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ख़बरों के आगे–पीछे: मोदी 2029 के चुनाव की तैयारी में जुटे हैं!

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में बीजेपी की चुनावी रणनीति, मणिपुर में मुख्यमंत्री की पेशबंदी और संसद के शीतसत्र समेत कई मुद्दों की चर्चा कर रहे हैं। 
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फ़ोटो साभार : एक्स

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में यह आम धारणा है कि वे हमेशा चुनावी मोड में रहते हैं और एक चुनाव जीतते ही अपनी टीम के साथ दूसरे चुनाव की तैयारी में जुट जाते हैं। अब यही बात भाजपा के सहयोगी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने औपचारिक रूप से कह दी है। उन्होंने एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में कहा कि 2024 का लोकसभा चुनाव समाप्त होने और नई सरकार बनने के साथ ही मोदी अगले चुनाव यानी 2029 के चुनाव के लिए तैयारी में जुट गए हैं। नायडू के मुताबिक मोदी ने अगला चुनाव जीतने की योजना बना ली है। नायडू की माने तो भाजपा और मोदी की राजनीति के मुकाबले कांग्रेस और राहुल गांधी की राजनीति में फर्क साफ दिखाई देगा। कांग्रेस तो लोकसभा चुनाव के बाद हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों की तैयारी भी ठीक से नहीं कर सकी और न ही इन चुनावों में उसने प्रचार ठीक से किया, जबकि मोदी 2029 के लिए काम शुरू कर दिया है। इससे मोदी की सत्ता की भूख तो जाहिर होती ही है, यह भी साबित होता है कि उन्होंने अपनी पार्टी को चुनाव लड़ने की मशीनरी बना दिया है। सरकार के फैसले भी चुनाव के हिसाब से होते हैं। इस लिहाज से कह सकते हैं कि भाजपा उस विद्यार्थी की तरह है, जो एक परीक्षा खत्म होते ही अगली परीक्षा की तैयारियों में जुट जाता है और कांग्रेस उस विद्यार्थी की तरह है, जिसकी पढ़ाई परीक्षा का टाइमटेबल आने के बाद शुरू होती है। 

मणिपुर के मुख्यमंत्री ने दिखाए विद्रोही तेवर

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने या नया मुख्यमंत्री बनाने की सुगबुगाहट के बीच राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने विद्रोही तेवर दिखाते हुए संकेत दिया है कि वे आसानी से पद छोड़ने वाले नहीं हैं। उन्होंने विधायकों की बैठक बुला कर अपना शक्ति प्रदर्शन किया है और एक तरह से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को चुनौती दी है। राज्य में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विधायकों की बैठक के बाद बीरेन सिंह ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह मणिपुर से अफस्पा यानी सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून हटाए और कुकी उग्रवादियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करे। लेकिन उनकी इस मांग का मकसद राजनीतिक है। 

दरअसल बीरेन सिंह कुकी आदिवासी समुदायों के खिलाफ बयानबाजी करके मैतेई समुदाय को अपने साथ जोड़े रखना चाहते हैं और भाजपा के आलाकमान को मैसेज देना चाहते हैं कि अगर उन्हें हटाया गया तो बहुसंख्यक उनके साथ होंगे। बताया जा रहा है कि बीरेन सिंह को इस बात की जानकारी है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें हटाने का फैसला कर लिया है, इसलिए वे भी अपनी तैयारी कर रहे हैं। वे आसानी से समर्पण करने वाले नहीं हैं। वैसे भी भाजपा आलाकमान उत्तर भारत के राज्यों में जिस तरह कभी भी मुख्यमंत्री बदल देता है, उस तरह का बदलाव असम के अलावा पूर्वोत्तर के किसी राज्य में संभव नहीं है। इसलिए एक बार जो बन गया, वह बना हुआ है। 

गरमा गरम होगा संसद का शीतकालीन सत्र 

संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू हो रहा है, जो 20 दिसंबर तक चलेगा। विपक्ष की मुखरता के चलते हंगामेदार तो जाहिर तौर पर होगा ही, क्योंकि विपक्ष पहले से ज्यादा मजबूत होकर लोकसभा में आया है। लेकिन खास इस मामले में होगा कि सरकार कुछ बहुत बड़े और अहम विधेयक पेश कर उन्हें पारित कराने की कोशिश करेगी। मणिपुर के मसले पर भी विपक्ष हमलावर होगा क्योंकि राज्य में नए सिरे से हिंसा भड़क गई है। लेकिन मणिपुर के अलावा पेश किए जाने वाले विधेयकों को लेकर ज्यादा विवाद होगा। 

