केरल: फसलों और मनुष्यों के प्रति जंगली सूअर के ख़तरे से निपटने में फ़ेडरल राइट महत्वपूर्ण हैं
पिछले हफ़्ते, केरल के ऐकाडू गांव के किसान, प्रदीप दिवाकरन सुबह-सुबह अपने उस धान के खेत की ओर जा रहे थे, जहां उन्होंने टैपिओका की फ़सल लगाई थी। उन्हें डर था कि जंगली सूअरों ने उनकी खेती तबाह कर दी होगी, जो राज्य में, ख़ास तौर पर पथानामथिट्टा जिले में, एक निरंतर ख़तरा बने हुए हैं। नतीजतन, किसानों के लिए हर सुबह उठकर अपने खेतों की निगरानी करना एक दिनचर्या बन गई है ताकि इन जानवरों द्वारा किए गए नुकसान का आकलन किया जा सके।
प्रदीप ने कहा कि, "मैं एक छोटा किसान हूं, जिसके पास 20 सेंट धान का खेत है, जहां मैंने टैपिओका लगाया है।" "मुझे पता था कि ऐसा होगा और मुझे इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा। मैंने इस फ़सल को लगाने में 7,000 रुपये खर्च किए हैं, और अभी सिर्फ़ तीन महीने हुए हैं। टैपिओका को पकने और कटने में 9 से 10 महीने लगते हैं। कुछ पौधे बच गए हैं, लेकिन जंगली सूअर आते रहते हैं और बाकी को भी पकाने से पहले ही नष्ट कर देंगे।"
2022 में प्रदीप ने चावल की खेती के लिए 5 एकड़ भूमि पट्टे पर ली थी, लेकिन जंगली सूअरों के हमले से दो एकड़ फसल बर्बाद हो गई। उन्होंने कहा, "चूंकि मिलने वाला मुआवज़ा मेरे नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने तब से चावल की खेती करने या भूमि का बड़ा पट्टा लेने का प्रयास नहीं किया।"
प्रदीप अपनी क्षतिग्रस्त फसलों के साथ खड़े हैं
प्रदीप ने फिर अपनी ज़मीन पर अरबी, रतालू, केला और दूसरी सब्ज़ियां उगाना शुरू किया, जिसकी जो सिर्फ़ 20 सेंट भूमि है। हालांकि, ये फ़सलें भी जंगली सूअर खा जाते हैं, इसलिए उन्हें इनकी खेती छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
संयोगिता कृषक पुरस्कार विजेता महिला किसान, मल्लिका ने इस लेखक को बताया कि, "चेना एरिसेरी, ज़िमीकन्द से बना व्यंजन, हमारे जिले की खासियत है। हम रतालू या ज़िमीकन्द, अरबी, केला और अन्य फसलों की कई किस्मों की खेती के लिए जाने जाते थे। हालांकि, जंगली सूअरों के लगातार हमलों ने हमें इन फसलों की खेती बंद करने पर मजबूर कर दिया है। अब केवल मजबूत चारदीवारी वाले किसान ही इन फसलों की खेती कर पा रहे हैं।"
जंगली सूअरों के हमलों का असर तत्काल हुए वित्तीय नुकसान से कहीं ज़्यादा है। हाथियों ने जो डर पैदा किया है और अनिश्चितता के माहौल ने कृषि चक्र को थाम दिया है, जिसके कारण प्रदीप और मल्लिका जैसे किसान ऐसी फ़सलें लगाने से कतराने लगे हैं जो इन जानवरों को आकर्षित करती हैं, जबकि ये उनकी पारंपरिक खेती है।
इसके परिणामस्वरूप अरबी और ज़िमीकन्द जैसी फसलों की कमी हो गई है, जिससे उनके दामों बढ़ गए हैं। ज़िमीकन्द अब 100 रुपये किलो और अरबी 80-100 रुपये किलो बिक रही है।
दोनों किसानों ने कहा, "आखिरकार, हम किसान हैं, खेती मेरी आय का मुख्य स्रोत है। मुझे कुछ न कुछ खेती तो करनी ही होगी।"
