झारखण्ड: भूख से मौत का बढ़ता सिलसिला
आवामी शायर दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल कही थी कि भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ, आजकल दिल्ली में है ज़ेरे बहस ये मुददआ…लेकिन झारखण्ड प्रदेश में तो मामला इससे भी आगे बढ़ चुका हैI जहाँ वर्तमान सरकार के रवैये को देखकर यही कहा जा सकता है – भूख है तो मौत कर! वरना पिछले चार वर्षों में 11 साल की बच्ची से लेकर 65 वर्ष की बुजुर्ग महिला समेत भूख से दर्जनों लोगों की मौत होने के बावजूद शासन–प्रशासन को कोई फ़र्क नहीं पड़ाI अलबता हर मौत को बीमारी से हुई मौत कहकर रफा–दफा करने तक सरकार और प्रशासन पूरे तरह मुस्तैद रहता हैI ऐसे में भूख से परेशान गाँव के गरीबों की बदतर हालत को लेकर ग्रामीण गरीबों के भोजन-अभियान और मनारेगा इत्यादि ज़रूरी सवालों पर निरंतर ज़मीनी स्तर पर सक्रिय रहनेवाले जाने माने अर्थशास्त्री व सामाजिक ज्यां द्रेज़ को राज्यपाल के भवन के समक्ष जनसुनवाई लगाकर उनसे सरकार पर दबाव डालने की अपील करनी पड़ रही हैI
ज्यां द्रेज़ जी ने मीडिया को जारी विशेष पत्र के माध्यम से सरकार पर राज्य में हो रही भूख से लगातार मौतों के प्रति असंवेदनशील होने का आरोप लगाया हैI साथ ही ज़मीनी अध्ययन आधारित आंकड़ा पेश कर कहा है कि वर्तमान शासन के चार वर्षों में अबतक 56 लोग किसी न किसी रूप में भूख से मर गए हैंI जिनमें से 42 मौतें तो 2017 – 18 में ही हुईं हैंI अधिकांश मौतें समय पर गरीबी – पेंशन व जनवितरण प्रणाली से राशन नहीं मिलने के कारण हुईं हैंI 25 से अधिक मौतों के लिए ‘आधार कार्ड’ मुख्य कारण रहा तो बाकी मौत राशन कार्ड व पेंशन सूचि में नाम नहीं होने से राशन का अनाज नहीं मिलने से हो गयीI भूखमरी के शिकार अधिकांश लोग वंचित समुदायों के ऐसे आदिवासी, दलित और मुसलमान हैं, जिनके लिए ‘चुनावी समय’ छोड़कर कोई उनके घर नहीं फटकताI द्रेज़ जी ने क्षोभ के साथ यह भी कहा कि – एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र के शासन में भूख से मौत एक बड़ी खबर होनी चाहिएI भूख से हो रही मौतों को रोकने के लिए सरकार व प्रशासन में इस पर गंभीर चर्चा और सक्रियता होनी चाहिएI वहीं विपक्ष और सामाजिक संगठनों सरकार पर कार्यवाही करने के लिए विशेष दबाव डालना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो सकाI
ज्ञात हो कि पिछले वर्ष 28 सितम्बर के दिन प्रदेश के सिमडेगा जिला स्थित जलडेगा प्रखंड के कारीमाटी गाँव में 5 वें क्लास में पढ़नेवाली 11 साल की संतोषी ‘भात–भात’ कहते हुए भूख से मर गयी थीI तब हर तरफ दशहरे की धूम थी, लेकिन संतोषी के घर में अन्न का एक दाना तक नहीं होने से उसका पूरा परिवार चार दिनों से भूखा थाI गाँव के स्कूल में मिलनेवाले मध्यान भोजन से सबका काम चल रहा था और छुट्टी के कारण उस स्कूल के बंद होने से वह भी नहीं मिल रहा थाI संतोषी की माँ राशन दुकानदार से लेकर सबके यहाँ अनाज के लिए गीड़गिड़ायी मगर कहीं से अनाज नहीं मिलाI भूख से बेहोश संतोषी को उसकी माँ ने स्थानीय डाक्टर को दिखलाया तो उसने खाना देने की सलाह देकर पल्ला झाड़ लियाI अंत में संतोषी माँ से ‘भात–भात’ मांगते हुए चल बसीI कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को जब इसकी सूचना मिली और उन्होंने घटना की खबर राज्य के प्रमुख अखबारों को दी तो सभी ने दुर्गा पूजा का हवाला देकर इसे दबा दियाI दिल्ली स्थित सोशल बेवसाईटों में जब ये खबर चली और संतोषी की मौत राष्ट्रीय खबर बन गयी तब सरकार और प्रशासन हरकत में आयाI आनन्-फानन करवायी डाक्टरी जांच में संतोषी की मौत की वजह बीमारी बतायी गयी और इस मौत को मुद्दा बनाने वालों पर सरकार की छवि बदनाम करने का आरोप लगाकर आपराधिक मुकदमा करने की धमकी दी गयीI इस मौत के पहले 16 सितम्बर को घाटशिला के धूमलगढ़ प्रखंड के छौड़िया गाँव में विलुप्त हो रही आदिम जनजाति के 40 वर्षीय चाम्टू सबर भी भूख से मर गयाI जर्जर इंदिरा आवास में रह रहे उस गरीब के भी घर में 4–5 दिनों से अनाज नहीं थाI इस घटना में भी मौत की वजह स्थानीय बीडीओ शालिनी खलखो ने टीबी की बीमारी बतायीI इसके बाद भी राज्य में भूख से कई और मौतें हुईं और उसमें भी मौत की वजह बीमारी बताकर रफा–दफा कर दिया गयाI इसी साल 27 जुलाई को रामगढ़ जिला के नवाडीह गाँव के 40 वर्षीय राजेन्द्र बिरहोर की मौत भूख से हो गयीI उसे भी राशन कार्ड और आधार नहीं मिला थाI इसकी आवाज़ उठाने पर सरकार ने मौत पर सियासत करके सरकार को बदनाम नहीं करने की नसीहत ही दीI
हैरत की बात ये है यहाँ आनेवाले देश के प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों से लेकर बड़े-बड़े आला अफसरों में से किसी ने भी इस मुद्दे पर कोई संज्ञान नहीं लियाI अपने बारे में पूरे राज्य में बड़े–बड़े होर्डिंग्स लगाकर-- विकास की रफ़्तार है, ये...रघुवर सरकार है!...का प्रचार करनेवाली राज्य की सरकार ने भी अब तक भूख से होनेवाली मौतों को रोकने के लिए कोई कारगर योजना बनाने, गरीबों के रद्द किये गए राशन कार्ड बनवाने, जन वितरण प्रणाली में आधार कार्ड को अनिवार्य बनाकर बायोमैट्रिक प्रणाली हटाकर सभी गरीबों को आसानी से राशन देने जैसे बेहद ज़रूरी कामों को करने की कारगर व्यवस्था नहीं बना सकी हैI ऐसे में भूख से मौत को रोकने और गरीबों को आसानी से राशन देने जैसे गरीबों के बुनियादी सवालों पर सरकार पर दबाव के लिए जन अभियान की सक्रियताएं जो जारी हैं, क्या प्रभाव डालती हैं, समय के तक़ाज़े पर हैंI
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