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अलेंदे और उनके प्रोजेक्ट साइबरसिन की ख़ासियत क्या थी?

कम लोग ही यह जानते हैं कि अलेंदे और उनकी सरकार ने, प्रोद्योगिकी का तथा खासतौर पर फैक्टरियों से, जिनका उन्होंने राष्ट्रीयकरण कर दिया था, मिलने वाली जानकारियों का, अर्थव्यवस्था में रीयल टाइम नियोजन तथा हस्तक्षेपों के लिए उपयोग करने का प्रयास किया था।
Salvador Allende

(यह लेख मूल रूप से अंग्रेज़ी में 2 अक्टूबर को प्रकाशित हुआ था, जिसका तर्जुमा यहाँ पेश किया जा रहा है।)

पचास साल हो गए, जब पिनोशे के तख्तापलट ने अलेंदे की सरकार को हटा दिया था और चिली में उदार जनतंत्र के ढांचे को ही ध्वस्त कर दिया था। अलेंदे की मौत, हाथ में मशीनगन लेकर, मोर्चे पर लड़ते हुए हुई। वह एक ओर अमरीका और दूसरी ओर चिली में प्रतिक्रिया की ताकतों की, जिनमें सेना भी शामिल थी, संयुक्त शक्ति के खिलाफ, चिली में समाजवाद का निर्माण करने के अपने प्रयास की हिफाजत करने के लिए लड़ते हुए शहीद हुए थे। मेरी पीढ़ी के लोगों के लिए यह पूरा प्रसंग बखूबी जाना-पहचाना है। वास्तव में वियतनाम तथा अफ्रीका के मुक्ति संघर्षों के अलावा चिली का घटनाक्रम ही था, जिसने हमें तब एकजुटता प्रकट करने के लिए सडक़ों पर उतरने के लिए प्रेरित किया था।

शिकागो बॉयज़ बनाम सेंटियागो बॉयज़

बहरहाल, विद्वानों तथा प्रौद्योगिकी के जानकारों के एक अपेक्षाकृत छोटे हलके को छोडक़र, कम लोग ही यह जानते हैं कि अलेंदे और उनकी सरकार ने, प्रोद्योगिकी का तथा खासतौर पर फैक्टरियों से, जिनका उन्होंने राष्ट्रीयकरण कर दिया था, मिलने वाली जानकारियों का, अर्थव्यवस्था में रीयल टाइम नियोजन तथा हस्तक्षेपों के लिए उपयोग करने का प्रयास किया था। यह परियोजना, जिसे साइबरसिन का नाम दिया था, प्रौद्योगिकी को सामाजिक जरूरतों के साथ जोडऩे की अपनी संकल्पना या विजन के लिए, जिसमें फैक्टरियों से मजदूरों से सीधे आने वाली जानकारियां भी शामिल थीं, प्रौद्योगिकी से जुड़े समुदाय को अब भी प्रभावित करती है। साइबरसिन का कंट्रोल रूम आइकनिक है और उस चीज का पूर्ववर्ती है जिसका विकास आगे चलकर एक सहजज्ञान युक्त ग्राफिक उपयोक्ता इंटरफेस में हुआ है, जो एप्पल जैसी कंपनियों को माइक्रोसॉफ्ट व अन्य के कहीं ज्यादा भद्दे उपयोक्ता इंटरफेस से अलग करता है।

ईडन मदीना और एवजेनी मोरोजोव दो ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने दो दशक से ज्यादा तक प्रोजैक्ट साइबरसिन की छानबीन की थी। मदीना की 2011 में प्रकाशित पुस्तक, ‘‘साइबर्नेटिक रिवोल्यूशनरीज़: टैक्रोलॉजी एंड पॉलिटिक्स इन अलेंदेज़ चिली’’ ऐसी सबसे महत्वपूर्ण कृति है, जो उस समय के चिली के संदर्भ और उसकी उसकी प्रौद्योगिकी तथा राजनीति, दोनों की ही सीमाओं को भी सामने लाती है। और ऐवजेनी ने, जो लंबे अर्से से चिली तथा प्रोजैक्ट साइबरसिन पर शोध कर रहे थे, पिछले ही दिनों द सेंटियागो बॉयज़ के शीर्षक से पॉडकास्टों की एक शृंखला तैयार की है, जिसमें पूरे नौ पॉडकास्ट हैं। ये पॉडकास्ट हमारे सामने प्रोजैक्ट साइबरसिन का सिंहावलोकन तो प्रस्तुत करते ही हैं, इसके साथ ही अमरीकी बलों--आइटीटी व अन्य अमरीकी बहुराष्ट्रीय निगमों, सीआइए, चिली के सशस्त्र बलों तथा अर्थशास्त्रियों या द शिकागो बॉयज़, जिनका नेतृत्व अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन कर रहे थे--और मुट्ठीभर युवा टैक्रोक्रेटों, इंजीनियरों व अर्थशास्त्रियों यानी सेंटियागो बॉयज और ब्रिटिश सूचना प्रौद्योगिकीविद स्टॉफोर्ड बीयर के बीच की, एक नाबराबरी की लड़ाई को भी सामने लाते हैं। वह साइबरसिन को और वृहत्तर संदर्भ में रखकर दिखाते हैं, जहां यह सिर्फ अर्थव्यवस्था के प्रबंधन या उस पर नियंत्रण का ही मामला नहीं रहता है बल्कि इसका प्रश्न बन जाता है कि उस ज्ञान का कैसे विकास किया जाए, जो भविष्य के लिए प्रौद्योगिकी तथा उत्पादन के पीछे काम कर रहा होगा।

