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बाल श्रमः देश और समाज के लिए अभिशाप

साल 2020 में बाल श्रमिकों की संख्या विश्व भर में 160 मिलियन अर्थात 16 करोड़ तक पहुंच गई। इन बच्चों में 63 मिलियन लड़कियां और 97 मिलियन लड़के शामिल हैं।
child labour
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

बाल श्रम पूरी दुनिया के लिए एक जटिल समस्या बनी हुई है। बड़े पैमाने पर लगातार हो रही कोशिशों के बावजूद इन श्रमिकों की संख्या निरंतर बढ़ ही रही है। जिन हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए और जिनका जीवन चिंता और परेशानियों से मुक्त होना चाहिए वे अपने लिए और अपने परिवार के लिए मजदूरी करने को मजबूर हैं। ये समस्या देश और समाज के लिए अभिशाप है। गरीबी इसकी सबसे बड़ी वजह है। इसके साथ ही कोरोना महामारी ने उन बच्चों के लिए नया खतरा पैदा कर दिया है जिनके माता-पिता इसकी चपेट में आने से अपनी जान गंवा चुके हैं।

साल 2020 में बाल श्रमिकों की संख्या विश्व भर में 160 मिलियन अर्थात 16 करोड़ तक पहुंच गई। इन बच्चों में 63 मिलियन लड़कियां और 97 मिलियन लड़के शामिल हैं। इसके अलावा कोविड-19 के प्रभाव के चलते करीब 9 मिलियन बच्चों पर खतरा है। विश्व संगठन आईएलओ और यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार हर 10 में से एक बच्चा बाल श्रमिक है। बाल श्रम में शामिल बच्चों की उम्र 5 वर्ष और इससे ऊपर है। दुनिया भर में सबसे ज्यादा बाल श्रमिक कृषि क्षेत्र में लगे हुए हैं। बाल श्रमिकों में करीब एक तिहाई से अधिक बच्चे स्कूल का मुंह नहीं देख पाते हैं।

भारत की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार 10.1 मिलियन बच्चे बाल श्रमिक थें जिनमें 5.6 लड़के और 4.5 मिलियन लड़कियां थीं।

ज्ञात हो कि हर साल 12 जून को "विश्व बाल श्रम निषेध दिवस" मनाया जाता है। इसको मनाए जाने का उद्देश्य 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने और आगे बढ़ने के लिए जागरूक करना है।

भारत सरकार ने वर्ष 1979 में बाल श्रम के मुद्दे का अध्ययन करने और इससे निपटने के उपायों का सुझाव देने के लिए गुरुपदस्वामी समिति नाम की पहली समिति का गठन किया था। समिति ने समस्या की विस्तार से जांच की और कुछ सिफारिशें भी कीं। यह पाया गया कि जब तक गरीबी जारी रहेगी तब तक बाल श्रम को पूरी तरह से समाप्त करना मुश्किल होगा और इसलिए, कानूनी सहारा के माध्यम से इसे समाप्त करने का कोई भी प्रयास व्यावहारिक सुझाव नहीं होगा। इस समिति ने महसूस किया कि इन परिस्थितियों में जोखिम भरे क्षेत्रों में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने और अन्य क्षेत्रों में काम करने की स्थितियों को विनियमित करने और सुधारने का एकमात्र विकल्प बचा है। इसने सिफारिश की कि कामकाजी बच्चों की समस्याओं से निपटने के लिए कई नीतिगत दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

