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बेहतर झारखंड के लिए आंदोलनकारियों का महाजुटान : ''उलगुलान टू'' का आह्वान 

यहां का विधान सिर्फ़ कंपनियों के लिए बना तो दूसरा उलगुलान तय है जो केंद्र के साथ साथ राज्‍य की सरकार के लिए भी महंगा साबित होगा।
Protest

प्रदेश की राजधानी रांची का राजनीतिक माहौल एक बार फिर से सरगर्म हो उठा जब झारखंडी नगाड़ों-तुरही की आवाज़ों की ताल पर- ‘भीख नहीं अधिकार चाहिए-जीने का अधिकार चाहिए, लड़े हैं और लड़ेंगे हम अपना अधिकार लेके रहेंगे, जंगल-ज़मीन-खनिज़ और रोज़गार की लूट बंद करो’ जैसे नारे लगाते हुए विधान सभा मैदान में हजारों झारखंड  आंदोलनकारी जुटे।  जो 12 अक्टूबर ‘झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा’ आहूत ‘महाजुटान’ कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रदेश के विभिन्न इलाकों से अपने पारंपरिक वेश-भूषा और तीर कमान के साथ कई कई जत्थों में पहुंचे हुए थे। 

महाजुटान कार्यक्रम में चर्चित आंदोलनकारी दयामनी बारला समेत राज्य के कई वरिष्ठ आंदोलनकारी तथा सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। जिन्होंने अपने संबोधनों में स्पष्ट रूप से कहा कि- यदि यहां का विधान सिर्फ़ कंपनियों के लिए बना तो दूसरा उलगुलान तय है जो केंद्र के साथ साथ राज्‍य की सरकार के लिए भी महंगा साबित होगा। 

कई वक्ताओं ने आक्रोशपूर्ण लहजे में यह भी कह डाला कि - यह झारखंड है कोई गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश नहीं है जो कोई हमारे सर पर पेशाब कर देगा तो हम यूं ही सह लेंगे। हमारे धैर्य की परीक्षा लेने की बजाय झारखंड की सांस्‍कृतिक पहचान और यहां की पारंपरिक-संपदा की रक्षा करने की गारंटी सरकार करे। ताकि राज्य में प्रवेश करने के साथ ही आम लोग समझ सकें कि वे बिरसा मुंडा की धरती झारखंड में हैं। जिसके लिए यह भी सुनिश्चित किया जाय कि रेलवे समेत सभी दूर संचार माध्यमों द्वारा यहां की सभी आदिवासी एवं क्षेत्रीय भाषाओँ में सूचना-प्रसार जैसे सभी कार्य किये जा सकें। प्रदेश के सभी इलाकों में झारखंड आंदोलनकारी कोरिडोर व शहीदों के स्मारक निर्मित किये जाएं। आज वृहद झारखंड की बजाय बेहतर झारखंड के लिए यहां की सरकार और जनता को पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम करने की ज़रूरत है। 

महाजुटान कार्यक्रम की शुरुआत प्रख्यात झारखंडी लोक गायक पद्मश्री मुकुंद नायक और मधु मंसूरी द्वारा प्रस्तुत झारखंडी गीत- ‘झारखंडे आवी कैसे आपन राज’ की संयुक्त प्रस्तुति तथा तमाम झारखंड आंदोलन के शहीदों व सभी विभूतियों के सम्मान में मौन श्रद्धांजलि से की गयी।

कार्यक्रम से 10 सूत्री प्रस्ताव पारित कर- झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितकरण में जेल जाने की बाध्यता ख़त्म की जाय। झारखंड प्रदेश में अविलम्ब जाति आधारित जनगणना करायी जाय व प्रेस की आज़ादी पर हमले बंद हो समेत झारखंड राज्य गठन के आंदोलनकारियों को विशेष सम्मान व सुविधाएं देने इत्यादि की मांगें की गयीं।  

