Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ख़बरों के आगे-पीछे: हिंदू स्वाभिमान के नाम पर केंद्रीय मंत्री की सांप्रदायिक यात्रा!

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में बिहार में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की 'हिंदू स्वाभिमान’ यात्रा के साथ-साथ झारखंड चुनाव और कुछ अन्य विषयों का विश्लेषण कर रहे हैं।
Giriraj Singh
तस्वीर गूगल से साभार

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह इस समय बिहार में 'हिंदू स्वाभिमान’ यात्रा कर रहे हैं। अपनी इस यात्रा के दौरान वे खुलेआम भड़काऊ भाषण देते हुए हिंदुओं से अपने घरों में त्रिशुल, भाला, तलवार और बंदूक रखने की अपील कर रहे हैं। यात्रा शुरू करते हुए उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि वे जातीय समीकरण देख कर चुनाव लड़े, जबकि वे हिंदू होकर चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने कहा कि वे चाहते थे कि किशनगंज से चुनाव लड़े भले हार जाएं। गौरतलब है कि किशनगंज मे 80 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। अब सवाल है कि उन्हें हिंदू होकर लड़ने से किसने रोका? वे तीन बार से अपनी जाति की बहुलता वाली बेगूसराय सीट से लड़ रहे हैं। बहरहाल वे जो कुछ बोल रहे हैं, उस पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मौन है, यानी गिरिराज सिंह की यात्रा को उसका मौन समर्थन है। 

यह पहला मौका है जब केंद्रीय मंत्री के रूप में संवैधानिक पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति इस तरह खुले तौर पर सांप्रदायिक विभाजनकारी बातें कर रहा है। गिरिराज सिंह की यात्रा को लेकर राज्य में विवाद हो रहा है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने इस यात्रा के खिलाफ मोर्चा खोला है। पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने भी गिरिराज सिंह को चुनौती देते हुए कहा है- ’यात्रा मेरी लाश पर से होकर गुजरेगी।’ सबको पता है कि मुस्लिम आबादी बहुल सीमांचल में यात्रा का मकसद पूरे प्रदेश मे सांप्रदायिक विभाजन का माहौल बनाना है। 

अब सभी रेल हादसों के पीछे साज़िश! 

भाजपा की सरकार में किस तरह से नैरेटिव बदल जाते हैं, इसकी मिसाल ट्रेन दुर्घटनाएं है। ट्रेन दुर्घटनाएं पहले भी होती थीं लेकिन शायद ही कभी कहा गया हो कि साजिश के तहत दुर्घटना कराई गई है। भाजपा की सरकार में भी काफी समय तक ऐसा नहीं कहा जाता था। लेकिन आईएएस अधिकारी रहे अश्विनी वैष्णव जब से रेल मंत्री हुए है तब से इन हादसों का पूरा नैरेटिव बदल गया है। अब कहीं भी ट्रेन हादसा होता है तो उसमें हताहत हुए लोगों के बारे में सूचना से पहले यह खबर आती है कि ट्रेन दुर्घटना को साजिश के तहत अंजाम दिया गया है। 

पहले ट्रेन दुर्घटना होने पर खबर आती थी कि कितने डब्बे पटरी से उतरे, कितने लोग घायल हुए, कितने लोग मरे, कितनी ट्रेने रद्द करनी पड़ी, हेल्पलाइन नंबर क्या है आदि आदि। लेकिन अब ये खबरें नहीं आती हैं। अब एक लाइन में बता दिया जाता है कि साजिश के तहत ट्रेन दुर्घटना कराई गई। 

असल मे जब से रेल मंत्री ने ट्रेन दुर्घटना को छोटी घटना करार दिया तब से सोशल मीडिया में हर छोटी-बड़ी या यात्री और मालगाड़ी के डिब्बे पटरी से उतरने या किसी और हादसे को रेल मंत्री की जुबान में छोटी घटना बता कर सोशल मीडिया में उसे वायरल किया जाने लगा। थोड़े दिन तो रेल मंत्री और उनकी पीआर टीम ने इसको देखा और जब लगा कि इससे धारणा प्रभावित हो रही है तो तुरंत इसकी काट के तौर पर साजिश का पहलू जोड़ दिया गया। 

