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ख़बरों के आगे-पीछे: अमेरिका में भारतीयों की बढ़ती अवैध घुसपैठ 

हैरानी की बात है कि अमेरिका से 17 हजार किलोमीटर दूर स्थित भारत, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अमृतकाल चल रहा है, वहां के नागरिक अमेरिका में घुसने के लिए जान-माल की बाजी लगा रहे हैं। 
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तस्वीर प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार : गूगल

अभी तक तो अमेरिकी में अवैध घुसपैठ करने वालों में मेक्सिको के ही लोग आगे हैं, लेकिन जिस तेजी से भारतीय लोग उनको टक्कर दे रहे हैं, उससे लग रहा है कि भारतीय नागरिक अमेरिका के पड़ोसी मेक्सिको को पीछे छोड़ देंगे। हैरानी की बात है कि अमेरिका से 17 हजार किलोमीटर दूर स्थित भारत, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अमृतकाल चल रहा है, वहां के नागरिक अमेरिका में घुसने के लिए जान-माल की बाजी लगा रहे हैं और वहां से अपमानित करके भगाए जा रहे हैं। 

यह एक आम भारतीय के लिए और उससे भी ज्यादा सरकार के लिए शर्म की बात होनी चाहिए, जिसका दावा है कि देश में 65 साल में जितना विकास हुआ, उससे ज्यादा उसने 10 साल में कर दिया, फिर भी यह स्थिति है कि भारतीय लोग भाग कर अमेरिका और कनाडा में बसना चाहते हैं। ज्यादा शर्म की बात यह भी है कि अमेरिका में अवैध रूप से घुसने की कोशिश करने में पकड़े जा रहे भारतीयों में आधी संख्या प्रधानमंत्री के अपने राज्य के गुजरात के लोगों की है। 

एक आंकड़ा है कि हर घंटे 10 भारतीय अवैध रूप से अमेरिका में घुसने का प्रयास करते हुए पकड़े जा रहे हैं, जिनमें पांच गुजराती होते हैं। पिछले दिनों एक खबर आई थी कि कनाडा के रास्ते अमेरिका में घुसने के प्रयास में एक गुजराती परिवार के चार सदस्य ठंड से ठिठुर कर मर गए थे। 

बहरहाल, यह भी खबर है कि कनाडा में हिंदी और पंजाबी के बाद तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भारतीय भाषा गुजराती हो गई है। पहले लोग कनाडा पहुंच रहे हैं और वहां से अमेरिका में घुसने का प्रयास किया जा रहा है। इस साल अमेरिका ने 1100 भारतीयों को अपने देश से निकाल कर वापस भेजा है। अभी 22 अक्टूबर को भी अमेरिका से निकाले गए भारतीयों को लेकर एक जहाज पंजाब पहुंचा है। 

सात हजार विशेष ट्रेन चलाने की हवाबाज़ी

पिछले हफ्ते रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि इस बार छठ पर्व पर बिहार झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश जाने वाले लोगों को दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि रेलवे ने सात हजार विशेष ट्रेन चलाने का फैसला किया है। दावा किया गया कि पिछले साल साढ़े चार हजार विशेष ट्रेन चली थी और इस बार सात हजार विशेष ट्रेन चलाई जाएंगी। यह भी बताया गया कि विशेष ट्रेनों के 3,050 फेरे लगेंगे। 

अब सवाल है कि सात हजार ट्रेनें चलेंगी तो 3,050 फेरे कैसे लगेंगे? इससे बड़ा कंफ्यूजन बना। बाद में रेलवे अधिकारियों के हवाले से खबर आई कि 3,050 ट्रेनें अतिरिक्त चलाई जाएंगी और कुछ ट्रेनों में अतिरिक्त बोगियां लगाई जाएंगी। लेकिन यह नहीं बताया गया कि कहां से कितनी विशेष ट्रेनें चल रही हैं। किस स्टेशन से कब और कितनी ट्रेनें चलेंगी और बिहार, उत्तर प्रदेश या झारखंड में कहां तक जाएंगी? 

यह भी नहीं बताया गया कि क्या बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में रेलवे का बुनियादी ढांचा ऐसा है कि वह इतने छोटे अंतराल मे इतनी विशेष ट्रेनों का संचालन संभाल सके? हकीकत यह है कि विशेष ट्रेनों को छोड़िए, नियमित ट्रेनों की हालत खराब है। छह-छह घंटे की देरी से ट्रेनें रवाना हो रही है और 15-15 घंटे की देरी से गंतव्य पर पहुंच रही हैं। रेलवे स्टेशनों पर भगदड़ जैसे हालात हैं और लोग जानवरों की तरह डिब्बों में ठूंस कर या डिब्बों के गेट पर लटकते हुए बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में अपने घर तक पहुंच पा रहे हैं।

क्या भारत खेलों में ऐसे बनेगा महाशक्ति? 

शायद ही दुनिया के किसी देश में ऐसा होता होगा कि अगर एक मुकाबले में खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो अगले मुकाबले से पहले उनके बजट में कटौती कर दी जाए और खिलाड़ियो की संख्या घटा दी जाए। आमतौर पर तो यही होता है कि खराब प्रदर्शन के बाद खर्च बढ़ाया जाता है और खिलाड़ियों का पूल बड़ा किया जाता है यानी उनकी संख्या बढ़ाई जाती है। लेकिन भारत में इसका उलटा हो रहा है। पेरिस ओलंपिक में भारतीय दल के खराब प्रदर्शन के बाद खिलाड़ियों की संख्या में कटौती और उन पर होने वाले खर्च में भी कमी की जा सकती है। 

एक रिपोर्ट के मुताबिक मिशन ओलंपिक सेल यानी एमओसी के सुझावों पर ऐसा किया जाएगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत ने ओलंपिक के लिए खिलाड़ियों की तैयारी पर कोई करोड़ों-अरबों रुपये खर्च किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक टोक्यो ओलंपिक से पेरिस ओलंपिक के बीच यानी 2021 से 2024 के तीन साल में टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम यानी टीओपीएस के तहत महज 72 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। यह रकम तीन सौ खिलाड़ियों पर खर्च की गई थी। लेकिन जब पेरिस में भारतीय दल का अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा तो अब कहा जा रहा है कि तीन सौ से कम खिलाड़ियों को इसका लाभ दिया जाएगा। अगर भारत को खेल महाशक्ति बनना है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका, रूस, चीन आदि के वर्चस्व को चुनौती देनी है तो खेल पर होने वाले खर्च में कई गुना बढ़ोतरी करने के बजाय उसमें कटौती करने का क्या मतलब है?

भगवंत मान और केजरीवाल के बीच दूरी 

लगता है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के रिश्तों में कुछ दूरी बन गई है। बताया जा रहा है कि मान के कामकाज से केजरीवाल खुश नहीं हैं। हालांकि मान सरकार ठीक उसी तरह से चल रही है, जिस तरह से दिल्ली में केजरीवाल की सरकार चली या अभी आतिशी की सरकार चल रही है। इसलिए केजरीवाल के नाराज होने का कारण सरकार का कामकाज नहीं हो सकता। हो सकता है कि केजरीवाल को लग रहा हो कि लगातार पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने से भगवंत मान का कद बढ़ेगा और अगर अगली बार भी आम आदमी पार्टी जीत गई तो वे मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार होंगे। इसलिए बीच में ही उन्हें हटाने का फैसला हो सकता है। भगवंत मान मुख्यमंत्री के तौर पर ढाई साल से ज्यादा का कार्यकाल बिता चुके है। अब जाकर उनको लगा है कि प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ देना चाहिए। गौरतलब है कि वे मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों पदों पर हैं और कुछ दिन पहले तक किसी ने इस ओर ध्यान भी नहीं दिया था क्योंकि सबको पता है कि आम आदमी पार्टी में संगठन का कोई मतलब नहीं है। लेकिन अचानक भगवंत मान के प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने की खबरें आ रही हैं। 

सूत्रों के मुताबिक उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा कर प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखने का फैसला हो, उससे पहले ही वे अध्यक्ष पद छोड़ने का दांव चल रहे हैं। अगले कुछ दिन पंजाब की राजनीति में दिलचस्प घटनाक्रम वाले हो सकते हैं।

भाजपा नेताओं के लिए शिंदे की पार्टी का प्लेटफॉर्म

महाराष्ट्र में भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया है तो उनकी पार्टी का भी भाजपा अपनी तरह से इस्तेमाल कर रही है। इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने कई नेताओं को एकनाथ शिंदे की शिव सेना से टिकट दिलाया है। असल में कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर भाजपा के नेता सक्रिय थे लेकिन सीटों के बंटवारे में वे सीटें शिंदे या अजित पवार की पार्टी के खाते में चली गई। जो शिंदे की पार्टी के खाते में गई हैं, वैसी कई सीटों पर भाजपा ने अपने नेताओं को उनकी पार्टी में भेज दिया है और वहां से टिकट दिला दिया है। 