सनद रहे कि राज्य गठन के उपरांत से सभी झारखंड आंदोलनकारियों चिन्हि‍तकरण कर उन्हें विशेष सम्‍मान व अधिकार दिए जाने की मांगों को लेकर सदन से सड़क तक लगातर आवाज़ें उठतीं रहीं हैं। बताया जाता है कि झारखंड आंदोलनकारियों से जुड़ी मांगों को राज्य के सभी वामदलों के साथ साथ तमाम झारखंडी राजनीतिक दल भी उठाते रहें हैं। लेकिन प्रदेश भाजपा व एनडीए गठबंधन दलों–नेताओं ने कभी भी इन मांगों के समर्थन में कोई आवाज़ नहीं उठायी है। जिसका एक बड़ा कारण यह भी है कि अधिकांश झारखंडवासियों की नज़र में इस राज्य के गठन आंदोलन में भाजपा कभी भी बढ़ चढ़कर शामिल नहीं रही है बल्कि उलटे उसने हमेशा इसके विरोध में ही काम किया है। 

देखा जाय तो झारखंड के कई सामाजिक जन संगठनों और उससे जुड़े एक्टिविस्‍टों द्वारा अक्सर इस बात की भारी एक कसक परिलक्षित होती रही है कि - वर्षों बरस के आंदोलन  की बदौलत हासिल हुए झारखंड राज्य के गठन उपरांत भी यहां के मूल निवासियों के जो सपने थे वे आज भी अधर में ही लटके हुए हैं। राज्य गठन उपरांत बननेवाली यहां की अधिकांश सरकारों ने राज्य में संविधान की पांचवी अनुसूची व पेसा-कानून जैसे विशिष्ट प्रावधानों को कभी भी दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ लागू नहीं किया है। जिससे सिद्धो-कानू से लेकर बिरसा मुंडा जैसे अनगिनत शहीद नायकों के - अबुवा दिसुम,अबुवा राज’ बनाने का चिर सपना सिर्फ सपना बनकर ही रह गया है।  

हालांकि पिछले दिनों हेमंत सोरेन सरकार द्वारा बीते अगस्त माह में राज्य में ‘पेसा कानून’ को ज़मीनी धरातल लागू करने की एक सार्थक कोशिश की गयी है। जिसके तहत सरकार द्वारा बनाये जा रहे प्रारूप के लिए 31 अगस्त तक पूरे राज्य के लोगों से आपत्तियां और सुझाव मांगे गए थे। जिसके तहत कई सामाजिक जन संगठनों और एक्टिविस्‍टों ने अपने अपने सुझाव भेजे थे। 

खबर है कि बाद में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के दिशा निर्देशों व ‘पेसा अधिकार व झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001’ के आलोक में अपना फाइनल प्रारूप राज्य की जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। हालांकि इसे लेकर भी कई संगठन और वरिष्ठ एक्टिविस्‍ट पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हैं और वे लगातार सरकार के समक्ष अपना विरोध प्रकट कर रहें हैं। 

गौरतलब है कि चंद दिनों पूर्व प्रदेश के आदिवासी-मूलवासी समुदाय के लोगों और झारखंड में सक्रिय विश्व हिन्दू परिषद्-बजरंग दल के बीच आमने सामने की टकराव-तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। जब झारखंड के प्रतीक महापुरुष बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू (खूंटी) में “श्रीराम मंदिर के अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा” के नाम पर जबरन “शौर्य जागरण रथ यात्रा” निकालने की घोषणा उक्त हिन्दू संगठनों द्वारा की गयी। जिसका तीखा विरोध करते हुए बिरसा मुंडा की जन्मस्थली समेत पूरे इलाके के गांव गांव से सैकड़ों लोग आक्रोशित होकर सड़कों पर उतर कर बिरसा मुंडा की जन्मस्थली व खूंटी समेत प्रदेश के झारखंडी सामुदायिक जीवन का “संघिकरण-हिंदूकरण” की साजिश करने का आरोप लगाकर प्रतिकार करने लगे। प्रशासन की तत्परता और दोनों संघ-संगठनों के मजबूरन पीछे हटने के कारण एक बड़ा सामाजिक हादसा होते होते बचा। 

उक्त तनावपूर्ण स्थितियों जैसी कई घटनाओं का हवाला देकर झारखंड आंदोलनकारी व अन्य सामाजिक संगठनों की ये मांग दिनों दिन तेज़ होती जा रही है कि - जिन सपनों और जन आकांक्षाओं के निमित्त इस राज्य के गठन की लड़ाई लड़ी गयी थी, उसे केंद्र में लाया जाय।   
       
 

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