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इस समय यूक्रेन युद्ध: हमारे इतिहास का सबसे ख़तरनाक क्षण

दो नाभिकीय निरस्त्रीकरण समझौतों को त्याग दिया जाना और जो इकलौता समझौता बचा रह गया है उसका भी निलंबित कर दिया जाना, मानवीय सभ्यता के लिए ही ख़तरा है।
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फ़ोटो साभार: Wikimedia Commons

यूक्रेन युद्ध को अब एक साल पूरा हो चुका है। दुर्भाग्य से इस युद्ध का एक दुष्परिणाम यह हुआ है कि नयी स्टार्ट (न्यू स्टार्ट) संधि भी, जो कि नाभिकीय शस्त्रों तथा मिसाइलों के नियंत्रण की आखिरी बची हुई संधि थी, अब उठाकर ताक पर रख दी गयी है। 21 फरवरी को, राष्ट्रपति पुतिन ने एलान कर दिया कि रूस ने नयी स्टार्ट (एसटीएआरटी) संधि में अपनी हिस्सेदारी को निलंबित कर दिया है। हां! इसके बावजूद वह 2026 में इस संधि के समाप्त होने के समय तक, इसके तहत नाभिकीय मिसाइलों तथा नाभिकीय बमों के लिए तय की गयी हदों का पालन करेगा। रूस ने, यूक्रेन युद्ध को रूस के खिलाफ नाटो के युद्ध में तब्दील किए जाने के जवाब में, नयी स्टार्ट संधि को निलंबित करने का यह फैसला लिया है।

ढहता शस्त्र नियंत्रण ढांचा

इससे पहले अमेरिका, दो अन्य शस्त्र नियंत्रण संधियों से खुद को अलग कर चुका था। 2002 में उसने एंटी-बैलेस्टिक मिसाइल (एबीएम) संधि से नाता तोड़ लिया था और उसके बाद 2019 में उसने इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लिअर फोर्सेज ट्रीटी (आईएनएफ) से खुद को अलग कर लिया था। मिसाइलों तथा बमों की अधिकतम संख्या की सीमा तय किए जाने को, एंटी-बैलेस्टिक मिसाइल संधि के साथ नत्थी किया गया था। इसके साथ ही यह भी व्यवस्था थी कि दोनों ही देश, नाभिकीय शस्त्रों की संख्या को घटाते हुए, मिसाइल रक्षा ढालों को खड़ा करने से बाज आएंगे। इसलिए, स्ट्रेटेजिक आर्म्स लिमिटेशन ट्रीटी (साल्ट)--जिसके उत्तराधिकारियों के रूप में स्टार्ट तथा न्यू स्टार्ट संधियां आयी थीं--पूरक के रूप में एबीएम संधि के साथ जुड़ी हुई थीं और दोनों पर साथ-साथ वार्ताएं होती रही थीं। बहरहाल, सोवियत संघ के पराभव के बाद, सबसे पहले जिस शस्त्र नियंत्रण संधि पर गाज गिरी, वह थी एबीएम संधि।

