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गाज़ा में अमेरिका की शासन परिवर्तन की योजना 'दो-राज्य समाधान' को जटिल बना देगी

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन शुक्रवार को एक और इलाक़ाई दौरे पर पर इज़रायल जा रहे हैं।
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बाइडेन प्रशासन की दोहरी बातें उस रणनीतिक अस्पष्टता को दूर करती हैं जो अब तक उसके रुख पर छाई हुई थी। जो बात सामने आती है वह यह कि गाज़ा में जबरदस्ती शासन परिवर्तन के लिए मजबूर करने और "दो-राज्य समाधान" के बीच में एक लचीला शासन स्थापित करने की एक विचित्र नवरूढ़िवादी परियोजना है। (जो बाइडेन और महमूद अब्बास। छवि सौजन्य: रॉपिक्सल)

इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीन में अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के भीषण उल्लंघन की विश्वव्यापी निंदा भी गाज़ा में उसके सैन्य अभियानों को रोक नहीं पा रही है। सोमवार को प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्धविराम के आह्वान को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा कहना भी "इज़राइल से हमास के सामने आत्मसमर्पण करने के आह्वान के समान है। यह नहीं होगा।" और उन्होने युद्ध को जायज़ ठहराने के लिए बाइबल से नैतिक और आध्यात्मिक बातों का सहारा लिया। 

लगभग 20,000 सैनिकों की कम से कम दो बख्तरबंद और पैदल सेना डिवीजनों ने कथित तौर पर फ़िलिस्तीनी इलाके में प्रवेश किया है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने सहायक रक्षा सचिव क्रिस्टोफर मायर के हवाले से बताया कि कमांडो सहित अमेरिकी विशेष बलों को भी इज़राइल में तैनात किया गया है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि कई अन्य पश्चिमी देशों ने भी चुपचाप विशेष बलों की टीमों को इज़राइल के करीब भेज दिया है।

मैयर ने विस्तार से बताए बिना कहा, "हम सक्रिय रूप से इजरायलियों को कई चीजें करने में मदद कर रहे हैं।" जैसा कि उन्होंने कहा कि “आगे चलकर गाज़ा में बहुत ही जटिल लड़ाई होने वाली है।"

दूसरी ओर, घरेलू चिंताएं भी बढ़ रही हैं कि अमेरिका पश्चिम एशिया में एक और महंगे युद्ध  में फंस सकता है। रूढ़िवादी मीडिया हमले और बदनामी की धमकियों का तंज़ झेलते हुए, अमरीकी कांग्रेस के 55 सदस्यों ने बाइडेन और ब्लिंकन से अपील की है कि इज़राइल के सैन्य अभियान को अंतरराष्ट्रीय कानून को "ध्यान में रखना" चाहिए। लेकिन प्रशासन ऐसी मांगों पर ज्यादा ध्यान देने से इनकार कर रहा है। 

राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा नेतन्याहू को प्रतिशोध लेने की खुली छूट देने से एक गंभीर तस्वीर उभर कर सामने आई है। असाधारण तीखी टिप्पणियों में, सदन में वाशिंगटन की डेमोक्रेट सांसद प्रमिला जयपाल ने रविवार को कहा कि यूक्रेन की तुलना में फ़िलिस्तीनियों के समर्थन के अपने "दोहरे मापदंड" के कारण अमेरिका वैश्विक मंच पर "विश्वसनीयता खो रहा है" और नतीजतन अमेरिका "बाकी दुनिया में अलग-थलग पड़ रहा है।" जयपाल ने कहा कि, "नेतन्याहू सरकार के भीतर नस्लवादी हैं।" ऐसा पहली बार होगा कि अमेरिका में राजनेताओं ने इज़राइल की इतनी तीखी आलोचना की है।

दरअसल, बाइडेन प्रशासन की दोहरी बातें उस रणनीतिक अस्पष्टता को दूर करती हैं जो अब तक उसके रुख पर छाई हुई थी। जो बात सामने आती है वह यह कि गाज़ा में जबरदस्ती शासन परिवर्तन के लिए मजबूर करने और "दो-राज्य समाधान" के बीच में एक लचीला शासन स्थापित करने की एक विचित्र नवरूढ़िवादी परियोजना है।

