तिरछी नज़र: रेल ड्राइवर को सरकार-जी से सीखना चाहिए
बालासोर में रेल दुर्घटना हुई। लगभग तीन-चार सौ से लोग मारे गए। आजाद भारत के इतिहास में सबसे दर्दनाक रेल दुर्घटनाओं में से एक। इस सदी की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना। जो लोग मरे, जो घायल हुए, उनके साथ और उनके परिवार के लोगों के साथ मेरी पूरी संवेदना है।
रेल दुर्घटना हुई तो भई, कोई तो वजह रही ही होगी। और जब वजह रही है तो पता भी चलनी ही चाहिए। अरे भई, वजह क्या? होनी थी सो हो गई। होनी को भला कौन टाल सकता है। ईश्वर भी नहीं। वैसे ईश्वर टाल सकता हो या नहीं टाल सकता हो, पर सरकार जी जरूर टाल सकते थे। परन्तु टालते तो तभी ना जब टालना चाहते। जब सरकार जी ने टालना चाहा ही नहीं तो टालते क्यों?
फिर भी कोई तो कारण रहा ही होगा। अब एक कारण तो यह बताया जा रहा है कि रेलवे में लोकोमोटिव ड्राइवर (लोहपथ गामिनी चालक), अरे वही जो रेलगाड़ी चलाता है, बारह-बारह, चौदह-चौदह घंटे काम करता है। और उस लाइन पर, जिस पर दुर्घटना हुई, हावड़ा-चेन्नई लाइन पर तो ड्यूटी और भी लम्बी हो जाती है। तो कहा जा रहा है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस का चालक तो पंद्रह घंटे से अधिक की ड्यूटी कर चुका था। दुर्घटना का एक कारण लम्बी ड्यूटी भी हो सकता है। कारण लम्बी ड्यूटी करने के कारण हुई थकान भी हो सकता है।
अजीब तर्क है भाई। हमारे सरकार जी इतनी इतनी लम्बी ड्यूटी करते हैं। अट्ठारह-उन्नीस घंटे तक काम करते हैं हमारे सरकार जी। और सरकार जी को तो काम भी कितने सारे करने पड़ते हैं। कभी मोर को दाना खिलाओ, कभी चीतों को जंगल में छोड़ो, कभी किसी एक मंदिर में जाओ तो कभी किसी दूसरे मंदिर में। और तो और रेलगाड़ी को हरी झंडी भी दिखाओ। लेकिन कभी थकते देखा सुना है भला। और फिर भी देश ठीक चल रहा है या नहीं? महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, व्याभिचार, सांप्रदायिकता, सभी में उन्नति हो रही है या नहीं? और ये रेलवे के ड्राइवर हैं ना, एक ही काम करना पड़ता है, बस रेलगाड़ी चलाओ। और उसी में थक जाते हैं। अरे कुछ सीखो, सरकार जी से ही सीखो।
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एक और कारण बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि रेलवे में स्टाफ की कमी है। रेलवे में करीब तीन लाख कर्मचारियों की कमी है। भारतीय रेलवे में करीब तीन लाख लोगों की भर्ती की जरूरत है। लेकिन जरा सोचो, इन तीन लाख लोगों की भर्ती न होने से कितनी बचत हो रही है। एक दो दुर्घटनाएं भले ही हो जाएं लेकिन बचत कितनी हो रही है। उस बचत से देश का कितना काम होता है। सरकार जी की कितनी रैलियां होती हैं, कितने विदेशी दौरे होते हैं। सरकार जी यह बचत कर रहे हैं तभी तो ये रैलियां, ये दौरे, ये हरी झंडी, यह सब मुमकिन है।
इस रेल दुर्घटना का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि रख-रखाव ठीक नहीं है। रेलवे में रेल की पटरियों का, सिग्नल सिस्टम का रख-रखाव ठीक नहीं है। देखो, सरकार जी की, सरकार जी की सरकार की खामियां निकालना बंद करो। यह देशद्रोह के बराबर है। बल्कि कहा जाए तो यह देशद्रोह ही है। रेल गाड़ियां पहले भी चली हैं। राजधानी चली हैं, शताब्दी चली हैं, गरीब रथ एक्सप्रेस चली हैं। ऐसा नहीं है कि सुपर फास्ट ट्रेनें पहली ही बार चल रही हैं। हो सकता है पहली राजधानी, शताब्दी या गरीब रथ को उस समय के सरकार जी ने हरी झंडी दिखा दी हो पर ऐसा नहीं हुआ है कि सारी की हरी झंडियां सरकार जी ने ही दिखाई हों और रेल मंत्री बस तालियां बजाते रहे हों, सरकार जी की प्रशंसा में चिट्ठियां लिखते रहे हों। अब खुद बताओ कि इतने कर्मठ सरकार जी और उनके उनसे भी कर्मठ रेल मंत्री के होते हुए भी यह कहना कि रख-रखाव ठीक नहीं है, ठीक है क्या?