जंगली सूअरों को खेतों में घुसने और नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए राज्य वन विभाग ने कई पहल की हैं। फसल और जानमाल के नुकसान के लिए मुआवजे के अलावा, केरल सरकार ने खेतों के आसपास सौर बाड़ लगाने और अन्य सुरक्षात्मक उपाय करने के लिए सब्सिडी शुरू की है।
इस साल, मल्लिका के धान के खेत को जंगली सूअरों ने सीधे तौर पर नुकसान नहीं पहुंचाया, लेकिन उन्होंने मिट्टी से बनी दीवारों को तबाह कर दिया। पिछले वर्षों में जंगली सूअरों के हमलों का सामना करने के बाद, उसने अपने पट्टे पर लिए गए धान के खेत में सौर बाड़ लगाने के लिए सब्सिडी के बारे में जानने के लिए पंचायत अधिकारियों से संपर्क किया। उसे पता चला कि कृषि भूमि के लिए 50 फीसदी सब्सिडी उपलब्ध है, लेकिन धान के खेतों के लिए कोई सब्सिडी नहीं है।
जंगली सूअरों के हमलों से जूझ रही एक और महिला किसान, गिरिजा ने अपने केले के पेड़ खोने के बाद लीज पर ली गई 20 सेंट की जमीन को बचाने का फैसला किया, जहां उन्होंने मिर्च के बीज बोए थे। हालांकि जंगली सूअर मिर्च के पौधों की ओर आकर्षित नहीं होते, लेकिन वे जमीन से होकर गुजरते हैं। पिछले हफ्ते, जानवरों ने उनके हरे शेड के एक हिस्से को नुकसान पहुंचाया, जिसकी कीमत उन्हें 7,500 रुपये चुकानी पड़ी। उन्होंने इस लेखक को बताया कि, "मैंने इस प्लॉट पर पहले ही 20,000 रुपये खर्च कर दिए हैं, जिसमें मजदूरी की लागत भी शामिल है।"
गिरिजा अपनी पट्टे वाली जमीन पर खड़ी हैं
गिरिजा अपनी ज़मीन पर टैपिओका, केला और सब्ज़ियां जैसी अन्य फ़सलें भी उगाती हैं और खेती के लिए अतिरिक्त ज़मीन पट्टे पर लेती हैं। धान के खेतों पर सौर बाड़ लगाने के लिए सब्सिडी न मिलने के कारण, उन्हें लगता है कि पट्टे पर ली गई ज़मीन में निवेश करना उचित नहीं है, जो सिर्फ़ एक या दो साल तक चलती है।
किसान यूनियनों की मांगें
केरल में किसान और उनकी यूनियनें मांग कर रही हैं कि जंगली सूअरों को “हमलावर हिंसक जानवर” घोषित किया जाए और उन जानवरों को मारने की अनुमति दी जाए जो कृषि भूमि पर हमला करते हैं या मनुष्यों के लिए खतरा पैदा करते हैं।
जब कोई पशु फसलों या मानव सुरक्षा के लिए खतरा बन जाता है, तो उसे 'हिंसक जानवर' घोषित किया जा सकता है, जिससे संबंधित अधिनियम की अनुसूची II में निर्धारित शिकार से उसका संरक्षण समाप्त हो जाता है।
जंगली सूअरों के कारण 60 प्रतिशत फसल के नुकसान से पीड़ित किसानों की शिकायतों के बीच, केरल सरकार ने केंद्र सरकार से बार-बार इस बारे में संपर्क किया है।
यूनियनों ने 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन की मांग की थी, जिसमें जंगली सूअरों सहित जंगली जानवरों के शिकार पर लंबे समय से प्रतिबंध लगाए गए हैं। अधिनियम के लागू होने के बाद से, केवल कुछ प्रजातियों, जैसे कि फल चमगादड़, कौवे और चूहों को 'हिंसक जानवर' के रूप में मान्यता दी है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 62 के तहत, बाघ और हाथी जैसी सबसे अधिक संरक्षित प्रजातियों को छोड़कर किसी भी प्रजाति को कुछ क्षेत्रों में निर्दिष्ट अवधि के लिए ‘हिंसक जानवर’ घोषित किया जा सकता है, बशर्ते इसके लिए वैध कारण हों। इस धारा के अनुसार, केंद्र सरकार के पास अनुसूची II में सूचीबद्ध किसी भी जंगली जानवर को एक निश्चित अवधि और क्षेत्र के लिए ‘हिंसक’ घोषित करने का अधिकार है।
