पेगासस प्रोजेक्ट: अंतर्राष्ट्रीय खुलासे
नौ बहरीनी कार्यकर्ताओं के फोन नंबरों में एनएसओ स्पाईवेयर द्वारा छेड़छाड़ की गई है
सिटीजन लैब, कनाडा में टोरंटो विश्वविद्यालय में स्थित एक अन्तर्विभागीय अनुसंधान प्रयोगशाला है, जिसने हाल ही में एक रिपोर्ट में इस तथ्य की पुष्टि की है कि देश के भीतर और बाहर नौ बहरीनी कार्यकर्ताओं के फोन पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल कर संक्रमित किये गए थे। रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से कम से कम चार पीड़ित ऐसे हैं जिनके फोन को बहरीन सरकार द्वारा निश्चित रूप से हैक कर लिया गया था।
जून 2020 से लेकर फरवरी 2021 तक पेगासस के जरिये नौ कार्यकर्ताओं के फ़ोनों को सफलतापूर्वक हैक कर लिया गया था। इनमें से तीन लोग बहरीन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स के सदस्य थे, जो कि बहरीन के सबसे बड़े वामपंथी राजनीतिक दल, वाद के सदस्य थे, जिन्हें आतंकवाद के मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर 2017 में निलंबित कर दिया गया था। इसके अलावा इसमें एक भूमिगत शाइते अल-वेफाक राजनीतिक दल के सदस्य और दो निर्वासित बहरीनी असंतुष्टों के फोन की हैकिंग भी शामिल है।
पीड़ितों में से एक उस समय लंदन में थे, जब पता चला कि उनके फोन को हैक कर लिया गया है। सिटीजन लैब ने दावा किया है कि उनके रिसर्च के मुताबिक, बहरीन सरकार ने सिर्फ बहरीन और क़तर के भीतर ही पेगासस का इस्तेमाल कर जासूसी करवाई है। इसका अर्थ यह हुआ कि इस विशेष पीड़ित व्यक्ति को एनएसओ ग्रुप के किसी अन्य ग्राहक के जरिये लक्षित किया गया था, जो कि पेगासस सॉफ्टवेर के निर्माण और बिक्री करने वाली इजरायली कंपनी है।
पेगासस प्रोजेक्ट इंटरनेशनल मीडिया कंसोर्टियम द्वारा हासिल की गई कथित पेगासस की लक्षित सूची में शामिल इन नौ कार्यकर्ताओं में से पांच नंबरों से सम्बद्ध व्यक्तियों को कई साल पहले 2016 से ही लक्षित किया जा रहा था।
बहरीन किंगडम, जिस पर 1783 से अल खलीफा वंश का शासन रहा है, का अपने ही नागरिकों पर निगरानी बनाये रखने के लिए व्यावसायिक स्पाईवेयर का इस्तेमाल करने का लंबा इतिहास रहा है। इसका मानवाधिकारों को लेकर भी भयानक ट्रैक रिकॉर्ड है। लेकिन इस सबके बावजूद, एनएसओ ने अपने पेगासस स्पाईवेयर को बहरीन को बेचा, जो एनएसओ के अपने संभावित ग्राहकों के मानवाधिकारों के ट्रैक रिकार्ड्स को भलीभांति परखने के दावों पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता है।
अज़रबैजान का डिजिटल नियंत्रण और पत्रकारों को निशाना बनाना
पेगासस प्रोजेक्ट कंसोर्टियम के एक सदस्य, द आर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) ने पिछले महीने सूचित किया था कि कथित जासूसी सूची में अजरबैजान से एक हजार से अधिक की संख्या में नंबरों को रखा गया था। इसने उन्हें संकेत दिया था कि वे व्यक्तिगत रूचि और संभावित निशाने पर रखे गए लोगों के फोन नंबर थे।
इनमें से पेगासस प्रोजेक्ट कुल 245 फोन नंबरों की पहचान कर पाने में सफल रहा है। इन पहचान में आ चुके नंबरों में से ज्यादातर फोन पत्रकारों, असंतुष्टों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अज़र्बेजानी शासन के राजनीतिक विरोधियों के पाए गए हैं। इसके अतिरिक्त, स्नूपिंग सूची में उनके परिवार के सदस्यों और मित्रों तक के नाम हैं।
