फ़्रांस चुनाव: वे दस दिन जिन्होंने हमारी दुनिया को हिलाकर रख दिया
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स
यूरोपियन चुनाव के नतीजों ने हमें अंदर तक हिलाकर रख दिया है। 9 जून को, जिस बात का हमें सबसे ज़्यादा डर था, वह सच हो गई। रैसम्बलमेंट नेशनल (RN) पहले इससे फ्रंट नेशनल (FN) के नाम से जाना जाता था। यह 1972 में स्थापित एक दक्षिणपंथी पार्टी है, जो "क्रांतिकारी राष्ट्रवाद" से प्रेरित है, जो विचारधारा नाज़ी जर्मनी में न्यू ऑर्डर आंदोलन के युवा नव-फ़ासीवादियों ने अपनाई थी – वह 31.37 फीसदी मत पाकर पहले स्थान पर रही है।
हालांकि चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में भी इसी तरह के नतीजे सामने आए थे, लेकिन फिर भी हमारे खून में ठंडक थी, क्योंकि हम फासीवादी ताकतों को हराने की बेसब्री से उम्मीद कर रहे थे। लेकिन यह तो बस एक बुरे सपने की शुरुआत थी। नतीजे आने के एक घंटे के भीतर ही फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने नेशनल असेंबली को भंग करने की घोषणा कर दी, जिसके बाद जल्दबाजी में दो चरणों - 30 जून और 7 जुलाई – को संसदीय चुनाव कराए गए, जिससे यूरोपीय चुनाव में अपनी जीत से उत्साहित दक्षिणपंथी आरएन को जीत का एक खुला अवसर मिल गया था।
असहनीय चिंता, वास्तविक आघात और जिसके तुरंत बाद एक ऐतिहासिक जन-आंदोलन हुआ, उसका वर्णन करने से पहले, आइए हम इस बात को परिभाषित करने का प्रयास करें कि "हम" से मेरा क्या मतलब है, जो "उन" यानी आरएन/एफएन से बहुत सदमे में हैं।
"हम" का तात्पर्य फ्रांस के लोगों, विभिन्न जातीय मूल के नागरिकों और निवासियों से है – जो उत्तरी अफ्रीका से, उप-सहारा अफ्रीका से, भारत, चीन, जापान, इंडोनेशिया और अन्य सुदूर पूर्वी देशों से, पश्चिम एशिया से, विभिन्न यूरोपीय देशों से, अमेरिका और लैटिन अमेरिका से, लेकिन विशेष रूप से अश्वेत लोगों से है जो यहां आकार बस गए थे...
"हम" सभी क्षेत्रों के श्रमिकों, बौद्धिक और शारीरिक श्रम करने वाले, छात्रों, शिक्षकों, पत्रकारों, कलाकारों, लेखकों, गायकों, खिलाड़ियों, शहरों, उपनगरों और गांवों, स्थानांतरित कारखानों और निर्जन खेतों, ध्वस्त अस्पतालों, खतरे में पड़े स्कूलों, खस्ताहाल सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े लोगों के लिए खड़े होने वाले हैं।
"हम" का मतलब ईसाई, बौद्ध, हिंदू, सिख, अज्ञेयवादी और नास्तिकों से है, लेकिन अधिक विशिष्ट रूप से यहूदियों और, ज़ाहिर है, मुसलमानों से भी है।
"हम" का अर्थ है पुरुष, महिला, युवा, वृद्ध, नारीवादी, मानवतावादी, विषमलैंगिक, समलैंगिक, ट्रांससेक्सुअल, स्वतंत्र विश्व के लोग हैं।
"हम" वामपंथी दलों के नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं का संगम है: जो समाजवादी, साम्यवादी, ग्रीन और अधिक शानदार ढंग से "इन्सौमिस" - जिसका मोटे तौर पर अनुवाद "विद्रोही" है, जो कि पूर्व समाजवादी पार्टी का एक गुट है जिसकी स्थापना और नेतृत्व जीन-ल्यूक मेलेचोन ने किया था।
