मुद्दा : क्यों जल रहा है फ्रांस?
पिछले कई दिनों से फ्रांस व्यापक हिंसा की चपेट में है। पेरिस सहित फ्रांस के अनेक बड़े नगरों में व्यापक हिंसा और आगजनी से समूचा जनजीवन ठप पड़ गया है। ऐसा बताया जा रहा है, कि 1967 में पेरिस में हुए छात्र आंदोलन के बाद का यह सबसे बड़ा आंदोलन है। इस हिंसा को रोकने के प्रयास में क़रीब 200 पुलिसकर्मी घायल हुए तथा आगजनी और हिंसा करने के आरोप में क़रीब 875 लोग अभी तक गिरफ़्तार किए गए हैं।
इस घटना का तात्कालिक कारण यह बताया जा रहा है, कि मंगलवार 27 जून की सुबह अल्जीरियाई मूल के एक युवक नाहेल की पुलिस ने उस समय गोली मारकर हत्या कर दी, जब उसने रेड सिग्नल पर रोके जाने पर भी अपनी गाड़ी नहीं रोकी। पुलिस का कहना है कि "यह घटना तब हुई, जब नाहेल पोलैंड की नेमप्लेट वाली कार को बस लेन में ड्राइव कर रहा था। हमने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने गाड़ी नहीं रोकी और गाड़ी लेकर भागने लगा। हमने उसे सम्भावित ख़तरा समझकर गोली मार दी।" इस घटना के बाद ही फ्रांस में व्यापक हिंसा और आगजनी की शुरुआत हो गई, विशेष रूप से उन इलाकों में व्यापक हिंसा और आगजनी हो रही है, जहां बड़ी संख्या में अल्जीरियाई मुस्लिम अप्रवासी रहते हैं। सोशल मीडिया पर जैसी ख़बरें आ रही हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है, कि फ्रांस सरकार इस हिंसा को रोकने में असफल रही है।
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने इस आगजनी और हिंसा की घटना को लेकर शुक्रवार 30 जून को दोपहर एक बजे पेरिस में एक नये अंतर-मंत्रालयी संकट निवारण यूनिट की आपातकालीन बैठक की, हालांकि यह हिंसा तब तक जारी थी। राष्ट्रपति ने लोगों से घर में रहने और शांति बनाए रखने की अपील की। इस घटना को लेकर फ्रांस में एक राजनीतिक दंगल भी छिड़ गया है। कंजरवेटिव और धुर दक्षिणपंथी नेता सरकार से मांग कर रहे हैं, कि देश में आपातकाल लागू कर दिया जाए लेकिन प्रधानमंत्री एलिज़ाबेथ बोर्न और आंतरिक मंत्री गेराल्ड डर्मैनिन ने एक बयान में कहा,"अभी वे इसके पक्ष में नहीं हैं।" कंजरवेटिव लेस रिपब्लिकंस पार्टी के अध्यक्ष एरिक सियोटी ने गुरुवार को आपातकाल लगाने की मांग की थी और शुक्रवार को मरीन ले पेन की धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रीय पार्टी रैली (रैसेम्बलमेंट नेशनल) ने भी इसकी मांग की थी। सांसद और पार्टी प्रवक्ता सेबेस्टियन चैनू ने कहा कि "पहले कुछ इलाकों में कर्फ्यू लगाना चाहिए, विशेष रूप से जहां पर हिंसा अपने चरम पर देखने को मिली थी। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन हालात पर काबू पाने में विफल साबित हुआ है।
सरकार ने भले ही अभी आपातकाल लगाने से इंकार किया हो, लेकिन शांति बहाल करने के लिए क़रीब 40,000 पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को तैनात किया है। यह रणनीति 2005 में पिछली फ्रांसीसी सरकार द्वारा पुलिस से भागने के दौरान दो लड़कों की आकस्मिक मौत के बाद दंगों को दबाने के लिए इस्तेमाल की गई थी। फ्रांसीसी सरकार के लिए यह दंगा इसलिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि ठीक एक साल बाद 2024 में फ्रांस में ओलम्पिक खेल होने वाले हैं, जिसमें दुनिया भर से क़रीब 10,500 खिलाड़ी भाग लेंगे। आयोजन समिति का कहना है, कि वह स्थिति पर निगाह रखे है तथा खेलों की तैयारी जारी है। इसके अलावा ग्रीष्म ऋतु में फ्रांस में लाखों विदेशी पर्यटक आते हैं, इन दंगों से उसके ऊपर भी प्रभाव पड़ेगा।