सूची में ऐसे नाम दर्ज थे, जिनका सरकार की निरंकुश नीतियों, राजनीतिक गलियारों में व्याप्त भ्रष्टाचार, चुनाव में धांधलेबाजी, मानवाधिकार के बिगड़ते ट्रैक रिकॉर्ड, और नागरिक स्वतंत्रता पर बढ़ते प्रतिबंधों के खिलाफ सवाल उठाने के कारण अज़रबेजानी सरकार द्वारा उत्पीड़न का लंबा इतिहास पाया गया है।
अजरबैजान में प्रेस की आजादी पर लगाम लगाने और सेंसरशिप लगे होने के कारण पत्रिकारिता कर पाना लगातार मुशिकल होता जा रहा है। अधिकांश रिपोर्टरों, संपादकों और मीडिया कंपनी के मालिकों को कथित सूची में डालकर उनके उपर लक्षित उत्पीड़न, आपराधिक आरोपों को थोपना, यात्रा प्रतिबंधों और यहाँ तक कि राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव के निरंकुश शासनकाल में उनके 2003 में विवादित चुनाव में सत्तानशीं होने के बाद से लौह दस्तानों के साथ शासन करने के दौरान कारावास की सजा तक भुगतनी पड़ी है।
यदि पत्रकारों ने अलियेव या उनके राजनीतिक दल, द न्यू अज़रबैजान पार्टी जो 1993 से सत्ता में है, को नकारात्मक रूप में पेश किया, तो उस स्थिति में वहां पर पत्रकारों को गंभीर व्यक्तिगत जोखिम के तहत काम करना पड़ता है । यह देश में एक खुला रहस्य है कि असंतुष्टों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों सहित कुछ सरकार समर्थकों तक को निगरानी के तहत रखा जाता है, जिसे सरकार गहन परिष्कृत डिजिटल उपकरणों के माध्यम से लगातार करती आ रही है।
सबसे उल्लेखनीय, महिला पत्रकारों को सरकारी एजेंसियों और सरकार समर्थक ताकतों के द्वारा यौनिक शर्मिंदगी के जरिये लक्षित किया जाता है, क्योंकि उनकी अन्तरंग तस्वीरों और वीडियोज को या तो उनकी जानकारी के बिना रिकॉर्ड कर लिया जाता है, या हैकिंग के जरिये उनके डिजिटल उपकरणों से इसे हासिल कर लिया जाता है, और फिर उन्हें डराने और उन्हें हमेशा के लिए खामोश कर देने के लिए सार्वजनिक तौर पर लीक कर दिया जाता है।
इसी प्रकार पुरुष पत्रकारों को भी ब्लैकमेल करने के लिए उनकी महिला रिश्तेदारों को लक्षित किया जाता है।
ओसीसीआरपी का कहना है कि हालाँकि उसके पास इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि अजरबैजान सरकार की पहुँच स्पाईवेयर तक है, लेकिन अजरबैजान के फोन नंबर और व्यक्तियों की पहचान के साथ-साथ इस संबंध में सरकार के अब तक के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए ऐसा लगता है कि अज़र्बेजानी सरकार के पास निश्चित रूप से पेगासस तक पहुँच है और यह एनएसओ ग्रुप का ग्राहक है।
फोरेंसिक विश्लेषण ने पुष्टि की है कि महिला पत्रकारों खदीजा इस्मयिलोवा और सेविंज वकिफ्किज़ी से संबंधित दो अज़र्बेजानी फोन नंबर, वास्तव में पिछले दो साल से भी अधिक समय से स्पाईवेयर से संक्रमित थे।
अजरबैजान प्रशासन ने इस मामले में चुप्पी साध ली है, और इन आरोपों पर उनकी और से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। एनएसओ ग्रुप ने भी अपने ग्राहकों और पेगासस स्पाईवेयर के कथित दुरुपयोग पर किसी प्रकार की टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है।