"हम" आरएन/एफएन के निशाने पर थे, हमें उनके राष्ट्रीय नेताओं के राजनीतिक एजेंडे से, उनके स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के घृणास्पद भाषण से खतरा था, जीयूडी (ग्रुप यूनियन डिफेंस) को न भूले - फासीवादी छात्र मिलिशिया, जो 1970 के दशक से सक्रिय है, बेहद हिंसक है, जो अश्वेत लोगों, समलैंगिकों और नारीवादियों, वामपंथी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हमला करने और उन्हें मारने में काफी सक्षम है।
तो, हम एक नस्लवादी-फासीवादी पार्टी का सामना कर रहे थे जिसका एजेंडा जातीय सफाया करना था। लेकिन चीजें काले और सफेद में नहीं थीं, वे काफी विकृत और बिगड़ी हुई थीं।
सबसे पहले, गज़ा में नरसंहार के बाद, मेलेचॉन और "इंसौमिस" पार्टी के कई नेताओं और जुझारू लोगों ने इजरायल के राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी सुदूर दक्षिणपंथी पार्टी के खिलाफ आरोप जड़े थे। इसने फ्रांसीसी यहूदी समुदाय को विभाजित कर दिया था। कई यहूदी बुद्धिजीवियों और आम लोगों ने आरएन/एफएन के यहूदी विरोधी नरसंहारी डीएनए को भूल गए या भूलना पसंद किया और वामपंथी पार्टी "इंसौमिस" के खिलाफ खड़े हो गए। उनमें से कुछ तो आरएन/एफएन का समर्थन करने के लिए बहुत आगे बढ़ गए, कहने की ज़रूरत नहीं कि वे नीचे गिर गए। हमारे लिए, दूसरों के लिए, स्तब्धता और घृणा का समय था।
दूसरा, ऐसी अफ़वाहें भी थीं कि राष्ट्रपति मैक्रों आरएन/एफएन के नेता जॉर्डन बार्डेला को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। वित्त क्षेत्र के भूतपूर्व कर्मचारी, रोथ्सचाइल्ड एंड सी इन्वेस्टमेंट बैंक के प्रबंध भागीदार – जो बिरला और टाटा के समकक्ष हैं – उस मैक्रों ने कभी हमारा भरोसा नहीं जीता। जब उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई, जिसे पहले एन मार्चे कहा जाता था, अब रेनेसां कहा जाता है, तो उन्होंने अपना आदर्श वाक्य "न वामपंथी, न दक्षिणपंथी" घोषित किया था, जो समय के साथ कट्टर-दक्षिणपंथी और घोर वामपंथी विरोधी साबित हुआ।
मैक्रों ने लोगों की पीड़ा को भड़काया और बढ़ाया, इस प्रकार उनके गुस्से और विद्रोह को बढ़ाया क्योंकि उन्होंने कई जन-विरोधी आर्थिक नीतियां लागू कीं, जैसे कि सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 64 वर्ष करना, अरबपतियों के लिए वेल्थ टैक्स में कमी करना, सेवाओं और मीडिया का निजीकरण, स्कूलों, अस्पतालों, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधि संगठनों जैसे सार्वजनिक क्षेत्रों को उनके फंड में कटौती करके नष्ट करना, फ्रांस में आप्रवासन के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए इमिग्रेशन कानून को लागू करना।
मैक्रों शासन के दौरान पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया, विरोध प्रदर्शन में शामिल मजदूरों, किसानों, छात्रों, नारीवादियों को पुलिस बल द्वारा कुचला गया, लाठियों से पीटा गया, अंधा कर दिया गया और बुरी तरह घायल किया गया। कई बार, अब भंग हो चुकी नेशनल असेंबली में और सार्वजनिक अवसरों पर, राष्ट्रपति मैक्रों और उनकी पार्टी के सदस्यों ने खुले तौर पर आरएन/एफएन और अन्य दक्षिणपंथी पार्टियों और नेताओं के साथ अपनी आत्मीयता दिखाई, वामपंथी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर मौखिक हमला किया। हम यह नहीं भूले हैं कि उन्होंने 2023 के बैस्टिल दिवस पर भारत के प्रधानमंत्री को अपने मुख्य अतिथि के रूप में कितनी गर्मजोशी से आमंत्रित किया और उन्हें लीजन डी'ऑनर से सम्मानित किया था।
