यहां हक़ मांगना मना है... उत्तराखंड में मानदेय की मांग करने पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को कार्रवाई की चेतावनी
उत्तराखंड में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता महिलाओं को कई महीने से मानदेय और अन्य खर्च नहीं मिले हैं। विभाग के अधिकारियों ने यह बक़ाया राशि जल्द से जल्द उपलब्ध करवाने या ऐसा आश्वासन देने के बजाय यह आदेश जारी कर दिया है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने बक़ाया मानदेय की मांग न करें वरना उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी।
सैनिट्री नेपकिन बेचने से लेकर मनरेगा तक की ज़िम्मेदारी
उत्तराखंड में सैनिट्री नेपकिन बेचने से लेकर गर्भवतियों-शिशुओं की सेहत का ख़्याल रखने वाली मुख्य ज़िम्मेदारी निबाहने के अलावा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता महिलाओं को राज्य और केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं में भागीदारी करनी पड़ती है (मनरेगा कार्यक्रमों में भी)। इसकी वजह यह है कि वह वरीयता क्रम में सबसे निचले पायदान पर हैं।
अब राज्य में लागू नई शिक्षा नीति (एनईपी-2020) के तहत सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी भी उन्हें ही निबाहनी है...लेकिन समस्या यह नहीं है।
समस्या यह है कि इन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को जो भी मामूली धनराशि मानदेय के रूप में मिलती है वह भी समय पर नहीं मिलती। न सिर्फ़ मानदेय बल्कि अन्य खर्चों के लिए भी इन्हें हमेशा संघर्ष करना पड़ता है। अब विभाग की ओर से इन्हें आदेश जारी कर दिया गया है कि ये मंत्री, डीएम, सीडीओ या अन्य किसी से भी अपना वेतन दिलाने की मांग तक नहीं कर सकतीं।
आंगनबाड़ी कार्यकार्ताओं के संगठन ने इसका विरोध किया है और इस आदेश को मातृशक्ति का मनोबल तोड़ने वाला बताया है। यह मामला हल्द्वानी का है।
अप्रैल से नहीं मिला मानदेय
बता दें कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को केंद्र और राज्य सरकार की ओर से दो भागों में मानदेय दिया जाता है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को कुल 9300 रुपये प्रतिमाह का मानदेय मिलता है जिसमें से 4500 रुपये केंद्र और 4800 रुपये राज्य सरकार देती है।
आंगनबाड़ी सहायक कार्यकर्ता को 6250 रुपये प्रतिमाह मानदेय मिलता है जिसमें से 3500 केंद्र सरकार और 2750 राज्य सरकार देती है। आंगनबाड़ी मिनी कार्यकर्ता को 5250 रुपये प्रतिमाह मानदेय मिलता है जिसमें से 2250 केंद्र सरकार और 3000 राज्य सरकार की ओर से दिया जाता है।
इसके अलावा भवन का किराया और राशन का भुगतान करना भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की ही ज़िम्मेदारी होती है जिसके लिए इन्हें विभाग की ओर से भुगतान किया जाता है। समय पर भुगतान न होने से पैदा होने वाली समस्याएं ज़मीन पर मौजूद इन्हीं कार्यकर्ताओं को झेलनी पड़ती हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को अप्रैल महीने से पूरा मानदेय नहीं मिला है। इसके अलावा भवन का किराया और राशन के देय का भुगतान भी नहीं हुआ है। इसी को लेकर ये कार्यकर्ता समय-समय पर प्रदर्शन करती हैं। इसके साथ ही उच्चाधिकारियों, विभाग के मंत्री और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी देती हैं।
मुख्यमंत्री से की थी शिकायत
बीती 29 जून को भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों के लिए एक दिन का प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजा। इसमें मुख्यमंत्री के सामने 9 समस्याएं रखी गई थीं, उनमें ये प्रमुख हैं।।।
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आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय पिछले कई महीनों से खातों में नहीं आया।
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दो साल से आंगनबाड़ी केंद्रों का भवन किराया नहीं दिया गया है।
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कोरोना काल में काम करने के लिए जिस पारितोषिक की घोषणा मुख्यमंत्री ने की थी वह भी पूरा नहीं दिया गया है।
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धरने के दौरान का मानदेय दिए जाने के मुख्यमंत्री के आदेश और फिर जीओ जारी होने के बाद भी विभाग ने धरने का मानदेय नहीं दिया है।
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कई महीनों से कुक्ड फूड और टीएचआर की धनराशि नहीं दी जा रही है और यह उधार में चल रहा है, इसकी वजह से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता परेशान हो रही हैं।