सऊदी अरब द्वारा कथित रुप से पीएसजी के मालिक और बिन स्पोर्ट्स चैनल के अध्यक्ष को लक्षित किया गया था
ले मोंडे के अनुसार, कतरी व्यवसायी, खेल कार्यकारी और राजनीतिज्ञ नासेर अल-खेलैफी से संबंधित दो अलग-अलग फोन नंबर पेगासस स्पाईवेयर के माध्यम से निगरानी सूची में कथित रूप से लक्षित पाए गए थे।
उक्त फ़्रांसिसी दैनिक के अनुसार फ़्रांसिसी फुटबाल क्लब पेरिस सैंट जर्मैन (पीएसजी) के अध्यक्ष और बेइन स्पोर्ट्स के चेयरमैन के फोन की संभावित हैकिंग 2018 में क़तर राजनयिक संकट के दौरान हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप सऊदी अरब, संयुक्त राज्य अमीरात, बहरीन और मिस्र ने क़तर के साथ रिश्ते तोड़ लिए थे और राजनयिक, यात्रा एवं आवागमन पर नाकाबंदी लागू कर दी थी, जिसे इसी साल की शुरुआत में हटा लिया गया था।
यह कार्यवाही इन दावों के आधार पर की गई थी कि दोहा ने “आतंकवाद का समर्थन किया था” और ईरान के साथ इसके प्रगाढ़ संबंध हैं। क़तर लंबे समय से इन आरोपों से इंकार करता आ रहा है।
ले मोंडे ने अपनी रिपोर्ट में आगे रहस्योद्घाटन किया है कि एनएसओ ग्राहक जिसने अल-खेलैफी को अपने लक्षित सूची में रखा था, ने स्पाईवेयर का इस्तेमाल पीएसजी के संचार मामलों के निदेशक, जीन-मार्टियल रिबेस, बेइन मीडिया ग्रुप के प्रबंधन सदस्यों, लेबनानी, तुर्की एवं अमीरात के वरिष्ठ अधिकारियों और सऊदी राजशाही के आलचकों के फोन में संभावित घुसपैठ में किया था। इससे यह संकेत मिलता है कि ग्राहक कोई सऊदी सुरक्षा एजेंसी होनी चाहिए।
पेगासस प्रोजेक्ट के पास इनमें से किसी भी संभावित लक्ष्यों के फोन तक पहुँच नहीं बन सकी है, और इसलिए वे इस बात को पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते हैं कि क्या ये फोन वास्तव में पेगासस से संक्रमित थे।
क़तर और सऊदी अरब के बीच में विवाद 2018 में तब और बढ़ गया था जब यह बात प्रकाश में आई कि सऊदी अरब स्थित एक लुटेरे चैनल बेऔतक्यू ने फुटबाल लीग और खेल आयोजनों को प्रसारित करने के लिए बेइन के सिग्नल्स चुराए थे, जिनके विशेषाधिकार बेइन ने खरीद रखे थे। तत्पश्चात, क़तर ने विश्व व्यापर संगठन के समक्ष इस लुटेरे चैनल के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज कर दी थी, और नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए 1 अरब डॉलर की मांग की थी। इस पूरे प्रकरण में सऊदी अरब के आचरण की कई देशों और अन्तर्राष्ट्रीय फुटबाल निकायों की ओर से कड़ी निंदा की गई थी।
सऊदी प्रशासन को अभी भी बेइन मीडिया की ओर से बेआउटक्यू के कॉपीराइट कंटेंट के वितरण पर प्रतिबन्ध लगाये जाने के अनुरोधों को पूरी तरह से अमल में लाना बाकी है। उल्टा इसके बजाय जुलाई 2020 में बेइन मीडिया के कामकाज पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। जून 2020 में, डब्ल्यूटीओ ने बेइन के दावों का समर्थन किया कि बेआउटक्यू को सऊदी अरब में कुछ व्यक्तियों द्वारा प्रमोट किया गया था।
एनएसओ ने पेगासस के दुरुपयोग के खिलाफ लगाये गए इन सभी आरोपों से इंकार किया है और कहा है कि पेगासस प्रोजेक्ट द्वारा दायर की गई रिपोर्ट “झूठे अनुमानों एवं अपुष्ट सिद्धांतों” पर आधारित है।
साभार: द लीफलेट
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