तात्कालिक रूप से इन दंगों का कारण पुलिस द्वारा गोली चलाने से एक अल्जीरियाई युवक की मौत को बताया जा रहा है, परंतु जड़ें बहुत गहरी हैं। फ्रांस एक बहुसांस्कृतिक और धर्मनिरपेक्ष देश माना जाता है, इसके धर्मनिरपेक्षता की नीति की मिसाल दुनिया भर में दी जाती है तथा यह भी माना जाता है, कि वह 1789 की फ्रांसीसी क्रांति में वहां जो धर्मनिरपेक्षता के मूल्य पैदा हुए थे, उसकी निरन्तरता आज भी जारी है। 2020 तक फ्रांस की आबादी 7 करोड़ थी, जिसमें 85% यूरोपीय मूल के हैं। यूरोप में सबसे ज्यादा अप्रवासी फ्रांस में ही हैं। अल्जीरिया एक समय में फ्रांस का उपनिवेश था, इस कारण से भारी पैमाने पर अल्जीरियाई यहां पर आकर बसे, जिनमें मुस्लिमों की आब़ादी सर्वाधिक है। एक सर्वेक्षण के अनुसार फ्रांस में क़रीब 50 लाख मुस्लिम रहते हैं, इसके अलावा क़रीब 60 लाख उत्तरी अफ्रीका मूल के लोग हैं। 3.3% आब़ादी अश्वेतों की है, जबकि 1.7% एशियाई मूल के लोग हैं।
नाहेल अल्जीरियाई मूल का मुस्लिम था, इस कारण से वहां पर मुस्लिम अप्रवासियों का गुस्सा उबाल पर आया। इधर कई वर्षों से फ्रांस में दो संस्कृतियों के बीच टकराव व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है, एक ओर फ्रांस की धर्मनिरपेक्षता यह मानती है, कि व्यक्ति को हर तरह के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, इसलिए जब 2015 में शार्ली एब्दो पत्रिका द्वारा पैगम्बर मोहम्मद साहब के कार्टून छापने पर फ्रांस में काफी बवाल हुआ, तब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति ने इसकी निंदा करने से इंकार कर दिया। इसी को लेकर फ्रांस में उग्रपंथियों ने कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट की हत्या कर दी गई थी, इसके अलावा पेरिस के बाहरी इलाके में एक अध्यापक की हत्या इसलिए कर दी गई थी कि उस अध्यापक ने अपनी कक्षा में छात्रों को उस कार्टून के बारे में बताया था। इन सब घटनाओं के बाद से ही फ्रांस में लोगों की सोच में बदलाव आने लगा। अन्य यूरोपीय देशों की तरह फ्रांस में भी दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावाद तेजी से उभर रहा है, विशेष रूप से फ्रांस में मुस्लिम देशों से आए शरणार्थियों के मुद्दों को लेकर। इस दक्षिणपंथी उभार को रोकने के लिए ही पिछले चुनाव में मैक्रॉन पक्ष में डेमोक्रेटिक और वामपंथी मतदाताओं ने मतदान किया, लेकिन राष्ट्रपति भी समय-समय पर अपनी छवि को बहुसंख्यक लोगों के अनुसार बदलते रहते हैं। रूस-यूक्रेन के युद्ध के कारण फ्रांस में आर्थिक संकट पहले ही से काफी बढ़ गया है। पेंशन की उम्र को 64 वर्ष किए जाने के फ़ैसले से पहले ही से वहां पर लोगों के बीच नाराज़गी है। बढ़ते हुए आर्थिक संकट का दोष वहां की धुर दक्षिणपंथी पार्टियां मुस्लिम अप्रवासियों को ही दे रही हैं, जिन पर इन संकटों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ रहा है, इस कारण से उनके अंदर धार्मिक अस्मिताएँ उभर रही हैं। अगर चंद अश्वेत आबादी को छोड़ दिया जाए, तो बहुसंख्यक अप्रवासी पेरिस के बाहर बने बड़े-बड़े घेटों में रहने के लिए मज़बूर हैं। यह संकट और अराजकता फ्रांस को नवनाज़ीवाद की ओर ढकेल रही है, जिसके ग्रीस और इटली जैसे देश पहले ही से शिकार हैं। दुर्भाग्यवश पूरे यूरोप तथा फ्रांस में उदारवादी वामपंथी शक्तियां तेजी से अपना असर खो रही हैं। यह केवल फ्रांस के लिए ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया के लिए बड़ी निराशाजनक स्थिति है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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