तो, स्पष्ट रूप से, यह कई वर्षों से चल रहा है कि मेक्रों एक तरफ पूंजीपतियों का साथ दे रहे हैं और फासीवादियों के सामने झुक रहे हैं। अपनी संकट के समय में पूंजीवाद को फासीवाद की जरूरत है और फासीवाद को पूंजीवाद की।
तीसरा, इस पूरी तरह से अवसरवादी स्थिति में, बहुराष्ट्रीय कंपनी के मालिक, अरबपति विंसेंट बोलोरे ने कई टेलीविजन और रेडियो समाचार चैनलों और समाचार पत्रों पर कब्जा जमा लिया। एक साल से भी कम समय में, सीन्यूज़ जैसे टीवी चैनल नस्लवादी, इस्लामोफोबिक, महिला विरोधी, इमिग्रेशन विरोधी, वाम विरोधी नफरत भरे भाषणों, सरासर झूठ और बदनाम करने वाली कहानियों के चौबीसों घंटे प्रचार का मुखपत्र बन गए थे। यहां भारत में ‘गोदी-मीडिया’ या फॉक्स न्यूज़ को याद किया जा सकता है। दोनों मामलों में, गोएबल्स (हिटलर के प्रचारक) प्रचार के तरीके ने दो महापागल सुदूर दक्षिणपंथी तानाशाहों के लिए रास्ता तैयार किया। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पूर्व आरएन/एफएन पार्टी के सदस्य, अभियान प्रबंधक, करीबी दोस्त इन टीवी शो पर रणनीतिक रूप से चुने गए तथाकथित पत्रकार बन गए।
लगातार नस्लवादी प्रचार के विनाशकारी परिणामों ने फ्रांस में हमारे दैनिक जीवन को जहरीला बना दिया था। पड़ोसी, पैदल यात्री, दुकानदार, कार्यालय कर्मचारी - वे लोग जिन्हें हम जानते हैं और वे लोग जिन्हें हम नहीं जानते - अब बेकाबू, बेशर्म, निर्दयी हो गए थे और नस्लीय गालियाँ देने से नहीं कतराते थे।
विडंबना यह है कि जितने अधिक छोटे शहर और गांव एकरूप रूप से "श्वेत" हैं, "मूल फ्रांसीसी" लोगों से आबाद हैं, और उनमें एक भी अश्वेत व्यक्ति की उपस्थिति नहीं है, उतना ही अधिक वे नस्लवादी घृणा प्रदर्शित कर रहे हैं, या कहें कि अश्वेत लोगों के प्रति उनके भय और घृणा का एक काल्पनिक संस्करण प्रदर्शित कर रहे हैं।
पेरिस, मार्सिले, बोर्डो, मोंटपेलियर, कान, नीस और अन्य जैसे बड़े शहरों के बहुसांस्कृतिक सामाजिक ताने-बाने की वास्तविकता से कटे हुए, टीवी चैनल लगातार नस्लवादी प्रचार से भरे हुए थे, अक्सर अशिक्षित या कम शिक्षित, विऔद्योगीकृत और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले, जिनमें से कई पूर्व कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक हैं, उनका अब मोहभंग हो चुका है, लेकिन ज्यादातर गोरे मूल निवासी फ्रांसीसी कट्टर अति-राष्ट्रवादी हैं। इन दोनों श्रेणियों को उदार अर्थव्यवस्था, उद्योगों के स्थानांतरण से खतरा है - और ये आरएन/एफएन का चुनावी आधार हैं। वे किसी भी प्रगतिशील उपलब्धि को अस्वीकार करते हैं, चाहे वह आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक क्षेत्र में क्यों न हो।
