मज़दूरों की मांग दिवस : न काम मिल रहा, न वेज रिवाइज हुआ
मजदूर संगठनों के साझा मंच की ओर से शुक्रवार को प्रदेशभर में मांग दिवस मनाया गया और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजा गया। कहा "संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि सरकार का यह दायित्व है कि वह मजदूरों के गरिमापूर्ण जीवन के लिए सामाजिक सुरक्षा के उपाय करे। उनके पेंशन, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार को सुनिश्चित करें। 2008 में बना केंद्रीय कानून भी असंगठित मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा की गारंटी करता है। बावजूद इसके सरकारें मजदूरों को उनके अधिकार देने के लिए तैयार नहीं हैं।"
यही नहीं, मुख्यमंत्री से मांग की गई कि ई-श्रम पोर्टल में पंजीकृत मजदूरों के लिए आयुष्मान कार्ड, आवास, बीमा, पेंशन, मुफ्त शिक्षा, कौशल विकास और पुत्री विवाह अनुदान जैसी योजनाओं को तत्काल लागू किया जाए। लखनऊ में इस मांग दिवस के अवसर पर श्रम कार्यालय में एक दिवसीय धरना दिया गया और मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन अपर श्रमायुक्त के माध्यम से भेजा गया।
इस अवसर पर हुई सभा में नेताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश में मजदूरों की हालत बेहद खराब है। प्रदेश में इन्वेस्टर समिट के जरिए रोजगार सृजन की चाहे जितनी बात की जाए असलियत यह है कि मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है और प्रदेश से मजदूरों का बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। निर्माण मजदूर महीने में 15-20 दिन काम करने के लिए मजबूर हैं। न्यूनतम वेतन का पिछले 5 साल से वेज रिवीजन न करने के कारण प्रदेश में मजदूरी दर बेहद कम है और इस महंगाई में मजदूरों को अपने परिवार का जीवन चलाना बेहद कठिन होता जा रहा है। निर्माण मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए जो योजनाएं चल रही थीं उनमें से ज्यादातर को बंद कर दिया गया। यहां तक कि उनके पेंशन के अधिकार को भी छीन लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद घरेलू कामगारों के लिए कानून नहीं बनाया जा रहा है। यही हालत सूचना क्रांति के दौर में नए पैदा हुए प्लेटफार्म और गिग वर्कर्स की भी है उन्हें बुनियादी अधिकार भी नहीं मिला हुआ। आंगनबाड़ी, आशा, मिड-डे-मील रसोईया को तो मनरेगा से भी कम मानदेय दिया जा रहा है।
ऐसी स्थिति में प्रदेश सरकार को ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 8 करोड़ 30 लाख मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा की गारंटी करनी चाहिए। यदि सरकार इसे नहीं करती है तो प्रदेश में एक बड़ा आंदोलन छेड़ा जाएगा।
धरने को एटक प्रदेश महामंत्री चंद्रशेखर, वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर, टीयूसीसी के महामंत्री प्रमोद पटेल, एचएमएस के जिला मंत्री अरविन्द सिंह राठौर, एचएमकेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओंकार सिंह, निर्माण मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष नौमी लाल, घरेलू कामगार यूनियन अध्यक्ष ललिता राजपूत, सुषमा लोधी, रमेश कश्यप, राम स्नेही मिश्रा, किशोरी लाल, मुकुल शर्मा, जगदीश, आरपी शर्मा, अमरकेश आदि ने संबोधित किया। लखनऊ के अलावा सोनभद्र, चंदौली, मऊ, आगरा, सीतापुर, लखीमपुर, शाहजहांपुर, गोंडा, प्रयागराज, फतेहपुर, बांदा, वाराणसी, अयोध्या, प्रतापगढ़, गोरखपुर आदि जिलों में कार्यक्रम कर सीएम को पत्रक भेजा गया।
ई श्रम पोर्टल पर पंजीकृत असंगठित मजदूरों को लाभार्थी घोषित करें सरकार, की मांग को लेकर पिछले महीने श्रम मंत्री से भी मिले थे मजदूर नेता
ई श्रम पोर्टल पर पंजीकृत असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सरकार लाभार्थी घोषित करें और सरकार की हर योजना का लाभ देने और आयुष्मान कार्ड, पेंशन, आवास, बीमा आदि सुविधाएं देने का काम करें। इन्हीं मांगों को लेकर असंगठित क्षेत्र के साझा मंच का प्रतिनिधिमंडल पिछले महीने श्रम मंत्री अनिल राजभर से उनके आवास पर मिला था।
श्रम मंत्री को सौंपे पत्र में साझा मंच ने 8 करोड़ 30 लाख श्रमिकों के लिए सरकार द्वारा कोई भी योजना न चलाए जाने पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए मांग की थी कि इन श्रमिकों के लिए तत्काल योजनाओं की घोषणा की जाए। श्रम मंत्री के संज्ञान में लाया गया कि देश की संसद द्वारा पारित असंगठित मजदूर सामाजिक सुरक्षा कानून 2008 में श्रमिकों को लाभ देने के लिए योजनाओं का प्रावधान किया गया है और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार आदेश जारी किए हैं। बावजूद इसके योजनाएं न चलाए जाने से श्रमिकों के संविधान प्रदत्त गरिमा पूर्ण जीवन जीने के अधिकार का हनन हो रहा है।
श्रमिक नेताओं ने श्रम मंत्री को बताया था कि पिछले सत्र में उन्होंने वादा किया था कि न्यूनतम मजदूरी के वेज रिवीजन के लिए बोर्ड का गठन किया जाएगा, लेकिन आज तक यह न हो सका। श्रम मंत्री के संज्ञान में निर्माण मजदूरों के लिए चल रही योजनाओं के बंद होने और उसकी जटिल प्रक्रिया के कारण श्रमिकों को उसका लाभ न मिलने को भी लाया गया। यह भी कहा गया कि आईएलओ कन्वेंशन और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बावजूद घरेलू कामगारों के लिए केंद्रीय कानून व बोर्ड का गठन नहीं किया जा रहा है। इसे तत्काल किया जाए।
साभार : सबरंग
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