शुरुआत में, राज्य सरकारों के पास प्रजातियों को ‘हिंसक जानवर’ घोषित करने का अधिकार था, लेकिन 1991 में यह अधिकार केंद्र को सौंप दिया गया था। इसलिए, केरल ने अधिनियम की धारा 62 के तहत जंगली सूअरों को ‘हिंसक जानवर’ के रूप में वर्गीकृत करने की मांग की। इससे नागरिकों और राज्य दोनों को जानवरों को मारने की अनुमति मिल जाती।
इसके अलावा, अधिनियम की धारा 11 राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन को किसी भी पशु को मारने की तब अनुमति देती है, जब वह मानव जीवन के लिए खतरा पैदा करता है फिर चाहे वह अनुसूची में किसी भी स्थान पर हो।
केरल ने इस अधिकार को मुख्य वन्यजीव वार्डन से मुख्य वन संरक्षकों को हस्तांतरित करने का प्रस्ताव रखा। राज्य ने तर्क दिया कि इस अधिकार को हस्तांतरित करने से निर्णय लेने में आसानी होगी और स्थानीय स्तर पर वन्यजीवों के खतरों के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया करने में मदद मिलेगी, खासकर जंगली सूअरों के कारण होने वाली गंभीर समस्याओं के समाधान में यह कारगर होगा।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में संशोधन करने और जंगली सूअरों को ‘हिंसक जानवर’ घोषित करने की उनकी बार-बार की गई अपीलों के बावजूद, इन अनुरोधों को केंद्र की ओर से लगातार अस्वीकार किया गया। लगातार इनकार का सामना करते हुए, केरल सरकार ने अंततः मई 2022 में वन निर्देश जारी करके कार्रवाई की, जिसमें आवासीय क्षेत्रों में अतिक्रमण करने वाले जंगली सूअरों को मारने का अधिकार दिया गया।
अखिल भारतीय किसान सभा, केरल की राज्य समिति सदस्य सती देवी ने कहा कि, "यह निर्णय किसानों और किसान यूनियनों की तत्काल अपील के जवाब में आया है, जिन्होंने इन जानवरों से उत्पन्न होने वाले खतरे के कारण राज्य सरकार पर कार्रवाई करने का दबाव डाला था। हालांकि, नियमों के अनुसार जंगली सूअरों को केवल लाइसेंसी बंदूकों का इस्तेमाल करके ही मारा जा सकता है, जाल या जहर का इस्तेमाल सख्त वर्जित है।"
किसान अपने खेतों पर हमला करने वाले जंगली सूअरों को हटाने के लिए पंचायत में आवेदन कर सकते हैं। एक बार जब ये अनुरोध सत्यापित हो जाते हैं, तो पंचायत अध्यक्ष उन्हें मंजूरी दे सकता है, और हालात से निपटने में एक शूटर को नियुक्त कर सकता है।
राज्य द्वारा जंगली सूअरों को मारने की अनुमति दिए जाने के बाद, भारतीय जनता पार्टी की नेता और पूर्व मंत्री मेनका गांधी ने मई 2022 में केरल के वन मंत्री ए.के. ससीन्द्रन को पत्र लिखकर आदेश को रद्द करने का आग्रह किया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि इससे वन पारिस्थितिकी को खतरा हो सकता है और मानव-पशु संघर्ष बिगड़ सकता है।
