ख़बरों के आगे-पीछे: ओलंपिक की मेजबानी के लिए पाखंड का सहारा
भारत ने 2036 में होने वाले ओलंपिक की मेजबानी के लिए औपचारिक रूप से दावेदारी पेश कर दी है। भारत को मेजबानी मिलने की संभावना इसलिए ज्यादा दिख रही है क्योंकि जो बाकी देश दावेदारी कर रहे हैं, उनमें सऊदी अरब, कतर, मिस्र और तुर्की से भारत बेहतर स्थिति में है। हालांकि कतर ने फीफा विश्व कप की सफल मेजबानी करके अपनी दावेदारी मजबूत की है तो सऊदी अरब भू राजनीतिक स्थितियों की वजह से मजबूत दावेदार माना जा रहा है।
गौरतलब है कि 2028 का ओलंपिक अमेरिका के लॉस एंजिल्स में और 2032 का ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में होगा। अब 2036 के लिए शहर तय होना है। भारत की दावेदारी को मजबूत करने के लिए भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन भारत की उस धार्मिक विविधता की दुहाई भी दे रहा है, जिसे हर दिन, हर समय सरकारी समर्थन से नष्ट किया जा रहा है।
यह भी कहा जा रहा है कि इसके आयोजन से दुनिया को भारत की ओर से शांति का संदेश जाएगा। कितनी दिलचस्प बात है कि जो लोग देश को रोजाना कलह की आग में झोंक रहे हैं, वे दुनिया को शांति का संदेश देने की बात कर रहे हैं।
बहरहाल, मजेदार बात यह भी है कि अगर भारत को मेजबानी मिलती है तो मेजबान शहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य का अहमदाबाद होगा। हालांकि खेलों से गुजरात का कोई खास संबंध नहीं रहा है। ओलंपिक के भारतीय दल में भी कोई गिना-चुना गुजराती खिलाड़ी ही कभी शामिल हुआ होगा। लेकिन मेजबानी उसको मिलेगी।
दिल्ली में लगेगी बिरसा मुंडा की मूर्ति
भाजपा और उसकी मौजूदा केंद्र सरकार की एक खासियत है कि देश में कहीं भी चुनाव हो रहे हों वह दिल्ली से उसे साधने का दांव चल सकती है। जम्मू कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में हुए कई नीतिगत फैसले इसकी मिसाल है। उन फैसलों से भाजपा ने एक बड़े वोट आधार को साधा। उसी तरह अब झारखंड में चुनाव हो रहे हैं तो उसे साधने का एक बड़ा दांव दिल्ली में चला जा रहा है। झारखंड के ही नहीं बल्कि देश के समूचे आदिवासी समुदाय के बड़े नायकों में से एक बिरसा मुंडा की एक प्रतिमा दिल्ली में स्थापित की जा रही है। देश के अलग-अलग राज्यों और अलग-अलग जातीय समूहों के नायकों की मूर्तियां दिल्ली में खोजने पर भी नहीं मिलती हैं, लेकिन दिल्ली में सराय काले खां के पास एक पार्क में भगवान बिरसा मुंडा की 20 फीट ऊंची मूर्ति लगेगी।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 15 नवंबर को इसका अनावरण करेंगे। उस दिन बिरसा मुंडा की जयंती है झारखंड का स्थापना दिवस भी। कहने की जरूरत नहीं कि यह भाजपा का झारखंड के चुनावी दांव है। चुनाव आयोग अगर वाकई संवैधानिक निकाय की तरह काम कर रहा होता तो वह इस समय ऐसा नहीं होने देता लेकिन अब तो वह भाजपा के सहयोगी दल की तरह काम कर रहा है। गौरतलब है कि झारखंड में भाजपा को आदिवासी विरोधी पार्टी के तौर पर देखा जाता है। वह इस छवि को बदलने की कोशिश में है।
महाराष्ट्र में नतीजों के बाद का बड़ा सस्पेंस
महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों से भी ज्यादा सस्पेंस नतीजों के बाद का है। इस बात पर सट्टा लगाया जा रहा है कि चुनाव के बाद पार्टियां किस तरह से राजनीति करेंगी। सबसे ज्यादा सस्पेंस उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे, अजित पवार को लेकर है। महाविकास अघाड़ी की सरकार बनने पर उद्धव ठाकरे को हर हाल में मुख्यमंत्री बनना है। उन्हें पता है कि अगर सरकार बनी और वे मुख्यमंत्री नहीं बने तो उनकी राजनीति को स्थायी नुकसान होगा। वे बाल ठाकरे की तरह अपनी पार्टी को सरकार से बाहर नहीं रख सकते, क्योंकि उनके सारे नेता सत्ता में हिस्सेदारी चाहते हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि कांग्रेस अगर गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बनती है और मुख्यमंत्री के लिए अड़ती है तो उद्धव कोई दूसरा विकल्प अपना सकते