झारखण्ड: आदिवासियों का कहना है कि सरना की पूजा वाली भूमि पर पुलिस थाने के लिए अतिक्रमण किया गया
झारखण्ड में आदिवासियों के लिए अलग से सरना कोड के लिए प्रचण्ड आंदोलन के बीच, खूंटी क्षेत्र के तिमला के ग्रामीण आदिवासी संस्कृति एवं प्रथाओं की रक्षा के लिए एक बेहद कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं। वे पवित्र सरना स्थल की रक्षा करना चाहते हैं, जो आदिवासी इलाकों में पवित्र उपवन स्थल होते हैं जहां पूजा और पारंपरिक प्रथाओं को संचालित किया जाता है। ग्रामीणों ने पुलिस पर इस सरना स्थल पर पुलिस स्टेशन स्थापित करने के साथ-साथ उस स्थल पर उनके जाने को निषिद्ध बना देने और इस मुद्दे पर किसी भी प्रकार के विरोध को कुचलने का आरोप लगाया है।
ग्रामीणों का कहना है कि मुश्किल से 7 किलोमीटर की दूरी पर एक पुलिस स्टेशन की मौजूदगी के बावजूद पुलिस द्वारा एक नए थाने को स्थापित करना आदिवासी भूमि अधिकारों और पंचायतों के प्रावधानों (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा अधिनियम) का उल्लंघन है। यहां के निवासियों ने प्रशासन को कई दफा पत्र लिखकर अपील की है कि इस प्रयास को रोका जाना चाहिए और उन्हें उनकी पवित्र भूमि तक पहुंच प्रदान की जानी चाहिए। वर्तमान में वे चाहते हैं कि मुख्यमंत्री और यहां तक कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की ओर से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप किया जाए।
आदिवासी समुदाय ने दावा किया कि उनकी रजामंदी से भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया था। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि वहां पर पुलिस स्टेशन बनाने की कोशिशें भूमि अधिग्रहण अधिनियम एवं पेसा अधिनियम के तहत गारंटीशुदा सुरक्षा का उल्लंघन करते हैं, जो समुदायों को यह तय करने का अधिकार देता है कि गांव की जमीन पर कौन सी परियोजनाओं को अनुमति दी जानी चाहिए।
ग्रामीणों ने बताया कि विवादित जमीन एक एकड़ से कम थी और अब इसकी कंटीले तारों से घेराबंदी कर दी गई है। इसके चलते ग्रामीणों की आवाजाही ठप हो गई है। उनका यह भी दावा था कि किसी भी प्रकार के धरना प्रदर्शन के प्रयास पर अंकुश लगाया जा रहा है। इस क्षेत्र में रहने वाले मुंडा जनजाति के लिए जितना यह पुलिस द्वारा भूमि अधिग्रहण का प्रश्न है, उतना ही यह भूमि अधिकारों और स्वायत्तता का भी प्रश्न है। उनके लिए, इसमें गहरे पैठीं आदिवासी प्रथाओं और परंपराओं की रक्षा करने का मुद्दा भी शामिल है।
भूमि को लेकर विवाद
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, बा सिंह होरो ने जमीनी स्तर की स्थिति के बारे में स्पष्ट किया। उनके अनुसार पुलिस ने विवादित भूमि को अपने कब्जे में ले लिया है और उसकी कंटीले तारों से घेराबंदी भी कर ली है, जिसका अभिप्राय आदिवासियों के लिए घोर उल्लंघन के तौर पर है। बा सिंह ने कहा “प्रत्येक गांव में, ऐसे स्थल (एकनिष्ठ स्थल) होते हैं जहां पर आदवासी पूजा संपन्न की जाती है। आदिवासियों के द्वारा पांच से छह प्रकार की पूजा की जाती है, जो हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।”
पारंपरिक रीति-रिवाजों के बारे में आगे समझाते हुए, उन्होंने कहा “एक है जयार, जहां हम सरहुल के आस-पास (मार्च या अप्रैल में नए चांद के अवसर पर) पूजा करते हैं; दूसरा है जिलु जयार, होली के मौसम में शिकार के लिए जाने से ठीक पहले, एक और है गुमड़ी दामरी पूजा जिसमें हम काले बैल की पूजा करते हैं; अन्य में देवी और भुरु पूजा शामिल है। यहां पर खास बात यह है कि सरना स्थल पर अतिक्रमण की घटना हुई है, जहां ग्राम देवता (सरना पूजा) की पूजा की जाती है। हमारे लिए, ये परंपराएं महत्वपूर्ण हैं। जब एक गांव की स्थापना की जाती है तब ये पैदा होते हैं। पुलिस इसी भूमि को हड़पना चाहती है।”
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि जिले के पुलिस अधीक्षक, आसुतोष शेखर ने कहा है कि इस भूमि को प्रशासन द्वारा अधिग्रहित किया गया था और पुलिस को सौंपा गया था। उनका कहना था “जिस भूखंड पर पुलिस स्टेशन का निर्माण किया जा रहा है वहां पर सरना स्थल की कोई भूमि शामिल नहीं है। पास के भूखंड में सरना स्थल है लेकिन ग्रामीण बाड़ के भीतर अपने अनुष्ठानों को संपन्न करना चाहते हैं। इसलिए, उन्हें रोक दिया गया था।”
हालांकि, ग्रामीणों के लिए, उस भूमि में वह खुला स्थल भी शामिल है जहां पर बलि चढ़ाने की आदिवासी परंपराएं निभाई जाती रही हैं। बा सिंह ने बताया “ग्रामीण इस भूमि को हाथ से नहीं जाने देने के लिए दृढ प्रतिज्ञ हैं। इसके पीछे की एक बेहद मजबूत वजह है हमारी भूमि की रक्षा के लिए उनकी वचनबद्धता, दूसरी प्रमुख वजह उन समस्याओं का होना है जो इन रीति-रिवाजों को संपन्न नहीं किये जाने के चलते उत्पन्न होंगी। यहां पर ऐसी दृढ विश्वास परंपरा है कि सरना की पूजा करने से हमारी भूमि की रक्षा होती है। प्रशासन की ओर से इस बात का दावा किया जा रहा है कि ये आदेश जिलाधिकारी के कार्यालय द्वारा जारी किये गए हैं, लेकिन हमें इसका कोई सुबूत नहीं दिखाया जा रहा है।”
यह मुद्दा पिछले तीन वर्षों से चला आ रहा है, जिसमें पुलिस स्टेशन की संभावना को प्रस्तावित किया गया था। दिसंबर 2020 में, ग्राम सभा ने थाने के निर्माण पर अपनी सहमति देने से इंकार कर दिया था। गांव के एक निवासी, नंदराम मुंडा ने कहा “हमसे कहा गया कि इंकार की सूरत में सरकार फ़ोर्स को यहां पर लायेगी और किसी भी सूरत में थाने का निर्माण होकर रहेगा।” उन्होंने आगे बताया “फरवरी में तार-बाड़ का काम किया गया था और जो लोग इसका विरोध कर रहे थे उनके साथ दुर्व्यवहार और डराया-धमकाया गया, लाठियों का भी इस्तेमाल किया गया था।”
ग्रामीणों ने पिछले साल अक्टूबर में राज्य प्रशासन को एक पत्र लिखा था जिसमें उनके अधिकारों पर संज्ञान लेने और पुलिस द्वारा किये जा रहे अतिक्रमण पर रोक लगाने की मांग की थी। वर्तमान में, 100 से अधिक ग्रामीणों ने एक पत्र पर हस्ताक्षर कर प्रशासन से निवेदन किया है कि ग्राम सभा की जमीन पर किये जाने वाले किसी भी निर्माण कार्य से पहले अनिवार्य सहमति प्रपत्र की अनदेखी करने का प्रयास न किया जाये।
आदिवासी पहचान की रक्षा
तिलमा में चल रहे विकासक्रम को आदिवासी परंपराओं की रक्षा और उन्हें हिन्दू धर्म की जकड़ से बाहर रखे जाने की मांग के लिए लंबे समय से चले आ रहे आंदोलन के सन्दर्भ में समझने की जरूरत है। राज्य भर के आदिवासी नेताओं की लंबे समय से चली आ रही मांग के बाद, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा सरकार ने आखिरकार राज्य में आदिवासियों के लिए एक अलग सरना कोड के प्रस्ताव को पारित कर दिया है। प्रस्ताव सरना धर्म के अनुयायियों के लिए 2021 की जनगणना में विशेष कॉलम की मांग करेगा। वर्तमान में, उन्हें एक अलग ईकाई के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया गया है। आदिवासियों की कई दशकों से यह मांग रही है कि जनगणना में उनके लिए अलग से सरना कोड बने, जो उनके अनुसार उन्हें एक अलग पहचान प्रदान करने वाला साबित होगा। जनगणना में इस समुदाय के लिए अलग से एक कॉलम के बिना, उन्हें अभी तक हिन्दुओं, मुसलमानों या ईसाइयों के तौर पर वर्गीकृत किया जाता रहा है।
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https://www.newsclick.in/Jharkhand-Adivasis-Land-Sarna-Worship-Encroached-Police-Station
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