Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मिलान कुंदेराः कम्युनिस्ट होने न होने के बीच

कम्युनिस्ट पार्टी से शुरू हुई मिलान कुंदेरा की यात्रा धुर कम्युनिस्ट-विरोध पर पहुंचकर ख़त्म हुई।
milan kundera
फ़ोटो साभार : AFP

चेक-फ्रांसीसी लेखक मिलान कुंदेरा (1929-2023) और अपने हिंदी लेखक निर्मल वर्मा (1929-2005) की ज़िंदगियों मे कुछ आश्चर्यजनक समानताएं मिलती हैं। दोनों खांटी कम्युनिस्ट थे, जो बाद के दिनों में धुर कम्युनिस्ट-विरोधी बन गये।

चेक और फ्रांसीसी भाषाओं में उपन्यास, कहानियां, कविताएं, नाटक और गद्य लिखनेवाले  लेखक मिलान कुंदेरा के इंतकाल की ख़बर जब मुझे मिली—वह 94 साल की उम्र में 11 जुलाई 2023 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में चल बसे—तो अनायास ही लेखक निर्मल वर्मा की याद आयी मुझे।

मिलान कुंदेरा और निर्मल वर्मा ने, अपने-अपने देश में, कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़कर अपना राजनीतिक और साहित्यिक जीवन शुरू किया। दोनों सक्रिय कम्युनिस्ट कार्यकर्ता थे और पार्टी के मेंबर (कार्ड होल्डर) थे।

1968 के आसपास दोनों लेखकों का कम्युनिस्ट पार्टी से ‘मोहभंग’ होना शुरू हुआ। बाद के दिनों में दोनों लेखकों ने ‘सर्वसत्तावादी शासन’ (यानी कम्युनिस्ट शासन) की तीखी आलोचना शुरू कर दी, दोनों ज़्यादा से ज़्यादा पूंजीवादी / बूर्ज़्वा खेमे के नज़दीक (और उसके प्रिय) होते चले गये, और दोनों ने अपनी रचनाओं में ‘मानव मन के अंतरतम की गुत्थियों’ को ‘समझने’ की जद्दोजहद शुरू कर दी।

इस अर्थ में मिलान कुंदेरा और निर्मल वर्मा पाला-बदल लेखक थे। दोनों ने अपने कम्युनिस्ट अतीत की स्मृति को भुलाने और मिटाने की पूरी कोशिश की।

एक लेखक (निर्मल) हिंदुत्व की शरण में चला गया, दूसरा लेखक (मिलान) पूंजीवादी निराशावाद और ‘कहीं कोई विकल्प नहीं’ का हमराही बन गया। दोनों के लिए कम्युनिज़्म का मतलब था, ‘सर्वसत्तावाद’ और ‘सड़ी हुई चीज़’, जिसे—उनकी राय में—मिटाना ज़रूरी था।

1968 में तत्कालीन सोवियत संघ ने तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया गणराज्य में ‘विद्रोह’ को दबाने के लिए राजधानी प्राग में अपने टैंक और सेना भेजी. इस घटना का दूरगामी राजनीतिक और सांस्कृतिक असर पड़ा। इससे अमेरिकी साम्राज्यवाद को कम्युनिज़्म के ख़िलाफ़ आक्रामक प्रचार अभियान चलाने का मौका मिल गया, जिसके असर में कई बुद्धिजीवी और लेखक आ गये।

एक अप्रैल 1929 को तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया में पैदा हुए मिलान कुंदेरा 1948 में चेकोस्लोवाकिया गणराज्य (अब चेक गणराज्य) की कम्युनिस्ट पार्टी के मेंबर बने और 1970 तक पार्टी के सदस्य रहे। बीच-बीच में उन्हें पार्टी से निकाला और फिर शामिल किया जाता रहा—1950 में उन्हें पार्टी से निकाला गया, 1956 में उन्हें फिर पार्टी में शामिल किया गया। वह 1970 तक पार्टी में बने रहे, फिर उन्हें निकाल दिया गया।

चेकोस्लोवाकिया की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, नाज़ीवाद-विरोधी योद्धा और पत्रकार जूलियस फ़्युचिक (1903-1943) की स्मृति में मिलान कुंदेरा ने 1955 में एक कविता लिखी थी, जिसका शीर्षक था, ‘आखिरी मई’ एक जमाने में मिलान कुंदेरा पर जूलियस फ़्युचिक का गहरा असर था।

‘द जोक’, ‘द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ़ बींग’, ‘लाइफ़ इज एल्सव्हेयर’ और ‘इमोरटैलिटी’ – जैसे उपन्यासों (सभी अंगरेज़ी अनुवाद) से मिलान कुंदेरा को काफ़ी शोहरत मिली, लेकिन आम तौर पर इन उपन्यासों में कम्युनिस्ट-विरोध की अंतर्धारा मौजूद है। ‘द अनबियरेबल लाइटनेस ...’ तो साफ़ तौर पर बताता है कि कम्युनिज़्म जीवन में निरर्थकता पैदा करता है।

1970 के दशक में मिलान कुंदेरा फ्रांस चले आये और पेरिस में बस गये। उन्होंने फ्रांस की नागरिकता ले ली और फ्रांसीसी में लिखना शुरू किया। (इसके पहले वह चेक भाषा में लिखते थे।)

बाद के दिनों में वह अपनी चेक भाषा और चेक देश से जुड़ी अपनी पहचान और स्मृति को हिकारत की निगाह से देखने लगे, और उसे भुलाने/मिटाने की कोशिश करने लगे। वह इस बात पर ज़ोर देने लगे कि मुझे चेक नहीं, फ़्रांसीसी भाषा का लेखक माना जाये। नौबत यहां तक आ गयी कि मिलान कुंदेरा ने फ्रांसीसी भाषा में लिखी अपनी रचनाओं का चेक भाषा में अनुवाद करने से मना कर दिया। अपनी चेक पहचान को विस्मृत कर देना चाहते थे।

कम्युनिस्ट पार्टी से शुरू हुई मिलान कुंदेरा की यात्रा का यह विडंबनापूर्ण अंत था।

(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest