क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ हर रोज़ बढ़ती हिंसा
इज़राइल के रक्षा मंत्री ने संसद को बताया कि उनकी सेना के पास तीन सूत्री योजना है - हमास को नष्ट करना, अन्य फ़िलिस्तीनी गुटों को नष्ट करना, और गाज़ा में एक नया "सुरक्षा शासन" तैनात करना शामिल है (फोटो: टाइम्स ऑफ गाजा, एक्स के अमध्यम से)।
वेस्ट बैंक के क़ब्जाए गए फ़िलिस्तीन इलाके (ऑप्ट) में जॉर्डन नदी की घाटी के किनारे ड्राइविंग करना एक आश्चर्यजनक अनुभव है। इस सड़क को आधिकारिक तौर पर राजमार्ग 90 कहा जाता है। इस सड़क के किनारे की कृषि और सिंचाई लायक भूमि पर इजरायली निवासियों ने सेना की मदद से अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है, जिनमें से कई तो वास्तव में इजरायली नागरिक भी नहीं हैं, बल्कि वे यहूदी प्रवासी हैं। संयुक्त राष्ट्र आयोग की 2022 में प्रकाशित की गई एक रिपोर्ट से पता चला कि यह बसावट, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून (कब्जे वाले इलाके में आबादी का स्थानांतरण) के ख़िलाफ़ एक अपराध है। इज़रायली निवासी और उनकी रक्षा करने वाली इज़रायली सेना, राजमार्ग 90 को डेरेख गांधी या गांधी रोड कहती है। एक दशक पहले जब मैं पहली बार उस सड़क पर गया था तो मैं वहां गांधी के नाम से हैरान हो गया था। महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे, और उन्होंने कई मौको पर - जैसे कि उनके 1938 के लेख, "द ज्यूज़" में - फ़िलिस्तीनी लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति और एकजुटता दिखाई थी। वास्तव में, जो सड़क वेस्ट बैंक से होकर गुजरती है - जो प्रस्तावित फ़िलिस्तीनी राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है - उसका नाम रेहवाम ज़ीवी के नाम पर रखा गया है, और यह अपने आप में विडंबनापूर्ण है कि इसे उपनाम गांधी दिया गया है।
ज़ीवी ने उस नेशनल यूनियन पार्टी का नेतृत्व किया था, जो इज़रायल की दूर-दराज़ की राजनीति की सबसे खतरनाक सभी धाराओं को एक मंच पर ले आई थी। इस पार्टी के नेता के रूप में, और उससे पहले, मोलेडेट के एक नेता के रूप में, ज़ीवी ने फ़िलिस्तीनियों को उस जगह से हटाने की वकालत की जिसे वह इज़राइल की भूमि (पूर्वी येरुशलम, गाजा और वेस्ट बैंक) मानते थे। उन्होंने एरेत्ज़ यिसरेल के निर्माण का समर्थन किया जो जॉर्डन नदी से भूमध्य सागर तक फैला है। मार्च 2001 में, ज़ीवी पर बाद में यौन उत्पीड़न और संगठित अपराध में शामिल होने का आरोप लगा था - ने द गार्जियन को बताया था कि "संभावित आतंकवादियों, या जिनके हाथों पर खून लगा है, उनसे छुटकारा पाने के लिए उनकी हत्या करना कोई हत्या आका अपराध नहीं है। हर एक मारा गया व्यक्ति हमारे लिए किसी आतंकवादी से कम नहीं है, इसलिए मौत के बाद के आतंकवादी कम हो जाता है।” कुछ महीनों बाद, ज़ीवी ने बताया कि वे फ़िलिस्तीनियों के बीच कोई अंतर नहीं करते हैं और उन सभी को "कैंसर" मानते हैं और कहा कि, "मेरा मानना है कि हमारे देश में दो लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। फ़िलिस्तीनी जूँ की तरह हैं। तुम्हें उन्हें जूँ की तरह बाहर निकालना होगा।” अक्टूबर 2001 में पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फ़िलिस्तीन (पीएफएलपी) के लड़ाकों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। 1993 के ओस्लो समझौते के तहत वेस्ट बैंक को पार करने वाली जिस सड़क का नाम – एक फिलिस्तीनी राष्ट्र का नाम देने का वादा किया गया था – उस सड़क का नाम अभी भी ‘ज़ीवी’ है।