इसके बाद, 2023 में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने जंगली सूअरों को "बहु-विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र इंजीनियर" के रूप में वर्णित करते हुए दिशा-निर्देश जारी किए। इन दिशा-निर्देशों में जंगली सूअरों की उनके चारागाह के माध्यम से बीज फैलाने और बाघों जैसे मांसाहारी जानवरों के लिए शिकार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
सती देवी इस दृष्टिकोण का विरोध करती हैं, उनका तर्क है कि वर्तमान वन और वन्यजीव नियम वनों और वन्यजीवों के वास्तविक स्वास्थ्य को संबोधित करने की तुलना में मानवीय गतिविधियों के प्रबंधन से अधिक चिंतित हैं। जंगली सूअरों की आबादी, जो बाघों के शिकार के रूप में काम करती है, भी बढ़ रही है, जिससे वन्यजीव और मानव संघर्ष की जटिलताएं बढ़ रही हैं।
केरल में बाघों की आबादी 2006 से बढ़ रही है, जो उस समय 46 बाघों से बढ़कर 2018 में 190 हो गई। बाघों की संख्या में इस वृद्धि ने वायनाड जिले जैसे क्षेत्रों में जोखिम बढ़ा दिया है, जहां बाघ मनुष्यों पर हमला करने और गंभीर खतरा पैदा करने के लिए जाने जाते हैं।
वह यह भी बताती हैं कि उनका क्षेत्र, जिसमें उनकी पंचायत भी शामिल है, निर्दिष्ट वन क्षेत्र से बाहर है और मुख्य रूप से कृषि प्रधान क्षेत्र है, जहां उनके पास कोडुमोन रबर प्लांटेशन नामक एक सरकारी बागान भी है। लगभग 5.51 लाख हेक्टेयर रबर की खेती और कॉफी, चाय और अन्य कृषि भूमि सहित विभिन्न अन्य बागानों के मद्देनज़र, वे सवाल करती हैं कि केंद्र का यह दावा करने का क्या मतलब है कि जंगली सूअर, जो बाघों जैसे मांसाहारी जानवरों के शिकार के रूप में काम करते हैं, को 'हिंसक जानवर' के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए। क्या इसका मतलब यह है कि वे जंगली सूअरों के संकट को दूर करने के लिए इन बागानों में बाघों को लाए जाने की उम्मीद करते हैं?
एक अन्य महिला किसान और संयुक्ता कृषक पुरस्कार प्राप्तकर्ता रेमा जयन, जिन्होंने जंगली सूअरों के हमलों के कारण लगातार नुकसान झेलने के बाद किसानों के साथ मिलकर काम किया था, ने जंगली सूअरों को मारने के लिए पंचायत से अनुमति मांगी थी, क्योंकि इन सूअरों ने लगातार उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाया था और उनकी वित्तीय मुश्किलें बढ़ा दी थीं। राज्य सरकार ने स्थानीय निकायों को जंगली सूअरों को मारने की अनुमति दे दी थी।
लेकिन उनकी पंचायत कोडुमोन में, जिसके अंतर्गत ऐकाडू गांव आता है, केवल एक लाइसेंसधारी बंदूकधारी उपलब्ध है, और अधिकारी दूसरे की तलाश कर रहे हैं। हालांकि, अगर बंदूकधारी उपलब्ध भी हो, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जंगली सूअर उसी दिन धान के खेत में घुस आएंगे। जंगली सूअरों को मारने की अनुमति देने का फैसला उनके जैसे किसानों के लिए आसान नहीं है।
रेमा ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि, "हम अपने नुकसान से दुखी है और खुद को असहाय महसूस करते हैं। हमें इन जानवरों से निपटने के लिए स्वायत्तता की आवश्यकता है, जो हमारे लिए काम करे। हम जैसे छोटे किसान, जो मुश्किल से अपना गुजारा करते हैं, लाइसेंस प्राप्त करने और बंदूक खरीदने की चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे?"
