मध्य प्रदेशः बिना शिक्षकों या एक शिक्षक के सहारे बच्चों का सुनहरा भविष्य गढ़ने का दावा
मध्य प्रदेश में इसी साल चुनाव होने हैं। भाजपा ने अपना प्रचार शुरू भी कर दिया है। सोशल मीडिया पर चमकीले विज्ञापनों के जरिये वोटरों को लुभाने की कवायद शुरू हो चुकी है। कांग्रेस को निशाना बनाकर लगातार प्रेस कांफ्रेंस की जा रही हैं और सोशल मीडिया पर प्रचार किया जा रहा है। लेकिन भाजपा अपना रिपोर्ट कार्ड पेश नहीं कर रही। ये नहीं बता रही कि मध्य प्रदेश की ज़मीनी सच्चाई क्या है?
भाजपा ने कहा था कि वो बच्चों के सुनहरे भविष्य को गढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है। ये भी कहा था कि हम सुनिश्चित करेंगे कि हर बच्चा स्कूल जाए। तो भाजपा ये बताए कि क्या मध्य प्रदेश का हर बच्चा स्कूल में जा रहा है, ये सुनिश्चित हो गया? साथ ही ये भी बताएं कि जिन स्कूलों में ये बच्चे जाएंगे उनकी स्थिति क्या है? क्या स्कूलों में पूरे शिक्षक हैं? क्या इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं हैं? भाजपा उन स्कूलों की सच्चाई वोटरों को बताए, जिनके भरोसे बच्चों के “सुनहरे भविष्य” को गढ़ने का दावा किया जा रहा है। क्योंकि मध्य प्रदेश के शिक्षामंत्री इंदरसिंह परमार तो लड़कियों को सिनेमा हॉल में ले जाकर “केरला स्टोरी” दिखाने में व्यस्त हैं, तो आइये, हम खुद ही पड़ताल करते हैं।
एक शिक्षक के भरोसे चल रहे 17,085 स्कूल
जिन स्कूलों के भरोसे बच्चों का सुनहरा भविष्य गढ़ने का दावा किया जा रहा है उन स्कूलों में तो शिक्षक ही नहीं हैं। देश में स्कूलों की स्थिति के बारे में शिक्षा मंत्री से राज्यसभा में सवाल पूछा गया। 14 दिसंबर 2022 को शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जिसका लिखित जवाब दिया। जिसके अनुसार मध्य प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों के 98,562 पद खाली पड़े हैं।
22 मार्च 2023 को एक सवाल के लिखित जवाब में शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बताया है कि मध्य प्रदेश के 17,085 स्कूल मात्र एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। एक शिक्षक के भरोसे चलने वाले स्कूल के मामले में मध्य प्रदेश पहले स्थान पर है। यानी देश में एक शिक्षक के भरोसे चल रहे स्कूलों की सबसे ज्यादा संख्या मध्य प्रदेश में है।
स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का भारी अभाव
स्कूलों में शिक्षकों की स्थिति आप देख ही चुके हैं अब देखते हैं कि इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की क्या स्थिति है जहां बच्चों का “सुनहरा भविष्य” गढ़ा जाना है। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय के अनुसार मध्य प्रदेश के 1,770 स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट नहीं है। स्वच्छता अभियान और तमाम दावों के बाद भी स्थिति ये है कि स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट नहीं है। एमपी के 33,623 यानी 36% स्कूलों में लाइब्रेरी नहीं है। जिन स्कूलों में लाइब्रेरी है इसका मतलब ये नहीं है कि उनमें किताबें भी हों। क्योंकि मध्य प्रदेश के 35,451 यानी 38% ऐसे स्कूल हैं जिनमें किताबों वाली लाइब्रेरी नहीं है। आंकड़े से पता चलता है कि एमपी का हर तीसरा स्कूल बिना लाइब्रेरी के चल रहा है।
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भाजपा सरकार बिजली की उपलब्धता को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है। लेकिन सच्चाई ये है कि एमपी के 52,888 यानी 57% स्कूलों में बिजली नहीं है। एमपी के आधे से ज्यादा यानी हर दूसरा स्कूल बिना बिजली के चल रहा है। जिन स्कूलों में बत्तीगुल है उनमें बच्चों का “सुनहरा भविष्य” गढ़ा जा रहा है। 1,431 स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है। 35,882 यानी 39% स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है। 66,882 यानी 72% स्कूलों में मेडिकल सुविधा नहीं है।
कुल मिलाकर आप समझ गए होंगे कि मध्य प्रदेश में शिक्षा के जिस ढांचे से बच्चों के “सुनहरा भविष्य” गढ़ने का दावा किया जा रहा है, वो खुद ही अंधकार में है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)
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