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क्रांतिकारी चे ग्वेरा को याद करते हुए

“हमेशा इस लायक बनने की कोशिश करो कि दुनिया में कहीं भी किसी के भी साथ अन्याय हो, तो तुम उसे अपने दिल में कहीं गहरे महसूस कर सको। यह सबसे खूबसूरत गुण है, जो एक क्रांतिकारी के पास होना चाहिए।”
 चे ग्वेरा
विजय प्रसाद

आज ही के दिन 9 अक्तूबर 1967 को, दक्षिणी बोलिविया में, ला हिगुएरा के बंजर और उजाड़ गाँव के निकट बोलिविया की सेना ने अमेरिकी सरकार के इशारे पर अर्नेस्तो 'चे' ग्वेरा की नेतृत्व वाली गुरिल्ला टुकड़ी को पकड़ लिया। 1959 की क्यूबा क्रांति के नायकों में से एक चे ग्वेरा का मानना था कि अमेरिका से महज 90 मील की दूरी पर स्थित क्यूबा तब तक असुरक्षित रहेगा जब तक दुनिया के अन्य हिस्सों में क्रांतियाँ सफल न हो जाएँ। वियतनाम पर अमेरिका द्वारा की गई बमबारी पर ग्वेरा ने कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी। चे का कहना था कि सिर्फ वियतनाम की हिफ़ाज़त करना ही काफी नहीं है, जरूरी यह है कि ‘हम दुनिया में दो, तीन कई वियतनाम बना दें।’

कांगो में क्रांति कर पाने में असफल होने पर चे ग्वेरा बोलिविया गए, जहाँ सेना ने उन्हें पकड़ लिया। पकड़े जाने के बाद चे को एक स्कूल की इमारत में ले जाया गया। मारियो तेरान सलाज़ार नामक एक सैनिक को चे ग्वेरा की हत्या का आदेश दिया गया। चे ने जब मारियो को काँपते हुए देखा, तो उससे कहा, “शांत हो जाओ और एक बढ़िया निशाना लो। तुम एक आदमी को मारने जा रहे हो।”
चे ग्वेरा (1928-1967) एक ‘आदमी’ से एक मिथक बन गए। अर्जेंटिना के इस डॉक्टर की ज़िंदगी से, जो आगे एक क्रांतिकारी बना, प्रभावित न हो पाना लगभग असंभव है।

यथार्थ का सामना और रैडिकल राजनीति की ओर झुकाव 

क्रांतिकारी विचारों से चे का परिचय उनके अपने जीवन के अनुभवों से हुआ। मसलन, वेनेजुएला में कुष्ठरोगियों और बोलिविया में टीन के खदानों में काम करने वाले श्रमिकों के बीच काम करते हुए, अर्जेंटिना के क्रांतिकारियों के साथ रहते हुए और 1954 का ग्वाटेमाला का तख़्तापलट। यथार्थ से हुए इस साबके ने चे को रैडिकल बनाया। बाद में, एक जगह चे ग्वेरा ने कहा कि वह ‘सान कार्लोस के सिद्धांतों’ से गहरे प्रभावित रहे। चे की अपनी भाषा में ‘सान कार्लोस’ का मतलब कार्ल मार्क्स से था।

1953 में चे ग्वेरा पेरू की क्रांतिकारी हिल्डा गेडिया से मिले। हिल्डा क्रांतिकारी संगठन अमेरिकन पॉपुलर रिवल्यूशनरी एलायंस (एपीआरए) की सदस्य थीं। हिल्डा ने ही चे का परिचय मार्क्सवादी सिद्धांतों और उन रैडिकल विचारों से कराया, जो उस समय लातिन अमेरिका में प्रभावशाली थे। 1954 में वे दोनों ग्वाटेमाला गए, जहाँ उस वक़्त अमेरिकी सरकार और अमेरिकी कंपनियों के विरुद्ध एक जोरदार संघर्ष चल रहा था। ग्वाटेमाला में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई जैकबो आरबेंज की सरकार ने कुछ मूलभूत भूमि सुधार किए थे। ये सुधार यूनाइटेड फ्रूट कंपनी को बिलकुल रास नहीं आए। ग्वाटेमाला के प्रशासन में इस कारपोरेशन की भूमिका और इसके दखल ने ग्वेरा को चौंकाया। 
इसी दौरान चे ग्वेरा ने अपनी रिश्तेदार बीट्रीज़ को लिखा, “मैंने उस जमीन को देखा है जिस पर यूनाइटेड फ्रूट कंपनी का स्वामित्व है, और इसने पूंजीवादी ऑक्टोपसों की दुष्टता के बारे में मेरे विचार को और पुख्ता किया है। मैंने कॉमरेड स्तालिन की तस्वीर के सामने यह कसम ली है कि मैं तब तक चैन से नहीं बैठूँगा, जब तक मैं इन पूंजीवादी ऑक्टोपसों का सफाया न कर दूँ! ग्वाटेमाला में रहते हुए मैं एक सच्चा क्रांतिकारी बनूँगा।”

