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केवल विरोध करना ही काफ़ी नहीं, हमें निर्माण भी करना होगा: कोर्बिन

वैश्विक व्यवस्था संकट में नहीं है, जिसका कि कोई हल निकाला जा सकता है। दरअसल,यह सिस्टम ही संकट है और इसको दूर करना, उसको बदलना और उसे परिवर्तित करना होगा।
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संयुक्त राष्ट्र के जलवायु वैज्ञानिकों ने अप्रैल में यह चेतावनी दे दी थी कि यह समय मौजूदा ग्लोबल वार्मिंग के स्तर को पूर्व-औद्योगिक युग के स्तर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ले जाने के लिए "अभी तो कभी नहीं" का है। आप उन्हें अपने कीबोर्ड पर लगभग चिल्लाते हुए सुन सकते हैं, जब वे CO2 उत्सर्जन में "तेजी से, गहरी और तुरंत" कटौती की जरूरत जताते हैं, तो वे वास्तव में सरकारों से इस दिशा में कुछ करते देखने के लिए बेताब होते हैं। लेकिन उनके ये शब्द भविष्य के बारे में एक चेतावनी भर नहीं हैं; वे अरबों लोगों की मौजूदा असलियत के बारे में बताते हैं।

दक्षिण एशिया अब अत्यधिक गर्मी वाले तीसरे महीने में तप रहा है। यहां पारा रोज ब रोज 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चढ़ता जा रहा है। और अकेले दक्षिण एशिया ही नहीं लहक रहा है। मार्च में, आर्कटिक और अंटार्कटिक दोनों के तापमान क्रमशः अपने सामान्य औसत तापमान से 30 डिग्री सेल्सियस और 40 डिग्री सेल्सियस ऊपर थे। जाहिर है कि यहां की बर्फ पिघल रही है, और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। 2020 में जलवायु आघात से 30 मिलियन लोग विस्थापित हो गए थे। और ये झटके फसलों को अधिक बर्बाद करते हैं।

दुनिया के खेतों, खानों, कारखानों, शिपिंग लेन, बंदरगाहों, गोदामों, वितरण नेटवर्क और उपभोक्ताओं को जोड़ने वाली आपूर्ति श्रृंखलाएं पहले से ही बड़े पैमाने पर बाधित हो चुकी हैं, यहां तक कि जलवायु बिगड़ने का पूरा असर महसूस होने से पहले भी वह बाधित रही हैं। भारी एकीकृत वैश्विक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में, व्यवधान आपदा का कारण बनता है। पहले से ही, 800 मिलियन से अधिक लोग-पूरी दुनिया की आबादी के 10 लोगों में से एक आदमी भूखे पेट ही सो जाता है।

इस साल गेहूं की कीमत पहले ही दोगुनी हो चुकी है। यह आगे और भी बढ़ सकती है क्योंकि यूक्रेन के रूस पर किए गए आपराधिक आक्रमण और इसके परिणामस्वरूप दुनिया से रूस के आंशिक रूप से आर्थिक अलगाव के दुष्प्रभाव दुनिया भर में अब महसूस किए जाने लगे हैं।

यह जाना-माना तथ्य है कि युद्ध भूख, मानसिक संकट, दुख और मौत का कारण बनता है। इन दुष्परिणामों को देखते हुए यूक्रेन में तत्काल युद्धविराम होना चाहिए, यूक्रेनी क्षेत्र से रूसी सैन्य बलों की वापसी होनी चाहिए और दोनों देशों के बीच बातचीत की मेज पर एक समझौता होना चाहिए।

