Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बिजली क़ानून संशोधन के ख़िलाफ़ इलेक्ट्रिक इंजीनियरों और किसानों की राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन की तैयारी

पिछले महीने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा था कि बिजली क़ानून में संशोधन के लिए सभी हितधारक सहमत हैं। हालांकि एआईपीईएफ और एसकेएम का कहना है कि उनके साथ अभी तक कोई चर्चा नहीं हुई है।
electricity
Image courtesy : NDTV

देश में एक तरफ बिजली कर्मचारियों और किसानों के बीच तो वहीं दूसरी तरफ केंद्र से तनाव बढ़ने की संभावना है क्योंकि केंद्र आगामी मानसून सत्र में बिजली अधिनियम 2003 में एक विवादास्पद संशोधन को पारित कराने पर जोर दे सकता है।

देश भर में लगभग 27 लाख बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को इस निर्णय के विरोध में देशव्यापी हड़ताल करने को मजबूर किया जाएगा। देश के किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह के साथ साथ बिजली कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्रीय संगठन ने केंद्र पर अपने वादों से मुकरने का आरोप लगाया है। ये संगठन 500 जिलों में विरोध प्रदर्शन का आह्वान कर चुकी है।

बिजली (संशोधन) विधेयक, 2021 जिसका उद्देश्य देश में बिजली वितरण व्यवसाय को डी-लाइसेंसिंग करना है। इस विधेयक को मानसून सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। ये सत्र 18 जुलाई से शुरू होने वाला है। केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने पिछले महीने फिक्की द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि इस विधेयक को मानसून सत्र में पेश किए जाने की संभावना है।

द इकोनॉमिक टाइम्स ने सिंह के हवाले से लिखा, "हमें (बिजली मंत्रालय को) इसे मानसून सत्र में संसद तक ले जाने में सक्षम होना चाहिए।"

अखिल भारतीय विद्युत अभियंता महासंघ (एआईपीईएफ) ने रविवार को एक बयान में कहा कि देश में इलेक्ट्रिक इंजीनियरों ने विद्युत अधिनियम में विवादास्पद संशोधन के पारित होने के संबंध में सिंह के बयान का कड़ा विरोध किया है।

राष्ट्रीय संगठन ने कहा, "इसे संसद के मानसून सत्र में जल्दबाजी में पेश नहीं किया जाना चाहिए और सभी हितधारकों, विशेष रूप से बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मचारियों के साथ विस्तार से चर्चा की जानी चाहिए।"

एआईपीईएफ ने रविवार को आगे कहा कि उसने सिंह को एक पत्र भेजकर उपरोक्त मांग की थी और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को भी पत्र लिखकर इस संशोधन विधेयक के दूरगामी परिणामों को रोकने के लिए प्रभावी हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था।

एआईपीईएफ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने रविवार को कहा कि जुलाई में दिल्ली में होने वाली एक राष्ट्रीय बैठक में संगठन "राष्ट्रव्यापी आंदोलन" पर फैसला करेगा। इस संगठन ने पिछले महीने कहा था कि "देश भर के बिजली कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर किया जाएगा।"

केंद्र के खिलाफ निराशा व्यक्त करते हुए और किसानों से किए गए लिखित वादों से पूरी तरह से मुकरने का आरोप लगाते हुए पिछले साल किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने इस महीने की शुरुआत में देश के 500 जिलों में "विश्वासघात के खिलाफ विरोध" करने का आह्वान किया था जो 18 जुलाई से शुरू होना है।

40 से अधिक किसान संगठनों के समूह ने कहा कि इस राष्ट्रीय अभियान का समापन 31 जुलाई को सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक सभी राजमार्गों पर चक्का जाम के साथ होगा।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के राष्ट्रीय महासचिव हन्नान मोल्ला ने सोमवार को न्यूज़क्लिक को बताया कि किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक समिति के गठन की मांग के साथ-साथ किसानों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने के लिए और बिजली अधिनियम में संशोधन नहीं करने के लिए केंद्र पर दबाव डालेंगे।

तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के केंद्र सरकार के फैसले के मद्देनजर कृषि सुधार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन की समाप्ति की घोषणा के बाद पिछले साल दिसंबर में एसकेएम और केंद्र के बीच हुए एक समझौते के अनुसार सहमति का एक बिंदु यह था कि सरकार बिजली (संशोधन) विधेयक, 2021 को संसद में पेश करने से पहले किसानों के साथ पर चर्चा करेगी।

मोल्ला ने सोमवार को न्यूज़क्लिक से कहा कि न तो बिजली कानून में संशोधन पर केंद्र द्वारा अभी तक एसकेएम के साथ चर्चा की गई है और न ही एसकेएम को अभी तक चर्चा के लिए बुलाया गया है।

हालांकि, सिंह द्वारा किए गए एक दावे के यह विपरीत है जिन्होंने पिछले महीने फिक्की के कार्यक्रम में दावा किया था कि हर कोई (सभी मंत्री और हितधारक) बिजली कानून में संशोधन के लिए सहमत हैं। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में इसे प्रकाशित किया गया।

न्यूज़क्लिक ने पहले रिपोर्ट किया था कि कैसे 2003 के विद्युत अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन की शक्तियों को सीमित करते हुए देश में बिजली वितरण व्यवसाय में निजीकरण मॉडल पर जोर देता है। ये सभी कथित तौर पर निजी निगमों को फायदा पहुंचाने के लिए है।

एआईपीईएफ के दुबे ने रविवार को एक बयान में कहा, "सरकारी बिजली निगमों ने अरबों खरबों रुपये खर्च करके बिजली के ट्रांसमिशन और वितरण का नेटवर्क स्थापित किया है और इसके रखरखाव पर सरकारी निगम करोड़ों रुपये हर माह खर्च कर रहे हैं। इस विधेयक के माध्यम से निजी घरों को लाभ उठाने के लिए इसका इस्तेमाल करने की अनुमति है। इस संशोधन विधेयक को आगे बढ़ाने की सरकार की यही मंशा है।"

एआईपीईएफ ने कहा कि, जहां तक इसका संबंध है कि यह उपभोक्ताओं को एक विकल्प देगा, जो कि "पूरी तरह से गलत है।" संगठन ने आगे टिप्पणी की कि प्रस्तावित विधेयक में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि यूनिवर्सल पावर सप्लाई ऑब्लिगेशन केवल सरकारी वितरण कंपनियों का होगा।

"निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियां केवल लाभप्रद औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को बिजली देने के लिए सरकारी नेटवर्क का इस्तेमाल करेंगी। इस तरह, घाटे में चल रहे घरेलू उपभोक्ताओं और ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को बिजली उपलब्ध कराने का काम स्वतः केवल सरकारी बिजली वितरण कंपनी का होगा। इससे सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनियां आर्थिक रूप से कमजोर हो जाएंगी और उनके पास बिजली खरीदने के लिए आवश्यक पैसा भी नहीं होगा।"

इसी तरह एआईकेएस के मोल्ला ने भी सोमवार को न्यूज़क्लिक को बताया कि बिजली वितरण का लाइसेंस रद्द करना देश में "कृषि क्षेत्र के लिए विनाशकारी" होगा।

उन्होंने कहा, "पेट्रोल और डीजल की कीमतें पहले से ही आसमान छू रही हैं। ऐसे समय में, बिजली कानून में प्रस्तावित संशोधन पारित होने की स्थिति में किसानों को और अधिक गरीबी में धकेल दिया जाएगा।"

इस बीच पिछले महीने की शुरुआत में पीपल्स कमीशन ऑन पब्लिक सेक्टर एंड सर्विसेज (पीसीपीएसएस) ने एक प्रेस बयान में बिजली कानून में प्रस्तावित संशोधन पर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि यह संविधान के संघीय ढांचे पर एक "हमला" है।

पीसीपीएसएस जो कि शिक्षाविदों, उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों और पूर्व नौकरशाहों का एक समूह है जिसने अपने बयान में कहा कि, "बिजली समवर्ती सूची का विषय है और केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास इस विषय पर कानून बनाने की शक्तियां हैं। लेकिन इस बिजली अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों ने राज्य की शक्तियों को काफी हद तक हड़प लिया और उन्हें केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों के साथ केंद्रित कर दिया।"

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Power Engineers, Farmers Hint at Nationwide Protests Against Electricity Law Amendment

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest