कर्नाटक हिजाब विवाद : हाईकोर्ट ने बड़ी बेंच को भेजा केस, सियासत हुई और तेज़
"अगर किसी ने हिजाब थोपा तो हिजाब के खिलाफ हूं। मगर किसी ने हिजाब नोंचा तो हिजाब के साथ हूं।"
ये लाइनें बीते कई दिनों से सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई हैं। कर्नाटक हिजाब विवाद शिक्षा की आपदा में राजनीति का अवसर बनता जा रहा है, जिसकी गूंज चुनावी राज्यों से लेकर देश-विदेश हर जगह सुनाई दे रही है। मंगलवार, 8 फरवरी को कर्नाटक में हिजाब पहनने के मामले ने हिंसक मोड़ ले लिया। हालांकि पथराव और नारेबाजी की कुछ घटनाओं के बाद पुलिस ने हालात काबू कर लिए, लेकिन बिगड़ते हालात को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने सभी हाईस्कूल और कॉलजों को तीन दिन के लिए बंद करने का फ़ैसला ले लिया। अब सभी की नज़र हाई कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई है।
बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट उन छात्राओं की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिन्होंने हिजाब पर रोक को चुनौती दी है। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कैंपस के बाहर और भीतर की हिंसा पर चिंता जताते हुए लोगों से अमन-चैन बनाए रखने की अपील की। जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने कहा कि सारी भावनाएं को बाहर रखें। हम इस मामले में संविधान के आधार पर फैसला करेंगे। संविधान हमारे लिए भगवद् गीता है।
दरअसल, मंगलवार को कर्नाटक के दो अलग-अलग कॉलेजों में हुई घटनाओं के विवाद ने तूल पकड़ लिया। सड़क से लेकर सोशल मीडिया और फिर संसद तक में इस मामले पर खूब बहस-बाजी और वॉकऑउट हुआ। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक दो समूहों के बीच इस बंटवारे वाली तक़रार में राज्य के दो स्कूलों के दो अलग-अलग पक्षों का चेहरा दिखाया, जो शिक्षा के लिहाज से भयावह नज़र आता है।
हिजाब बनाम भगवा गमछा-पाटा
कर्नाटक के मांड्या में एक हिजाब पहनने वाली छात्रा के ख़िलाफ़ भगवा गमछा-पाटा ओढ़े और उग्र नारेबाज़ी करता समूह एक लड़की का पीछा करता है, बदले में वो अकेली लड़की अपने पूरे दम से इस भीड़ का सामना करती है। ये लड़की मंड्या के पीईएस कॉलेज में बी.कॉम दूसरे साल की छात्रा मुस्कान है, जिसका कहना है कि उसे अपने सहपाठियों और कॉलेज के प्रिंसिपल का समर्थन मिला। ये वीडियो और तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल है। मुस्कान ने जिस तरह से अपने ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करती हुई भीड़ का सामना किया उसने उसे आत्मरक्षा का एक चेहरा बना दिया।
वीडियो में नज़र आ रही घटना वाले दिन पर बात करते हुए मुस्कान कहती हैं, '' मैं असाइनमेंट जमा करने जा रही थी, मेरे कॉलेज में घुसने से पहले ही कुछ मुसलमान छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण परेशान किया गया था, वो रो रही थीं। मैं यहां पढ़ने आती हूं, मेरा कॉलेज मुझे ये कपड़े पहनने की इजाज़त देता है। भीड़ में सिर्फ़ 10 फ़ीसदी छात्र मेरे कॉलेज के लोग थे, बाकी सब बाहरी लोग थे। जिस तरह से वे बर्ताव कर रहे थे उसने मुझे परेशान किया और मैंने उसका जवाब दिया।''
वहीं दूसरी घटना कर्नाटक के शहर उडुपी की है, जहां महात्मा गांधी मेमोरियल कॉलेज में लड़के और लड़कियों का समूह भगवा गमछों के साथ नारेबाज़ी करते हुए कॉलेज के कैंपस में घूम रहा था, ये नारेबाज़ी हिजाब पहनने वाली छात्राओं के लिए थी। हिजाब पहनने वाली लड़कियों के ख़िलाफ़ भगवा गमछा पहनने वाले लोगों के उग्र प्रदर्शन के कारण एक कॉलेज प्रशासन ने सभी छात्रों को जल्द कैंपस खाली करने का आदेश दे दिया।