ज़िवी की हत्या पीएफएलपी के लड़ाकों ने की थी क्योंकि इजरायली सेना ने अल-बिरेह (फ़िलिस्तीन) में उनके घर पर दो क्रूज मिसाइलें दागकर उनके नेता मुस्तफा अली ज़िबरी को मार डाला था। ज़िबरी की हत्या कोई अकेली घटना नहीं थी। यह इज़रायली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन की ओस्लो समझौते को धता बताने और फिलिस्तीनी प्राधिकरण के "पतन का कारण बनने" और "उन सभी को नरक में भेजने" की योजना का हिस्सा थी। समयबद्ध तरीके से नागरिकों की हत्या के अलावा, जुलाई 2001 से इजरायली सरकार ने चार राजनीतिक नेताओं (जुलाई में इस्लामिक जिहाद नेता सलाह दरवाज़ेह और हमास नेता जमाल मंसूर, और फिर अगस्त में हमास नेता आमेर मंसूर हबीरी और फतह नेता इमाद अबू स्नेइनेह की हत्या कर दी थी।)। जिबरी की हत्या के बाद, नवंबर में इजरायलियों ने हमास के महमूद अबू हनौद की हत्या कर दी। येडियट अहरोनोट में सैन्य संवाददाता एलेक्स फिशमैन ने लिखा, "जिसने भी हत्या के इस कार्य को हरी झंडी दी, वह अच्छी तरह से जानता था कि वह हमास और फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के बीच हुए बेहतरीन समझौते को एक झटके में चकनाचूर कर रहा है;" उस समझौते के तहत, हमास को निकट भविष्य में ग्रीन लाइन [इज़राइल की 1967 से पहले की सीमा के अंदर उसके आत्मघाती बम विस्फोट करने से बचना था।''
गरम हिंसा, ठंडी हिंसा
सदियों से, फ़िलिस्तीनी ईसाई, मुस्लिम और यहूदी फ़िलिस्तीन की सर-ज़मीं पर एक साथ रहते आए थे, जिसे इज़राइल और ओपीटी कहा जाता था, जिसमें जॉर्डन नदी घाटी भी शामिल थी। फ़िलिस्तीनी ईसाइयों और मुसलमानों के निष्कासन और यूरोपीय यहूदियों के आगमन के बाद से, कानूनी तंत्र - या "ठंडी हिंसा", जैसा कि लेखक तेजू कोल कहते हैं - ने फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ अर्धसैनिक और सैन्य हिंसा के मेलजोल से एक कल्पना का निर्माण किया। जिसे जातीय-राष्ट्रवादी राज्य परियोजना (यहूदी राज्य, जैसा कि तब कहा जाता था) कहा गया। गैर-यहूदी फ़िलिस्तीनियों का उन्मूलन इस परियोजना की कुंजी थी, या तो नरसंहारों के ज़रिए (1948 में दीर यासीन) या फ़िलिस्तीनी आबादी को उनकी भूमि से थोक में हटाना (1948 का नकबा)। नरसंहार और जनसंख्या स्थानांतरण फ़िलिस्तीन और फ़िलिस्तीनी लोगों के आस्तित्व को नकारने के साथ-साथ आई थी। ज़ीवी के उत्तराधिकारी, वर्तमान वित्त मंत्री बेजेलेल स्मोट्रिच ने इस मार्च में कहा था कि, "फ़िलिस्तीनी जैसी कोई चीज़ नहीं है क्योंकि फ़िलिस्तीनी लोगों जैसी कोई चीज़ नहीं है।" यह ऐसी राय नहीं है जिसे धुर दक्षिणपंथी बयान के रूप में खारिज किया जा सके। लिकुड सदस्य ओफिर अकुनिस, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री, ने तीन साल पहले कहा था कि, "पश्चिमी इज़राइल में फ़िलिस्तीनी राज्य स्थापित करने के किसी भी फॉर्मूले के लिए कोई जगह नहीं है।" वाक्यांश "पश्चिमी इज़राइल" अंतरराष्ट्रीय कानून की उपेक्षा के साथ वेस्ट बैंक के पूर्ण कब्जे पर इजरायल की सहमति के बारे में एक डरावना बयान है।
