तिरछी नज़र: बदलता मौसम और हमारे हेड मास्साब
बहुत ठंड पड़ रही है। यह हमें अखबार से, टीवी से भी पता चलता है। अखबार या टीवी हमें बताते हैं कि कल का दिन इस बार का अब तक का सबसे ठंडा दिन था। कि इस बार का दिसम्बर पिछले बीस साल का सबसे ठंडा दिसम्बर रहा। कि इस बार सर्दी ने इस सदी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। कि इस साल एक जनवरी को पिछली एक सदी या डेढ़ सदी या फिर दो सदी के एक जनवरी के न्यूनतम तापमान का रिकार्ड टूट गया।
हमारे एक मास्साब हैं। वे इस थर्मामीटर वगैहरा को नहीं मानते हैं। वे मानते हैं कि हम बुढ़ा रहे हैं ना, इसीलिए अधिक ठंड लग रही है। ये ठंड वंड पड़ नहीं रही है, बूढ़े हो रहे हैं इसीलिए ठंड अधिक लग रही है। वे मौसम विभाग के कथन को भी नहीं मानते हैं कि इस बार तापमान अधिक कम रहने वाला है। उनका बस यही मानना है कि ठंड अधिक पड़ नहीं रही है बल्कि लग अधिक रही है। हम सब बूढ़े हो रहे हैं इसलिए ठंड अधिक लग रही है।
हमारे मास्साब ने छात्रों को ठंड लगने का कारण तो बताया ही है, बीच बीच में उन्हें परीक्षा में पास होने के फार्मूले भी बताते रहते हैं। एक बार तो उन्होंने बच्चों को परीक्षा पास करने का ऐसा फार्मूला बताया कि कोई भी बच्चा कक्षा शायद ही चार या पांच से आगे पढ़ पाए। उनका बताया फार्मूला अपनाकर कई लोग मात्र कक्षा चार तक ही पढ़ पाए। उन्होंने बताया कि सबसे कठिन प्रश्न सबसे पहले करो। बस बच्चे सबसे कठिन प्रश्न में उलझे रहें, परीक्षा का सारा समय एक या दो कठिन प्रश्नों में बिता दें और फेल हो जाएं। ऐसे हैं हमारे मास्साब!
प्रतिभा तो हमारे मास्साब में इतनी कूट कूट कर भरी है कि वे सभी विषयों पर समान अधिकार रखते हैं। जिसे पढ़ाना हो उस पर भी और जिसे न पढ़ाना हो उस पर भी। ये मास्साब जितने अधिकार से पर्यावरण व मौसम विज्ञान पढ़ा सकते हैं उतने ही अधिकार से भौतिक विज्ञान और रेडार साइंस भी। मतलब कोई भी विषय हो, हमारे मास्साब को उसमें मास्टरी हासिल है। और भूगोल और इतिहास का ज्ञान तो उनका गजब ही है। और यह ज्ञान मास्साब कहीं भी उंडेल सकते हैं। छात्रों से लेकर आम जनता के सामने भी। सैन्य अधिकारियों से लेकर वैज्ञानिकों, इतिहासकारों के सामने भी। और मजाल है कोई उनका विरोध कर दे। मास्साब हेड मास्साब जो हैं।
अधिक ठंड पड़ने से, उसके रिकार्ड रखने की बात से ध्यान आया कि हमारे देश में केवल मौसम विभाग ही इतना एफिशियेंट है कि उसके पास सौ साल, डेढ़ सौ साल पुरानी फाइलें हैं और सुलभ भी हैं। वह उन्हें फटाफट निकाल देता है और बता देता है कि फलाने वर्ष में आज के दिन इतना तापमान था। हर समय झूठ परोसने वाले, हर बात पर हिन्दू-मुसलमान करने वाले अखबार और टीवी चैनल भी मौसम विभाग के हवाले से कुछ तो सच बता ही देते हैं।
मौसम विभाग की रिकार्ड कीपिंग से यह भी ध्यान आया कि कोई और सरकारी विभाग होता तो वहां की रिकार्ड कीपिंग कैसी होती? दो साल पुरानी फाइल भी निकलवानी हो तो दो हफ्ते लगा दें। वह भी हथेली गर्म करने पर। चार जनवरी के तापमान की हिस्ट्री चौदह जनवरी के अखबार में छपे कि चार जनवरी को फलाने सन् में इससे कम तापमान रहा था।
ठंड ही नहीं, पिछले दो चार साल से बारिश भी ऐसी पड़ रही है कि जहां मर्जी रिकार्ड तोड़ हो जाती है। पहाड़ी इलाकों में बादल फट जाते हैं। पहाड़ टूट पड़ते हैं। पुल टूट जाते हैं, सड़कें बह जाती हैं। हमारे मास्साब ने इसके बारे में कुछ नहीं कहा है। नहीं तो वे बता देते कि ऐसा इसलिए नहीं हो रहा है कि जंगल काटे जा रहे हैं, पहाड़ तोड़े जा रहे हैं, पहाड़ों पर चौड़ी चौड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं। पहाड़ों में विकास के नाम पर विनाश हो रहा है। मास्साब तो कहते बारिश अधिक नहीं पड़ रही है। वह तो पहाड़ इसलिए टूट रहे हैं कि हिमालय बूढ़ा हो रहा है। और किसी में इतनी हिम्मत नहीं होगी कि मास्साब को बता सके कि हिमालय तो बाकी सभी पहाड़ों से जवान पहाड़ है। वह तो हमने ही उसे समय से पहले बूढ़ा बना दिया है।
यह जो मौसम बदल रहा है, यह जो ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, यह मौसम जो गरमा रहा है, वह सिर्फ गर्मी ही नहीं पैदा कर रहा है। उसी के कारण अधिक गर्मी, जहां तहां अधिक बारिश और अधिक ठंड पड़ रही है। असलियत तो यह है कि मौसम का मिजाज ही गरमा रहा है। जैसे गरम मिजाज वाला आदमी जब मर्जी गर्म हो जाता है और जब मर्जी ठंडा पड़ जाता है। जैसे गरम मिजाज वाला जहां मर्जी बरस पड़ता है और जहां मर्जी फट पड़ता है। उसी तरह मौसम का मिजाज भी गरमा गया है। वह भी गर्म मिजाज के व्यक्ति की तरह काम कर रहा है।
खैर हमारे हेड मास्साब कभी तो कुर्सी छोड़ेंगे, कभी तो रिटायर होंगे। तब लोग उनको छेड़ेंगे, चिढ़ाएंगे, उनसे फिरकी लेंगे कि क्यों मास्साब, ठंड ज्यादा पड़ रही है या आप बूढ़े हो गए हैं!
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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