नीना सिंह के CISF महानिदेशक बनने से सुरक्षा बलों में महिलाओं की स्थिति बदलेगी?
आईपीएस नीना सिंह बीेते कुछ समय से सुर्खियों में हैं। उन्होंने हाल ही में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल यानी सीआईएएसफ (CISF) में महानिदेशक का कार्यभार संभाला है। वो इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला हैं और इसलिए उनकी खास चर्चा भी है। उनकी नियुक्ति को इस केंद्रीय बल के इतिहास में मील का पत्थर माना जा रहा है क्योंकि CISF के 54 साल के इतिहास में अब तक कोई महिला, महानिदेशक के पद पर नहीं पहुंच सकी थी।
बता दें कि CISF का एक लंबा इतिहास है, इसका गठन आंतरिक सुरक्षा के लिए साल 1969 में हुआ था। इसके मुख्य कार्य में हवाई अड्डे की सुरक्षा, सरकारी भवनों की सुरक्षा, स्मारक सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, वीआईपी सुरक्षा और औद्योगिक सुरक्षा प्रदान करने की अपनी पारंपरिक भूमिका के अलावा दिल्ली मेट्रो जैसे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा शामिल है। यह सशस्त्र अर्धसैन्य बल है, जिसके पास क़रीब पौने दो लाख कर्मचारी हैं। हालांकि इसमें महिलाओं की भागीदारी महज़ छह प्रतिशत के आस-पास ही देखने को मिलती है।
नीना सिंह का सफर
मूलरूप से बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली नीना सिंह 1989 बैच की राजस्थान कैडर की आईपीएस अधिकारी हैं। महानिदेशक पद पर नियुक्ति के आदेश जारी होने से पहले वे CISF में विशेष महानिदेशक पद पर सेवाएं दे रहीं थी। वे 31 जुलाई, 2024 को सरकारी सेवाओं से सेवानिवृत्त हो जाएंगीं। नीना साल 2013 से 2018 तक प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) में संयुक्त निदेशक के पद पर भी सेवाएं दे चुकी हैं।
नीना सिंह के नाम एक और उपलब्धि है कि वो साल 2021 में डीजी पद पर नियुक्त होने वालीं राजस्थान की पहली महिला पुलिस अधिकारी भी हैं। उनके खाते में कई मेडल भी हैं, जैसे वो प्रेसिडेंट पुलिस मेडल, अति उत्कृष्ट सेवा पदक और पुलिस मेडल से सम्मानित हो चुकी हैं। साल 2020 साल वे महिला आयोग में सदस्य सचिव रहीं और इस दौरान उन्होंने महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए एक पहल आउटरीच की शुरुआत की, जो खूब चर्चाओं में भी रही।
सशस्त्र सुरक्षा बल में महिला सशक्तिकरण
नीना सिंह निश्चित तौर पर सशस्त्र सुरक्षा बल में महिला सशक्तितकरण का एक मज़बूत उदाहरण हैं। लेकिन इस सच्चाई से भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि सुरक्षा बलों में महिलाओं की हिस्सेदारी और स्थिति आज भी दयनीय है। आंकड़ों की बात करें, तो यहां महिलाओं की भागीदारी 4 फीसदी भी नहीं है।
संसदीय समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय सशस्त्र सुरक्षा बलों में 30 सितंबर, 2022 तक मात्र 3.65 फीसदी महिला भागीदारी थी। सर्वाधिक 6.35 फीसदी महिलाएं CISF में थी। आईटीबीपी में यह संख्या 2.83 फीसदी थी। यानी आंकड़ोंं को देखें, तो सभी सुरक्षा बलोंं में महिलाओं की संख्या कुल मिलाकर 4 प्रतिशत से भी कम है। महिला सशक्तिकरण के नारों के बीच रिपोर्ट यह भी खुलासा करती है कि महिलाओं के लिए केंद्रीय सशस्त्र सुरक्षा बलों में कोई विशेष आरक्षण नहीं है।
हालांकि ये विडंबना ही है कि CISF के 54 साल के इतिहास में बनी पहली महिला महानिदेशक को ज़ोर-शोर से महिला सशक्तिकरण का उदाहरण बताया जा रहा है, जबकि ये काम बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। द इंडियन इंडेक्स 2016 तक के आंकड़ें के मुताबिक देश में महिला आईपीएस अफसरों की संख्या केवल नौ फीसदी थी। इससे पहले भी संसद की स्थाई समिति सरकार से महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की सिफारिश कर चुकी है।
वैसे पुरुष वर्चस्ववादी इस फील्ड में महिलाओं के लिए नौकरी कोई आसान काम नहीं है। महिलाओं को लैंगिक भेदभाव और कार्यस्थल पर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 2019 में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने बताया था पुलिस में जितनी महिलाएं हैं, उनमें से केवल एक फीसदी महिला पुलिसकर्मियों को उच्च पदों तक पहुंचने का मौका मिलता है।
गौरतलब है कि देश के मुकाबले विदेशों में महिलाओं की सशक्त भागीदारी सुरक्षा बलों में देखने को मिलती है। अमेरिकी सुरक्षा बलों में महिलाओं की भागीदारी 16 फीसदी, रूस में 10 फीसदी और चीन में पांच फीसदी है। देश में संसद की एक स्थायी समिति ने साल 2011 में सिफारिश की थी कि तीन वर्ष के अंदर केंद्रीय सशस्त्र सुरक्षा बलों में महिलाओं की संख्या बढ़ाकर पांच फीसदी कर दी जाए, लेकिन इन 12 वर्षों में अनेक कोशिशों के बावजूद महिलाओं की संख्या अभी भी चार फीसदी नहीं है।
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