गाज़ा पर फोकस जरूरी है। यहां इज़रायली "गर्म हिंसा" चरम पर है, जिसमें फ़िलिस्तीनियों की मौत हो रही है – गाज़ा में मारे गए लोगों में से लगभग आधे बच्चे हैं – जिनकी संख्या 5,000 से अधिक है। फ़िलीस्तीनी प्रतिरोध के साथ उनका ऊंचा मनोबल ही है कि इजरायली सेना ने भूमि आक्रमण को फिलहाल रोक दिया गया है। क्योंकि फ़िलिस्तीन का हर-एक वाशिंदा गाजा के खंडहरों में जाने वाले हर इजरायली सैनिक से लड़ेगा। इस इज़रायली घुसपैठ से पहले, करीब 23 लाख गाज़ा निवासियों के लिए जरूरी आपूर्ति की सामाग्री के साथ 450 ट्रक गाज़ा में घुस जाते थे; 21 अक्टूबर को जब संयुक्त राष्ट्र के नौ ट्रक और मिस्र के रेड क्रिसेंट के 11 ट्रक गाजा में दाखिल हुए तो इसे एक जीत के रूप में लिया गया था। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इजरायलियों के केवल पांच बम विस्फोटों का नज़ारा देखा और युद्ध अपराधों के सबूत पाए गए, जिससे अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय को सतर्क हो जाना चाहिए और इजरायली अत्याचारों पर अपनी फाइल को फिर से खोल देना चाहिए। इस पर गाज़ा के लिए पानी और बिजली काटकर, और मिस्र में राफा क्रॉसिंग तक पहुंच वाले मार्गों पर बमबारी करने, और राफा क्रॉसिंग पर बमबारी करने के सामूहिक दंड के अपराध के तहत मुक़दमा चलाया जाना चाहिए।
दुनिया भर में हो रहे बड़े प्रदर्शनों के माध्यम से कम से कम युद्धविराम करने और हमेशा के लिए कब्ज़ा ख़त्म करने की मांग की जा रही है। इजराइल को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। इसके रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने संसद को बताया कि उनकी सेना के पास तीन सूत्री योजना है - हमास को नष्ट करना, अन्य फिलिस्तीनी गुटों को नष्ट करना और गाजा में एक नया "सुरक्षा शासन" स्थापित करना। फ़िलिस्तीनी लोग-सिर्फ सशस्त्र गुट ही नहीं-इजरायल के कब्जे के प्रतिरोध में भी मजबूती से खड़े हैं। गैलेंट की नई "सुरक्षा व्यवस्था" का मतलब और एकमात्र तरीका इस प्रतिरोध को मिटाना होगा, जिसका अर्थ है नरसंहार या बेदखल करके सभी फ़िलिस्तीनियों को गाज़ा से हटाना। संयुक्त राज्य अमेरिका इस विनाश योजना की समर्थक नज़र आ रहा है: अमेरिकी विदेश विभाग के एक ज्ञापन में कहा गया है कि उसके राजनयिकों को "डी-एस्केलेशन," "संघर्ष विराम," "हिंसा का अंत," "रक्तपात का अंत," और शांति बहाल करना जैसे वाक्यांशों का उपयोग नहीं करना चाहिए।"
विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के संपादक और ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। उन्होंने 20 से अधिक किताबें लिखी हैं, जिनमें द डार्कर नेशंस एंड द पुअरर नेशंस शामिल हैं। उनकी नवीनतम पुस्तकें हैं स्ट्रगल मेक्स अस ह्यूमन: लर्निंग फ्रॉम मूवमेंट्स फॉर सोशलिज्म और (नोम चॉम्स्की के साथ) द विदड्रॉल: इराक, लीबिया, अफगानिस्तान, एंड द फ्रैगिलिटी ऑफ यूएस पावर है।
यह लेख ग्लोबट्रॉटर द्वारा तैयार किया है।
साभार: पीपल्स डिस्पैच
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