एबीएम संधि, साल्ट वार्ताओं का ही घटक क्यों बनायी गयी थी? इसकी शुरूआत पीछे नाभिकीय हथियारों की होड़ तक जाती थी और परस्पर सुनिश्चित विनाश (एमएडी) का तर्क, इसकी जड़ में था। इसके पीछे समझदारी यह थी कि नाभिकीय युद्ध में, पहले प्रहार करने वाला कोई भी पक्ष, विरोधी पक्ष के अधिकांश नाभिकीय शस्त्रों को खत्म करने में समर्थ होगा। लेकिन, सवाल यह है कि इस तरह, जिस देश का मिसाइल ढांचा ज्यादातर नष्ट किया जा चुका होगा, जिसमें उसका राजनीतिक तथा सैन्य नेतृत्व भी शामिल होगा, वह भी जब अपना कमजोर पड़ चुका जवाबी प्रहार करता है, तो पहले प्रहार करने वाला देश क्या इस कमजोर प्रहार को भी झेल सकेगा? यही ख्याल था, जिससे संचालित होकर अमेरिका और सोवियत संघ, दोनों ने भारी संख्या में नाभिकीय बम तथा मिसाइल लांचर निर्मित किए थे, ताकि उनकी नाभिकीय मिसाइलों के 95 फीसद हिस्से के नष्ट कर दिए जाने के बावजूद, उनके पास बचने वाली थोड़ी सी नाभिकीय प्रहार शक्ति भी उनके विरोधी का सम्पूर्ण विनाश करने के लिए काफी हो। नाभिकीय होड़ जब अपने चरम पर थी, अमेरिका और सोवियत संघ के पास कुल मिलाकर, करीब 64,000 नाभिकीय बम थे। यह संख्या अब घटकर, न्यू स्टार्ट संधि के अंतर्गत तय की गयी 1,550 की अधिकतम सीमा के बराबर रह गयी है यानी कुल 3,100 नाभिकीय शस्त्र। जाहिर है कि नाभिकीय शस्त्रों की इस संख्या में अन्य नाभिकीय शक्तियों के नाभिकीय शस्त्र शामिल नहीं हैं, जैसे चीन, यूके, फ्रांस, इस्राइल, भारत और पाकिस्तान। इन सभी देशों के पास नाभिकीय शस्त्र तो हैं, लेकिन उनकी संख्याएं अपेक्षाकृत थोड़ी हैं।

जब अमेरिका ने एबीएम संधि को त्याग दिया

ये प्रयास इस तर्क संचालित हो रहे थे कि ऐसी व्यवस्था, जहां प्रतिद्वंद्वी पक्ष अपनी नाभिकीय मिसाइलों तथा बमों की संख्या कम करने में समर्थ होंगे, इसका तकाजा करती है कि एंटी-बैलेस्टिक मिसाइलें तैनात नहीं की जा रही हों। वर्ना इससे होगा यह कि जो देश, दूसरे पक्ष के प्रथम प्रहार का शिकार होगा तथा इस प्रहार में अपनी अधिकांश मिसाइलें गंवा बैठेगा, वह इसके बाद भी जिन मिसाइलों से जवाबी प्रहार कर सकता होगा, उनमें से अधिकांश को इस तरह की मिसाइल ढाल ही नष्ट कर देगी। इसलिए, एबीएम संधि के बिना, परस्पर सुनिश्चित विनाश की क्षमता के तर्क की तो यही मांग होगी कि नाभिकीय हथियारों की होड़ आगे से आगे बढ़ती जाए, जैसा पहले हुआ भी था। बहरहाल, राष्ट्रपति बुश ने 2002 में एबीएम संधि से नाता तोड़ तो लिया था, फिर भी जिस एबीएम संधि को त्याग दिया गया था, उसके अंतर्गत जिन दो एंटी-बैलेस्टिक मिसाइल (एबीएम) ढालों की इजाजत दी गयी थी, उनके अलावा और कोई नाभिकीय ढाल नहीं खड़ी की गयी। यानी अब भी एंटी-बैलेस्टिक मिसाइलों के बचाव को बेधने के लिए, नाभिकीय शस्त्रों में कोई बढ़ोतरी करने की जरूरत नहीं थी।

एबीएम संधि को अमेरिका द्वारा 2002 में त्याग दिए जाने के बाद, एंटी-बैलेस्टिक मिसाइलों की पहली संभावित तैनाती, 2010 में ही रोमानिया तथा पोलेंड में हुई। इन देशों में जिन यूएस एजिस (एईजीआइएस) तटवर्ती प्रणालियों को तैनात किया गया था, वे क्रूज़ मिसाइलों या एंटी-बैलेस्टिक मिसाइलों में से कुछ भी दागने में समर्थ थीं। इस तरह ये प्रणालियां उस भंगुर शस्त्र नियंत्रण व्यवस्था को अस्थिर करने में समर्थ थीं, जो इस संकल्पना पर टिकी हुई थी कि कोई एंटी-बैलेस्टिक मिसाइल ढाल नहीं खड़ी की जाएगी।