महमूद अब्बास, एक दुखद व्यक्ति, लेकिन जो कई दशकों से अमेरिका और इज़राइल (और उनके अपने लोगों) के साथ इजरायल-फ़िलिस्तीनी संघर्ष का एक महत्वपूर्ण घटक है, और इसलिए वे इस प्रस्तावित बदलाव के केंद्र में नज़र आते लगते हैं। हर कीमत पर, सभी सड़कें रामल्लाह की ओर जाती हैं

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन शुक्रवार को एक और इलाकाई दौरे पर इज़राइल जा रहे हैं। गौरतलब है कि मंगलवार को सीनेट विनियोग समिति के समक्ष एक गवाही के दौरान, उन्होंने सार्वजनिक रूप से फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के गाजा पट्टी पर वापस लौटने की बाइडेन प्रशासन की परियोजना की घोषणा की, जहां से इसे हमास के प्रतिनिधियों के चुनाव जीतने के एक साल बाद 2007 में बाहर कर दिया गया था। 

जैसा कि ब्लिंकन ने कहा, “एक समय जो सबसे अधिक सार्थक होगा वह यह कि एक प्रभावी और पुनर्जीवित फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण गाज़ा में शासन करे और अंततः सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी हो।

“क्या आप एक कदम में वहां पहुंच सकते हैं, यह एक बड़ा सवाल है जिस पर हमें गौर करना होगा। और यदि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो अन्य अस्थायी व्यवस्थाएँ हैं जिनमें इलाके के कई अन्य देश भी शामिल हो सकते हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां शामिल हो सकती हैं जो सुरक्षा और शासन दोनों प्रदान करने में मदद करेंगी। 

ऐसा लगता है कि 87 वर्ष की उम्र में अब्बास एक संक्रमणकालीन व्यक्ति हो सकते हैं। लेकिन वे सीआईए और मोसाद से फतह के भीतर लंबे समय से संपर्क में हैं

यहां यह कहना काफी होगा कि गाज़ा पट्टी में शासन परिवर्तन "दो-राज्य समाधान" अमरीकियों/नवरूढ़िवादियों की मूल धारणा में है, जिसके बारे में बाइडेन बात करते रहते हैं। केवल, अमेरिका का "दो-राज्य समाधान" और वैश्विक बहुमत इसे जो समझता है, वे दोनों   अलग-अलग चीजें हैं – यानि बुनियादी तौर पर दोनों अलग हैं। 

जाहिर है, अमेरिका का अनुमान है कि अभूतपूर्व अरब एकता जमीन पर निर्णायक कार्रवाई के रूप में तब्दील नहीं होने वाली है। दूसरे, ब्लिंकन के शब्दों में, अमेरिका अपने ब्लूप्रिंट के अनुसार दो-राज्य समाधान (गाजा में शासन परिवर्तन) को नियंत्रित और हावी करने का इरादा रखता है।

निश्चित रूप से, ईरान कारक महत्वपूर्ण होने वाला है। ऐसा लगता है कि अमेरिका यह शर्त लगा रहा है कि जब तक इज़राइल लेबनान पर आक्रमण नहीं करेगा या हिजबुल्लाह की गर्दन की नसें नहीं तोड़ेगा, तब तक ईरान हस्तक्षेप नहीं करेगा। अब, यह एक बड़ा दांव है - "जाने अंजाने" - यह फ़िलिस्तीनी समस्या के प्रति ईरान की प्रतिबद्धता को कम करके आंकता है।

तेहरान के आकलन के अनुसार, इज़राइल को हमास से एक बड़ा झटका लगा है, जिससे वह कभी उबर नहीं पाएगा - यानी, इज़राइल आगे चलकर एक कमजोर इलाकाई शक्ति दिखाई देगा। इसलिए वह एक ऐसे मोड पर पहुँच गया है, जहां अमेरिका की क्षमता और प्रभाव भी कम हो रहा है।

ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने बुधवार को दोहा और अंकारा का दौरा किया। दोहा में रहते हुए उन्होंने पिछले महीने हमास पोलित ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानियेह से दूसरी बार मुलाकात की। बाद में, अंकारा में अपने तुर्की समकक्ष हाकन फ़िदान के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, अमीर-अब्दुल्लाहियन ने चेतावनी दी कि "यदि नागरिकों के खिलाफ नरसंहार और युद्ध अपराधों को नहीं रोका गया, तो यह इलाका एक बड़ा और निर्णायक फैंसला लेने के बहुत करीब है... (और ) इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे, और युद्ध फैलाने वाले निश्चित रूप से इसके नतीजे सहन नहीं कर पाएंगे। 