हैं। यही बात एकनाथ शिंदे के बारे में भी कही जा रही है। अगर नतीजों के बाद भाजपा शिंदे को मुख्यमंत्री नहीं बनाती है तो वे और उनके विधायक क्या करेंगे, इस पर सबकी नजर रहेगी। अगर भाजपा गठबंधन सरकार नहीं बना पाता है और महाविकास अघाड़ी में उद्धव को मौका मिलता है तो शिंदे के विधायकों को उनके साथ जाने में कोई समय नहीं लगेगा। ऐसी ही स्थिति अजित पवार की है। उनकी पार्टी 50 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें से वह 20 सीट भी जीत जाए तो बड़ी बात होगी। इसलिए उनके विधायक क्या करेंगे, यह भी बड़ा सस्पेंस है। भाजपा के 16 नेता शिंदे और अजित पवार की पार्टी से लड़ रहे हैं। अगर ये दोनों नेता इधर-उधर हुए तो जीतने वाले भाजपा नेता अपना रास्ता पकड़ेंगे।
कश्मीर में अब क्या करेगी केंद्र सरकार
जम्मू-कश्मीर में पिछले करीब पांच महीने से आतंकवादी हमलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही ऐसी स्थिति है। हालांकि सितंबर और अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद इन हमलों में तेजी आई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले करीब पांच महीने में यानी लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद से अब तक कश्मीर में कम से कम 35 हमले हुए हैं। इन हमलों में सुरक्षा बलों के 37 जवान और 25 आम नागरिक मारे गए है।
दीवाली के त्योहार के दौरान भी एक नवंबर को प्रवासी मजदूरों पर हमला हुआ। एक पखवाड़े मे यह पांचवां हमला था। इससे पहले गुलमर्ग में सेना की गाड़ियों पर हमला हुआ था, जिसमें तीन जवान शहीद हुए थे। बाद में सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में सभी आतंकवादी मारे गए। हैरानी की बात है कि एक तरफ शांतिपूर्ण चुनाव हुए हैं। लोकतांत्रिक सरकार बन गई है और पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल होने वाला है, तो दूसरी ओर आतंकवादियों के हमले बढ़ गए हैं। अब फारूक अब्दुल्ला भी कहने लगे हैं कि पाकिस्तान ये हमले करा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान को लगता है कि इस तरह कश्मीर उसका हो जाएगा तो यह मुमकिन नहीं है। सवाल है कि पाकिस्तान का पहलू इतना खुल कर सामने आने के बाद केंद्र सरकार क्या करेगी? पुलिस राज्य की उमर अब्दुल्ला सरकार के हाथ में रहेगी तो उसका क्या असर होगा? क्या राज्य में कोई नई राजनीतिक, कूटनीतिक या सामरिक पहल हो सकती है?
पवार परिवार में एकता के आसार ख़त्म
हालांकि राजनीतिक और पारिवारिक मामलों में किसी बात को अंतिम नहीं माना जा सकता है लेकिन ऐसा लग रहा है कि जिस तरह से बाल ठाकरे के परिवार में विभाजन हुआ और लगभग दो दशक बीत जाने के बाद भी एकता नहीं हो पाई, वही हालात अब शरद पवार के परिवार में भी दिख रहे हैं। शरद पवार के करीबी नेताओं का कहना है कि अजित पवार ने सीमा पार कर दी है। उन्होंने शरद पवार को निजी तौर पर निशाना बनाया, जिससे वे आहत हुए और जिस दिन अजित ने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को बारामती सीट पर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ चुनाव में उतारा उस दिन संबंधों में स्थायी गांठ बन गई।
शरद पवार का मानना है कि बारामती सीट जीतने का अजित का दांव एक चुनाव भर का मामला नहीं था, बल्कि वे स्थायी रूप से शरद पवार का नेतृत्व समाप्त कर अपना नेतृत्व स्थापित करना चाहते थे। उस समय शरद पवार ने अपना नेतृत्व बचा लिया। अब वे अजित पवार का नेतृत्व खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए बारामती विधानसभा सीट पर उन्होंने अजित पवार के खिलाफ उनके सगे भतीजे युगेंद्र पवार को उम्मीदवार बनाया है और खुद कमान संभाली है। उन्होंने बारामती के लोगों को 57 साल पहले का अपना पहला चुनाव याद कराया और यह भी कह दिया कि आगे वे चुनाव नहीं लड़ने वाले हैं। अगर अजित पवार हारते हैं तो वे राज ठाकरे की तरह बियाबान में रहेंगे या फिर उन्हें सरेंडर करके शरद पवार की शरण में जाना होगा।
भाषा का विवाद क्यों नहीं ख़त्म होता?
केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद भाषा का विवाद स्थायी हो गया है और किसी न किसी रूप में यह विवाद थोड़े-थोड़े दिन के अंतराल से उभर आता है। इस बार केरल के कम्युनिस्ट सांसद जॉन ब्रिटास और केंद्र सरकार के मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू की वजह से यह विवाद हुआ है। असल में केंद्रीय मंत्री बिट्टू ने जॉन ब्रिटास के उठाए मुद्दों का जवाब देने के लिए उन्हें हिंदी में चिट्ठी लिखी। जवाब में ब्रिटास ने बिट्टू को मलयालम भाषा में जवाब भेज दिया। उसके बाद हिंदी बनाम मलयालम और इसी बहाने हिंदी बनाम अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं का विवाद फिर से उभर गया है। जॉन ब्रिटास ने बाद में कहा कि उन्हें ऐसी बातों का सामना अक्सर करना पड़ता है। असल में एक नीति के तहत भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेता संसद में हिंदी में बोलते हैं और सरकार के मंत्री हिंदी में ही जवाब देते हैं। जो मंत्री अंग्रेजी बोल सकते हैं और पहले अंग्रेजी में ही बोलते थे वे भी अब हिंदी में ही बोलने लगे है।
ब्रिटास और दूसरे दक्षिण भारतीय सांसदों का कहना है कि पहले से एक प्रैक्टिस चल रही थी कि दक्षिण भारत के सांसदों को जवाब अंग्रेजी मे दिया जाता था। लेकिन अब इसे बदल दिया गया है। मंत्री हिंदी में जवाब देते हैं। इसलिए ब्रिटास ने संसद में हिंदी की ही तरह आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकृत मलयालम भाषा में अपना जवाब भेज दिया।
सर्वाधिक प्रदूषित 10 शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए गर्व का मौका है कि दीवाली के दिन जो तमगा दिल्ली के हाथ से फिसल गया था, वह वापस मिल गया है। दीवाली के दिन उनकी पार्टी के शासन वाले पंजाब ने दिल्ली को पछाड़ दिया था। हरियाणा का अंबाला पहला और पंजाब का अमृतसर दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा था। दिल्ली तीसरे स्थान पर फिसल गई थी। लेकिन केजरीवाल खुश हो सकते हैं कि दिल्ली ने अपना पहला स्थान वापस हासिल कर लिया है। दिल्ली अब देश का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है।
यह आंकड़ा भी आ गया है कि दिल्ली से गुजरने के क्रम में यमुना नदी का 33 किलोमीटर का हिस्सा लगभग पूरी तरह से मृत हो गया है। बहरहाल, अक्टूबर महीने के ताजा आंकड़े के मुताबिक देश के सर्वाधिक 10 प्रदूषित शहर अब राष्ट्रीय राजधानी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भी गर्व कर सकती है। देश के सर्वाधिक 10 प्रदूषित शहरों में दिल्ली के अलावा तीन शहर- गुड़गांव, चरखी दादरी और बहादुरगढ़ हरियाणा के हैं और बाकी छह शहर- गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मेरठ, हापुड़ और मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश के हैं। यह स्थिति तब है, जब अदालत के आदेश के हिसाब से 15 अक्टूबर को ही दिल्ली और एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानी ग्रैप का पहला चरण लागू कर दिया गया था। नवंबर का आंकड़ा तो और भयावह हो सकता है।
भारत से अमेरिका तक बांग्लादेश पर राजनीति
बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्ता पलट होने और मोहम्मद यूसुफ की कमान में आंतरिक सरकार बनने के बाद से ऐसा लग रहा है कि बांग्लादेश कई देशों की राजनीति को प्रभावित कर रहा है। भारत से लेकर अमेरिका तक बांग्लादेश के नाम पर राजनीति हो रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में विजयी रहे रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपने चुनाव अभियान में बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार का मुद्दा उठाया। उन्होंने इसे बर्बर कहा। वहां पांच नवंबर को हुए चुनाव में ट्रंप के मुद्दा उठाने से पहले रिपोर्ट आई थी कि प्रवासी भारतीयों का बड़ा हिस्सा डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस के साथ है। उसके बाद ट्रंप ने बांग्लादेश के हिंदुओं पर ज्यादती का मुद्दा उठाया। विश्व हिंदू परिषद ने इसका समर्थन किया है और यह मुद्दा उठाने के लिए ट्रंप की तारीफ की है।
बहरहाल, भारत में भी पिछले कई महीनों से बांग्लादेश के नाम पर राजनीति हो रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 'बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा देते हुए बांग्लादेश की मिसाल दी और कहा कि वहां जैसा हो रहा है, वैसा भारत में नहीं होने देना है। ऐसे ही नारे प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उछाले। उन्होंने एक दिन कहा कि 'बटेंगे तो बांटने वाले महफिल सजाएंगे’ और दीवाली के दिन कहा कि 'एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे।’। उधर बिहार मे केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने 'हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ निकाली तो उन्होंने भी हर जगह बांग्लादेश की घटनाओं का जिक्र किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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