प्रारंभिक अनुमति, जिसके तहत किसानों को जंगली सूअरों को मारने का अधिकार दिया गया था, को जंगली सूअरों की आबादी के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने और कृषि भूमि और मानव जीवन की सुरक्षा के लिए जून 2023 में एक और वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया था।
साथी देवी ने कहा कि, "यह अनुमति अब अपनी समयसीमा के करीब पहुंच रही है, फिर भी हम अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। यह अब किसानों या कृषि भूमि पर हमलों का मसला नहीं है। अब दिन के उजाले में जंगली सूअर सड़कों पर खुलेआम घूमते हैं, जिससे दुर्घटनाएं होती हैं।"
कुछ महीने पहले, एक स्थानीय समाचार पत्र के रिपोर्टर, जो गांव के दक्षिणी हिस्से में समाचार पत्र भी वितरित करते थे, पर जंगली सूअरों ने हमला किया था, जिसके परिणामस्वरूप वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जिसके लिए छह सर्जरी हुई और उनका इलाज़ चलता रहा। 2020-21 में, जंगली सूअरों के कारण आठ लोगों की मौत हुई, 146 लोग घायल हुए और 1,898 संपत्ति को नुकसान पहुंचा।
जंगली जानवरों के शिकार लोगों को मुआवज़ा देने के केरल नियम (1980) के अनुसार, वन विभाग ने वन्यजीवों के हमलों से प्रभावित लोगों के लिए 2021-22 में 130.10 करोड़ रुपये वितरित किए गए। प्राप्त 8,076 आवेदनों में से 6,601 फसल नुकसान और संपत्ति के नुकसान के लिए थे। इन नुकसानों को कवर करने के लिए कुल 500.20732 लाख रुपये आवंटित किए गए।
जंगली जानवरों और मनुष्यों के बीच मुठभेड़ की बढ़ती घटनाओं के कारण 2024 के लोकसभा अभियान के दौरान एक चुनावी मुद्दा बन गई थी, जिसमें किसान उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों के प्रति अपनी निराशा और गुस्सा व्यक्त कर रहे थे।
किसान अपनी शिकायतों के बारे में तेज़ी से मुखर हो रहे हैं, संघर्षों को प्रबंधित करने और जंगली सूअरों द्वारा किए जाने वाले नुकसान से अपनी आजीविका की रक्षा करने के लिए अधिक प्रभावी समाधान की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि ज़मीन पर काम करने वाले लोगों से बेहतर वन्यजीव संरक्षण को कोई नहीं समझ सकता है।
रेमा ने कहा कि कांग्रेस ने विवादास्पद वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित किया, साथ ही 1991 में कुछ जानवरों को 'हिंसक जानवर' घोषित करने का अधिकार भी राज्य सरकारों से केंद्र को सौंप दिया। लेकिन, किसानों की आलोचना का सामना करने के बाद, उसने किसानों का समर्थन करने और संसद में उनकी चिंताओं को दूर करने का वादा किया। रेमा अब कांग्रेस की चुप्पी पर सवाल उठाती हैं और इन मुद्दों को हल करने की उनकी प्रतिबद्धता के लिए जवाबदेही चाहती हैं।
चूंकि हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं, इसलिए कृषि भूमि और लोगों को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए निर्णायक कार्रवाई और सार्थक सुधारों की तत्काल जरूरत है। किसानों को जंगली सूअरों के बढ़ते हमलों से बचाने के लिए अकेले राज्य-स्तरीय उपाय पर्याप्त नहीं हैं, जो अधिक व्यापक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की जरूरत को रेखांकित करता है।
केंद्र सरकार इस मुद्दे को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची III के अंतर्गत सूचीबद्ध जंगली सूअरों को अनुसूची V में ‘हिंसक जानवर’ के रूप में पुनर्वर्गीकृत करके हल कर सकती है। इस पुनर्वर्गीकरण से उन्हें बिना किसी कानूनी प्रभाव के मारा जा सकेगा और उनके मांस का इस्तेमाल भी किया जा सकेगा। जबकि उत्तराखंड, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को जंगली सूअरों को ‘हमलावर हिंसक जानवर’ के रूप में वर्गीकृत करने की इज़ाजत दी गई है, केरल को बार-बार इसी अधिकार से वंचित किया गया है, जिससे उसके फ़ेडरल राइट के उल्लंघन की चिंताएँ बढ़ गई हैं।
लेखिका, केरल स्थित एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
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