से जोड़कर समझा जा सकता है।
यानी ये कहना ग़लत नहीं होगा कि सांप्रदायिक और नफ़रत की सियासत ने हमारे भाईचारे के त्योहारों को ऐसा बना दिया है कि जिसम न रंग बचा है न मिठास।
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