गुरुपदस्वामी समिति की सिफारिशों के आधार पर बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 को लागू किया गया था। इस अधिनियम के अनुसार, कुछ निर्दिष्ट खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में बच्चों के काम को प्रतिबंधित किया गया और दूसरे क्षेत्रों में काम करने की स्थिति को नियंत्रित किया गया। इस अधिनियम के तहत गठित बाल श्रम तकनीकी सलाहकार समिति की सिफारिश पर खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं की सूची का उत्तरोत्तर विस्तार किया जा रहा है। इसी क्रम में बाल श्रम (निषेध और नियमन) संशोधन अधिनियम 2016 को लागू कर वर्ष 2016 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया जिसमें सभी तरह के व्यवसाय में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के काम करने पर रोक लगाई गई और साथ ही खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में किशोरों (14-18 वर्ष) के काम पर प्रतिबंध के प्रावधानों में भी संशोधन किया गया।

उपरोक्त दृष्टिकोण के अनुरूप, 1987 में बाल श्रम पर एक राष्ट्रीय नीति तैयार की गई जो बच्चों और किशोरों के पुनर्वास पर ध्यान देने के साथ एक क्रमिक और अनुक्रमिक दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास करती है। इस समस्या से निपटने के लिए नीति में उल्लिखित कार्य योजना इस प्रकार है:

  • बाल तथा किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 के सख्त प्रवर्तन के लिए विधायी कार्य योजना।
  • बाल तथा किशोर श्रम के उच्च संकेन्द्रण वाले क्षेत्रों में परियोजना आधारित कार्य योजना- राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी)।
  • बच्चों के परिवारों के लाभ के लिए सामान्य विकास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना।

ज्ञात हो कि भारत के संविधान में मूल अधिकारों के अनुच्छेद 24 के तहत भारत में बाल श्रम पर पाबंदी लगाई गई है। इसके तहत 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक काम में नहीं लगाया जाएगा।

बता दें कि वर्ष 2016 में बाल श्रम (निषेध और नियमन) संशोधन अधिनियम में सभी तरह के व्यवसायों या उद्योगों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम करवाने को प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस विधेयक के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को परिवार से जुड़े व्यवसाय को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में काम करने पर पूरी तरह से रोक का प्रावधान किया गया है। यह नियम संगठित और असंगठित क्षेत्र दोनों पर लागू है।

इसके अलावा 14 से 18 वर्ष की उम्र के किशोरों को सेहत के लिए खतरनाक माने जाने वाले व्यवसायों या उद्योगों को छोड़ कर दूसरे कारोबार में कुछ शर्तों के साथ काम करने की छूट है। इस आयु वर्ग के किशोरों से किसी खतरनाक व्यवसाय या उद्योग में काम नहीं लिया जा सकता है। वहीं इसे शिक्षा का अधिकार, 2009 से भी जोड़ा गया है। बच्चे स्कूल के समय को छोड़कर परिवार के व्यवसाय और काम काज में परिवार की मदद कर सकते हैं।

इस विधेयक के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम लेने को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसके लिए नियोक्ताा के साथ-साथ माता-पिता को भी सजा देने का प्रावधान है। इस विधेयक में 14 से 18 वर्ष की उम्र के बीच के बच्चों को किशोर के रूप में परिभाषित किया गया है। इस आयु वर्ग के बच्चों से किसी खतरनाक उद्योग में काम नहीं कराया जा सकता है। वहीं किसी बच्चे को काम पर रखने पर कैद की अवधि छह महीने से दो साल तक बढ़ाई गयी है। पहले इस अपराध के लिए तीन महीने से एक साल तक की कैद की सज़ा का प्रावधान था। वहीं इस मामले में जुर्माना बढ़ाकर बीस हजार रुपये से पचास हजार रुपये कर दिया गया। दूसरी बार अपराध करने पर एक साल से तीन साल तक की कैद की सजा का प्रावधान है।

ध्यान रहे कि बाल श्रम को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर सरकारें और बड़ी संख्या में मौजूद गैर- सरकारी संस्थाएं काम कर रही हैं। इन सबके बावजूद कई मासूम बाल श्रम की दलदल में फंस जाते हैं और उनके जीवन में अंधकार छा जाता है। इसे रोकने के लिए समाज और सरकार के साथ-साथ गैर सरकारी संगठनों को गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है।  

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