नये ज्ञान के सृजन का संघर्ष

इस वृहत्तर अर्थ में सूचना का अर्थ, नये ज्ञान का सृजन करना है और इसलिए पेटेंट व्यवस्था को लेकर संघर्ष, ज्ञान को लेकर संघर्ष है। भारतीय पेटेंट व्यवस्था में एक भारी बदलाव हुआ था और 1911 के भारतीय पेटेंट कानून के रूप में अपने पहले के औपनिवेशिक स्वरूप से, 1971 का पेटेंट कानून, एक भारी बदलाव को दिखाता था। एवजेनी सेंटियागो बॉयज़/ स्कूल की दृष्टि के रूप में, वैसी ही दृष्टि सामने लाते हैं, जैसी हमारे यहां भारत में आत्मनिर्भरता को लेकर देखने को मिली थी। इस दृष्टिï में, आयात प्रतिस्थापन ही काफी नहीं था। पर-निर्भरता से मुक्ति पाने का अर्थ नये ज्ञान का सृजन करना था। इसका अर्थ यह था कि ज्ञान के क्षेत्र में विकास को, जिसमें वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय, दोनों ज्ञान शामिल हैं, उद्योग के साथ जोड़ा जाए। पेटेंट व्यवस्था में सुधार ऐसी परिस्थितियां निर्मित कर सकते हैं, जिनमें हम ज्ञान का सृजन कर सकते हैं। लेकिन, इस ज्ञान को उद्योग में लाने का अर्थ होता है, ज्ञान के विभिन्न रूपों को इस तरह से आपस में बांधना, जिनसे उत्पादों का विनिर्माण संभव हो। इस शृंखला में सरल उत्पाद, कहीं जटिल उत्पादों के निर्माण के काम आते हैं, जो ऐसे घटकों की एक विशाल संख्या को एकीकृत कर के बनते हैं।

येवजेनी ने अपने पॉडकास्टों या अन्य लेखन में जो कुछ बताया है, मैं उसके ब्यौरे में नहीं जाऊंगा। मैं इसमें से सिर्फ एक उदाहरण देना चाहूंगा कि अगर चिली आत्मनिर्भरता के  रास्ते पर चल पाता तो क्या होता? वह लिखते हैं कि किस तरह अलेंदे के दौर की कोर्फो ने नेशनल इलैक्ट्रोनिक्स कंपनी स्थापित की थी, जिसे देश के उत्तरी हिस्से में एक सेमी-कंडक्टर संयंत्र निर्मित करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। इसने चिली को, जो पहले सिर्फ नाइट्रेटों तथा कॉपर का निर्यातक हुआ करता था, ‘एक प्रौद्योगिकीय रूप से उन्नत अर्थव्यवस्था बनने का मौका दिया होता, जो अपनी विकास की जरूरतें पूरी करने में समर्थ होती।’ इस स्तंभ के पाठकों को याद होगा कि किस तरह भारत ने मोहाली में एक सेमीकंडक्टर परिसर निर्मित किया था। इसने चंद सालों में ही भारतीय चिप निर्माण क्षमताओं को उस स्तर पर पहुंचा दिया था, जहां से उस समय की सबसे विकसित चिप निर्माण क्षमताएं सिर्फ एक या दो पीढ़ी दूर रह जाती थीं। लेकिन, किस तरह 1989 में वहां रहस्यमय तरीके से आग लगने के बाद, उसे दोबारा कभी खड़ा ही नहीं किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि हमें अब बाकी दुनिया को इसके लिए भारी ‘‘प्रोत्साहनों’’ की पेशकशें करनी पड़ रही हैं कि हमारे यहां आकर संयंत्र लगाएं और वह भी चिप निर्माण के संयंंत्र नहीं बल्कि चिप पैकेजिंग के संयंत्र। चिली के मामले में, अमरीका-प्रेरित तख्तापलट ने अलेंदे सरकार को खत्म करा दिया तथा एक लक्ष्य के रूप में आत्मनिर्भरता का या प्रौद्योगिकीय स्वतंत्रता का परित्याग करा दिया। भारत में, कांग्रेस से भाजपा तक, मुख्यधारा की राजनीति के इंद्रधनुष के इस सिरे से उस सिरे तक, नवउदारवादी ताकतों के खुद अपने ही पाले में गोल मारने के रूप में, आत्मनिर्भरता का त्याग कर दिया गया।

