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निर्भया कांड के 11 साल, आज भी नहीं सुरक्षित महिलाएं!

दिल्ली में महिलाओं के ख़िलाफ़ क्राइम रेट 144.4 है, जो क्राइम रेट के राष्ट्रीय औसत 66.4 से काफ़ी ऊपर है।
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फ़ोटो साभार : The Indian Express

हर साल 16 दिसंबर की तारीख, हमें 2012 की वो भयावह रात की याद दिलाती है, जब देश की राजधानी दिल्ली में एक युवा लड़की 'निर्भया' का चलती बस में गैंगरेप हुआ था। निर्भया कांड को इक्कीसवीं सदी में हिंदुस्तान को झकझोर देने वाला मामला कहा जा सकता है। इस घटना ने पूरे देश की जनता को एक साथ सड़क पर ला खड़ा किया था। जगह-जगह मोमबत्तियां और प्लेकार्ड पकड़े हुए लोग 'निर्भया को इंसाफ दो’, 'लड़की के कपड़े नहीं, अपनी सोच बदलिए' और 'बेटियों के लिए चाहिए सुरक्षा' जैसे नारे लगा रहे थे।

इस घटना को केवल अपनी जघन्यता के लिए ही नहीं याद किया जाता, बल्कि इसके बाद भारतीय क़ानून व्यवस्था में स्त्रियों के पक्ष में आए तमाम बदवालों के लिए भी इस संघर्ष को याद किया जाता है। हालांकि ये बात और है कि महिला सुरक्षा की देश और राजधानी में जो स्थिति तब थी, वही कमोबेश आज भी है। यहां देश की संसद और राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, गृमंत्री समेत सभी सांसदों के आवास भी हैं, बावजूद इसके महिला सुरक्षा के हालात आज भी जस के तस हैं।

नए साल की शुरुआत महिला हिंसा के साथ

शायद आपको याद हो कि इसी साल 2023 की शुरुआत में ही जिस वक़्त पूरा देश नए साल की खुशियां मना रहा था, ठीक उसी समय राजधानी दिल्ली की सड़कों पर पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था के बीचों-बीच, कई महिलाएं बर्बरता और हिंसा का शिकार हुई थीं। दिल्ली के सुल्तानपुरी में युवती को कार से घसीटने से लेकर पूर्वी द‍िल्‍ली के पांडव नगर में द‍िनदहाड़े एक लड़की को कार में खींचने और उस पर तेजाब फेंकने की कोशिश, और फिर आदर्श नगर में दोस्ती तोड़ने पर युवक द्वारा युवती को चाकू से गोद डालने की घटना तमाम अखबारों की सुर्खियों में थी। और अब जब साल खत्म हो रहा है, तो अपराधों का लेखा जोखा रखने वाली संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB रिपोर्ट के चिंताजनक आंकड़ें हमारे सामने हैं।

NCRB के मुताबिक राजधानी दिल्ली का महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध की दर के मामले में सबसे खराब रिकॉर्ड है। दिल्ली में महिलाओं के ख़िलाफ़ क्राइम रेट 144.4 है, जो क्राइम रेट के राष्ट्रीय औसत 66.4 से काफी ऊपर है। ये क्राइम रेट प्रति 1 लाख महिलाओं पर है। आसान भाषा में समझें तो ये आबादी के लिहाज़ से है यानी 1 लाख महिलाओं पर कितनी महिलाएं अपराध का शिकार हुईं, ये वो प्रतिशत है। महिलाओं के ख़िलाफ़ क्राइम रेट हरियाणा में 118.7, तेलंगाना में 117, राजस्थान में 115.1 है।

ध्यान रहे कि दिल्ली की कानून व्यवस्था दिल्ली सरकार नहीं, केंद्र सरकार के पास है। और राष्ट्रीय राजधानी का ये हाल तब है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल की भी समाप्ति की ओर जा रहेहैं। ये वही 'महिला हितैषी' प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अपनी कई चुनावी रैलियों में दिल्ली को 'रेप कैपिटल' कहा था। 2014 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपने पहले स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बढ़ते बलात्कारों पर बात भी की थी लेकिन उसके बाद से दिल्ली सहित देशभर में यौन हिंसा के केस बढ़ते रहे जिनमें कई प्रभावशाली लोग भी शामिल थे। लेकिन नरेंद्र मोदी ने सिर्फ़ एक बार 2018 में ट्वीट किया कि भारत की बेटियों को इंसाफ़ मिलेगा। तब उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों पर बलात्कार के आरोप सुर्खियों में थे। इसके बाद मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए भयावह कांड पर भी प्रधानमंत्री ने काफी समय बाद दुख जताया था।

महिला सुरक्षा के दावे और हक़ीक़त

याद हो कि साल 2014 में बिहार की  एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा था, "भाइयो-बहनो... दिल्ली की धरती पर निर्भया का कांड हुआ। एक गरीब बेटी को जुल्म से मार दिया गया। उससे बलात्कार हुआ। ये निर्भया कांड आपकी आंख के सामने हुआ। ये नीच राजनीति है कि नहीं? आपने 1000 करोड़ रुपये का निर्भया का फंड बनाया, एक साल हो गया, एक पैसा खर्च नहीं किया। ये नीच राजनीति है कि नहीं है? ये निर्भया के साथ धोखा है, ये नीच कर्म है कि नहीं है? नीच राजनीति कौन करता है?”

गौरतलब है कि निर्भया कांड को आज 11 साल हो गए और आज देश के ज्यादातर राज्यों में बीजेपी शासित सरकारें हैं और हर साल की तरह इस साल भी महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध मामले में बढ़ोतरी देखने को मिली है। रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए। जबकि इससे पहले 2021 में 4,28,278 और 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज किए गए थे। यानी बीते साल 2022 में महिला अपराध के सिलसिले में हर घंटे लगभग 51 मामले दर्ज किए गए। ये डेटा महिला सुरक्षा के तमाम वादों और इरादों से इतर एक अलग सच्चाई बयान करता है।

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