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जब बच्चों की हत्या हो रही हो तो इसमें जश्न मनाने की कौनसी बात है?

फ़िलिस्तीनियों में मुक़ाबला करने की हिम्मत, भयानक हिंसा के सामने मानवीय साहस और गरिमा का एक सशक्त उदाहरण है।
palestine crisis
फ़िलिस्तीनी चित्रकार इस्माइल शमौत द्वारा बनाई गई गार्डियन ऑफ़ द फ़ायर (1988) का विवरण। ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फ़ॉर सोशल रिसर्च के माध्यम से लिया गया।

दक्षिण कोरियाई लेखिका, हान कांग को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिलने की खबर आने के बाद उनके पिता हान सेउंग-वोन ने उनसे पूछा कि क्या वह पुरस्कार के बारे में बात करने के लिए कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस कहां करना चाहती हैं। उन्होंने अपनी कहानियां चांगबी और कविताएं मुन्हाकडोंगने से प्रकाशित करवाई थीं, दोनों ही प्रकाशन उन्हें खास अतिथि के तौर मेजबानी करने की उम्मीद जता रहे थे। द वेजिटेरियन के लिए 2016 की बुकर पुरस्कार विजेता 53 वर्षीय लेखिका हान कांग ने सोचा कि वह प्रेस से बात करेंगी। लेकिन फिर, विचार आया और उन्होंने अपने पिता से कहा कि उन्हें प्रेस से बात करने के बजाय एक बयान देना चाहिए। "युद्ध के तेज़ होने और हर दिन लोगों के मारे जाने की खबरों के बीच," उन्होंने अपने पिता के ज़रिए प्रेस से कहा कि इन हालात में, "हम जश्न कैसे मना सकते हैं या प्रेस कॉन्फ्रेंस कैसे कर सकते हैं?"

इस साल नोबेल समिति ने शांति पुरस्कार निहोन हिडांक्यो नामक संगठन को दिया जिसने विश्व को "परमाणु हथियारों से मुक्त बनाने के लिए प्रयास किए और गवाहों के बयानों के ज़रिए यह प्रदर्शित करने की कोशिश की कि परमाणु हथियारों का फिर कभी इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।" इस समूह का गठन 1956 में हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिकी परमाणु हमलों के बचे लोगों ने किया था। इसका मिशन शुरू से ही परमाणु और अन्य खतरनाक हथियारों पर प्रतिबंध लगाना रहा है। इसका पहला मक़सद 6 अगस्त को हिरोशिमा दिवस मनाना था ताकि ऐसे हथियारों के खतरों के बारे में प्रचार किया जा सके (दुख की बात है कि ये आयोजन अब कम प्रभावशाली हो गए हैं, लेकिन शायद नोबेल पुरस्कार उनका दर्जा बढ़ाएगा)। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में, निहोन हिडांक्यो के सह-प्रमुखों में से एक तोशीयुकी मिमाकी (जो तीन साल की उम्र में हिरोशिमा में परमाणु विकिरण से पीड़ित थे) ने कहा, "मुझे लगा कि यह पुरस्कार गज़ा में कड़ी मेहनत करने वाले उन लोगों को मिलेगा... जो गज़ा में, खून से लथपथ बच्चों को [उनके माता-पिता द्वारा] संभाल रहे हैं। यह दृश्य 80 साल पहले के जापान जैसा ही है।"