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अब लोग चाहते हैं कि सरकार जी इस्तीफा दें, रेल मंत्री इस्तीफा दें। ठीक है वर्षों पहले किसी ने दिया था। किसी रेल मंत्री ने ही दिया था। रेल दुर्घटना होने पर ही दिया था। पर यह जरूरी तो नहीं है ना कि उस बात को ध्यान में रखते हुए आगे भी इस्तीफा दिया ही जाए। तब की बात अलग होती थी, अब की बात अलग है। तब नैतिकता अंदर से होती थी अब बाहर से होती है। तब देशप्रेम और ईमानदारी भी अंदर होती थी अब बाहर होती है। ये चीजें तब अपनायी जाती थीं, अब दिखाई जाती हैं। अब तो नेता शोर मचाते हैं कि मैं बहुत बड़ा देशप्रेमी हूं, मैं कट्टर ईमानदार हूं।
ठीक है, शास्त्री जी को आदर्श माना जाना चाहिए। हमारे सरकार जी भी मानते हैं। पर आदर्श ही मानते हैं, फॉलो नहीं करते हैं। क्या करें, मजबूरी है। शास्त्री जी फेसबुक पर, ट्विटर पर तो हैं नहीं कि झट से फॉलो कर लें। असलियत में, जीवन में फॉलो करना कितना मुश्किल है। अगर फॉलो करो तो इस्तीफा देना पड़ता है, विदेश जाते हुए भी अपने पुराने कोट को सम्हालना पड़ता है, एंबेसडर जैसी कार भी किस्तों पर खरीदनी पड़ती है। सरकार जी भी जानते हैं, ऐसे लोग सिर्फ आदर्श बन सकते हैं। उन्हें जीवन में फॉलो करने में खतरा है। उन्हें अगर जीवन में उतारा तो ना चार बार जैकेट बदल सकते हैं और न ही आठ करोड़ की कार खरीद सकते हैं। और इस्तीफा! वह तो देना ही कौन चाहता है।
सरकार जी ने अच्छा किया है कि सीबीआई इंक्वायरी बिठा दी है। लगे हाथ एनआईए से भी इंक्वायरी करा लेनी चाहिए। और डिपार्टमेन्टल इंक्वायरी को तो बंद करा देना चाहिए। डिपार्टमेन्टल इंक्वायरी तो अपनी ही कोई कमी निकाल देगी। कोई कहे, 'अपनी ही कमी थी, हमारी ही गलती थी', सरकार जी को बर्दाश्त नहीं है। सरकार जी उसे चुप रहने के लिए कह सकते हैं।
सीबीआई और एनआईए की इंक्वायरी अधिक समझदारी से की जाती हैं। वे समय लेंगी और चुनाव से ठीक पहले बता देंगी कि इस रेल दुर्घटना में तो पड़ोसी देश का हाथ है, आतंकवादियों का हाथ है, अल्पसंख्यकों का हाथ है। तब सरकार जी इस बार बालासोर की रेल दुर्घटना से ही काम चला लेंगे। नहीं तो सरकार जी को चुनाव से पहले एक और बालाकोट (पुलवामा) करवाना पड़ेगा।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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