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आरटीआई अधिनियम का 16वां साल: निष्क्रिय आयोग, नहीं निपटाया जा रहा बकाया काम

​​​​​​​एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 26 सूचना आयोगों में 30 जून तक 2,55,602 अपीलें और शिकायतें लम्बित थीं।
RTI

12 अक्टूबर को आरटीआई अधिनियम, 2005 के 16 साल पूरे हो गये हैं। इस क़ानून ने लाखों नागरिकों को जानकारी पाने और सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार दिया है। इस अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है: "इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार होगा।"

अधिनियम के तहत, सूचना आयोग (ICs) आख़िरी अपीलीय प्राधिकारण होते हैं और लोगों के सूचना के मौलिक अधिकार की सुरक्षा और सुविधा के लिए ये अनिवार्य हैं। इन सूचना आयोगों की स्थापना केंद्रीय स्तर (केंद्रीय सूचना आयोग) और राज्यों के स्तर(राज्य सूचना आयोग) पर की गयी है।

सरकार में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने को लेकर काम कर रहे एक नागरिक समूह- सतर्क नागरिक संगठन की ओर से तैयार की गयी 'भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड, 2021' नामक रिपोर्ट में भारत के सभी 29 आयोगों के प्रदर्शन की जांच-पड़ताल की गयी है। इसमें आयोगों की ओर से पंजीकृत और निपटायी गयी अपीलों और शिकायतों की संख्या, लम्बित मामलों की संख्या,हर एक आयोग में दायर अपील/शिकायत के निपटान के लिए अनुमानित इंतज़ार का समय, आयोगों की ओर से दंडित मामलों के अतिक्रमण की आवृत्ति और पारदर्शिता के सिलसिले में उनके काम शामिल हैं।

इस रिपोर्ट में कहा गया है, "महामारी ने स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज़ से अस्पताल के बिस्तरों, ज़रूरी दवाओं और वेंटिलेटर जैसे चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता पर सटीक और आसानी से उपलब्ध जानकारी की तत्काल ज़रूरत पर रौशनी डाली है। इन हालात ने सरकारों की तरफ़ से घोषित राहत उपायों और जहां जनता का पैसा महामारी से निपटने के प्रयासों में ख़र्च किया जा रहा है, उनसे जुड़ी सूचना के प्रसार की अहमियत को रेखांकित किया गया है।”  

इस रिपोर्ट में पाया गया कि कई सूचना आयोग निष्क्रिय थे या फिर बहुत ही कम कर्मचारियों  के साथ काम कर रहे थे क्योंकि मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) सहित आयुक्तों के पद उस अवधि के दौरान ख़ाली पड़े थे, जिस दौरान पड़ताल की जा रही थी।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है, "ख़ास तौर पर कोविड-19 महामारी से पैदा होने वाले उस मानवीय संकट को देखते हुए सूचना की ज़रूरत है, जिसने लोगों और विशेष रूप से ग़रीबों और हाशिये पर पड़े लोगों को स्वास्थ्य देखभाल, भोजन और सामाजिक सुरक्षा जैसी ज़रूरी वस्तुओं और सेवाओं के सरकारी प्रावधान पर और भी ज़्यादा निर्भर बना दिया है।”

 इस समूह का कहना था कि प्रासंगिक जानकारी तक पहुंच के बिना नागरिक अपने अधिकार और हक़दारी को हासिल करने में असमर्थ हो गये हैं और भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है।

जिस दौरान जांच-पड़ताल की जा रही थी, उस अवधि में चार सूचना आयोग- झारखंड, त्रिपुरा, मेघालय और गोवा कई बार निष्क्रिय इसलिए पाये गये थे क्योंकि वहां आयुक्तों के पद ख़ाली थे। इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक तीन आयोग निष्क्रिय थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सक्रिय आयोगों की कमी से आरटीआई आवेदक सूचना तक पहुंच पाने में असमर्थ हैं। झारखंड में राज्य आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त ने नवंबर 2019 में ही इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद, अधिनियम में ऐसा कोई साफ़-साफ़ प्रावधान नहीं होने की वजह से एकमात्र सूचना आयुक्त को ही कार्यवाहक मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया गया था।