तबाही के असर को देखते हुए यह कुछ जापान जैसा ही दिखता है: मिमाकी ने जिन "खून बहाते बच्चों" का उल्लेख किया, वे दृश्य पिछले एक साल से लगातार दिखाई दे रहे हैं। लेकिन इसका क्रियान्वयन जापान जैसा नहीं है। जब अमेरिकी सेना ने हिरोशिमा और फिर तीन दिन बाद नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था, तब केवल कुछ ही लोगों को इसकी घातक मारक क्षमता का पता था। बम गिरने के बाद, पहले जापान और फिर संयुक्त राज्य अमेरिका ने पत्रकारों को उनके प्रभाव पर रिपोर्टिंग करने से रोक दिया था। हिरोशिमा के मुख्य समाचार पत्र चुगोकू शिंबुन के 141 कर्मचारी हमले में मारे गए थे। जो लोग बचे गए, उन्होंने राहत अवसरों के बारे में व्यक्तिगत रूप से जानकारी देने के लिए वर्बल रिपोर्टिंग कोर या कुडेनताई का गठन किया था। अखबार के योशितो मात्सुशिगे ने तबाही की कुछ सबसे मार्मिक तस्वीरें लीं। दो विदेशी रिपोर्टर- लेस्ली नाकाशिमा (एशियाई अमेरिकी) और विल्फ्रेड बर्चेट (ऑस्ट्रेलियाई)- हिरोशिमा से रिपोर्ट करने के लिए बैरिकेड्स तोड़कर आगे बढ़े। नाकाशिमा ने 31 अगस्त, 1945 को यूनाइटेड प्रेस इंटरनेशनल के लिए लिखा था कि, “300,000 की आबादी वाला शहर अचानक गायब हो गया।”

बम गिरना जारी है

वास्तव में, शहर गायब नहीं हुआ। भारी इजरायली बमबारी (हिरोशिमा और नागासाकी की तुलना में गज़ा में कहीं अधिक गोलाबारी का इस्तेमाल किया जा रहा है) के बावजूद, फ़िलिस्तीनी गज़ा में अपने घरों और ठिकानों में टिके हुए हैं। वे इन्हे छोड़ने से इनकार कर रहे हैं, जैसा कि उनमें से कई ने मुझे बताया, क्योंकि उन्हें 1948 की अपने दादा-दादी और माता-पिता की कहानियां याद हैं; जब इजरायलियों ने उन्हें उनके गांवों से भगा दिया था, तो उन्होंने उन्हें कभी वापस नहीं आने दिया। विद्रोह की उस भावना के साथ उन्हे यह मालूम है कि हक़ीक़त में उनके जाने के लेई कहीं कोई जगह नहीं बची है, फ़िलिस्तीनियों को मलबे में दफन किया जा रहा है।

और फिर भी इजरायल ने अपनी बमबारी बंद नहीं की है। एक परमाणु बम नहीं, बल्कि हजारों ऐसे घातक बम हैं जो इजरायली जेट से लगातार बरस रहे हैं। दिसंबर 2023 में, इजरायली अधिकारियों ने खान यूनिस के ठीक पश्चिम में अल-मवासी को मानवीय या सुरक्षित क्षेत्र के रूप में नामित किया था। इसके बावजूद, इजरायल ने इस सुरक्षित क्षेत्र के भीतर बस्तियों और ठिकानों पर हमला करना जारी रखा हुआ है, जिससे पहले से ही जो कुछ भी था, वह आम लोगों के लिए तय हिस्से से और भी कम हो गया है। इस इलाके में प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या का घनत्व लगभग 35,000 है, जो पृथ्वी पर सबसे घनी आबादी वाली जगह (21,000 की जनसंख्या घनत्व वाला एक छोटा शहर मकाऊ) से कहीं अधिक है, और - तुलना के लिए - संयुक्त राज्य अमेरिका में जनसंख्या का घनत्व 35 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है।

इस महीने के एक हफ़्ते के भीतर, इज़रायलियों ने तीन स्कूलों पर हमला किया जो अल-मवासी से 15 किलोमीटर उत्तर में डेर अल-बलाह में आश्रय स्थल बन गए हैं, जैसा कि अबूबकर अबेद ने बताया: अहमद अल-कुर्द स्कूल (5 अक्टूबर), अल-आयशा स्कूल (3 अक्टूबर), और रुफैदा अल-असलामिया सेकेंडरी स्कूल फॉर गर्ल्स (10 अक्टूबर) को निशाना बनाया गया। सुबह 11:30 बजे से ठीक पहले रुफैदा स्कूल पर इज़रायली हमलों में 28 फ़िलिस्तीनी मारे गए, जिनमें से कई बच्चे और बुज़ुर्ग थे, और उनमें से दो संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के कर्मचारी थे। जैसा कि इमाद ज़कौत ने बताया, बम तब गिरे जब आश्रय स्थल के समन्वयक बच्चों और उनके माता-पिता को फॉर्मूला दूध बांट रहे थे।