झारखंड में भाजपा अपना घर संभालने में जुटी 

झारखंड में भाजपा को बड़े पैमाने पर बगावत का सामना करना पड़ रहा है। राज्य की लगभग आधी सीटों पर बागी और नाराज नेता उसकी परेशानी का सबब बने हुए हैं। कई बागी नेता ताल ठोक कर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ मैदान आ डटे हैं तो कई नेता नाराज होकर घर बैठ गए है और कुछ ने तो पार्टी ही छोड़ दी है। दूसरे कई राज्यों में पार्टी के नेताओ की बगावत या नाराजगी से हुए नुकसान को ध्यान में रखते हुए भाजपा के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह और सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा बागी और नाराज नेताओं की मान मनौव्वल मे लगे हैं। पार्टी से दूर चले गए नेताओं को वापस लाकर संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा रही है। इसकी शुरुआत सरयू राय से हुई थी। पिछले चुनाव में टिकट कटने से नाराज सरयू राय तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ लड़ गए थे और उनको हरा दिया था। तब से सरयू राय पार्टी से बाहर थे। लेकिन ऐन चुनाव से पहले भाजपा के आला नेताओं की सहमति से उन्हें जनता दल (यू) में शामिल कराया गया और उनकी पुरानी जमशेदपुर पश्चिम सीट जनता दल (यू) के लिए छोड़ी गई ताकि वे वहां से लड़े। उनके साथ ही जमशेदपुर के नेता और पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अमरप्रीत सिंह काले भी पार्टी से दूर हो गए थे, लेकिन अब उनकी भी एंट्री पार्टी में हो गई है। हालांकि अब भी भाजपा के अनेक नेता नाराज हैं, लेकिन जो नेता नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं, उन्हें मनाया जा रहा है।

मणिपुर में मुख्यमंत्री बदलेगी भाजपा! 

भाजपा मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा होता है तो यह बड़ी बात होगी। पिछले दिनों मणिपुर के 19 विधायकों ने बीरेन सिंह को हटाने के लिए एक चिट्ठी पार्टी आलाकमान को लिखी है। इसमें भाजपा के भी विधायक है और मैतेई समुदाय के विधायक भी हैं, जिसका प्रतिनिधित्व बीरेन सिंह करते हैं। पहले सिर्फ कुकी विधायक उन्हें हटाने की मांग कर रहे थे। लेकिन अब कुकी, मैतेई और नागा तीनों समुदायों के विधायक चाहते हैं कि बीरेन सिंह को हटाया जाए। हालांकि खुद बीरेन सिंह ने अपने हटाए जाने की खबरों को अफवाह बता कर खारिज कर दिया है लेकिन जानकार सूत्रों के मुताबिक 19 विधायकों ने भाजपा आलाकमान की हरी झंडी मिलने के बाद ही चिट्टी लिखी है। पिछले दिनों दिल्ली में पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ विधायकों की बैठक हुई थी, जिसके बाद यह अभियान शुरू हुआ। कहा जा रहा है कि विश्व मैतेई परिषद ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि मणिपुर मे शांति बहाली के लिए कोई पहल की जाए। बीरेन सिंह को हटाए जाने की स्थिति में नए मुख्यमंत्री के लिए विधानसभा स्पीकर थोकचम सत्यब्रत सिंह के अलावा थोगम बिस्वजीत सिंह, युमनान खेमचंद सिंह और गोविंद दास सिंह के नाम की चर्चा है। यह नहीं कहा जा सकता है कि फैसला कब होगा लेकिन संभावित मुख्यमंत्री के नामों की चर्चा शुरू हो गई है तो इसका मतलब है कि बदलाव होने वाला है।

केजरीवाल का न्यारा बंगला, न्यारे किस्से 

दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते अरविंद केजरीवाल ने जो बंगला अपने लिए तैयार कराया था वह बंगला दो दिन लोक निर्माण विभाग यानी पीडब्लुडी के पास रहा और उसके बाद ऐसे-ऐसे किस्से आ रहे हैं, जिन्हें सुन कर देश के तमाम मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री हैरान होंगे। वे सोच रहे होंगे कि जब नगर निगम जैसी हैसियत वाले राज्य का मुख्यमंत्री इतनी विलासिता से रह सकता है तो उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? वैसे इस तरह के किस्से पहले भी सामने आए थे, जब पता चला था कि बंगले के रेनोवेशन पर 50 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। लेकिन जब केजरीवाल के बंगला खाली करने और आतिशी के उसमें शिफ्ट होने के बाद पीडब्लुडी ने उसे टेकओवर किया तो डिटेल सामने आई। पांच से छह करोड़ के परदे और 15 लाख की टायलेट सीट के किस्से लोगों ने पढ़े। मसाज चेयर और लाखों रुपये के टेलीविजन सेट व साउंड सिस्टम के बारे में भी जानकारी मिली। अब मुख्यमंत्री आतिशी ने कहा है कि सरकार को बंगला लेना है तो ले ले और जिसे चाहे, उसे अलॉट कर दे। उन्होंने कहा है कि हम बंगलें-गाड़ी के लिए राजनीति में नहीं आए हैं। अगर ऐसा है तो वे बंगला छोड़ दे। आबंटित होने के बाद भी वे उसमे रहने से इनकार कर सकती है, जैसे राहुल गांधी ने तुगलक लेन का बंगला दोबारा आबंटित होने पर किया था। इसी तरह राजनिवास के आसपास मंत्रियों को जो बड़े-बड़े बंगलें, सुरक्षा और गाड़ियां मिली हैं, वे भी दिखावे के लिए ही सही, लेकिन छोड़ सकते हैं। 

