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हर घर तिरंगा: मुझे पता ही नहीं था कि देशभक्ति इतनी आसान चीज़ है

सरकार जी, आपने देशभक्तों और देशद्रोहियों को अलग करने का यह बहुत ही अच्छा तरीका ढूंढा है। आप के आने से पहले मुझे पता ही नहीं था कि देशभक्ति इतनी आसान चीज़ है।
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फ़ोटो : साभार पीटीआई

सरकार जी, मैंने यह वाला स्वतंत्रता दिवस ठीक उसी तरह से मनाया जैसा कि आपने कहा था। घर पर तिरंगा फहराया। वैसे पहले भी फहराता था पर इस बार जरूर फहराया। मैंने ही नहीं, मेरी कॉलोनी में लगभग सभी ने फहराया। जिन्होंने नहीं फहराया, उनकी लिस्ट बना ली गई है। जरूरत पड़ने पर उनकी खबर ले ली जाएगी।

सरकार जी, आपने देशभक्तों और देशद्रोहियों को अलग करने का यह बहुत ही अच्छा तरीका ढूंढा है। आप के आने से पहले मुझे पता ही नहीं था कि देशभक्ति इतनी आसान चीज है। मैं तो मानता था कि देश के कानून का पालन करना, सम्पूर्ण मानव जाति के प्रति संवेदना रखना, सभी मनुष्यों को समान समझना और उस सबसे ऊपर देश के संविधान में आस्था रखना, विश्वास करना ही देशभक्ति है।

पर आपके आने के बाद, आपके सरकार जी बनने के बाद पता चला कि देशभक्ति तो कुछ और ही चीज है। देशभक्ति करने की नहीं, दिखाने की चीज है। कभी जय श्री राम बोलना और बुलवाना देशभक्ति बन जाता है तो कभी वंदेमातरम् बुलवाना। आपके राज में ही धार्मिक आस्था देश के संविधान पर भारी पड़ देशभक्ति का पर्याय बन जाती है। कभी कभी तो गाय की आड़ में लोगों की लिंचिंग करना भी देशभक्ति बन जाता है। इसी तरह से इस बार झंडा फहराना देशभक्ति बन गया।

सरकार जी, आपके आने से पहले मैं एक ही स्वतंत्रता दिवस मनाता था, पंद्रह अगस्त को और एक ही गणतंत्र दिवस, छब्बीस जनवरी को। पर अब आपने और आपके लोगों ने बताया है कि स्वतंत्रता दिवस तो अन्य भी हैं। एक नहीं, कई सारे हैं। हां, गणतंत्र दिवस अभी भी एक ही है। कभी मनुस्मृति का संविधान दुबारा लागू हुआ, या फिर गोलवलकर-सावरकर वाला संविधान लागू हुआ तो गणतंत्र दिवस भी साल में दो तीन बार मनाया जाएगा।

अब समझ नहीं आता है कि स्वतंत्रता दिवस कब मनाएं। पंद्रह अगस्त को ही मनाएं या फिर आठ नवंबर को मनाएं, जिस दिन आपने देश को एक ही मास्टर स्ट्रोक से काले धन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद जैसी सभी चीजों से निजात दिला दी थी। उस दिन भी तो स्वतंत्रता दिवस मनाना चाहिए। 

स्वतंत्रता दिवस पंद्रह अगस्त को ही मनाएं या फिर धीरे-धीरे सभी चीजों को कर के दायरे में लेने वाले जीएसटी को लागू करने वाले दिन को। सरकार जी, आपने तो उसको भी स्वतंत्रता दिवस बताया था। सरकार जी, आपने तो जीएसटी लागू करने का फंक्शन आधी रात को ठीक उसी तरह किया था जैसे आजादी का जश्न चौदह पंद्रह अगस्त की मध्य रात्रि को संसद भवन में मनाया गया था। 

कुछ लोग एक और स्वतंत्रता दिवस बताते हैं। पांच अगस्त को। तो कुछ लोग कहते हैं कि स्वतंत्रता तो हमें 2014 में ही मिली है। तब तो हमें छब्बीस मई को ही स्वतंत्रता दिवस मनाना चाहिए था और इस वर्ष मनाते स्वतंत्रता की आठवीं वर्षगांठ।

