झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध
भूमि अधिग्रहण बिल में राज्य सरकार द्वारा किये गये संशोधन के विरोध में 5 जुलाई को विपक्ष ने झारखंड बंद का आह्वान दिया। इसमें विपक्षी पार्टीयों के साथ-साथ सामाजिक संगठन भी शामिल थे। विपक्ष ने इस बंद को सफल बनाने के लिए बंद से एक दिन पहले राज्यभर में मशाल जुलूस भी निकाला। प्रशासन ने इस बंद में शामिल हुए नेताओं समेत राज्यभर के 18,973 लोगों को गिरफ्तार किया। हालांकि, उन्हें शाम तक छोड़ दिया गया।
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इस बिल में संशोधन को लेकर लोगों में कितना रोष है वह इसी से ज़ाहिर होता है कि पूरे राज्य के लोगों, सामाजिक संगठनों, गाँव व शहरी क्षेत्रों और व्यापारियों ने भाग लिया। साथ ही दूकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठान समेत निजी स्कूल, कॉलेज इत्यादि भी बंद रहे।
झारखण्ड की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पिछले साल ‘‘भूमि अर्जन पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापना में उचित प्रतिकार पारदर्शिता का अधिकार, झारखंड संशोधन विधेयक’’ पारित किया। इसका विरोध विपक्षी दल उसी समय से कर रहे हैं। इसके बावजूद राष्ट्रपति ने इस पर अपनी मुहर लगा दी। इसीलिए इस जन-विरोधी संशोधन के खिलाफ विपक्ष ने संयुक्त होकर सड़क पर उतरने का फैसला कियाI
दरअसल, भूमि अधिग्रहण के संबंध में देश में भूमि अधिग्रहण बिल-1894 कानून लागू था। यूपीए-II की सरकार के कार्यकाल के दौरान 2013 में इसमें संशोधन का प्रस्ताव दिया गया, जिसे भाजपा के नेत्तृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2015 में पास किया। यह पहली बार था जब इतना बड़ा संशोधन भूमि अधिग्रहण के कानून में किया गया।
भूमि अधिग्रहण बिल-1894 में भूमि के अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत आबादी से अनुमति लेने की आवश्यकता थी। जिसे 2015 के संशोधन में भाजपा सरकार ने समाज के प्रतिनिधियों की अनुमति तक सीमित कर दिया।
पूराने बिल में यह प्रावधान भी था कि जिस मकसद से भूमि का सरकार ने अधिग्रहण किया है, अगर पाँच साल तक वह काम शुरू नहीं होता है तो जिसकी ज़मीन थी उसे ही वापस लौटा दी जाएगी।
इस बिल में भूमी अधिग्रहण के लिए सरकार को इसके सामाजिक प्रभाव के आँकलन करवाना भी ज़रूरी था।
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झारखण्ड सरकार के प्रस्तावित संशोधित बिल में इन सभी प्रावधानों को हटा दिया गया हैI साथ ही यह प्रावधान जोड़ा गया है कि अगर यूनिवर्सिटी, कॉलेज, स्कूल, आंगनवाड़ी केंद्र, अस्पताल, पंचायत भवन, जलापूर्ति लाइन, रेल, सड़क, अफोर्डेबल हाउसिंग, जलमार्ग, विद्युतीकरण और सरकारी भवन निर्माण के लिए ज़मीन सामाजिक प्रभाव के आँकलन का अध्ययन किये बिना ली जा सकती है।
इस बिल में भूमी अधिग्रहण के लिए सरकार को सामाजिक प्रभाव यानी कि सोशल व इन्वायरमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट के अनुपालन को भी प्रदेश की सरकार ने खत्म कर दिया।
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झारखंड राज्य में कई क्षेत्र संविधान की पाँचवी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं। इन क्षेत्रों में ग्रामसभाओं की भूमिका अहम होती हैI प्रस्तावित बिल में भूमि अधिग्रहण के दौरान ग्रामसभाओं के अधिकार को भी हटा दिया गया है, जिससे जनता में असंतोष बढ़ना वाजिब है।
मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, झारखंड के राज्य सचिव मंडल सदस्य प्रकाश विप्लव ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि शहर से लेकर गाँव तक के प्रत्येक व्यक्तियों में इस बिल के खिलाफ गुस्सा है। इस संशोधन के खिलाफ हुए आंदोलन में अभूतपूर्व सफलता मिली है। झारखंड बंद पूरी तरह सफल रहा है। सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि आखिर क्यों व्यापारियों से लेकर शहर वासियों ने भी बिल के विरोध में शामिल हो कर अपना विरोध दर्ज करवाया।
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