सीएजी ने खोली वसुंधरा सरकार की पोल : रोजगार नहीं बेरोजगारी में अव्वल राजस्थान
हाल में आयी सीएजी (कंट्रोलर एंड एडिटर जनरल ऑफ़ इंडिया) रिपोर्ट ने राजस्थान सरकार के रोज़गार पर किये दावों की हवा निकल दी है। हाल में बाहर आयी सीएजी रिपोर्ट ने यह बताया है कि वसुंधरा सरकार के लाखों रोज़गार प्रदान करने के दावे पूरी तरह खोखले हैं।
फिलहाल वसुंधरा राजे चुनाव प्रचार करने के लिए प्रदेश में 'गौरव यात्रा ' निकाल रही हैं। इसी दौरान कुछ दिन पहले उन्होंने दावा किया था कि उनकी सरकार ने अब तक 16 लाख युवाओं का कौशल विकास करके उन्हें रोजगार प्रदान किया है। मुख्यमंत्री का यह भी दावा था कि उन्होंने बेरोज़गारों को 3. 25 लाख नौकरियाँ दी और इनमें से 1.35 लाख नौकरियाँ देने की प्रक्रिया चल रही है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि सरकार ने 20 लाख लोगों को मुद्रा योजना के तहत स्वरोज़गार के लिए क़र्ज़ दिया।
लेकिन सीएजी रिपोर्ट ने इन दावों की पोल खोल दी है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सीएजी ने सरकार के राजस्थान स्किल एंड लाइवलीहुड कॉपोरेशन के 2014 से 2017 तक के रोज़गार पर दिए गए आंकड़ों को गलत बताया है। सरकार का दावा है कि उसने कौशल विकास योजना के अंतर्गत 2014 से 2017 के बीच 1 लाख 27 हज़ार 817 लोगों को प्रशिक्षित किया और उनमें से 42,758 लोगों को रोज़गार मिला। लेकिन सीएजी के मुताबिक सिर्फ 9904 लोगों को रोज़गार मिला। सीएजी ने सरकार को सलाह देते हुए यह भी कहा कि 'राज्य में कौशल विकास के ज़रिये बेरोजगारी की समस्या को तुरंत दूर किए जाने की आवश्यकता है।' वहीं दूसरी तरफ राज्य के कौशल विकास मंत्री कह रहे हैं कि हमने ट्रेनिंग के बाद 16 लाख नौकरियाँ निजी क्षेत्र में दिलवाई हैं।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 2013 में चुनाव के समय राज्य में 15 लाख रोज़गार पैदा करने की बात की थी। लेकिन सूत्र बताते हैं कि इस साल विधानसभा के बजट सेशन में एक सवाल के जवाब से पता चला कि पिछले पाँच साल सिर्फ 50,000 के आसपास ही नौकरियाँ पैदा की गयीं।
इसके साथ ही नेशन करियर सर्विस के हिसाब से राजस्थान में 8,80,144 लोगों ने खुद को बेरोज़गार पंजीकृत कराया था। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गयी इस योजना के तहत सिर्फ 19,605 वेकेंसियां निकाली गयीं। इसका अर्थ है कि बेरोज़गारी के हिसाब से सिर्फ 2.2 % वेकेंसियां थीं। हमें यह भी समझना होगा कि बहुत से बेरोज़गार खुद को पंजीकृत नहीं कराते।