8 मई, 2020 को आयुक्त का कार्यकाल पूरा होने के बाद से सूचना आयोग बिना किसी आयुक्त के रहा है और जैसा कि रिपोर्ट में पाया गया है कि इस स्थिति से प्रभावी रूप से सूचना आयोग निष्क्रिय बना हुआ है। पिछले 18 महीनों से झारखंड राज्य सूचना आयोग के अधिकार क्षेत्र के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी मांगने वाले लोगों को इस अधिनियम के तहत निर्धारित स्वतंत्र अपीलीय तंत्र का कोई सहारा नहीं मिला है, लिहाज़ा उनके सूचना के अधिकार का अतिक्रमण हुआ है या अतिक्रमण किया जा रहा है।

त्रिपुरा में भी सूचना आयोग 13 जुलाई को तब निष्क्रिय हो गया था, जब यहां का एकमात्र आयुक्त, जो प्रमुख भी था, उसका कार्यकाल ख़त्म हो गया था। अप्रैल 2019 के बाद से यह तीसरी मर्तबा है, जब यह आयोग निष्क्रिय हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ इसे अप्रैल 2019 से सितंबर 2019 तक और फिर अप्रैल 2020 से जुलाई 2020 तक बंद कर दिया गया था।

इसी तरह, मेघालय में भी सूचना आयोग 28 फ़रवरी को तब निष्क्रिय हो गया था, जब इसका एकमात्र आयुक्त, जो प्रमुख भी था, उसने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था। पिछले सात महीने से सरकार ने यहां एक भी नियुक्ति नहीं की है। इसी तरह, गोवा का सूचना आयोग एक महीने से ज़्यादा समय से निष्क्रिय था, जब वहां का एकमात्र आयुक्त, जो प्रमुख के रूप में भी कार्य कर रहा था, उसने 31 दिसंबर, 2020 को अपना कार्यकाल पूरा कर दिया था।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि इन सूचना आयोगों के पास बड़ी संख्या में शिकायतें लम्बित हैं। जिन 26 सूचना आयोगों से आंकड़े हासिल हुए थे, उनमें 30 जून को लम्बित अपीलों और शिकायतों की संख्या 2,55,602 थी। सूचना आयोगों में बिना निपटाये अपीलों/शिकायतों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। 2019 के आकलन में पाया गया कि 31 मार्च, 2019 तक सूचना आयोगों में 2,18,347 अपीलें/शिकायतें लम्बित थीं।

सूचना आयोगों में बिना निपटाये गये मामलों और उनके निपटान की मासिक दर के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए इस रिपोर्ट ने 1 जुलाई को एक सूचना आयोग के पास दायर एक अपील/शिकायत के निपटारे में लगने वाले समय की गणना की ((यह मानते हुए कि अपीलों और शिकायतों का तारीख़वार निपटारा किया जाता है)।

ओडिशा राज्य सूचना आयोग को अपने मामले को निपटाने में छह साल आठ महीने लगेंगे। 1 जुलाई को दायर मामले का निपटारा अगर मौजूदा मासिक दर से किया जाता है,तो इनका निपटान 2028 में किया जा सकेगा। इस लिहाज़ से गोवा राज्य सूचना आयोग को पांच साल और 11 महीने, केरल को चार साल और 10 महीने और पश्चिम बंगाल को चार साल सात महीने लगेंगे।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जनता के पैसे से वित्त पोषित राहत और कल्याण कार्यक्रम उन लाखों लोगों की एकमात्र जीवन रेखा हैं, जिनके हाथों से लॉकडाउन के बाद अचानक अपनी आय पाने के मौक़े निकल गये हैं। "अगर सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल से प्रभावित ग़रीबों और हाशिये पर पड़े लोगों को सरकारी योजनाओं को फ़ायदे उठाने की कोई उम्मीद बची है, तो उन्हें प्रासंगिक जानकारी होनी ही चाहिए।"

इस रिपोर्ट का कहना है कि सूचना आयोग की भूमिका "यह सुनिश्चित करने के लिहाज़ से अहम है कि लोग स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और संकट में पड़े लोगों के लिए ज़रूरी वस्तुओं और सेवाओं के वितरण के बारे में जानकारी हासिल कर सकें।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/16-years-RTI-act-defunct-commissions-huge-backlog

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