इस बीच, गाज़ा पर रूस का रुख भी सख्त हो गया है। सोमवार को सुरक्षा परिषद और सरकार के सदस्यों और सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों के साथ एक बैठक में अपने शक्तिशाली भाषण में , राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका और उसके समर्थकों को "वैश्विक अस्थिरता के मुख्य लाभार्थी बताया... (जो) इस त्रासदी के पीछे हैं"। आम तौर पर मध्य पूर्व में फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार करना, यूक्रेन में युद्ध... यूक्रेन और मध्य पूर्व सहित वित्तीय संसाधनों को प्रवाहित करना, और यूक्रेन और मध्य पूर्व में नफ़रत को बढ़ावा देना है।”

विशेष रूप से, पुतिन ने यूक्रेन और गाज़ा में युद्धों की तुलना एक ही सिक्के के दो पहलुओं के रूप में की - जो एक बहुध्रुवीय दुनिया में अपने कम होते वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने के अमेरिका के हताश प्रयास की अभिव्यक्ति है। पुतिन ने आरोप लगाया कि पश्चिमी खुफिया एजेंसियों ने "रूस में नरसंहार" भड़काने के प्रयास में रविवार रात माखचकाला (दागेस्तान) में सोशल मीडिया के माध्यम से दंगा भड़काया। पुतिन ने कहा कि अमेरिका और उसके समर्थकों ने रूस को बदनाम करने की साजिश रची है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि "वे (अमेरिका) नहीं चाहते कि रूस मध्य पूर्व सहित किसी भी अंतरराष्ट्रीय या इलाकाई समस्या के समाधान में भाग ले।"

यहां बाइडेन प्रशासन का "दो-राज्य समाधान" चार मामलों में गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण है। सबसे पहला, पूरी परियोजना हमास पर पूर्ण सैन्य जीत पर आधारित है। यह 2003 में इराक पर आक्रमण के बाद "मिशन पूरा हुआ" के विजयी नारे और पहले अफ़गानिस्तान में तालिबान को भ्रामक रूप से आसान तरीके से हटाने की याद दिलाता है। (वैसे, बाइडेन इराक पर आक्रमण के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने 9/11 के हमलों के तीन दिन बाद सबसे पहले अफ़गानिस्तान में युद्ध शुरू करने का समर्थन किया था।)

दूसरा, यहां मानवीय रुख शामिल है। फ़िलिस्तीनी, अमेरिका और इज़राइल से घृणा करते हैं और इन देशों द्वारा चुने गए लोगों के सामने समर्पण नहीं करेंगे। फ़तह और अब्बास दोनों पूरी तरह से बदनाम संस्थाएँ हैं। आखिर बाइडेन प्रशासन इतना आश्वस्त क्यों है कि अरब शासन गाज़ा में वाशिंगटन के सरोगेट्स या पांचवें स्तंभ के रूप में कार्य करने को तैयार होंगे? कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि यह एक असभ्य और अपमानजनक धारणा है।

तीसरा, हमास के जमीनी स्तर के समर्थन को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। प्रतिरोध आंदोलनों में उतार-चढ़ाव हो सकते हैं लेकिन जब तक विदेशी आधिपत्य की स्थितियाँ मौजूद रहती हैं तब तक वे शायद ही कभी ख़त्म होते हैं।

अंततः, वाशिंगटन जो भी साजिश रच रहा है उसे वैध ठहराने के लिए अभी भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के आदेश की जरूरत होगी, जिसे पुतिन के सोमवार के भाषण के बाद अमेरिकी शर्तों पर पारित कराना मुश्किल होगा। पुतिन ने गाज़ा में हुए नरसंहार का वर्णन करने के लिए असाधारण रूप से कठोर भाषा का इस्तेमाल किया है।

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

साभार: इंडियन पंचलाइन

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Neocon Regime Change in Gaza Will complicate ‘Two-State Solution’

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