एबीएम संधि के बाद जिस दूसरी शस्त्र नियंत्रण संधि को खत्म किया गया, वह थी इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लिअर फोर्सेज़ एग्रीमेंट। यह संधि 1000 से 5,500 किलोमीटर तक मार करने की क्षमता वाली, जमीन से प्रहार करने वाली मिसाइलों के तैनात किए जाने पर पाबंदी लगाती थी। इस संधि पर 1987 में रीगन तथा गोर्बाचोव ने दस्तखत किए थे और इसका लक्ष्य था, यूरोप में नाभिकीय शस्त्रों के खतरे को कम करना। जहां ट्रम्प ने इस (आईएनएफ) संधि से हाथ खींचते हुए, चीन से खतरे की दुहाई दी थी, वहीं रूस का यह ख्याल था कि अब जबकि नाटो की अग्रिम पंक्ति रूस की सीमाओं तक पहुंच गयी है, ऐसी आईएनएफ मिसाइलों को अब उसकी सीमाओं पर लगाया जा सकता है। पोलैंड तथा रोमानिया में इमीडिएट रेंज मिसाइलों की मौजूदगी तथा भविष्य में यूक्रेन में ऐसी मिसाइलों की तैनाती की संभावना को, रूस के लिए सीधे नाभिकीय प्रहार के खतरे के तौर पर देखा जा रहा था। अब जबकि अमेरिका ने एबीएम संधि को छोड़ दिया है और रूस की सीमाओं के निकट एजिस बैटरियां लगा दी हैं, जिनसे एंटी-बैलेस्टिक मिसाइलें दागी जा सकती हैं, इसका अर्थ यह है कि शीत युद्ध के दौर में, सोवियत संघ के साथ बड़ी मेहनत से जो निरस्त्रीकरण का ढांचा खड़ा किया गया था, वह पूरा का पूरा ढांचा ही अब गायब हो गया है।

नाटो-यूक्रेन और रूस का युद्ध

यहां मैं इसमें नहीं जाऊंगा कि यूक्रेन युद्ध की शुरूआत कैसे हुई? यहां तो मैं सिर्फ नाभिकीय शस्त्र नियंत्रण की व्यवस्था के ढांचे और इससे जुड़ी संधियों के लिए, इस युद्ध के निहितार्थों पर ही विचार करूंगा। साफ है कि यूक्रेन युद्ध, रूस और नाटो के बीच युद्ध भी है। पिछले बारह महीने में, यूक्रेन के लिए नाटो की सैन्य मदद अब 66 अरब डालर पर पहुंच गई है, जोकि रूस के साल भर के समूचे सैन्य बजट के बराबर है। और जैसाकि अब आम जानकारी में आ चुका है, यूक्रेन युद्ध में नाटो का तोप गोलों आदि हथियारों का पूरा का पूरा भंडार ही खत्म होता जा रहा है। जहां यह इस युद्ध में यूक्रेन के लिए नाटो की मदद की बात तो सभी मानकर ही चलते हैं। पर यह दिलचस्प है कि वाशिंगटन पोस्ट ने खबर छापी है (9 फरवरी 2023) कि नाटो द्वारा यूक्रेन को लड़ाई के मैदान में भी सीधे मदद दी जा रही है। उसने लिखा है:

‘यूक्रेनी अधिकारियों ने बताया कि उन्हें, अमेरिका द्वारा मुहैया करायी गयी उन्नत रॉकेट प्रणालियों से अपने प्रहारों के लिए, उन कोआर्डीनेटों की जरूरत होती है, जो अमेरिका तथा उसके सहयोगियों द्वारा मुहैया कराए जाते हैं या अभिपुष्टि किए जाते हैं। यह आचार पहले छुपाए रखा जा रहा था, जो इस युद्ध में पेंटागन की कहीं गहरी तथा संचालन की दृष्टि से कहीं सक्रिय भूमिका को उजागर करता है।’ वास्तव में इस लेख में इसके ब्यौरे दिए गए हैं कि किस तरह लड़ाई में यूक्रेन की भूमिका सिर्फ बटन दबाने की है, बाकी सब कुछ तो अमेरिका द्वारा ही नियंत्रित है। नाटो इस लड़ाई में यूक्रेन के साथ पूरी तरह से साझीदार है, उसकी यह चयन करने में मदद करता है कि कहां प्रहार करना है, किस चीज पर प्रहार करना है और मिसाइल प्रणालियों को प्रहार करने के लिए कोऑर्डीनेट भी देता है।