सरकार जितने भी विधेयक पेश करने की तैयारी में है, विपक्ष उन सबका विरोध करेगा। संसदीय कार्य मंत्री कीरेन रिजीजू ने कहा है कि सरकार 'एक देश, एक चुनाव’ का विधेयक इस सत्र में लाएगी। इस पर बड़ा विवाद होगा क्योंकि सभी विपक्षी पार्टियां इस विचार को खारिज कर चुकी है। हालांकि सरकार जोर जबरदस्ती से इसे पारित तो करा सकती है लेकिन लागू करना मुश्किल होगा। राज्यों की बिना सहमति के विधानसभाओं को भंग करने या उनका कार्यकाल छोटा करने का फैसला लागू नहीं किया जा सकेगा। इसी तरह सरकार वक्फ कानून में बदलाव का विधेयक लाएगी। इस पर संयुक्त संसदीय समिति में विचार हो रहा है लेकिन सबको पता है कि विचार के बाद जो संशोधित बिल आएगा उसमें विपक्ष का कोई सुझाव शामिल नहीं किया जाएगा। अगर सरकार इसी सत्र में समान नागरिकता कानून (UCC) का विधेयक लाने का प्रयास करती है तो विवाद और बढ़ेगा।

जारी है नाम बदलने का सिलसिला 

भाजपा की सरकारों का ऐतिहासिक इमारतों, शहरों, जिलों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों, मार्गों आदि का नाम बदलने का सिलसिला जारी है। देश के किसी न किसी हिस्से से आए दिन खबर आती है कि अमुक शहर का या अमुक स्टेशन का नाम बदल दिया गया या अमुक मार्ग का नया नाम रख दिया गया। इन सबमें एक बात कॉमन होती है और वह यह कि पुराना नाम किसी मुस्लिम का होता है या उर्दू ओरिजिन का होता है। अभी ताजा मामला असम और राजस्थान सरकार का है। असम में हिमंत बिस्वा सरमा ने एक जिले का नाम बदल दिया है तो राजस्थान में सरकार ने अजमेर के एक होटल का नाम बदला है। अजमेर में राज्य पर्यटन निगम के होटल 'खादिम’ का नाम बदल कर 'अजयमेरू’ कर दिया गया है। कहा जा रहा है कि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष और अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी के आदेश पर ऐसा किया गया है। बताया जाता है कि पृथ्वीराज चौहान के समय और उससे पहले अजमेर का नाम अजयमेरू ही था। बहरहाल, अजमेर में किंग एडवर्ड मेमोरियल का नाम भी बदल कर स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम पर करने का निर्देश दिया गया है। अजमेर के होटल के अलावा दूसरा बदलाव असम में हुआ है, जहां राज्य सरकार ने करीमगंज जिले के नाम बदल कर श्रीभूमि कर दिया है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि करीमगंज को सबसे पहले रबींद्रनाथ टैगोर ने श्रीभूमि-मां लक्ष्मी की भूमि कहा था। उनके दृष्टिकोण का सम्मान करते हुए यह नाम रखा गया है।

महाकुंभ को लेकर विवाद ही विवाद

इलाहाबाद यानी प्रयागराज में आगामी जनवरी में होने वाले महाकुंभ को लेकर कई विवाद शुरू हो गए हैं। पिछले दिनों साधु-संतों के दो गुटों के बीच कुंभ में अपने तंबू लगाने के लिए जमीन को लेकर मेला अधिकारी के दफ्तर में जम कर वाकयुद्ध हुआ जो बाद में हाथापाई में बदल गया। बाद में मेला अधिकारी के हस्तक्षेप से मामला किसी तरह शांत हुआ। इससे पहले साधु-संतों ने एक सम्मेलन करके तय किया था कि कुंभ में किसी और धर्म के व्यक्ति को दुकान खोलने या शिविर लगाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। साधु-संतों ने इस बारे में स्थानीय प्रशासन से भी बात की लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इससे इनकार कर दिया। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि महाकुंभ में दुकानों या शिविर के लिए जगह की अनुमति देने के लिए नीलामी की प्रक्रिया होती है। बोली लगा कर जो ज्यादा पैसा देता है, उसे जगह आबंटित की जाती है। सो, जहां पैसे की बात हो वहां इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता है कि जगह लेने वाला हिंदू है या मुस्लिम, सिख, जैन या किसी और धर्म का है। इसी तरह साधु-संतों ने तय किया था कि इस बार महाकुंभ में अखाड़ों के स्नान को शाही स्नान नहीं, बल्कि राजसी स्नान कहा जाएगा। लेकिन दिल्ली मेट्रों में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से महाकुंभ का जो विज्ञापन दिया गया है उसमें मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और महाशिवरात्रि के मौके पर होने वाले स्नान को शाही स्नान ही लिखा गया है।

