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कोविड के नाम रहा साल: हमने क्या जाना और क्या है अब तक अनजाना 

कोविड-19 के लक्षणों के व्यापक फैलाव के पीछे की वजहों को अभी भी पूरे तौर पर समझना शेष है, जो लक्षणहीन संक्रमित लोगों से शुरू होकर वेंटिलेशन के भरोसे चल रहे लोगों तक व्यापक स्तर पर मौजूद है।
कोरोना वायरस

पिछले साल 31 दिसंबर के दिन चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को एक रहस्यमयी वायरस के बारे में सूचित किया था, जिसकी वजह से देश में निमोनिया का प्रकोप फ़ैल रहा था। उस दौरान वायरस के बारे में कुछ भी खास पता नहीं चल सका था, यहाँ तक कि इसका कोई नाम भी नहीं रखा गया था। लेकिन वैज्ञानिक और मेडिकल कर्मियों को जो बात समझ में आई, वह यह थी कि यह एक असाधारण खतरे की घंटी थी, जिसने अंततः समूचे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया।

इसके दो हफ़्तों के भीतर ही चीनी वैज्ञानिक इस नवीनतम कोरोनावायरस के जीनोम अनुक्रम का पता लगा पाने में सक्षम रहे और इसके कुछ हफ़्तों के भीतर ही पहले परीक्षण किट को तैयार कर लिया गया था। अब जबकि साल खत्म होने को है, कुछ लोगों को पहले से ही परीक्षण टीके हासिल हो चुके हैं। यहाँ तक कि इस विश्वव्यापी आपाधापी के बीच में भी वैज्ञानिकों ने उल्लेखनीय एवं अभूतपूर्व रफ्तार के साथ अपने प्रयासों को जारी रखा है।

इस सबके बावजूद इस बीमारी और वायरस के बारे में कुछ महत्वपूर्ण पहलू अभी भी बने हुए हैं और इस वायरस के बारे में अभी भी कुछ ठोस वैज्ञानिक निष्कर्षों का इंतजार है।

क्यों कुछ लोग बाकियों की तुलना में इससे गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं ?

कोविड-19 के लक्षणों के व्यापक फैलाव के पीछे की वजहों को अभी भी पूरे तौर पर समझना शेष है, जो लक्षणहीन संक्रमित लोगों से शुरू होकर चिकत्सीय वेंटिलेशन के भरोसे चल रहे लोगों तक व्यापक स्तर पर मौजूद है। शोध के अनुसार इसमें आयु एवं पहले से ही मौजूदा चिकित्सा की स्थिति उन लोगों के लिए सामान्य जोखिम के कारक हैं जो गंभीर रूप से बीमार हैं, और प्राथमिक तौर पर प्रतिरोधक प्रणाली के चलते महिलाओं की तुलना में पुरुषों को इससे कहीं अधिक खतरा है।

हालाँकि इसमें एक प्रमुख समानता इसके प्रति गंभीर भड़काऊ प्रतिक्रिया के तौर पर देखने को मिली है। इसमें शरीर के स्वयं की प्रतिरोधक प्रणाली अपनी राह से भटकते हुए वायरस के खिलाफ निशाना साधने के प्रयास में भटककर अपने ही अंगों पर दाहक हमलों की प्रक्रिया को जारी रखती है। यह हाइपर प्रतिक्रियाशील प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ही वह मुख्य समस्या है, जिसको गंभीर तौर पर बीमार मरीजों को झेलना पड़ता है।

अगस्त में नेचर में प्रकाशित एक शोधपत्र में शोधकर्ताओं ने पाया कि शुरूआती प्रतिरोधक प्रतिक्रिया के दौरान दो महत्वपूर्ण प्रोटीन, टीएनएफ अल्फ़ा एवं इंटरल्युकिन 6 हैं, जिनकी उच्चतर स्तर पर उपस्थिति से यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन सा मरीज गंभीर बीमारी से पीड़ित रहने वाला है या यहाँ तक कि उसकी मृत्यु तक हो सकती है। यह अध्ययन में 1,500 अस्पतालों में भर्ती मरीज शामिल थे।