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सरकार द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों पर अंडे एवं चिप्स दिए जा रहे हैं लेकिन उनको आंगनवाड़ी केंद्रो तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को ही लाना पड़ता है लेकिन इसका ढुलान नहीं दिया जाता। ढुलान की व्यवस्था की जाए या उसके एवज में ढुलान राशि दी जाए।
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मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि सेनेटरी नेपकिन हर आंगनवाड़ी केंद्र में फ्री वितरित किए जाएंगे लेकिन विभाग द्वारा सेनेटरी नेपकिन का पैसा वसूल कर रहा है। इसकी वजह से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एक दुकानदार की भूमिका में आ गई हैं। दूसरी ओर सेनेटरी नेपकिन की क्वालिटी ठीक न होने के कारण उसे कोई लेने को तैयार नहीं होता और वह आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की गले की हड्डी बने हुए हैं।
ख़बरदार... अपने बक़ाया की मांग न करें
ये आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की व्यवहारिक दिक्कतें हैं और इनमें से कोई समस्या या मांग ऐसी नहीं लगती जिसका निराकरण न किया जाना हो। विभाग ने भी इन समस्याओं पर कोई बात नहीं की बल्कि उसने अपना अधिकार मांगने के मूल अधिकार को ही छीनने की कोशिश की।
हल्द्वानी शहर के बाल विकास परियोजना अधिकारी ने 4 जुलाई को क्षेत्र की सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के नाम एक कार्यालय आदेश जारी किया। इसमें कहा गया, “आपके द्वारा समय-समय पर अपनी समस्याओं जैसे भवन किराया, मानदेय समय पर न मिलने आदि के संबंध में जनप्रतिनिधियों/ ज़िलाधिकारी/ मुख्य विकास अधिकारी/ ज़िला कार्यक्रम अधिकारी और निदेशालय को अपनी शिकायत प्रेषित की जा रही है। उक्त के क्रम में आप सभी को निर्देशित किया जाता है कि भविष्य में आप अपनी क्षेत्रीय सुपरवाइज़र/ अधोहस्ताक्षरी को ही अपनी शिकायतें प्रेषित करेंगी। यदि आपके द्वारा इस पर अमल न किया गया तो आपके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई हेतु बाध्य होना होगा, जिस हेतु आप स्वयं उत्तरदायी होंगी।”
बाल विकास परियोजना अधिकारी के हस्ताक्षर से जारी इस कार्यालय आदेश की प्रति ज़िला कार्यक्रम अधिकारी नैनीताल और हल्द्वानी शहर के सभी सुपरवाइज़र को भेजी गई है।
लोकतंत्र की भावना के ख़िलाफ़
आंगनबाडी कार्यकर्त्री/ सेविका/ मिनी कर्मचारी संगठन, उत्तराखंड की प्रदेश अध्यक्ष रेखा नेगी ने हल्द्वानी के बाल विकास परियोजना अधिकारी के पत्र का जवाब देते हुए लिखा कि उनके द्वारा लिखित पत्रों से आदेश हुआ कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुपरवाइजर के सामने ही अपनी बात रखें। सवाल यह है कि क्या परियोजना में सुपरवाइजर को पता नहीं है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय कब से नहीं आया? क्या परियोजना अधिकारी को मालूम नहीं है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भवन किराया न मिलने से परेशान है?
पत्र में लिखा गया है, “आपके संज्ञान में सब कुछ होने के बावजूद भी आपके द्वारा इस तरह का पत्र जारी करने पर संगठन इस बात का घोर निंदा करता है। हम जानते हैं कि आप मानदेय जारी नहीं कर सकते लेकिन कम से कम इस तरह के पत्र जारी करके आप हमारी बहनों का और मातृशक्ति का मनोबल कम न करें।”
कर्मचारी संगठन एटक (AITUC) के राज्य उपाध्यक्ष समर भंडारी ऐसे नोटिस को अलोकतांत्रिक बताते हैं। वह कहते हैं कि अगर अगर किसी कर्मचारी की समस्या नहीं सुनी जा रही है तो उसे उच्चाधिकारी, मंत्री से बात करने का पूरा अधिकार है और किसी भी तरह इसे छीना नहीं जा सकता।
ज़िला स्तर पर समस्याएं निपटाने को कहा था
महिला और बाल विकास विभाग के सचिव हरीश चंद्र सेमवाल कहते हैं कि ज़िला परियोजना अधिकारियों को आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की समस्याओं का ज़िलास्तर पर ही निराकरण करने को कहा गया था ताकि उन्हें परेशान होकर उच्चाधिकारियों के पास न आना पड़े।
सेमवाल हल्द्वानी के बाल विकास परियोजना अधिकारी द्वारा जारी आदेश से अनभिज्ञता जताते हुए मानते हैं कि ऐसा आदेश देना सही नहीं है। वह कहते हैं कि नैनीताल ज़िला परियोजना अधिकारी को मामले का निस्तारण करने को कहा जाएगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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