एंगेल्स एअरबेस ड्रोन हमला और बढ़ते नाभिकीय ख़तरे

इसी संदर्भ में रखकर हमें रूस के एंगेल्स एअरबेस पर ड्रोन हमला करने की यूक्रेन की कोशिश को देखना चाहिए। एंगेल्स एअरबेस पर नाभिकीय शस्त्र जमा हैं और यूक्रेन की सीमा से 600 किलोमीटर दूर स्थित है। अगर नाटो द्वारा वाकई रूस के खिलाफ सभी हमलों के लिए कोआर्डीनेट मुहैया कराए जा रहे हैं, तो सवाल यह है कि क्या उसने ही रूस में नाभिकीय शस्त्र भंडार पर प्रहार करने की कोशिश के लिए, यूक्रेनी ड्रोन के लिए लॉजिस्टिकल मदद भी मुहैया करायी थी? दूसरे शब्दों में क्या उक्त ड्रोन वाकई नाटो द्वारा नियंत्रित था या कम से कम उसने ही रूस के एंगेल्स एअरबेस के कोऑर्डीनेट मुहैया कराए थे?

रूस की नयी स्टार्ट संधि के निलंबन की घोषणा में इसका खास महत्व है। रूस ने कहा है कि वह नयी स्टार्ट संधि में तय की गयी, नाभिकीय शस्त्रों तथा उनके प्रक्षेपकों संबंधी सभी सीमाओं को तो पालन करेगा, फिर भी वह इस समझौते को निलंबित करने जा रहा है। इसका अर्थ होता है, अपनी नाभिकीय सुविधाओं के सभी इंस्पेक्शनों को भी निलंबित करना। इस तरह के इंस्पेक्शन भी, नयी स्टार्ट संधि का हिस्सा हैं।

एक-दूसरे की नाभिकीय सुविधाओं का इंस्पेक्शन, इस समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो दोनों पक्षों को एक-दूसरे से वास्तविक नाभिकीय शस्त्रों को और उनकी मौजूदगी की जगहों को, छुपाने से रोकता है। अगर नाटो वाकई रूस के महत्वपूर्ण ठिकानों को, जिनमें रूस की सीमाओं में काफी भीतर स्थित नाभिकीय सुविधाएं भी शामिल हैं, निशाना बनाने मदद कर रहा है, तो अपनी नाभिकीय सुविधाओं को इस तरह की जांच के लिए खोलना, इन सुविधाओं पर प्रहार के कामयाब होने का जोखिम और बढ़ा देता है। पुतिन ने अपने सालाना संबोधन (21 फरवरी, 2023) में ठीक यही तो कहा था। ‘हम जानते हैं कि हमारे रणनीतिक हवाई अड्डों पर हमला करने की कीव निजाम की कोशिशों के साथ, पश्चिम सीधे जुड़ा हुआ है। नाटो के विशेषज्ञ ने इन सुविधाओं पर हमला करने के लिए, मानवरहित विमान का दिग्दर्शन करने में मदद की थी। इसके बाद भी वे हमारी सुविधाओं का इंस्पेक्शन करना चाहते हैं? आज यह महज बकवास है।’