एक्जिट पोल की तमाशेबाजी

दुनिया के सभ्य और विकसित देशों में एक्जिट पोल काफी विश्वसनीय होते हैं। उनमें सर्वे एजेंसियां जो बताती है वह आमतौर पर सही साबित होता है और इसलिए लोग उस पर भरोसा करते हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता है। भारत में एक्जिट पोल की बुनियादी बातों का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। यही वजह है कि अगर 10 एजेंसियां एक्जिट पोल करने का दावा करती हैं तो सबके नतीजे अलग-अलग होते हैं। इसका मतलब है कि एक्जिट पोल करने वाली एजेंसियां मनमाने तरीके से निष्कर्ष तैयार करती हैं या मतदाता भी उनके मजे लेते हैं और उनके सवालों के उलटे-सीधे जवाब देते हैं। इस बार दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में एक दर्जन एक्जिट पोल हुए है, जिनमें आधी से ज्यादा एजेंसियां बिल्कुल नई हैं और लोगों पहली बार ही उनका नाम सुना है। लोकसभा चुनाव में और उसके बाद हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से फ़ेल होने के बाद कई पुरानी और जमी जमाई एजेंसियां इस बार शांत बैठी रहीं तो दूसरे लोगों को मौका मिल गया। कई नई एजेंसियां मार्केट में आ गईं, जिनमें से कुछ ने दावा किया कि दोनों राज्यों में भाजपा गठबंधन की सरकार बनेगी तो कुछ ने दावा किया कि दोनों जगह 'इंडिया’ ब्लॉक की सरकार बनेगी। किसी की कोई जवाबदेही नहीं है। इनमें से किसी न किसी को तो सही साबित होना ही था। जो सही साबित हुआ, उसकी दुकान थोड़े दिन चलेगी और फिर कोई दूसरा उसकी जगह ले लेगा।

दिल्ली विधानसभा सबसे न्यारी

देश के सभी राज्यों की विधानसभा से दिल्ली विधानसभा बिल्कुल अलग है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार जो अब आतिशी सरकार है, ने विधानसभा चलाने का अलग ही तरीका विकसित किया है कि विधानसभा का एक सत्र बुलाओ तो उसका सत्रावसान ही मत करो ताकि कभी भी बिना उप राज्यपाल की अनुमति के विशेष सत्र बुलाया जा सके और उसमें केजरीवाल का भाषण कराया जा सके। एक तरीका यह भी निकाला गया है कि विधानसभा की कार्यवाही से प्रश्नकाल ही हटा दिया जाता है। इस साल विधानसभा के जितने भी सत्र बुलाए गए, उनमें प्रश्न काल नहीं हुआ। इसीलिए इस बार 29 नवंबर से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र के लिए विपक्षी दल भाजपा ने कहा कि इस बार प्रश्न काल जरूर रखा जाए। हैरानी इस बात पर है कि 70 सदस्यों की विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 62 और भाजपा के सिर्फ आठ ही विधायक हैं। इसके बावजूद सरकार सदन को निष्पक्ष तरीके से चलाने से कतराती है। सरकार का दावा है कि उसके जैसा काम ब्रह्मांड की कोई सरकार नहीं कर रही है। अगर ऐसा है तो फिर विपक्ष को सवाल क्यों नहीं पूछने दिए जाते हैं? यही नहीं, सरकार अपने कामकाज पर नियंत्रक व महालेखापरीक्षक यानी सीएजी की रिपोर्ट भी सदन में पेश नहीं कर रही है। 

लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करने की बात करने में आम आदमी पार्टी भी आगे रहती है और वह मानती है कि संसद सुचारू रूप से नहीं चलती है। लेकिन जहां उसकी अपनी सरकार है वहां लोकतंत्र का कोई अता-पता नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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