जब अमेरिका ने ग्वाटेमाला में आरबेंज सरकार की तख्तापलट की कार्रवाई शुरू की तो विरोध में चे ग्वेरा अपने साथियों के साथ सड़क पर उतरे। पर आखिरकार चे और हिल्डा गेडिया को ग्वाटेमाला से मेक्सिको भागना पड़ा। हिल्डा की कोशिशों से यहीं उनकी मुलाक़ात पहले राउल कास्त्रो और फिर फिडेल कास्त्रो से हुई। कुछ ही समय बाद, कास्त्रो भाइयों के साथ चे भी उस जर्जर नाव “ग्रैनमा” में सवार थे, जो 79 क्रांतिकारियों को क्यूबा ले जा रही थी। यह नाव जब क्यूबा में पहुँची, तो सेना ने उनमें से 70 क्रांतिकारियों को मार डाला। जो बच गए, वे क्यूबा के अंदर के इलाकों में चले गए। इन लोगों ने अपनी दृढ़ता और संगठन की शक्ति के बल पर क्यूबा में किसानों की वह सेना खड़ी की, जिसने आखिरकार 1959 में अमेरिका द्वारा समर्थित तानाशाह फुलजेंसियो बतिस्ता को मात दी।

क्यूबा के वे साल 

इन युवा क्रांतिकारियों को क्यूबा के रूप में एक दिवालिया देश मिला। बतिस्ता ने क्यूबा से 42.4 करोड़ डॉलर अमेरिकी बैंकों में जमा कर दिये थे। देश को कहीं से ऋण भी नहीं मिल रहा था। इन्हीं हालातों में, देर रात हो रही एक बैठक में फिडेल कास्त्रो ने पूछा था कि ‘क्या हमारे बीच कोई इकॉनोमिस्ट है?’ जवाब में चे ने अपना हाथ उठाया। इस तरह चे ग्वेरा को आर्थिक मामलों का प्रमुख बना दिया गया। बाद में, जब फिडेल ने चे से पूछा कि अर्थशास्त्र में उनकी क्या योग्यता है तो चे ने कहा कि उन्हें लगा कि फिडेल ने पूछा था कि “क्या हमारे बीच कोई कम्युनिस्ट है”।

हालांकि ग्वेरा ने इस नई ज़िम्मेदारी को बखूबी संभाला। अमेरिका ने 1962 में क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे थे, जिससे क्यूबा बुरी स्थिति में था। उरुग्वे के प्रसिद्ध पत्रकार एदुआर्दो गेलियानो ने 1964 में चे का साक्षात्कार लिया। जिसमें चे ने कहा कि “मैं नहीं चाहता कि हर क्यूबाई यह सोचे कि वह रॉकफेलर है।” चे एक ऐसा समाजवाद विकसित करना चाहते थे, जो “लोगों को स्वार्थपरता, लालच और प्रतिस्पर्धा से दूर रखे”। ये कठिन काम था, और क्यूबा के आर्थिक संसाधनों और वहाँ की जनसंख्या को देखते हुए तो और भी मुश्किल। इसके बावजूद क्यूबा के लोगों ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ अपनी मेहनत से सीमित संसाधनों में देश का पुनर्निर्माण किया।

ग्वेरा ने गेलियानो से यह भी कहा कि “क्यूबा कभी समाजवाद का शोपीस बनकर नहीं रहेगा, बल्कि यह समाजवाद का एक जीता-जागता उदाहरण होगा।” अपनी गरीबी की वजह से भले क्यूबा जन्नत न बन सके पर अपने लोगों के लिए और दुनिया भर के लिए क्यूबा के पास प्यार होगा। ग्वेरा के लिए, प्यार सब कुछ था, समाजवाद के उनके विचारों का एक प्रमुख सूत्र। बोलिविया जाते हुए अपने पाँच बच्चों को लिखे एक खत में चे ने लिखा था: “हमेशा इस लायक बनने की कोशिश करो कि दुनिया में कहीं भी किसी के भी साथ अन्याय हो, तो तुम उसे अपने दिल में कहीं गहरे महसूस कर सको। यह सबसे खूबसूरत गुण है, जो एक क्रांतिकारी के पास होना चाहिए।”

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