ज्ञान पर स्वामित्व : वर्ग संघर्ष का मोर्चा

येवजेनी, प्रोजैक्ट साइबरसिन के सूचना नैटवर्क और सीआइए की कुख्यात परियोजना, ऑपरेशन कोंडोर के सूचना व  नियंत्रण बुनियादी ढांचे की, जिसका मकसद लातीनी अमरीका में वामपंथी ताकतों तथा वामपंथी सरकारों को ध्वस्त करना तथा उनका कत्ल करना था, डरावनी समानताओं को भी सामने लाते हैं। दोनों के पीछे उस जमाने की प्रौद्योगिकी की शक्ति और सीमाएं थीं--डॉटा तथा सूचना के संचार के मुख्य साधन के रूप में टेलैक्स का ही उपयोग होता था। यह उन लोगों के लिए एक शिक्षाप्रद कहानी है, जो प्रौद्योगिकी-आधारित दिवास्वप्नों में विश्वास करते हैं और यह समझते हैं कि प्रौद्योगिकी की प्रगति से, खुद ब खुद दुनिया की सारी समस्याएं हल हो सकती हैं। प्रौद्योगिकी तथा विज्ञान की प्रगतियों मेें इतनी क्षमता होती है कि मानवीय आवश्यकताओं के लिए, आज की आवश्यकताओं के लिए भी और भविष्य की आवश्यकताओं के लिए भी, उनसे पर्याप्त मिल जाएगा। लेकिन, इसके साथ यह सरल सा सवाल सामने आता है, कि इस तरह की प्रगति किस की मिल्कियत है। या यह कहना ही ज्यादा सही होगा कि ज्ञान उन वस्तुओं में जड़ित रहता है, जो एक समाज के रूप में हम पैदा करते हैं। उत्पादन के साधनों पर, और सिर्फ इन मालों को पैदा करने के भौतिक बुनियादी ढांचे पर ही नहीं बल्कि ज्ञान का उत्पादन करने वाले बुनियादी ढांचे पर भी, किस की मिल्कियत है? यही वह जगह है जहां हम वर्गीय संघर्ष की सचाई से रूबरू होते हैं, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों ही स्तरों पर वर्ग संघर्ष की सचाई से। सीआइए, आइटीटी (इसे अमरीकी पूंजी समझें)और सामंती-सैन्य अभिजन द्वारा अलेंदे का तख्तापलट, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों ही स्तरों पर इस वर्गीय संघर्ष की प्रकृति की हमें याद दिलाता है।

सूचना और प्रौद्योगिकी की राजनीति

इस कहानी का दूसरा हिस्सा सूचना प्रौद्योगिकी का है, जो अलेंदे के दौर तक अपने शैशव में ही थी। बहुत से लोग बहुत भोलेपन में यह मानते थे कि नयी डिजिटल प्रौद्योगिकियां हम सब को मुक्ति दिला सकती हैं। मुक्त सॉफ्टवेयर तथा इंटरनैट से खुद ही समाजवाद आ जाएगा--प्रौद्योगिकी का और इसलिए समाज का जनतांत्रीकरण हो जाएगा। नोर्बर्ट वीनर ने, जिन्हें साइबरनेटिक्स  का पिता माना जाता है, अपनी पुस्तकों--साइबरनेटिक्स (1948) तथा ह्यïूमन यूज़ ऑफ ह्यïूमन बीइंग्स (1950)--में पहले ही आगाह कर दिया था कि टिपिकल अमरीकी दुनिया में सूचना के लिए एक खास नियति तय है। सूचना एक ऐसे माल में तब्दील हो जाएगी जिसे बेचा, खरीदा जा सकेगा और जिस पर सौदेबाजी की जा सकेगी। अपरिहार्य रूप से इसका सार्वजनिक हित को आगे बढ़ाने के मानवीय मूल्यों से टकराव होगा।

‘जैसे प्रौद्योगिकी नये अवसर खोलती है, वैसे ही नयी सीमाएं भी लगाती है।’ मीरों अमित इस टकराव की वीनर की संकल्पना के बारे में लिखते हैं और बताते हैं कि किस तरह सूचना का एक माल में रूपांतरण, उसके निजी रूप से हड़पे जाने को संभव बनाता है और जीवन को ही नुकसान पहुंचाता है। हालांकि, इंटरनैट के आने से सूचना के नैटवर्क में भारी बदलाव आ गए हैं, फिर भी सूचना और प्रौद्योगिकी की राजनीति,अब भी जनता और पूंजी के बीच टकराव की ही राजनीति है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।)

Remembering Allende and his Project Cybersyn
 

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