अगर इन उपायों पर अमल नहीं किया जाता है तो न केवल यूक्रेनी लोगों को गोले, टैंक और हवाई हमलों सायरन के आतंक का सामना करना जारी रहेगा; न केवल यूक्रेनी शरणार्थियों को और उनके परिवारों और समुदायों को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ेगा और उन्हें दर-दर भटकना पड़ेगा; न केवल युवा रूसी को उनकी सेना में यूक्रेनियों के प्रति क्रूर कार्रवाई के लिए भेजा जाएगा और उन्हें इस दौरान विदेशी सरजमीं पर एक ऐसी जंग के दफन होना होगा, जिसे वे समझ नहीं पा रहे हैं कि ये क्यों लड़ी जा रही है; न केवल रूसी लोग वैश्विक प्रतिबंधों के चलते पीड़ित होंगे; न केवल मिस्र, सोमालिया, लाओस, सूडान जैसे देश और इनके समेत कई अन्य देश जो इन युद्धरत राष्ट्रों (यूक्रेन एवं रूस) से होने वाले गेहूं के आयात पर निर्भर हैं, वे भूख से छटपटाते रहेंगे।

लेकिन अगर यूक्रेन में युद्ध जारी रहता है तो पृथ्वी पर हर कोई परमाणु हथियारों से खतरे के मुहाने पर रहेगा। रूसी और नाटो बलों के बीच सीधे टकराव का खतरा हम सभी के लिए मौजूदा समय में साफ-साफ दिख रहा है। इसलिए बेहद अहम है कि हम सब परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि का समर्थन करें, जो अब वैश्विक दक्षिण में यहां के देशों के प्रेरणादायक अभियान के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून का हिस्सा है।

हालांकि परमाणु हथियारों का निषेध आसान नहीं होगा। हथियार कंपनियां युद्ध में बेहतर प्रदर्शन करती हैं। उनका कारोबार ज्यादा चमकता है। वे उन देशों के राजनेताओं और वहां के थिंक टैंक को धन मुहैया कराती हैं। उनके पास अपने कई मीडिया मुखपत्र हैं। अब जो लोग शांति और न्याय कायम करने के लिए प्रयास करते हैं या उसकी पैरोकारी करते हैं, उन्हें बदनाम कर दिया जाता है क्योंकि टकराव होने या उनके बने रहने में युद्ध मशीनरियों के अपने स्वार्थ और हित होते हैं। और ये अमन चाहने वाले लोग उनके हित साधने में अडंगा लगाते हैं। इस तरह से वे कुछ लोगों के अवैध तरीके से अंधाधुंध कमाए गए धन एवं उनके बल पर हासिल की गई ताकत के लिए खतरा हो जाते हैं।

हम इसे कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक व्यवस्था में साफ-साफ देखते हैं, जो काफी पीड़ादायक है, कि दवा बनाने वाली बड़ी कंपनियां किस तरह मुख्यतया सरकारी धन पर विकसित अपनी वैक्सीन तकनीक को दुनिया के जरूरतमंद देशों के साथ साझा करने से इनकार करती रही हैं। इससे किसको फायदा हुआ? निश्चित रूप से फार्मा के मालिकों को, उनके अधिकारियों एवं शेयरधारकों को इसका लाभ मिला। अब इस स्थिति में कौन हार गया? जाहिर है कि बाकी सारे लोगों को नुकसान हुआ और वे ही उनके स्वार्थ के आगे हार गए। सस्ती वैक्सीन न मिलने से काफी तादाद में माता-पिता मर गए। बड़ी तादाद में जिंदगियां एवं उनकी रोजी-रोटी बरबाद हो गईं। आगे भी इसके संक्रमण की चपेट में हर किसी के आने का खतरा बना हुआ है, चाहे उनका टीकाकरण हुआ हो या न हुआ हो। दोनों के ही संक्रमित होने का खतरा एक जैसा है।

हमेशा से ही राज्य का सबसे ज्यादा उपयोग अमीरों की संपत्ति को बढ़ाने के लिए किया जाता है। केंद्रीय बैंक ने महामारी से निपटने के लिए 2020 में 9 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया था। इसका नतीजा क्या निकला? अरबपतियों का एक वर्ष में ही 50 फीसदी तक बढ़ गया, जबकि इसी अवधि में विश्व की अर्थव्यवस्था सिकुड़ गई। अरबपतियों और निगम दावा करते हैं कि उन्हें सरकारी कार्रवाई से नफरत है। पर असलियत में, वे इसे पसंद करते हैं। वे केवल एक चीज से नफरत करते हैं, जब सरकार आपके हितों में या आम जनता के हित में काम करती है। और यही वजह है कि वे सरकारों को अपनी जेब में रखने के लिए लड़ते हैं और जो (सरकार या अन्य) नहीं हैं, उन्हें उखाड़ फेंकने की कोशिश करते हैं।

जब हम पीछे हटते हैं और इन सभी आयामों का सर्वे करते हैं तो एक सच्चाई हमारे सामने आती है। हम सोचते थे कि अलग-अलग संकटों की एक पूरी श्रृंखला थी: जलवायु संकट, शरणार्थी संकट, आवास की कमी संकट, ऋण का संकट,  असमानता का संकट, अमीरों के और अमीर होने तथा गरीबों के और गरीब होते जाने का संकट। हमने हर एक संकट को अलग-थलग कर इसका हल निकालने की कोशिश की। अब हम देख सकते हैं कि हम कई अलग-अलग संकटों का सामना नहीं करते हैं।

सिस्टम अपने आप में संकट है। वैश्विक व्यवस्था किसी संकट में नहीं है कि उसका हल किया जाए। यह सिस्टम संकट में है। इसको दूर किया जाना चाहिए, इसकी जगह दूसरी व्यवस्था बनानी चाहिए और उसको परिवर्तित करना चाहिए।

दुनिया पहले से ही अंत के मुहाने पर है-जहां यह असमान रूप से वितरित है। बम और छापे, तेल का रिसाव और जंगल की आग, बीमारी और संक्रमण-ये सभी कयामत की तस्वीरें हैं, जो धरती पर रह रहे तमाम लोगों के लिए एक भयानक वास्तविकता है।

परिधि हमारा भविष्य है, अतीत नहीं। हमें बताया गया है कि विकसित देश विकासशील दुनिया को उनके शानदार भविष्य की एक छवि देते हैं कि वे एक दिन उनके जैसे ही समृद्ध होंगे। लेकिन परिधि इतिहास के हरावल दस्ते के रूप में बैठती है-जहां पूंजीवाद का संकट सबसे अधिक मार किया था, जलवायु पतन के दुष्परिणाम सबसे तेज होते हैं, और फिर जोर-शोर से उनके प्रतिरोध का आह्वान किया जाता है।

यह प्रतिरोध शक्तिशाली और प्रेरणादायक है। दुनिया ने हाल ही में इतिहास में सबसे बड़ी हड़ताल देखी जब भारतीय किसान और उनके कार्यकर्ता सहयोगियों ने सरकार के लाए नवउदारवादी विधेयकों का विरोध किया, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार संसद के जरिए उन पर थोपना चाहती थी। ऐसे में, किसान अपने वजूद को बचाने के लिए, अपनी रोजी-रोटी की हिफाजत के लिए और गरीबों की जरूरतों की खातिर सरकार के खिलाफ उठ खड़े हुए। और वे अपनी कोशिशों में कामयाब हो गए।

अब दुनिया की छठी सबसे बड़ी कंपनी अमेजन को ही लें, जिसने महामारी के दौरान रिकॉर्ड मुनाफा कमाया है। इसके लालच और शोषण का दुनिया के हर महाद्वीप में श्रमिकों, समुदायों और कार्यकर्ताओं द्वारा जमकर विरोध किया जा रहा है। वे अमेजन से भुगतान के लिए एक साथ आए हैं।

लैटिन अमेरिका में, साम्राज्यवाद के प्रभुत्व को नकारने, उनके समुदायों के विनाश के लिए और आसपास के वातावरण के उनके दुरुपयोग के विरोध में लोग प्रगतिशील राजनीतिक नेताओं के समर्थन में रैलियां कर रहे हैं।