तमिलनाडु और पुदुचेरी तक पहुंचा विवाद
इससे पहले सुबह ही दावणगेरे, हरिहर और शिवमोगा जिले में छात्रों और उपद्रवी तत्वों ने पुलिस पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। टकराव तब शुरू हुआ, जब सुबह हिजाब पहन कर अपने-अपने कॉलेजों में जा रही लड़कियों को कुछ छात्र रोकने की कोशिश कर रहे थे। शिवमोगा, बनहट्टी और बगलकोट (उत्तरी कर्नाटक ) में दोनों ओर से झड़प हुई। एक वीडियो में एक छात्रा के अभिभावक भी पत्थर फेंकते नज़र आए। उत्तेजना तब फैली जब छात्राओं को हिजाब पहनने की वजह से कॉलेज के बाहर रोक दिया गया। हिंसा और झड़प के मामले सामने आने के बाद राज्य सरकार ने स्कूल-कॉलेजों को तीन दिन बंद रखने का आदेश दिया है। शिवमोगा में पुलिस ने धारा 144 लगा दी। ये विवाद तमिलनाडु और पुदुचेरी के कुछ इलाकों तक भी फैल गया है।
मालूम हो कि कर्नाटक का हिजाब विवाद अब दिल्ली विश्वविद्यालय तक भी पहुंच गया है। मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में आर्ट्स फैकल्टी के पास दर्जनों की संख्या में छात्रों ने हिजाब मामले को लेकर प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन की ओर से हिजाब पहनने वाली लड़कियों के समर्थन में किया गया।
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन आइसा द्वारा भी इस संबंध में 10 फरवरी को दिल्ली के कर्नाटक भवन पर मुस्लिम छात्राओं की शिक्षा के समर्थन में एक प्रदर्शन का आयोजन किया गया है।
अदालत ने क्या कहा?
कर्नाटक हाई कोर्ट में सुनवाई हिंसा और झड़प की खबरों के बीच शुरू हुई। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि मैंने जज बनने के लिए संविधान की शपथ ली है, इसलिए जज्बातों को परे रखिए।
अदालत में हिजाब पर रोक को चुनौती देने वाली छात्राओं की ओर से दलील देते हुए उनके वकील देवदत्त कामथ ने कहा कि सरकार के आदेश में कुछ अदालती फैसलों को हवाला देकर छात्राओं को हिजाब पहनने से रोक दिया गया। लेकिन पवित्र कुरान में इसे जरूरी रवायत बताया गया है। हम क्या पहनें इसका अधिकार हमें अनुच्छेद 19 (1) देता है। लेकिन इस अधिकार पर सिर्फ अनुच्छेद ( 6) के जरिये ही रोक लग सकती है। सरकार ने जिन अदालती फैसलों का हवाला दिया है, वे इस मामले में लागू नहीं हो सकते।
इसके जवाब में कर्नाटक सरकार के वकील यानी एडवोकेट जनरल ने भी कई तर्क रखे। उन्होंने कहा कि यूनिफ़ॉर्म तय करने में शैक्षणिक संस्थाओं की ऑटोनोमी है। इसमें सरकार का क्या लेना देना है। कानून के मामले में असली सवाल तो ये है कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत आता भी है या नहीं।
हिजाब या बिना हिजाब कैसे मिलेगी शिक्षा?
फिलहाल मामले को सुनवाई के लिए बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया है और सभी की निगाहें कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई हैं। लेकिन इस बीच यूपी के चुनाव में हिजाब का असर दिखने लगा है। नेताओं के बयान सामने आने लगे हैं और हिजाब पर जमकर राजनीति होने लगी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी बरकार है कि क्या हिजाब या बिना हिजाब देश का कोई भी शिक्षण संस्थान किसी को शिक्षा से वंचित कर सकता है?