इजरयल द्वारा गिराए गए बम – जीबीयू-39 को बोइंग ने बनाया है, और इन्हें छर्रे फैलाने और विस्फोट में जीवित बचे लोगों को भी बहुत शारीरिक नुकसान पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। आश्रय स्थलों में रह रहे किसी भी इंसान का यह नहीं मानना है कि इजरायल ये हमले हमास के गुर्गों को मारने के लिए पर हमला किया है। लोगों की पहचान कर ली गई है, और हर कोई उन्हें जानता है और यह भी जानता है कि वे किसी हमास ढांचे का हिस्सा नहीं हैं। मारे गए सबसे कम उम्र के व्यक्ति अला अल-सुल्तान (उम्र छह) और सबसे बुजुर्ग सुमाया यूनिस अल-कफर्ना (उम्र 87) थे। मृतकों में सलीम रुवैशिद अल-वकादी (उम्र 26) नामक एक बहुत ही लोकप्रिय पुलिसकर्मी और अहमद अदेल हमौदा (उम्र 58) नामक स्कूल के प्रशासक शामिल हैं।

मनुष्य डरावने हैं

जिन लोगों ने हान कांग की ह्यूमन एक्ट्स (2016) पढ़ी है, वे नोबेल पुरस्कार और गज़ा में नरसंहार के प्रति उनकी प्रतिक्रिया से आश्चर्यचकित नहीं होंगे। जब वे 10 साल की थी, 1980 में, दक्षिण कोरियाई सैन्य तानाशाही चुन डू-ह्वान ने लोकतंत्र के लिए ग्वांगजू विद्रोह के खिलाफ भयानक बल का इस्तेमाल किया। हान कांग के गृहनगर में हुई इस हिंसा में हज़ारों लोग मारे गए और घायल हुए थे। जब वह 13 साल की थी, तो उसके पिता ने उसे हिंसा की तस्वीरों का एक एल्बम दिखाया था। हान कांग ने 2016 में कहा कि, "अगर मैं बड़ी होती, तो मुझे नए सैन्य शासन के प्रति गुस्से से सामाजिक जागृति का अनुभव होता। लेकिन मैं बहुत छोटी थी। मेरा पहला विचार यह था कि मनुष्य डरावने होते हैं।"

ह्यूमन एक्ट्स मई 1980 से लेकर अब तक के कई किरदारों की कहानी कहता है: विद्रोह में जियोंग-डे की मौत हो जाती है, यून-सूक और कांग डोंग-हो मृतकों को इकट्ठा करते हैं, किम जिन-सू जेल जाते हैं और दस साल बाद आत्महत्या कर लेते हैं, जबकि सेन-जू को सेना प्रताड़ित करती है। ये सब भयानक हिंसा के सामने मानवीय साहस और गरिमा की शक्तिशाली कहानियां हैं। हान कांग और अन्य लोग फ़िलिस्तीनी संकट में यही सब देखते हैं: इजरायल की हिंसा भयानक है, लेकिन फ़िलिस्तीनियों की मुक़ाबला करना यह मांग करता है कि मनुष्य ऐसे कार्य करें जो इस भावना को नकार दें कि "मनुष्य डरावने होते हैं।"

विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। उन्होंने 20 से ज़्यादा किताबें लिखी हैं, जिनमें द डार्कर नेशंस और द पुअरर नेशंस शामिल हैं। उनकी नवीनतम किताबें ऑन क्यूबा: रिफ़्लेक्शन ऑन 70 इयर्स ऑफ़ रेवोल्यूशन एंड स्ट्रगल, स्ट्रगल मेक्स अस ह्यूमन: लर्निंग फ़्रॉम मूवमेंट्स फ़ॉर सोशलिज़्म, और (नोम चोम्स्की के साथ) द विदड्रॉल: इराक, लीबिया, अफ़गानिस्तान, एंड द फ़्रैगिलिटी ऑफ़ यूएस पावर हैं।

यह आलेख ग्लोबट्रॉटर ने तैयार किया है।

ाभार: पीपल्स डिस्पैच

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