राजस्थान में मुख्य तौर पर लोग खेती और पशुपालन से जुड़े हुए हैं। कृषि संकट के बढ़ जाने की वजह से लोग भारी संख्या में बेरोज़गार हो गए हैं। दूसरी तरफ निजी निवेश में भी कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है और न ही सरकार ने औद्योगीकरण की तरफ कोई कदम बढ़ाये हैं। पिछली बार इसी मुद्दे पर बात करते हुए भाकपा माले के राज्य कमेटी सदस्य शंकर लाल चौधरी ने कहा कि राजस्थान शिक्षक योग्यता परीक्षा (Rajasthan Eligibility Exam for Teachers- REET) एक परीक्षा हुआ करती थी, जिसमें योग्यता साबित करने के बाद छात्रों को नौकरियाँ मिल जाती थीं। लेकिन पिछले 4 सालों से REET के तहत भर्तियां नहीं की जा रही हैं, क्योंकि परिणामों में गफलत के चलते मामला हाईकोर्ट में चला गया। लेकिन चुनाव पास आने की वजह अब सरकार ने इस परीक्षा के तहत 35,000 वेकेंसियां निकाली हैं। राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन में भी बहुत खामियां होने की वजह से वहाँ भी भर्तियाँ नहीं हुईं।
राजस्थान में पिछले सालों में ग्रामीण रोज़गार की स्कीम मनरेगा द्वारा भी रोज़गार नहीं पैदा किये जा रहे हैं। शंकर लाल चौधरी के हिसाब से "गाँवों में जेसीबी मशीने लगा रखी हैं, जिनके ज़रिये काम कराया जा रहा है। गाँव के सरपंच, प्रधान, कांट्रेक्टर और स्थानीय राजनेता मनरेगा के अंतर्गत मिलने वाले वाले पैसे को इस तरह खर्च कर रहे हैं। जहाँ 100 लोगों को काम मिलना चाहिए वहाँ सिर्फ 6 -7 लोगों को काम मिलता है। बाकी के पैसे का हिसाब नहीं है। इसके अलावा आरक्षण के ज़रिये जो लोगों को नौकरियाँ मिलनी चाहिए वहाँ एक भी भर्ती नहीं हुई। "
सूत्रों के हिसाब से इसके साथ ही वसुंधरा राजे की सरकार ने करीब 30,000 सरकारी स्कूलों का एकीकरण कर दिया था। इस वजह से राज्य भर में करीब 90,000 अध्यापकों और कर्मचारियों के खाली पद ख़त्म हो गए थे। योजना यह भी थी कि 300 स्कूलों को निजी हाथों में सौंप दिया जाए। लेकिन भारी जन विरोध के बाद सरकार को इस फैसले केसे पीछे हटना पड़ा।
पिछले कई सालों से राजस्थान प्रशासनिक एवं अधीनस्थ सेवा (Rajasthan Administrative and Subordinate Services- RAS) की परीक्षा में धांधलेबाजी के चलते एग्जाम हुआ ही नहीं है। इसमें करीब 1500 से 2000 वेकेंसियां निकलती थी। लेकिन पिछले कई सालों से इसका मामला कोर्ट में चल रहा था। लेकिन चुनाव नज़दीक आने की वजह से अब एग्जाम कराया जा रहा है।
आँकड़े यह भी बताते हैं कि जहाँ देशभर में बेरोज़गारी की दर 6. 4 % है वहीं राजस्थान में यह दर 9.4 % है। यह आँकड़े अपने आप में एक कहानी बयान करते हैं।
प्रदेश में बेरोज़गारी का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि इस साल जनवरी में जब विधानसभा में चपरासी की नौकरी के लिए 18 वेकेंसी निकलीं तो उसके लिए 12,453 ने इंटरव्यू दिया। इनमें से 129 इंजीनियर, 23 वकील, 393 पोस्ट ग्रेजुएट और CA शामिल थे। जबकि इस नौकरी के लिए सिर्फ 10वीं पास होने की आवश्यकता थी। दिलचस्प बात ये है कि 18 चुने गए लोगों में से नौकरी पाने वाले एक व्यक्ति बीजेपी विधायक के बेटे थे।
इन सब तथ्यों पर नज़र डालकर यह साफ़ हो जाता है कि सरकार के 16 लाख रोज़गार देने का वादा कोरी कल्पना है। सीएजी की रिपोर्ट ने उसी बात पर मुहर लगाई है जिसे राजस्थान की जनता पहले से ही जानती है।
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