एआईएमआईएम प्रमुख एवं हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने छात्राओं का समर्थन करते हुए कहा, ''कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं ने हिंदुत्व की भीड़ के अत्यधिक उकसावे के बावजूद काफी साहस का प्रदर्शन किया है।''
उत्तर प्रदेश के संभल में एक चुनावी सभा के दौरान ओवैसी ने कहा, "मैं दुआ करता हूं कि कर्नाटक में हिजाब पहनने के अधिकार के लिए लड़ने वाली बहनें कामयाब हों। कर्नाटक में संविधान का मखौल उड़ाया जा रहा है। मैं बीजेपी सरकार के इस फैसले की निंदा करता हूं।"
वहीं, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जा रही है। तो वहीं नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत 'आम बात हो गयी है और अब विविधता का सम्मान नहीं' रह गया है।
कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने विवाद पर कहा, "मंडया में स्टूडेंट अल्ला-हू-अकबर के नारे लगाने वाली लड़की का घेराव नहीं करना चाहते थे। जब वह नारे लगा रही थी, उस समय लड़की के आसपास कोई नहीं था। ऐसे में उसे किसने उकसाया? हम कॉलेज में 'अल्ला-हू-अकबर' और 'जय श्री राम' के नारों को बढ़ावा नहीं दे सकते।"
उत्तर प्रदेश में वोटिंग से ठीक एक दिन पहले प्रियंका गांधी ने 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' हैशटैग के साथ लिखा कि महिलाओं को उनका पहनावा तय करने का अधिकार संविधान में मिला है। इसे लेकर उन्हें परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
प्रियंका ने ट्वीट किया- संविधान महिलाओं को उनका पहनावा तय करने का अधिकार देता है। वे जो चाहें वह पहन सकती हैं... फिर वो बिकिनी हो या घूंघट, जीन्स हो या हिजाब.. महिलाओं को परेशान करना बंद कीजिए।
कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद पर कमल हासन ने भी चिंता जताई है। उन्होंने ट्वीट किया- कर्नाटक में जो हो रहा है, उससे अशांति फैल रही है। छात्रों के बीच धार्मिक जहर की दीवार खड़ी की जा रही है। पड़ोसी राज्य में जो हो रहा है, वह तमिलनाडु में नहीं आना चाहिए। प्रगतिशील ताकतों के ज्यादा सावधान रहने का समय आ गया है।
पढ़ाई और हिजाब के बीच चयन
उधर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और महिला अधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई ने भी ट्विटर पर लिखा, "कॉलेज हमें पढ़ाई और हिजाब के बीच चयन करने के लिए मजबूर कर रहा है। लड़कियों को उनके हिजाब में स्कूल जाने से मना करना भयावह है। कम या ज्यादा पहनने के लिए महिलाओं के प्रति नजरिया बना रहता है। भारतीय नेताओं को चाहिए कि वे मुस्लिम महिलाओं को हाशिए पर जाने से रोके।''
गौरतलब है कि हमारे पितृसत्तात्मक समाज में अक्सर पुरुष ही डिसाइड कर लेते हैं कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं। हम प्रगतिशील समाज में हिजाब, घूंघट या किसी भी धार्मिक बेड़ी का विरोध करते हैं, जो महिलाओं को गुलामी की जंजीरों में बांधती हो लेकिन सवाल जब शिक्षा का है तो ऐसे में एक धर्म दूसरे धर्म के सुधार के नाम पर अपनी अराजकता फैलाये, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता।
हिंदुओं के कलावा बांधने, बिंदी या सिंदूर लगाने पर किसी भी शिक्षण संस्थान में कोई विवाद कभी सामने नहीं आया। हमारे संविधान में हर किसी को अपने धर्म के पालन और धार्मिक प्रतीक धारण करने की इजाज़त है। शायद इसलिए सिख धर्म के अनुयायियों को पगड़ी की इजाज़त हर जगह होती है, स्कूलों से लेकर युद्ध के मैदानों तक। कहीं भी किसी भी ड्रेस कोड के साथ पगड़ी पहन ली जाती है। निश्चित ही धार्मिक ड्रेस कोड आस्था और परंपरा के अनुसार ही बनाए गए होंगे, जो कहीं न कहीं लैंगिक असमानता को और बढ़ावा ही देते हैं लेकिन आज सवाल बड़े हित का है, लड़कियों की शिक्षा का है। जो किसी भी क़ीमत पर रुकनी नहीं चाहिए।
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