आपके दल की ही एक युवा नेत्री ने यह भी बताया था कि पंद्रह अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता तो अंग्रेजों से लीज पर है। निन्यानवें साल की लीज पर। यानी चौबीस वर्ष बाद हमें पंद्रह अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाना बंद करना पड़ेगा। तब हम किस दिन स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे? मनाएंगे भी या नहीं मनाएंगे, आप ही बता दें। हमें दुबारा से गुलाम बनाना पड़ेगा या फिर आप अंग्रेजों के पास जा कर इस लीज को बढ़ावा आयेंगे।

सरकार जी, आपने पंद्रह अगस्त को लाल किले पर झंडा फहराया और भाषण भी दिया। भाषण जितना मर्जी लम्बा दिया जा सकता है और आप लम्बा भाषण देते भी आए हैं। आज की तारीख में न तो भाषण देने पर जीएसटी लागू है, न भाषण सुनने पर और न ही भाषण की लम्बाई पर। फिर भी अपने उतना लम्बा भाषण नहीं दिया जितना लम्बा आपने पिछले कुछ वर्षों में दिया था।

भाषण में आपने कहा, 'हम कभी कभी महिलाओं का अपमान करते हैं। हमें इससे छुटकारा पाने के लिए संकल्प लेना होगा'। महिलाओं के सम्मान के बारे में और भी बहुत कुछ बोला। बहुत ही अच्छी बात है कि आपको भी समझ में आ गया है कि महिलाओं का अपमान नहीं होना चाहिए। न बातों में, न कार्यों में। अच्छी बात है सरकार जी,अब हम आपके श्रीमुख से 'कांग्रेस की विधवा' और 'पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड' जैसे वाक्य नहीं सुनेंगे। आपने ही तो कहा था ना यह सब कुछ।

आप कहते हैं आपके राज में लोगों में आजादी बढ़ी है। हम भी मानते हैं, आपके राज्य में आजादी बढ़ी है। अपराधियों की आजादी बढ़ी है, बलात्कारियों की आजादी बढ़ी है, दलितों पर अत्याचार करने वालों की आजादी बढ़ी है, अमीरों की आजादी बढ़ी है, भांड मीडिया की आजादी बढ़ी है। और अगर आजादी नहीं बढ़ी है तो महिलाओं की नहीं बढ़ी है, दलितों की नहीं बढ़ी है, आदिवासियों की नहीं बढ़ी है। देश के सबसे पिछड़े वर्गों की नहीं बढ़ी है।  

इधर आप महिलाओं को इज्जत देने की बात कर रहे थे। आप तो भाषण दे ही रहे थे और उधर, गुजरात में, आपके ही प्रदेश में, इसे कार्यान्वित भी कर दिया गया। तुरंत के तुरंत कार्यान्वित कर दिया गया। वहां आपके ही दल की राज्य सरकार ने, उसी राज्य में जहां आप तीन तीन बार मुख्यमंत्री रहे, आपके ही कार्यकाल में हुए दंगों के दौरान, एक गर्भवती महिला से हुए सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के ग्यारह अभियुक्तों को, अच्छा चाल-चलन बता, क्षमादान दे, जेल से रिहा कर दिया। आपकी सरकार ने उन बलात्कारियों और हत्यारों को देश की आजादी के दिन जेल से आजादी दे दी। देश की आजादी के दिन महिलाओं का इससे अच्छा सम्मान और क्या हो सकता है।

 सरकार जी, बात तो हम तिरंगा फहराने की कर रहे थे। और बीच में पता नहीं क्या क्या बात शुरू हो गई। तिरंगा तो सरकार जी, बिलक़ीस बानो ने भी फहराया होगा। पर उसका दुर्भाग्य यह है कि उसका बलात्कार संस्कारी ब्राह्मणों ने किया। और जितनी आजादी हिन्दुओं को है, और उनमें भी सवर्णों को है, उतनी आजादी बिलक़ीस बानो को तो हरगिज नहीं है। तिरंगा झंडा फहराने के बाद भी नहीं है।

 

(व्यंग्य स्तंभ तिरछी नज़र के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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