यूक्रेन ने इससे पहले जाप्रोझिया नाभिकीय संयंत्र पर हमला किया था, जो कि जाप्रोझिया ओब्लास्ट में रूस के नियंत्रण में है। हालांकि, एक नाभिकीय संयंत्र पर हमला किया जाना बहुत ही खतरनाक है क्योंकि इससे असानी से फुकुशिमा जैसा महाविनाश भी हो सकता है और यहां से निकली रेडियोधर्मी सामग्री काफी विशाल क्षेत्र में फैल सकती है, इसके बावजूद इस संयंत्र पर हमले इस दौरान जारी ही रहे हैं और इस मामले में न तो आईएईए की ओर से कुछ किया गया है और न यूक्रेन के नाटो से जुड़े सहयोगियों की ओर से। अब युद्ध के साथ, और यह बात सभी युद्धों के बारे में सच है, समस्या यह है कि यह कभी भी, किसी भी पक्ष द्वारा तय की गयी सीमाओं के अंदर नहीं रहता है। और नाभिकीय संयंत्रों तथा नाभिकीय शस्त्र भंडारों पर इन हमलों ने अब यूक्रेन के युद्ध के खतरों को उल्लेखनीय तरीके से बढ़ा दिया है।

शस्त्र नियंत्रण व्यवस्थाओं पर वापसी कैसे हो?

शस्त्र नियंत्रण की व्यवस्थाओं पर वापसी जरूरी है और सिर्फ यूरोप में शांति के लिए ही नहीं बल्कि मानव जाति के बचे रहने के लिए भी जरूरी है। यह विचार ही मूर्खतापूर्ण तथा आंखों पर पट्टियां बांधकर देखने जैसा है कि नाटो तथा रूस के बीच युद्ध चलता रह सकता है और इसके बेकाबू होने का कोई खतरा ही नहीं है। इसी सब के साथ यह और जोड़ लीजिए कि निरस्त्रीकरण का पूरा का पूरा ढांचा ही अब करीब-करीब आखिरी सांसें ले रहा है और उसका जो आखिरी समझौता बचा हुआ था--न्यू स्टार्ट समझौता--वह भी अब खतरे में है। इस नाभिकीय कगार से पीछे हटना भी आसान नहीं होगा। लेकिन, अगर हम नाभिकीय निरस्त्रीकरण के ढांचे की मरम्मत शुरू भी करना चाहें, तो भी रूस तथा नाटो के बीच शांति की और यूक्रेन युद्ध के रुकने की जरूरत होगी।

दो नाभिकीय निरस्त्रीकरण समझौतों को त्याग दिया जाना और जो इकलौता समझौता बचा रह गया है उसका भी निलंबित कर दिया जाना, मानवीय सभ्यता के लिए ही खतरा है। आज की त्रासदी यह है कि हमारे बीच अब नेहरू, न्क्रूमाह, नासर, टीटो या सुकर्ण जैसे राजनेता हैं ही नहीं, जिनका इतना बड़ा कद था कि वे स्वतंत्रता संघर्षों के अपने नेतृत्व की साख के बलबूते पर, बातचीत कर के शांति स्थापित करा सकते थे। जो बहुध्रुवीय दुनिया निकलकर सामने आ रही है, उसमें जो देश लड़ाई में शामिल नहीं हैं उनके भी नेता, शांति के हक में खड़े होने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें डर लगता है कि उन्होंने आगे बढक़र इसके लिए पहल की तो, उनके अपने क्षुद्र हितों पर आंच आ सकती है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन जैसी कोई सामूहिक ताकत ही नहीं है, जो एक स्वतंत्र समूह के तौर पर हस्तक्षेप कर सके और इस तरह की भूमिका अदा कर सके। इसके बजाए, हम इसी की प्रतीक्षा करते रहने के लिए अभिशप्त हैं कि इन युद्धरत देशों में ही इसका विवेक जागेगा कि नाभिकीय ताकतों के बीच युद्ध, भले ही ये ताकतें शस्त्रों व लॉजिस्टिकल मदद के आवरण में ही लड़ाई में शामिल हों, कभी भी बेकबू हो सकता है। क्यूबा वाले मिसाइल संकट के बाद, यह शायद हमारे इतिहास का सबसे खतरनाक क्षण है। फिर भी इस सच्चाई को नहीं समझा जा रहा है और यही तो असली त्रासदी है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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