एक बार फिर से लक्षणहीन या बेहद कम लक्षणों के साथ प्रभावित रोगियों के मामले सबसे अधिक भ्रामक साबित हुए हैं। संक्रमण के प्रति कुछ लोग कैसे लक्षणहीन बने रह पाते हैं, इसे अभी भी ठीक-ठीक नहीं समझा जा सका है। हालाँकि इस बारे में वैज्ञानिक पिछले कोरोनावायरस से पीड़ित होने (एसएआरएस-सीओवी-2 से अलग) के पीछे की संभावनाओं को देख रहे हैं, जो सामान्य सर्दी जुकाम की वजह बना था। इस प्रकार के मामलों में विकसित होने वाली मेमोरी टी सेल के बारे में माना जाता है कि यह मरीजों में थोड़ी-बहुत प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

जहाँ तक बच्चों में संक्रमण का प्रश्न है तो उसमें मुख्य तौर पर एक पहलू यह है कि बच्चों के बीच में कम गंभीर संक्रमण पाया गया है। इसकी एक वजह बच्चों की नाक में एसीई2 रिसेप्टर्स की कम संख्या में मौजूदगी से संबंधित हो सकती है। एसीइ2 रिसेप्टरस वह प्रवेश द्वार है, जिसके जरिये एसएआरएस-सीओवी-2 कोशिकाओं में अपना प्रवेश द्वार बनाता है।

संक्रमण का दीर्घकालिक प्रभाव 

हालाँकि यह स्पष्ट हो चुका है कि कुछ रोगियों में कोविड-19 की वजह से लंबे समय तक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव देखने को मिल सकता है, लेकिन दीर्घ कोविड या कोविड-पश्चात लक्षण जैसी कुछ शब्दावली को लेकर कोई व्यापक सहमति वाली परिभाषा नहीं बनी है। हालाँकि संक्रमण के पश्चात पमुख लक्षण जो लंबे समय तक खिंच सकते हैं जैसे कि हृदय संबंधी असमान्यताएं, मष्तिष्क के कार्यों में व्यवधान, थकान एवं सांस संबंधी समस्याएं शामिल हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि जरुरी नहीं कि ये समस्याएं आरंभिक गंभीर बिमारियों से सम्बद्ध हों।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि तकरीबन 10% कोविड-19 मरीजों में स्वास्थ्य प्रभाव 12 हफ़्तों तक लम्बा खिंच सकता है। 

4,182 संक्रमित लोगों के बीच चलाए गए एक बड़े दल के अध्ययन में पाया गया है कि 13.3% लोगों में चार हफ़्तों से अधिक समय तक लक्षणों को पाया गया, 4.5% में आठ हफ़्तों और 2% में इसे 12 हफ़्तों से अधिक समय तक पाया गया। हालाँकि ठीक हो चुके लोगों के बीच में इसके क्या दीर्घकालीन प्रभाव देखने को मिल सकते हैं, इस बारे में अभी भी बेहतर समझ नहीं बन सकी है। इसके साथ ही उपचार प्राप्त मरीजों के कितने हिस्से तक में इसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने वाला है, यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित बना हुआ है। 

प्रकृति प्रदत्त प्रतिरोधक क्षमता कितने समय तक मौजूद रह सकती है 

प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावी तौर पर बेअसर करने वाली एंटीबाडीज के साथ-साथ एसएआरएस-सीओवी-2 से लड़ने के लिए मेमोरी टी सेल को भी उत्पन्न करने में सक्षम है। लेकिन वास्तव में यह प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को कितने समय बने रह सकती है, इसको लेकर सवाल बना हुआ है। इसकी एक वजह यह है कि इस वायरस को अभी कुछ ही समय हुआ है, जिसके चलते इसके बारे में अध्ययन के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल सका है।

दोबारा से संक्रमण के मामले भी प्रकाश में आये हैं, जिसने कुछ अध्ययनों के आधार पर बनी इस धारणा को चुनौती देने का काम किया है कि प्राकृतिक प्रतिरक्षा कम से कम छह महीनों तक बनी रह सकती है। उदहारण के लिए हांगकांग मामले में, जहाँ पर पुनर्संक्रमण के पहले मामले को दर्ज किया गया था। उस व्यक्ति के पहली बार संक्रमित होने के साढ़े चार महीने के भीतर वह दोबारा से संक्रमित हो गया था। 

इसके अलावा पुनर्संक्रमण की आवृत्ति कितनी अधिक या आम घटना है यह अभी भी स्पष्ट नहीं है, क्योंकि इस प्रकार के कुछ ही मामलों का दस्तावेजी प्रमाण दर्ज किया गया है। पुनर्संक्रमण की आवृत्ति के साथ-साथ पहली दफा से क्या इसमें कोई भिन्नता है, को लेकर अध्ययन जारी है। मिशिगन विश्वविद्यालय के महामारीविद, ऑबरी गॉर्डन उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने इस अध्ययन का बीड़ा उठा रखा है।