यूरोपीय चुनाव में अपनी जीत के बाद से, आरएन/एफएन ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष, एक बहुत ही युवा 20 वर्षीय व्यक्ति, जॉर्डन बार्डेला को प्रधानमंत्री पद के अपने उम्मीदवार के रूप में पेश किया। नया बंदर, पुरानी चालें। पार्टी ने अपने फासीवादी डीएनए को छिपाया, एक नरम लोकलुभावन दृष्टिकोण अपनाया, मीडिया ने उनपर कृपा की और उनके कलंक को धोने की कोशिश की।
9 जून की शाम को, जब आम लोग अभी भी सदमे और परेशानी में थे, तो लोगों और कार्यकर्ताओं यानी “हम” ने सोशल मीडिया पर अपनी चिंता व्यक्त करना शुरू कर दिया, लेकिन साथ ही उस राक्षस से लड़ने का अपना दृढ़ संकल्प भी व्यक्त किया।
10 जून को पहली बार “पॉपुलर फ्रंट” शब्द का इस्तेमाल करने के बाद, फ्रांकोइस रफिन और विभिन्न वामपंथी दलों के निर्वाचित संसद सदस्यों ने एक ऑनलाइन याचिका प्रकाशित की, जिसमें पार्टियों के नेताओं से वाम मोर्चा बनाने की अपील की। कुछ ही घंटों में याचिका पर कई लाख हस्ताक्षर हो गए।
समानांतर रूप से, राजनीतिक, बौद्धिक, कलात्मक और क्रांतिकारी गतिविधियों से 350 हस्तियों ने, जिनमें नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री एस्तेर डुफ्लो, नोबेल पुरस्कार विजेता उपन्यासकार एनी एरनॉक्स भी शामिल थीं, ले मोंडे में एक ओपिनियन लेख प्रकाशित किया, जिसमें फासीवाद से लड़ने के लिए वाम मोर्चा बनाने की अपील की गई।
इसके बाद पांच सबसे बड़ी ट्रेड यूनियनों - सीजीटी, सीएफडीटी और अन्य - ने वाम मोर्चा बनाने का संयुक्त आह्वान किया।
10 जून की शाम को, इन्सौमिस के नेताओं - मैनुअल बोम्पार्ड, ग्रीन पार्टी - मरीन टोंडेलियर, सोशलिस्ट पार्टी - ओलिवियर फॉरे, कम्युनिस्ट पार्टी - फेबियन रूसेल और तीन अन्य वामपंथी दलों ने फासीवादी ताकतों से लड़ने के लिए मेक्रों की नीति से अलग एक राजनीतिक और आर्थिक विचार पेश कर गठबंधन बनाया, जिसे "न्यू पॉपुलर फ्रंट" (एनपीएफ) नाम दिया गया।
अगले दो दिनों में, राफेल ग्लक्समैन (यहूदी और वाम मोर्चे में यहूदी-विरोधी भावना को खत्म करने की मांग करने वाले) और कैरोल डेलगा जैसे अन्य वामपंथी नेता भी मोर्चे में शामिल हो गए। वे प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मोर्चे में प्रत्येक वामपंथी पार्टी के साझा हित में एक संयुक्त मोर्चे के साथ एक आदर्श सहयोग करने पर सहमत हुए और महान नेता मेलेचोन, अगली पीढ़ी के नेता क्लेमेंस गुएटे, मैनन ऑब्री, मैनुअल बोम्पार्ड, लुइस बोयार्ड, मेलानी वोगेल और कई अन्य, सोशलिस्ट पार्टी के फ्रांकोइस ओलांद और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने पूरे देश में सार्वजनिक सभाओं में भाषण देने, टीवी चैनलों और रेडियो चैनलों पर बहस करने, एनपीएफ के कार्यक्रम का विस्तार से वर्णन करने में दिन-रात लगाए। उन्होने कहा कि न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 1,600 यूरो किया जाएगा, सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष की जाएगी, अति-धनवानों पर टैक्स लगाया जाएगा, प्राथमिक और पर्याप्त उत्पादों के लिए अधिकतम मूल्य तय किया जाएगा...
प्रसिद्ध और जाने-माने अर्थशास्त्री माइकल ज़ेमोर ने नियमित रूप से सोशल मीडिया पर अपने विश्लेषण और कार्यक्रम के समर्थन में पोस्ट डाले। 15 वर्षीय हाई स्कूल के छात्र और वामपंथी पार्टी के कार्यकर्ता मानेस नाडेल इस आंदोलन के सबसे प्यारे, सबसे बहादुर व्यक्ति के रूप में उभरे, जो उम्मीद और संभावनाओं की नई पीढ़ी के प्रतीक के रूप में उभरे। ऊपर बताए गए सभी नेता असाधारण रूप से प्रतिभाशाली हैं। वामपंथी अख़बार ला’हुमानाइट द्वारा आमंत्रित किए जाने पर, इस लेखक ने एक रायपूर्ण लेख लिखा, जो जानकारीपूर्ण और बल्कि काव्यात्मक था।
नेता, जुझारू लोग - हम सभी सोशल मीडिया पर डटे रहे, क्योंकि हम न केवल एनपीएफ के लिए प्रचार कर रहे थे, बल्कि हमें हर दिन ऑनलाइन और ज़मीन पर दक्षिणपंथियों के बदनाम प्रचार, धमकियों, नस्लवादी अपमानों से भी निपटना पड़ता था। अभियान के दौरान कई वामपंथी कार्यकर्ताओं पर शारीरिक हमला किया गया, उत्तरी अफ़्रीकी और उप-सहारा अफ़्रीकी मूल के कई फ्रांसीसी नागरिकों को धमकाया गया और देश छोड़ने का आदेश दिया गया।
29 जून को, मतदाताओं ने ग्वाडेलोप, मार्टीनिक, गुयाना, फ्रेंच पोलिनेशिया ... और अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र में दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों में अपने मत डाले। 30 जून को, फ्रांस महानगर में मतदान हुआ। 2024 के विधानसभा चुनाव के पहले दौर के लिए मतदान 59.39 फीसदी था। 2022 में, यह 39.42 फीसदी था। पहले दौर के चुनाव का परिणाम अभी भी एक आपदा था क्योंकि आरएन/एफएन को 29.26 फीसदी वोट और 37 सीटें मिलीं; जबकि न्यू पॉपुलर फ्रंट 28.06 फीसदी मत और 32 सीटें मिलीं; राष्ट्रपति के गठबंधन को 20.04 फीसदी वोट और 2 सीटें मिलीं। कई अन्य दक्षिणपंथी, मध्यमार्गी और वामपंथी दलों को नगण्य संख्या में वोट मिले।
इसलिए, आरएन/एफएन द्वारा सरकार बनाने का जोखिम अभी भी बना हुआ था। मुख्यधारा के किसी भी मीडिया ने एनपीएफ को कभी मौका नहीं दिया। बोलोरे मीडिया वामपंथी नेताओं और उनके कार्यक्रम को बदनाम करने के लिए ओवरटाइम काम कर रहा था, हर बहस उत्पीड़न और आक्रामकता में बदल गई थी। लेकिन उन्होंने जमकर इसका विरोध किया। शानदार ढंग से किया। ईमानदारी से किया। पार्टी नेताओं और जुझारू कार्यकर्ताओं के बीच एक अविश्वसनीय अंतर था और आम लोग कार्यकर्ता बन गए थे।
मीडियापार्ट, ब्लास्ट, औ पोस्ट जैसे स्वतंत्र मीडिया ने सूचना देने, विश्लेषण करने, तथ्यों को उजागर करने और दक्षिणपंथी दुष्प्रचार से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सोशल मीडिया ने यह सब प्रतिध्वनित किया और प्रतिरोध की बढ़ी हुई ताकत शानदार बन गई।
जॉर्डन बार्डेला ने बहुत ही अच्छा व्यवहार किया, लेकिन अपनी पार्टी का कार्यक्रम पेश करने में बुरी तरह विफल रहे, क्योंकि उनके पास शायद ही कोई कार्यक्रम था। दर्जनों आरएन/एफएन उम्मीदवार अपने असंगत उत्तरों के कारण हंसी का पात्र बन गए, दूसरों ने नाजी टोपी पहनकर या अरबों और अश्वेतों को मारने का आह्वान करके अपने नाजी जुड़ाव को उजागर किया... इस सबने उनके चेहरों से क्षेत्रीय टीवी चैनलों पर मुखौटा उतार दिया।
दूसरे दौर के चुनाव के छह दिन बाद, राष्ट्रपति मेक्रों की पार्टी (Renaissance) और एनपीएफ के बीच एक बड़ा गठबंधन बना, लेकिन एक खंडित तरीके से बना। मेक्रों ने खुद अब तक "न इधर न उधर" की मुद्रा बनाए रखी है, यानी न तो आरएन, न ही वाम मोर्चा के साथ। प्रधानमंत्री गेब्रियल अट्टल ने मेक्रों की रणनीति से खुले तौर पर खुद को अलग कर लिया, यह कहते हुए कि फासीवादी पार्टी से लड़ने की तत्काल आवश्यकता है और उन्होंने एक निर्वाचन क्षेत्र में एनपीएफ को वोट देने के निर्देश दिए जहां राष्ट्रपति की पार्टी तीसरे स्थान पर होगी। और इसके विपरीत - इसी तरह के एक मामले में राष्ट्रपति की पार्टी को वोट देने के निर्देश एनपीएफ द्वारा दिए गए और उनका ईमानदारी से पालन किया गया।
एक हफ़्ते से भी कम समय में, ऑनलाइन और ज़मीनी स्तर पर, अलग-अलग शहरों में, लोग जोशपूर्ण जन-आंदोलन की लय के अनुसार जीते और सांस लेते रहे। कविताएं, गीत, पेंटिंग, टैग दिन-रात छाए रहे, साथ ही एनपीएफ नेताओं के शानदार भाषण भी दिए। संदेश यह था कि विश्वास रखें, हार न मानें, कि हर एक वोट मायने रखता है।
और यह काम कर गया। रविवार, 7 जुलाई, 2024 को शाम 5 बजे विधानसभा चुनावों में भागीदारी दर 59.71 फीसदी थी। 2022 में, इसी समय, भागीदारी दर 38.11 फीसदी थी। नतीजों की बात करें तो, सभी पूर्वानुमानों, एग्जिट पोल और आखिरी समय में आरएन/एफएन के पक्ष में किए गए प्रचार को पीछे छोड़ते हुए, एनपीएफ को 182 सीटें, मैक्रों की पार्टी को 168 सीटें और आरएन/एफएन को 143 सीटें मिलीं हैं।
नतीजा यह कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। लेकिन, एक उचित संसदीय शासन प्रणाली में, मेक्रों राष्ट्रपति रहे और एनपीएफ से प्रधानमंत्री बनाना संभव है। सवाल यह है कि क्या मेक्रों इतने गरिमापूर्ण होंगे कि वे लोगों की आवाज़ का सम्मान करेंगे, एनपीएफ की जीत और उनके द्वारा प्रस्तावित प्रधानमंत्री को स्वीकार करेंगे?
संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है, लेकिन जीत का स्वाद जीवन का स्वाद है, यह स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की विजय है।
लेखिका, कोलकाता में जन्मी फ्रांसीसी लेखिका हैं और फ्रांस की नागरिक हैं। उनकी रचनाएं गैलिमार्ड द्वारा प्रकाशित की गई हैं। वे साहित्य के लिए फ्रेंच अकादमी पुरस्कार की विजेता भी हैं। ये विचार उनके निजी हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।