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे नारायण राणे शिव सेना से कांग्रेस में होते हुए भाजपा में पहुंच गए हैं। वे सांसद है। उनके एक बेटे नीतेश राणे को भाजपा ने कोंकण की कंकावली सीट से टिकट दिया है। लेकिन नारायण राणे को अपने दूसरे बेटे नीलेश राणे के लिए भी टिकट चाहिए था। वे जिस कुडाल सीट से लड़ना चाहते थे वह सीट शिंदे की पार्टी को मिल गई। सो, नीलेश राणे उनकी पार्टी में चले गए और वहां उम्मीदवार बन गए। इसी तरह भाजपा की प्रवक्ता रहीं शायना एनसी भी पिछले दिनों शिंदे की पार्टी मे शामिल हो गईं और शिंदे ने उन्हें मुंबादेवी सीट से उम्मीदवार बना दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे राव साहेब दानवे की बेटी संजना जाधव भी शिंदे की पार्टी में शामिल हो गई और उन्हें भी कनाड सीट से टिकट मिल गई। 

पुनर्वास की प्रतीक्षा में रिटायर अधिकारी

मौजूदा सरकार अपने भरोसेमंद नौकरशाहों को उनके रिटायर होने के बाद भी खाली नहीं बैठने देती है। उनका रिटायरमेंट करीब आते ही या तो उन्हें सेवा विस्तार दे देती है या फिर रिटायर होने के बाद उन्हें किसी और काम में लगा देती है। किसी-किसी को तो पार्टी में शामिल कर राज्यसभा में ले आती है या राज्यपाल बना देती है। लेकिन केंद्रीय गृह सचिव के पद से रिटायर हुए अजय कुमार भल्ला का इंतजार लंबा होता जा रहा है। उनके रिटायरमेंट की पार्टी में खुद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि वे थोड़े दिन तक छुट्टी एन्जवॉय करें, उसके बाद उन्हें बड़ी जिम्मेदारी संभालनी है। लेकिन बड़ी जिम्मेदारी अभी दिख नहीं रही है। 

इस बीच देश के नियंत्रक व महालेखापरीक्षक गिरीश मुर्मू नवंबर में रिटायर होने वाले है। उनके बाद दिसंबर में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास रिटायर होंगे। शक्तिकांत दास 2018 में रिजर्व बैंक के गवर्नर बने थे। उन्हें तीन-तीन साल के दो कार्यकाल मिले। अब नया कार्यकाल मिलने की संभावना नहीं है। इसी तरह कैबिनेट सचिव राजीव गौबा भी रिटायर होकर बैठे हैं। देखने वाली बात होगी कि इन सब लोगों को सरकार क्या देगी? दिल्ली पुलिस कमिश्नर पद से रिटायर हुए राकेश अस्थाना और नीति आयोग से रिटायर हुए अमिताभ कांत की तरह भल्ला, गौबा, मुर्मू और दास को कोई जिम्मेदारी मिलेगी या नहीं? 

बहन से जगन मोहन की कड़वाहट बढ़ी

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और उनकी बहन वाईएस शर्मिला के बीच पहले से जारी कड़वाहट अब आर्थिक कारणों से बढ़ गई है और इसका असर राजनीति पर भी होगा। कांग्रेस के कई नेता यह संभावना देख रहे थे कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से हारने के बाद जगन मोहन बैकफुट पर हैं और ऐसे में उनके साथ बातचीत हो सकती है। पहले की तरह पूरे वाईएसआर रेड्डी परिवार के कांग्रेस में आने की संभावना देखी जा रही थीं। वाईएस शर्मिला और उनकी मां विजयाम्मा तो पहले ही कांग्रेस में आ चुकी हैं। लेकिन अब एक पावर कंपनी के शेयरों के ट्रांसफर को लेकर विवाद इतना बढ़ गया है कि जगन मोहन के साथ आने की संभावनाओं पर फिलहाल विराम लग गया है। असल में पावर कंपनी के शेयरों को लेकर जगन मोहन नेशनल कंपनी ने लॉ ट्रिब्यूनल में शिकायत की है कि उनकी ओर से अपनी मां को दिए गए शेयर गलत तरीके से वाईएस शर्मिला ने अपने नाम से ट्रांसफर करा लिए हैं। 

दूसरी ओर शर्मिला का कहना है कि जब जगन ने गिफ्ट डीड के जरिए अपने शेयर अपनी मां को ट्रांसफर कर दिए तो उन शेयरों को अगर मां आगे किसी को देती हैं तो उस पर आपत्ति का कोई कारण नहीं है। इस पर शुरू हुआ विवाद लंबा चलने वाला है। वैसे भी अगला चुनाव 2029 में होना है, इसलिए कांग्रेस के नेता इस लड़ाई को दूर से देखेंगे। अगर परिवार में समझौता होता है तो फिर राजनीतिक दांव चले जाएंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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