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तिरछी नज़र : बंद लिफ़ाफ़ा

मी लॉर्ड, सरकारी ऑफिसों में भी पहले सब कुछ बिना लिफ़ाफ़े के होता था। पर अब वहां भी बंद लिफ़ाफ़े का प्रचलन हो गया है। जो अफ़सर ऑफिस में लेने में हिचकते थे वे चाय की दुकान या शौचालय में ले लेते थे। लेते हुए कनखियों से इधर उधर देख लेते थे कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है। पर लिफ़ाफ़े का प्रचलन नहीं था।
supreme court

मी लॉर्ड, 

मुझे आपसे कुछ कहना है। बस आप बुरा मत मानियेगा। वैसे तो देश में कोई भी किसी भी बात का बुरा मान जाता है, जैसे कि बुरा मानने का प्रचलन ही चल पड़ा हो। पर न्यायालय और सरकार जी बुरा न मानें, यह विशेष ध्यान रखना पड़ता है। लोगों का तो क्या है, कोई सलाह दो, तो भी बुरा मान जाते हैं। मामूली सा भी हंसी मजाक कर दो, तो बुरा मान जाते हैं। बुरा मानने की तो जैसे परम्परा ही चल पड़ी है। किसी की जबान फिसल जाए तो बुरा। कोई गीत गा दे तो बुरा, कोई कविता सुना दे तो बुरा। और व्यंग्य लिखना तो बुरा ही बुरा है।

मी लॉर्ड, यह जो बंद लिफाफा देने की प्रथा है ना, नई प्रथा है। पहले तो लोग बाग खुलेआम ही दे देते थे। मुझे ध्यान आता है कि पहले शादी ब्याह में भी जाते थे तो, उस आदमी को ढूंढते थे जो एक कोने में बैठा एक काॅपी में लोगों के नाम और उनके द्वारा दिया जाने वाला शगुन लिख रहा होता था। सबकुछ सबके सामने होता था। लोग सबके सामने ही पैसे पकड़ा रहे होते थे और सबके सामने ही अपना नाम लिखवा रहे होते थे। सबको पता होता था कि किसने कितना दिया। पर अब वहां बंद लिफाफा दिया जाता है।

सरकारी ऑफिसों में भी पहले सब कुछ बिना लिफाफे के होता था। पर अब वहां भी बंद लिफाफे का प्रचलन हो गया है। जो अफसर ऑफिस में लेने में हिचकते थे वे चाय की दुकान या शौचालय में ले लेते थे। लेते हुए कनखियों से इधर उधर देख लेते थे कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है। पर लिफाफे का प्रचलन नहीं था। लेकिन अब वहां भी बंद लिफाफे का प्रचलन हो गया है। सबके सामने ले लिया जाता है और सबके सामने दे दिया जाता है। बंद लिफाफा तो सीसीटीवी कैमरे के सामने भी लिया जा सकता है। तो चीजें वहीं की वहीं हैं। बस सरकार का सीसीटीवी कैमरे का खर्च बढ़ गया है और जनता का लिफाफे का। 

तो सरकार जी ने सोचा कि सब जगह बंद लिफाफा ही चल रहा है तो क्यों न न्यायालय में भी बंद लिफाफा ही चले। तो सरकार जी ने राफेल की कीमत बंद लिफाफे में ही दी, और न्यायालय को भी बंद लिफाफे में ही बताई। 

मी लॉर्ड, पर आपने वह प्रथा, वह परम्परा, न्यायालय में भी बंद लिफाफे में देने की परम्परा, जो सरकार जी ने इतना सोच विचार कर बनाई थी, एक ही झटके में छोड़ दी है। युअर आनर, आपसे पुराने मी लॉर्ड्स ने, एक नहीं, कईयों ने इस नई परम्परा को चालू रखा पर आपने उसे तोड़ दिया। मी लॉर्ड, आप समझदार हैं, आप शक्तिमान हैं, पर आप मेरी सलाह मानें तो आपने यह बंद लिफाफे की परम्परा तोड़ कर अच्छा नहीं किया। कृपया उसे दोबारा चालू करें।

मी लॉर्ड, जनता भले ही बंद लिफाफे में बहुत कुछ न दे पाए पर सरकार जी तो बंद लिफाफे में बहुत कुछ दे सकते हैं। जनता की तरह से नहीं है कि बंद लिफाफे में सिर्फ प्रार्थना पत्र ही दे और कुछ और दे तो अधिक से अधिक कुछ हरे, नीले, गुलाबी कागज ही दे। सरकार बहुत कुछ देती है। आम जनता तो बंद लिफाफे में तत्काल लाभ की चीज ही देती है पर सरकार जी बंद लिफाफे में किसी को भविष्य की चीज भी दे सकते हैं।

सरकार जी बंद लिफाफे में राज्यसभा की सीट दे सकते हैं, उपराज्यपाल या राज्यपाल का पद दे सकते हैं, विदेश में रहने का मन हो तो किसी छोटे या बड़े देश में राजदूत नियुक्त कर सकते हैं। देश में ही रहने का और इसी तरह का कार्य करने की इच्छा हो तो किसी आयोग का चेयरमैन बना सकते हैं। सरकार जी तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति भी बना सकते हैं। सरकार जी बंद लिफाफा स्वीकार करने वालों को कुछ भी बना सकते हैं। 

मी लॉर्ड, सरकार जी कुछ भी दे सकते हैं, बस आप उनके मन मुताबिक काम करते रहें। एक आदर्श पिता अपने आज्ञकारी बच्चे से खुश हो कर उसको वह सब कुछ दे सकता है, जो वह दे सकता है। और सरकार जी तो सबकुछ ही दे सकते हैं। बस आप आज्ञाकारी बच्चा बनें, सरकार जी तो आदर्श पिता हैं ही। आप कहना मानते रहें, सरकार जी आपका ध्यान रखेंगे। जितना कहना आप मानेंगे, जितने आज्ञाकारी आप बनेंगे, पिताजी भी उतना ही आपका ध्यान रखेंगे।

मी लॉर्ड, आपने कहा कि आप पारदर्शिता चाहते हैं। आप चाहते हैं कि बंद लिफाफे में कुछ न दिया जाए। जो दिया जाए खुलेआम दिया जाए। पूरी पारदर्शिता बरती जाए। सभी को पता चले कि किसने क्या दिया और किसने क्या लिया। योर ऑनर, आप यह क्या चाहते हैं? मी लॉर्ड, ऐसा कैसे हो सकता है? मी लॉर्ड, कम से कम इस राज में ऐसा कैसे हो सकता है?

तो मी लॉर्ड, आप इसलिए पारदर्शिता की जिद छोड़ दीजिए। सरकार जी को पारदर्शी बनने के लिए मत कहिए। उन्हें शीशे के घर में रहने के लिए मत कहिए। उन्हें दूसरों पर पत्थर फेंकने से मत रोकिए। बस आप बंद लिफाफा ले लीजिए। सरकार जी तो सुरक्षित रहेंगे ही, आपका भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।

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