लेकिन इन सबका विरोध करना ही पर्याप्त नहीं है। हमें जीवन से लबालब भरी एक नई दुनिया बनानी है, जो प्रेम के बंधन में बंधी हो और लोकप्रिय संप्रभुता से संचालित है।

ऐसा हम कैसे करते हैं? हम श्रमिकों और ग्रामीण श्रमिकों को शोषण के खिलाफ उनके संघर्ष को मजबूत करते हैं, लोगों और समुदायों को अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए किए जाने वाले संघर्ष में उनका समर्थन करते हैं और राज्य सत्ता के विरुद्ध प्रगतिशील ताकतों को लामबंद करते हैं। और हम उन सभी को दुनिया को फिर से बनाने की क्षमता के साथ शक्तिशाली लोगों के गठबंधन में लाते हैं। अगर हम ऐसा करते हैं, तो हम उनकी निराशा पर उम्मीद की एक किरण पैदा करते हैं।

इसलिए मैं चाहता हूं कि आज आप सब प्रतिबद्ध हों: आप जिन संघर्षों में शामिल हैं, उनमें अपने प्रयासों को पहले से दोगुना करें। उस अभियान से जुड़ें जिसमें शामिल होने के बारे में आप कभी सोच रहे थे। इस तरह अपनी सच्ची एकजुटता का परिचय दीजिए।

मैं चाहता हूं कि आप एक पीढ़ी पीछे मुड़कर देखें और कहें, हां, मैंने ट्रेड यूनियनों, सामुदायिक संगठनों, सामाजिक आंदोलनों, अभियानों, पार्टियों, अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्मों का निर्माण किया, जिसने हवा का रुख बदल दिया।

मैं चाहता हूं कि आप यह कहने के काबिल हो सकें कि हां, हमने भोजन का उत्पादन किया और उनका सम्यक वितरण किया, घर बनाए और लोगों को दिए, तथा स्वास्थ्य देखभाल की बेहतर सेवाएं बनाई ताकि कोई गरीबी में रहे; इस पृथ्वी के लोगों के ज्ञान को धरोहर समझ कर उसे संरक्षित किया और उन्हें दूसरों के साथ साझा किया; लोगों और समुदायों के बीच स्नेह-प्रेम फैलाया; अपनी धरती को कार्बनशून्य करने लायक ऊर्जा प्रणाली का निर्माण किया; युद्ध की मशीनरी को नष्ट कर दिया और शरणार्थियों का समर्थन किया; अरबपतियों के मंसूबों में बेकाबू ताकत पर लगाम लगाई; और एक नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का सूत्रपात किया, उसे सुरक्षित किया।

क्या यह सब करना आसान होगा? बिल्कुल भी नहीं। इन सबके लिए हमें जबरदस्त विरोध का सामना करना होगा। बेशक हम उसका सामना करेंगे।

जैसा कि चिली के महान और अद्भुत कवि पाब्लो नेरूदा ने लिखा है, "आप सभी फूल तो नष्ट कर सकते हैं, लेकिन आप वसंत को आने से नहीं रोक सकते।”

और वसंत, मेरे दोस्त, वह तो आ रहा है।

यह लेख जेरेमी कॉर्बिन के 12 मई, 2022 को प्रगतिशील अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन दि एंड ऑफ दि वर्ल्ड में दिए गया उद्घाटन भाषण से लिया गया है।

जेरेमी कॉर्बिन ब्रिटेन के सांसद, ब्रिटेन लेबर पार्टी के पूर्व नेता और पीस एंड जस्टिस प्रोजेक्ट के संस्थापक हैं।

यह लेख इसके पहले ग्लोबट्रोटर द्वारा प्रकाशित किया गया है।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 

It’s Not Enough to Resist—We Have to Build, Too: Corbyn

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