वायरस की उत्पत्ति 

इस बीच आधुनिकतम कोरोनावायरस की उत्पत्ति को लेकर कई षड्यंत्रों वाले सिद्धांत के साथ-साथ कुछ मिथ्या धारणाएं भी प्रकाश में आई हैं। इस प्रकार की एक षड्यंत्रकारी सिद्धांत के अनुसार, इस वायरस को एक चीनी लैब में निर्मित किया गया था, और फिर इसे दुनिया में जारी किया गया था। यहाँ तक कि डोनाल्ड ट्रम्प तक ने सवाल खड़े किये थे कि क्या यह वायरस वुहान की प्रयोगशाला में पैदा किया गया था और वहां से इसे शेष विश्व के लिए जारी किया गया था।

इसके साथ एक और सिद्धांत यह था कि इसका संबंध वुहान के मांस बाजार से था, जहाँ जिन्दा जानवरों को बेचा जाता है। हालाँकि लैंसेट के अध्ययन में पाया गया कि इस प्रकोप की शुरूआती अवधि के दौरान जिन एक तिहाई रोगियों में संक्रमण फैला था, उनका इस बाजार से कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि इस वायरस की जंगली उत्पत्ति हुई है।

ऐसे अध्ययन भी मौजूद हैं जो कहते हैं कि यह वायरस अमेरिका और यूरोप में दिसंबर 2019 से विचरण कर रहा होगा। 

इन सभी साजिशों वाले सिद्धांतों के बावजूद वैज्ञानिकों का मत है कि यह वायरस पशुजन्य है, अर्थात इसकी उत्पत्ति किसी जानवर से हुई है। कई वैज्ञानिकों का मत है कि चमगादड़ ही सबसे अधिक संभावना वाली प्रजाति है, जिससे इस वायरस की उत्पत्ति हुई होगी और वहां से अंततः यह मनुष्यों तक पहुँचा होगा। हालाँकि जो बात अभी भी अस्पष्ट बनी हुई है वह यह है कि वो कौन सी जगह रही होगी जहाँ से यह वायरस इंसानों में प्रविष्ठ किया होगा, और क्या यह किसी पेंगोलिन या गंधबिलाव जैसी मध्यस्थ प्रजातियों के माध्यम से प्रविष्ठ हुआ था।

इस मह्मारी का खात्मा कब तक होगा?

महामारी के इर्दगिर्द के सभी प्रश्नों में बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि इस महामारी का खात्मा आखिर कब तक होगा। टीके की खोज ने यहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण रोल अदा किया है, क्योंकि इसे वायरस के खिलाफ सबसे बड़े हथियार के तौर पर देखा जा रहा है। संभावित टीके के सम्बंध में चलाए जा रहे शोध को लेकर जो प्रगति देखने को मिली है, उसे आधुनिक चिकित्सा के इतिहास में बेहद उल्लेखनीय कहा जा सकता है। यहाँ तक कि कुछ लोगों को पहले से ही टीका लगाया जा चुका है। इस सबके बावजूद ये सवाल अभी तक अनुत्तरित बने हुए हैं कि इन टीकों के माध्यम से किस प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता हासिल होने जा रही है। इसके अलावा विश्व भर में टीकाकरण को सम्पन्न करने में कुछ साल लग सकते हैं।

और इस सबके बाद भी इस तथ्य पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है कि अभी तक सिर्फ चेचक के टीके के जरिये ही किसी वायरस को जड़ से समाप्त कर पाने में सफलता मिल सकी है।

महामारी की इस समूची गतिशीलता में वायरल म्युटेशन (उत्परिवर्तन) की भी एक प्रभावशाली भूमिका निभाने की संभावना है। किसी भी प्रकार के उत्परिवर्तन से रोगजनक को अपने विस्तार में सहयोग प्राप्त होता है, जबकि दूसरी तरफ यह वायरस को कमजोर बनाने में भी मददगार साबित हो सकता है। हालिया यूके स्ट्रेन के बारे में जो जानकारी मिल रही है, उसके अनुसार यह पूर्व स्ट्रेन की तुलना में कहीं ज्यादा संक्रामक पाया गया है। इसलिए वायरस के संभावित भविष्य के स्ट्रेन भी टीके के कामकाज को प्रभावित कर सकते हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें। 

A Year of COVID-19: The Known and Unknown

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