तेलंगाना को पीछे छोड़ा हरियाणा ने 

कांग्रेस में जिस तरह फैसले होते हैं और कांग्रेस की सरकारें जिस तरह से काम करती हैं, उस पर हैरानी होती है। जिस दिन सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जाति होमोजेनस यानी समरूप नहीं है और इसमें भी जो ज्यादा पिछड़े और वंचित हैं उन्हें आरक्षण का लाभ देने के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण दिया जा सकता है तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा था कि इस फैसले को लागू करने वाला पहला राज्य तेलंगाना बनेगा। तब इस पर सवाल भी उठा, लेकिन सबको पता है कि तेलंगाना में मडिगा और कुछ अन्य दलित समुदाय ऐसे हैं, जो आरक्षण के लाभ से वंचित हैं और बरसों से आरक्षण में वर्गीकरण की मांग कर रहे है। पंजाब से लेकर बिहार तक इस तरह की मांग है। लेकिन मजबूत दलित जातियों ने वर्गीकरण का विरोध किया तो कांग्रेस बैकफुट पर आ गई। 

इस बीच हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए तो साफ-साफ वर्गीकरण दिखाई दिया। एक बड़ा समुदाय अलग-अलग कारणों से भाजपा के साथ गया। जीत कर भाजपा ने सरकार बनाई तो मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले को लागू कर दिया और कहा कि अनुसूचित जाति को मिलने वाले 20 फीसदी आरक्षण में आधा यानी 10 फीसदी उन 36 जातियों को मिलेगा, जिन्हें अब तक सबसे कम लाभ मिला है। लेकिन उधर तेलंगाना सरकार बयान देने के बाद से अभी कमेटी ही बना रही है।

झारखंड में लालू ने समझी ज़मीनी हक़ीक़त

राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद को झारखंड की राजनीतिक हकीकत समझ में आ गई और इसीलिए वे छह सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी हो गए। इससे पहले उनकी पार्टी ने आठ सीट की रट लगाई थी। हालांकि पिछली बार राजद सात सीटों पर लड़ कर सिर्फ एक सीट जीत पाया था और वह भी भाजपा छोड़ कर राजद में शामिल हुए सत्यानंद भोक्ता की सीट थी, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित चतरा सीट से जीते थे। बाकी राजद ने जहां-जहां यादव उम्मीदवार खड़े किए थे, वे सब हार गए, जबकि पूरे राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और राजद गठबंधन के पक्ष में हवा थी। उस चुनाव में जेएमएम ने 30 और कांग्रेस 16 सीटें जीती थीं। बहरहाल, पिछली बार दूसरे नंबर पर रहने के आधार पर तेजस्वी और राजद के सांसद मनोज झा आठ सीट की मांग कर रहे थे और कह रहे थे कि अगर बात नहीं मानी गई तो राजद 20 सीट पर लड़ेगा। लेकिन जब जेएमएम और कांग्रेस ने ध्यान नहीं दिया तो लालू प्रसाद ने कमान संभाली और छह सीटों पर राजी हो गए। मुश्किल यह है कि इनमें से भी तीन सीटों पर उन्होंने यादव उम्मीदवार उतारे हैं। उन्हें पता है कि बिहार की तरह झारखंड में यादव उनका साथ नहीं देते हैं। लेकिन लालू प्रसाद को दिखाना होता है कि वे यादवों के नेता हैं इसलिए वे ज्यादा यादव उम्मीदवार उतारते हैं ताकि कम से कम जाति के नाम पर उम्मीदवारों को वोट मिल जाए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest